मेंडलीफ और आधुनिक आवर्त सारणी की विशेषताएं
तत्त्वों का वर्गीकरण
अब तक 112 तत्त्वों की खोज हो चुकी है और नये तत्त्वों की खोज जारी है। इतने तत्त्वों के गुणों को याद रखना सम्भव नहीं है ऐसे में वैज्ञानिकों ने अध्ययन को सरल एवं क्रमबद्ध बनाने के लिए तत्त्वों को वर्गीकृत करने का प्रयास प्रारम्भ किया। समान भौतिक एवं रासायनिक गुण वाले तत्त्वों को एक ही वर्ग में रखने का प्रयास किया गया जिसमें उनके गुणों का अध्ययन सरलतापूर्वक हो सके। इस दिशा में वर्जीलियस, प्राउट, ड्यूमा, न्यूलैंड, लोथरमेयर एवं मेंडलीफ व बोर आदि का प्रयास सराहनीय रहा जिससे आगे चलकर आधुनिक आवर्तसारणी का निर्माण किया गया। उपर्युक्त वैज्ञानिकों में सबसे सुव्यवस्थित वर्गीकरण रुसी वैज्ञानिक मेंडलीफ ने किया। इन्होनें एक नियम दिया जिसे मेंडलीफ का आवर्त नियम कहते है। इस नियम के अनुसार, "तत्त्वों के भौतिक तथा रासायनिक गुण उनके परमाणु भारों के आवर्ती फलन होते है, " अर्थात् यदि तत्त्वों को उनके परमाणु भारों के बढ़ते क्रम में व्यवस्थित किया जाये, तो एक नियमित अन्तराल के पश्चात् समान गुणधर्म वाले तत्त्वों की पुनरावृत्ति होती है। जिसे आवर्ती फलन कहते है।
मेंडलीफ की आवर्त सारणी की विशेषताएं
जिस समय मेंडलीफ ने आवर्त सारणी का निर्माण किया था उस समय 60 तत्त्व ज्ञात थे आगे और तत्त्वों का पता चलने पर उन्होने संशोधित आवर्त सारणी प्रस्तुत की। इसमें नौ उर्ध्वाधर (वर्ग) सात क्षैतिज पंक्तियां (आवर्त) है।
आवर्तो की विशेषताएं
1 प्रथम आवर्त में मात्र दो तत्त्व हैं इसे अति लघु आवर्त कहते है।
2 द्वितीय एवं तृतीय में 8 8 तत्त्व हैं इसे लघु आवर्त कहते है।
3 चौथे व पाँचवें आवर्त में 18 18 तत्त्व हैं इसे दीर्घ आवर्त कहते है।
4 छठे आवर्त में 32 तत्त्व हैं इसे अति दीर्घ आवर्त तथा सातवाँ आवर्त 20 तत्त्वों के साथ अपूर्ण आवर्त है।
संयोजकता में परिवर्तन
1. लघु आवर्तो के तत्त्वों की संयोजकता, हाइड्रोजन के सापेक्ष पहले 1 से 4 तक बढ़ती है पुनः घटकर एक हो जाती है।
2. लघु आवतों में तत्त्वों की संयोजकता आक्सीजन के सापेक्ष 1 से 7 तक बढ़ती है।
धात्विक अधात्विक गुण में परिवर्तन
आवर्तो में बायीं ओर से दायी ओर बढ़ने पर तत्त्वों के धात्विक गुणों में कमी होती है और अधात्विक गुणों में वृद्ध होती है। इसी प्रकार बायी ओर से दायीं ओर चलने पर विद्युत धनात्मकता में कमी एवं ऋणात्मकता में वृद्ध होती है।
तत्त्वों की प्रकृति में परिवर्तन
आवर्त में तत्त्वों के आक्साइडों का गुण बायें से दायें जाने पर क्षारीयता से अम्लीयता की ओर बढ़ता है।
तत्त्वों के विकर्ण सम्बन्ध
द्वितीय एवं तृतीय आवर्त के तत्त्वों में एक प्रकार का विकर्ण संबंध पाया जाता है।
समूहों की सामान्य विजेषताएं
आर्वत्त सारणी में उर्ध्वाधर 9 खानें हैं इन्हें समूह कहते है । मेंडलीफ ने अपनी सारणी में केवल आठ वर्ग ही बनाये थे, बाद में शून्य वर्ग जोड़ा गया। शून्य तथा आठवें वर्ग को छोड़कर अन्य सभी वर्ग दो उपवर्गों ए तथा बी में बाँटा गया है। इनकी सामान्य विशेषताएं निम्न है।
1. किसी वर्ग की वर्ग संख्या उस वर्ग के तत्त्वों की आक्सीजन के साथ संयोजकता को प्रदर्शित करती है। इसका अपवाद अष्टम वर्ग है।
2. एक ही उपवर्ग के तत्त्व आपस में गुणों में लगभग समान होते हैं परन्तु दूसरे उपवर्ग के तत्त्वों के गुणों से प्रायः भिन्न होते है।
3. उपवर्ग में परमाणु भार के बढ़ने के साथ साथ तत्त्वों की धात्विक प्रकृति बढ़ती है।
4. उपवर्ग में ऊपर से नीचे जाने पर आक्साइडों का क्षारीय गुण बढ़ता अम्लीय गुण घटता है।
5. किसी उपवर्ग में ऊपर से नीचे चलने पर आधतुओं के हाइड्राइडों का स्थायित्व घटता है।
6. एक ही उपवर्ग के तत्त्वों के परमाणु त्रिज्याएं, घन विद्युत गुण आदि ऊपर से नीचे की ओर जाने पर बढ़ते हैं जबकि विद्युत ऋणात्मकता, गलनांक तथा क्वथनांक ऊपर से नीचे की ओर जाने पर घटते है।
