नाभिकीय रिएक्टर के भाग तथा इसके उपयोग
नाभिकीय रिएक्टर
नाभिकीय रिएक्टर एक विशेष प्रकार की भट्टी होती है, जिसकी सहायता से नाभिकीय विखण्डन की नियन्त्रित श्रखला अभिक्रिया ( Controlled Chain Reaction) द्वारा ऊर्जा उत्पन्न की जाती है। पहला नाभिकीय रिएक्टर सन् 1942 में शिकांगो विश्वविद्यालय में अमेरिकन वैज्ञानिक फर्मी और उनके साथियों ने बनाया था। भारत ने अपना पहला रिएक्टर सन् 1952 में मुम्बई के निकट ट्रॅम्बे में बनाया, जिसका नाम 'अप्सरा' रखा।
नाभिकीय रिएक्टर के मुख्य भाग
1 ईंधन (Fuel )
यह रिएक्टर का वह भाग है जिसके विखण्डन से ऊर्जा प्राप्त होती है। इसके लिए यूरेनियम 235 या प्लूटोनियम 239 प्रयुक्त किया जाता है।
2 मन्दक (Moderator )
वे पदार्थ जो नाभिकीय विखण्डन की क्रिया को मन्द कर देते हैं। इसके लिए भारी जल या ग्रेफाईट का उपयोग किया जाता है ।
3 शीतलक (Coolant)- विखण्डन के बाद अत्यधिक मात्रा में ऊष्मा को नियंत्रित करने के लिए वायु जल या कार्बन डाई ऑक्साइड को रियेक्टर मे प्रवाहित किया जाता है
4 नियंत्रक छड़ें - श्रंखला अभिक्रिया को नियत्रित करने के लिए केडमियम की छड़ों का उपयोग किया जाता है ।
5 परिरक्षक (Shield)- रिएक्टर से निकलने वाली तीव्र हानिकारक विकिरणों से आस पास काम करने वाले
नाभिकीय रिएक्टर के उपयोग
1. विद्युत उत्पादन में
2. राकेटों के उड़ान में
3. वायुयान, समुद्री जहाज, रेल व कारखाने चलाने में
4. रेडियोऐक्टिव समस्थानिक बनाने में
5. जल या ग्रेफाइट प्रयुक्त किया जाता है।
6. प्लूटोनियम 239 का उत्पादन करने में भी उपयोग किया जाता हैं।
तापीय तथा ब्रीडर रिएक्टर
ऐसे रिएक्टर जिनमें मन्दगामी न्यूट्रानों द्वारा यूरेनियम 235 का विखण्डन करके ऊर्जा प्राप्त की जाती है उन्हें तापीय रिएक्टर कहते है। ऐसे रिएक्टर जिनमें उत्पादित प्लूटोनियम 239 तथा यूरेनियम 233 की मात्रा व्यय होने वाले पदार्थों यूरेनियम 238 तथा थोरियम 232 से अधिक होती है ब्रीडर रिएक्टर कहलाते है।