नया पाँच-जगत वाला वर्गीकरण | A NEW FIVE-KINGDOM CLASSIFICATION]

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 नया पाँच-जगत वाला वर्गीकरण

नया पाँच-जगत वाला वर्गीकरण | A NEW FIVE-KINGDOM CLASSIFICATION]



` नया पाँच-जगत वाला वर्गीकरण

मारगुलिस एवं स्कवार्टज (Margulis and Schwartz, 1982) ने ह्रिटेकर के वर्गीकरण का रूपान्तरित अनुवाद (Version) किया। उन्होंने भी जीवों को पाँच जगतों में विभाजित किया लेकिन टेक्सा (Taxa) को विकासीय आधार पर पुनर्व्यवस्थित किया । इस वर्गीकरण की रूपरेखा 

 

जीवन के तीन प्रक्षेत्र (डोमेन)  [THREE DOMAIN OF LIFE]

वर्तमान समय में जीवों के वर्गीकरण को सबसे अधिक प्रचलित पद्धति में जीवों को पाँच जगतों में विभाजित किया जाता है। पद्धति के साथ ही जीवों को दो मुख्य भागों (1) प्रोकैरियोटी (जगत-मोनेरा) एवं यूकैरियोटी (जगत प्रोटिस्टा, कवक, प्लाण्टी व एनिमेलिया) में बाँटा गया है। अमेरिका के एक प्रसिद्ध सूक्ष्मजीव एवं भौतिक विज्ञानी कार्ल ऊर्जा (Karl Woese. 1990) ने जीवों को करने के लिए तीन डोमेन पद्धति प्रस्तुत को इस पद्धति के अनुसार जीवन का वृक्ष तीन प्रक्षेत्र (डोमेन) का बना होता है। यह पद्धति कोशिकीय जैवरूपों को तीन डोमेन (1) आर्की (Archaea), (ii) बैक्टीरिया (Bacteria) एवं (iii) यूकैरियोटा (Eukaryota) में विभाजित करती है तथा प्रत्येक डोमेन को जगतोंवर्गों आदि में वर्गीकृत किया जा सकता है अर्थात् डोमेन जगत से भी बड़ी इकाई है।

 

कार्ल ऊर्जा के अनुसार जिसे पहले प्रोकैरियोट्स (Prokaryotes) कहा जाता थावास्तव में उसमें काफी विविधता है। अतः उन्होंने प्रोकैरियोट्स को दो डोमेन— (i) आर्का एवं (ii) बैक्टीरिया में विभाजित किया है। ये दोनों भी आपस में एक-दूसरे से उतने ही भिन्न हैं जितने कि यूकैरियोट्स से। इन समूहों (डोमेन्स) में कोई भी दूसरे का पूर्वज नहीं है और प्रत्येक में अपनी कुछ विशिष्ट एवं निश्चित विशेषताएँ हैं। केन्द्रक कला की उपस्थिति जहाँ डोमेन-यूकैरियोटा को डोमेन-आर्को एवं डोमेन-बैक्टीरिया से पृथक् करती है (दोनों में हो केन्द्रक कला का अभाव होता है) वहीं राइबोसोमल RNA (F-RNA) के न्यूक्लियोटाइड अनुक्रम डोमेन आर्की एवं डोमेन वैक्टीरिया को एक-दूसरे से पृथक् करते हैं।

 

कार्ल ऊज ने राइबोसोमल RNA के अनुक्रम एवं RNA एवं अनुक्रमों को विकासीय (Evolutionary chronometer) अर्थात् एक विकासीय समय घड़ी (Evolutionary time watch) की तरह प्रयोग किया।

 

राइबोसोमल RNA अनुक्रम में एक अच्छे कालमापी के निम्न गुण पाये जाते हैं-

 1. जीवों में राइबोसोमल RNA पाया जाता है। 

2. दो जीवों के मध्य राइबोसोमल अनुक्रमों को पंक्तिबद्ध अथवा सीध में जोड़ा जा सकता है। 

3. इनके अनुक्रम में परिवर्तन बहुत धीमा होता है-जो समय के लम्बे अन्तराल के अध्ययन के लिए अच्छा है। 

4. कार्यात्मक रूप से यह सभी जीवों में समान होता है- सभी r- RNA प्रोटीन संश्लेषण में भाग लेते हैं। 

