सामान्य जीव विज्ञान | Basic Biology Gk in Hindi

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सामान्य जीव विज्ञान (Basic Biology Gk in Hindi)

सामान्य जीव विज्ञान | Basic Biology Gk in Hindi



सामान्य जीव विज्ञान

  • विज्ञान की जिस शाखा के अंतर्गत पौधों एवं जंतुओं का विस्तृत अध्ययन किया जाता है, उसे जीव विज्ञान कहा जाता है। वनस्पति विज्ञान में पौधों का एवं जंतु विज्ञान में जतुओं का अध्ययन किया जाता है। सभी जीवधारियों को दो समूहों में विभाजित किया जाता है- पादप जगत एवं जन्तु जगत ।

 

  • पादप जगत को पुष्प या फूलों के आधार पर निम्नलिखित दो प्रमुख भागों में बांटा गया है- 1. अपुष्पीय पादप (Crypto- games) एवं 2. पुष्पीय पादप ( Phanerogames )। 
  • जीव विज्ञान शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम लैमार्क एवं ट्रैविरेनस नामक दो वैज्ञानिकों ने किया था। 

  • अरस्तू को ' जीव विज्ञान का पिता' तथा 'प्राणी विज्ञान का 'पिता' कहा जाता है। थियोफ्रेस्टस को 'वनस्पति विज्ञान का पिता' कहा जाता है। 
  • जीवधारियों का सबसे अच्छा वर्गीकरण कैरोलस लीनियस नामक वैज्ञानिक ने दिया था। इसीलिये उन्हें 'वर्गिकी का पिता' कहा जाता है।

 

पादप जगत सामान्य ज्ञान 

 

1. अपुष्पीय पादप 

इनमें पुष्प नहीं पाये जाते हैं। इन्हें तीन प्रमुख प्रकारों में बांटा गया है- 

(a) थैलोफाइटा, (b) ब्रायोफाइटा, (c) टेरिडोफाइटा ।

 

(a) थैलोफाइटा 

ये पौधे थैलस युक्त अर्थात् ऐसे होते हैं, जिनके तने एवं जड़ में कोई स्पष्ट अन्तर नहीं होता है। इनमें संवहन ऊतक एवं भ्रूण अनुपस्थित होता है। इन्हें पुनः शैवाल एवं कवक में वर्गीकृत किया गया है। शैवाल प्रकाश संश्लेषण करते हैं, जबकि कवकों में यह क्षमता नहीं पायी जाती

 

शैवाल (Algae ): 

शैवालों के अध्ययन को फाइकोलॉजी कहते हैं। शैवाल हमारे लिये लाभदायक एवं हानिकारक दोनों ही हैं। कुछ शैवाल मिट्टी की उर्वरा शक्ति में वृद्धि करते हैं। इसके विपरीत कुछ शैवाल विषैले होते हैं। नीले एवं हरे शैवाल जल प्रदूषण बढ़ाते हैं ।

 

शैवालों में क्लोरोफिल (पर्णहरित)  भी उपस्थित होते हैं। इस आधार पर इन्हें कई प्रकारों में वर्गीकृत किया जाता है- 

1. साइनोफाइटा-नीला एवं हरा शैवाल

2. क्लोरोफाइटा हरा शैवाल

3. बेसिलेरियोफाइटा डायटम,

4. फियोफाइटा- भूरा शैवाल

5. जेन्थोफाइटा - भूरा शैवाल एवं 

6. रोडोफाइटा-लाल शैवाल। 


कवक (Fiungi) : 

ये क्लोरोफिल रहित, परजीवी एवं थैलस युक्त पौधे हैं। इनका अध्ययन माइकोलॉजी कहलाता है। खमीर एवं लाइकेन आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण कवक हैं।

 

(b) ब्रायोफाइटा 

ये उभयचर प्रकृति (अर्थात जल एवं थल दोनों में रहने वाले) के होते हैं। ये स्थल पर विकसित होते हैं, लेकिन इनके लैंगिक प्रजनन के लिये जल आवश्यक है। ये पौधे वास्तव में जड़, तना एवं पत्तियों में विकसित नहीं होते हैं। इनमें संवहन ऊतक अविकसित होते हैं। जैसे- मार्केशिया, रिक्सिया आदि ।

 