मेंडलीफ की आवर्त सारणी अध्ययन में सुविधा, अनुसंधान में सहायतता, नये तत्त्वों के खोज की प्रेरणा, परमाणु भार का ज्ञान कराने के साथ साथ त्रुटिपूर्ण परमाणु भारों में संशोधन करने में उपयोगी है। हाइड्रोजन अनिश्चित स्थिति, समस्थानिकों को उचित स्थान पर न रखना, समान गुणों वाले तत्त्वों को भिन्न तथा असमान गुणों वाले तत्त्वों को एक ही उपवर्ग में रखा जाना, दुर्लभ मृदा तत्त्वों को स्थान न देना, कहीं कहीं असामान्य संयोजकता को अधिक महत्त्व देना मेंडलीफ की आवर्त सारणी के दोष है।
आधुनिक या दीर्घाकार आवर्त सारणी
मेंडलीफ की आवर्त सारणी के दोषों को राग, वर्नर मोजले, बरी आदि ने मिलकर दूर किया। मोज्ले ने आधुनिक आवर्त नियम दिया। तत्त्वों के भौतिक, रासयनिक गुण उनके परमाणु क्रमांकों के आवर्ती फलन होते हैं अर्थात् यदि तत्त्वों को उनके परमाणु क्रमांक के बढ़ते हुए क्रम में व्यवस्थित किया जाये, तो एक निश्चित अन्तराल के बाद समान गुण वाले तत्त्वों की पुनरावृत्ति होती है।
1. आधुनिक आवर्त सारणी की विशेषताएं-
7. इसमें भी सात क्षैतिज खाने या आवर्त है।
8. प्रत्येक आवर्त का प्रथम तत्त्व क्षार धातु तथा अन्तिम तत्त्व उत्कृष्ट गैस है। प्रथम आवर्त में दो तत्त्व एवं सातवाँ आवर्त अपूर्ण है।
9. अक्रिय गैसों को आवर्त सारणी के दायीं ओर अन्त में शून्य समूह में रखा गया है।
10.
11. सारणी को इलेक्ट्रॉनिक विन्यास के आधार पर चार ब्लाँकों s, p, d, fमें विभाजित किया गया है।
12. संक्रमण तत्त्वों को d ब्लाक में रखा गया है।
13. आवर्त VI एवं VII के 14 14 तत्त्वों को आवर्त सारणी के नीचे दो श्रेणियों में रखा गया हैं इन्हें क्रमशः लेन्थेनाइड एवं ऐक्टिनाइड तत्त्व कहते है।
14. आवर्त सारणी में उर्ध्वाधर खानों की संख्या 18 परन्तु वर्गों की संख्या 16 है। इन वर्गों का क्रम क्रमश: IA, IIA, III B. VII B VIII, IB, II B III A VIII A तथा शून्य समूह।
आधुनिक आवर्त सारणी के दोष
मेंडलीफ की तरह इस सारणी में भी लेन्थेनाइड एवं एक्टिनाइड तत्त्वों को आवर्त सारणी में नीचे रखा गया है।
1 इस आवर्त सारणी से कुछ तत्त्वों का इलेक्ट्रानिक विन्यास सही प्रदर्शित नहीं होता है।
2 आठवें वर्ग के तत्त्वों को तीन उर्ध्वाधर खानों में रखना उचित नहीं है।
मेंडलीफ की तुलना में आधुनिक आवर्त सारणी के गुण
3 इलेक्ट्रॉनिक विन्यास की समानता के कारण हाइड्रोजन का स्थान वर्ग 14 में निश्चित हो गया है।
4 परमाणु क्रमांक के क्रम में रखने से समस्थानिकों को एक ही वर्ग में रखे जाने का दोष समाप्त हो जाता है।
5 आधुनिक आवर्त सारणी में ए व बी उपवर्गो को अलग अलग कर दिया गया है इससे मेंडलीफ सारणी में कुछ असमान तत्त्वों को एक ही वर्ग में रखें जाने का दोष स्वतः समाप्त हो जाता है।
आधुनिक आवर्त सारणी में तत्त्वों के प्रमुख आवर्ती गुण
तत्त्वों को परमाणु क्रमांक के बढ़ते हुए क्रम में रखने से उनके बाह्य कोश के समान इलेक्ट्रनिक विन्यास के तत्त्व, आवर्त सारणी में नियमित अन्तर से आते रहते है। जिसके कारण तत्त्वों के गुणों में भी आवर्तिता पायी जाती है। इनके आवर्ती गुण निम्न है
1 आवर्त सारणी के किसी आवर्त में बायें से दायें बढ़ने पर परमाणु का आकार कम होता जाता हैं ।
2 किसी वर्ग में ऊपर से नीचे जाने पर तत्त्व के परमाणु क्रमांक में जैसे जैसे वृद्ध होती है वैसे आकार बढ़ता जाता है।
3 आवर्त सारणी के किसी आवर्त में बायें से दायें जाने पर विद्युत ऋणात्मकता बढ़ती है जबकि वर्ग में ऊपर से नीचे आने पर विद्युत ऋणात्मकता घटती है।
4 आवतों में बायें से दायें बढ़ने पर नाभिकीय आवेश बढ़ता जाता है और परमाणु आकार घटता जाता है इससे वाह्य इलेक्ट्रानों पर नाभिकीय आकर्षण में वृद्ध होती जाती है।
5 किसी वर्ग में ऊपर से नीचे जाने पर परमाणु आकार में वृद्ध होती जाती है इससे बाहरी कक्षा में इलेक्ट्रानों पर नाभिकीय पकड़ कमजोर होती जाती है।