(c) टेरिडोफाइटा 

ये स्थलीय होते हैं। इनमें भी संवहन ऊतक अविकसित होते हैं। कुछ पौधों में जड़ तना एवं पत्ती में स्पष्ट अंतर होता है। जैसे - साइलोटन फर्न, सिल्वर फर्न आदि ।

 

2. पुष्पीय पादप 

इनमें पुष्प एवं बीज पाये जाते हैं। इन्हें दो प्रमुख प्रकारों में बांटा गया है - 

1. जिम्नोस्पर्म एवं 2. एन्जियोस्पर्म ।

 

जिम्नोस्पर्म (Gymnosperm) 

  • इसके बीज नग्न होते हैं अर्थात उनके ऊपर आवरण नहीं पाया जाता है, जैसे- काजू । 
  • इनमें संवहनीय ऊतक (Xylem) में वाहिनी का  अभाव होता है।
  • इस वर्ग के कई पौधों का जीवाश्मीय महत्व अधिक होने से इसे जीवाश्म वर्ग भी कहते हैं। साइकस को " जीवित जीवाश्म " कहा जाता है। 
  • कुछ वृक्ष जैसे- पाइनस, सेडरस आदि लकड़ी का सामान बनाने के लिये एवं कुछ उत्पाद जैसे रेजिन, तारपीन का तेल, खाद्य बीज आदि ब्रायोफाइटिक पौधों से प्राप्त होते हैं।

 

एन्जियोस्पर्म (Angiosperms) 

  • यह सबसे विकसित पादप समूह है। इसके मुख्य लक्षणों में पूर्ण विकसित ऊतक, विकसित धूण आदि है। इस वर्ग के पादप आकार में बड़े होते हैं, जैसे-आम, कटहल, अमरूद, जामुन, बरगद, पीपल आदि । 
  • बीजपत्रों की संख्या के आधार पर इन्हें दो भागों में बांटा जाता है. 1. एकबीजपत्री एवं 2. द्विबीजपत्री एकबीजपत्री पौधे के बीजों में एक बीजपत्र होता है, जैसे नीम, अमरूद, पीपल आदि। 
  • द्विबीजपत्री पौधों के बीजों में दो बीजपत्र होते हैं, जैसे- चना, अरहर, मटर, सेम आदि।

 

अकारिकी के आधार पर पौधों का विभाजन 

अकारिकी के आधार पर पौधे निम्न तीन प्रकार के होते हैं- 

1. शाक ( herbs) : 

ये छोटे, मुलायम एवं काष्ठविहीन पौधे होते हैं। जैसे धनिया, मेथी, सरसों, साग, पालक, मिर्च इत्यादि ।

 

2. झाड़ी: (shrub ) : 

ये मध्यम श्रेणी के पौधे होते हैं। जैसे- चमेली, मदार, मेंहदी, अनार, गुड़हल, गुलाब, धतूरा इत्यादि । 

3. वृक्ष (tree ) : 

ये पूर्ण विकसित, बड़े एवं काष्ठीय पौधे होते हैं। जैसे- आम, जामुन, कटहल, बबूल, बरगद, साइकस, पीपल इत्यादि ।

 

पुष्पीय पौधों के अंग 

जड़ (Root) 

  • पौधे का वह भाग जो पृथ्वी के गुरुत्व बल की दिशा में बढ़ता है तथा पौधों को सीधे खड़ा रहने में सहायक होता है, जड़ कहलाता है। इसका मुख्य कार्य मिट्टी से जल एवं खनिज पदार्थ शोधित कर तने एवं पत्तियों तक पहुंचाना है। कभी-कभी यह खाद्य भ्रूण के मूलज से निकलती है एवं इसकी प्रशाखाएं मूसला जड़ कहलाती हैं। 
  • जड़ों में पर्ण नहीं होता है। इसमें पर्व एवं पर्वसंधियों का भी अभाव होता है। 
  • भोज्य पदार्थ को जमा करने के उद्देश्य से कुछ जड़ों में रूपान्तरण होता है। वे जड़ ये हैं-1. गांठदार हल्दी 2. तर्कुरूप मूली, 3. कुम्भीरूप- शलजम, 4. शंकुरूप गाजर तथा 5. पूलीय - डहलिया, 6. रेशेदार जड़ - प्याज, 7. पत्तीय जड़-चम्पा 8 आरोही जड़ पान 9. बटरस - जड़ - हरमिनोलिया, 10. चूषक जड़ - अमरवेल, 11. श्वसन जड़ - जूसिया, 12. वायुवीय जड़ - आर्किड आदि ।

 

तना (Stem ) 

  • यह प्रांकुर से विकसित होता है एवं सूर्य प्रकाश की दिशा में बढ़ता है। इसमें पर्व एवं पर्व संधियां पूर्ण विकसित होते हैं। इसमें शाखाएं, पत्तियां, फूल एवं फल लगते हैं। विभिन्न कार्यों के लिये तने में कई रूपान्तरण हो जाते हैं। रूपांतरित तनों के कुछ प्रमुख उदाहरण इस प्रकार हैं- 
  • (1) भूमिगत रूपान्तरण- यह जल संवहन एवं खाद्य पदार्थ  के उद्देश्य से होता है। ये निम्नलिखित प्रकार के होते हैं- 1. बल्ब - प्याज, 2. प्रकंद - हल्दी,. 3. तनाकंद -: 4. रेंगने वाले तने - ऑक्जेलिस, 5. घनकन्द ओल आदि।

 

पत्ती (Leaf) 

  • यह पौधे का अति महत्वपूर्ण अंग हैं। इसकी सहायता से प्रकाश है संश्लेषण की क्रिया होती है तथा भोजन बनाया जाता है। पत्तियों में भी विभिन्न कार्यों के लिये कई प्रकार के रूपांतरण पाये जाते हैं, जैसे - 1. कीड़े-मकोड़े को पकड़ने के लिये पत्ती घड़े का रूप ग्रहण करती है निपेन्थिस या पिचर प्लांट, 2. ब्लैडर पत्तियां ब्लैडर के आकार की हो जाती है-यूट्रिकुलेरिया ।

 

पुष्प (Flower) 

  • इसे रूपांतरित तना भी कहते हैं। यह पौधे के प्रजनन में सहायक होता है। 
  • पुष्प के दो भाग होते हैं अनावश्यक भाग (बाह्यदलपुंज एवं दलपुंज) तथा आवश्यक भाग (पुमंग एवं जायांग)। 
  • जो पुष्प कई बार केंद्र से होकर काटने पर दो समान भागों में बंट जाये, त्रिज्यासममित कहते हैं, जैसे- सरसों, गुलाब आदि । 
  • जो पुष्प केवल एक बार केंद्र से काटने पर दो समान भागों में बंट जाये, एक व्यास सममित कहलाता है, जैसे-मटर ! 
  • परागकण, परागकोष में पाये जाते हैं, जो कि पुमंग का भाग है। जायोग के विभिन्न अंग-अंडाशय, शकिका एवं वर्तिका 
  • परागणः परागकण के वर्तिकाग्र तक स्थानांतरण की क्रिया परागण कहलाती है। 
  • परागण दो प्रकार का होता है-स्वपरागण एवं परपरागण । जब एक ही पुष्प के अंतर्गत परागण होता है तो इसे स्वपरागण कहते हैं तथा परपरागण में परागण दो भिन्न पुष्पों के बीच होता है। 
  • जब एक ही पौधे के पुष्पों के बीच में परागण होता है तो उसे स्वपरागण एवं जब दो भिन्न पौधों के पुष्पों के बीच परागण होता है. जो उसे परपरागण कहते हैं। इसके विपरीत सजात पुष्पी परागण में ही एक पौधे के दो पुष्पों के बीच परागण होता है। 
  • परागण के विभिन्न उदाहरण इस प्रकार हैं-1. जल परागण - वेलिसनेरिया, जलकुंभी, 2. वायु परागण - गन्ना, मकई, कपास 3. एन्टेमोफिली कीट सरसों, 4. जंतु परागण चमगादड़, गिलहरी, बाम्बेक्स स्नेल्स के द्वारा आदि।

 

फल (Fruit) 

  • निषेचन के पश्चात् पूर्ण विकसित अण्डाशय, फल का निर्माण करते हैं। 
  • जब फल, अण्डाशय से विकसित होता है तो वह सत्य फल एवं जब अण्डाशय के अतिरिक्त किसी अन्य पुष्पांग से फल का निर्माण होता है, तो वह कूटफल कहलाता है।
  • फलों में बाह्य फलभित्ती, मध्य भित्ती एवं अन्तः फलभित्ती होती है।

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