तीन डोमेन पद्धतिजो आज की आधुनिक (नवीन) पद्धति हैमें जीवों को प्राथमिक रूप से उनके r-RNA अनुक्रमों की भिन्न संरचना के आधार पर निम्न तीन डोमेन में विभाजित किया गया है- 

(1) डोमेन (Domain) - आर्की (Archaea ) - 

ये प्रोकैरियोटिक जीव होते हैं अर्थात् इनमें केन्द्रक कला का अभाव होता हैं। इनकी जैव रसायन संरचना एवं RNA मार्कर (Markers) जीवाणु से बिल्कुल भिन्न होते हैं। इनका विशिष्ट पुरातन विकासीय इतिहास है जिसके कारण इनको पृथ्वी पर प्राचीनतम जीव माना जाता है। पारम्परिक रूप से इन्हें आर्कोबॅक्टीरिया अथवा पुरातन जीवाणु ('Ancient' bacteria) के रूप में वर्गीकृत किया जाता है। इनके कुछ उदाहरण इस प्रकार हैं- (i) मीथेनोजन (Methanogens) - ये मीथेन गैस उत्पन्न करते हैं, (ii) हेलोफिल (Halophiles ) - ये उच्च सान्द्रता वाले लवणीय जल में रहते हैंएवं (iii) थर्मोएसिडोफिल (Thermoacidophiles ) - ये अम्लीय एवं उच्च तापमान वाले जल में वास करते हैं। ये सभी जीव अत्यन्त प्रतिकूल परिस्थितियों मेंजहाँ दूसरे जीवों का रहना सम्भव नहीं हैमें वास करते हैं।

 

(2) डोमेन (Domain)- बैक्टीरिया (Bacteria) - 

इसके अन्तर्गत उन सभी जीवाणुओं को सम्मिलित किया गया है जिनको डोमेन आर्की में शामिल नहीं किया गया है। ये डोमेन आर्की से अत्यन्त समानता रखते हैं । किन्तु इनकी झिल्लियाँ एस्टर लिंकेज द्वारा ग्लिसराल से जुड़ी अशाखित वसीय अमल श्रंखलाओं से बनी होती है । तथा इनके जीवाणु ऊर्जा या तो प्रकाश से (प्रकाशपोषी)या अकार्बनिक यौगिकों से (अकार्बनिकपोषी) या कार्बनिक यौगिकों से (कार्बनिकपोषी) ग्रहण करते हैं। अधिकांश ज्ञात रोगजनक प्रोकैरियोट जीव इन जीवाणुओं के अन्तर्गत आते हैं। इन जीवाणुओं के उदाहरण हैं- (i) सायनोबैक्टीरियामाइकोप्लाज्मास्पाइरोकीट आदि

 

(3) डोमेन (Domain)-यूकैरियोटा (Eukaryota)-

जैसाकि नाम से स्पष्ट हैइनमें यूकैरियोटिक जीवों को शामिल किया गया है जिनमें केन्द्रक को घेरे हुए केन्द्रक कला पाई जाती है। इस डोमेन के अन्तर्गत चार जगत- (i) प्रोटिस्टा, (ii) कवक, (iii) प्लान्टीएवं (iv) एनिमेलिया शामिल हैं।

 

वर्गीकरण महवपूर्ण तथ्य  

  • जन्तुओं के प्रथम वर्गीकरण का श्रेय ग्रीक के दार्शनिक अरस्तू को जाता हैजिन्हें 'जन्तु विज्ञान का जनककहा जाता है। थियोफ्रेस्टस जिन्हें 'वनस्पति विज्ञान का जनककहा जाता हैने पादप स्वभाव के आधार पर समस्त पादपों को चार समूहों में विभाजित किया। 

  • वर्गीकरण की तीन पद्धतियाँ हैं- 1. कृत्रिम पद्धति, 2. प्राकृतिक पद्धति, 3. जातिवृत्तीय पद्धति । 
  • जैववर्गिकी विज्ञान जूलियन हक्सले की देन है। 
  • जीवों के वर्गीकरण हेतु प्रमुख रूप से दो वर्गीकरण ज्यादा प्रचलित हुए - (1) दो-जगत वर्गीकरण एवं (2) पाँच-जगत वर्गीकरण | 
  • पाँच जगत वर्गीकरण में संसार के सभी जीवों को पाँच जगतों में विभाजित किया गया है - (1) मोनेरा, (2) प्रोटिस्टा, (3) कवक, (4) प्लान्टीएवं (5) एनिमेलिया । 
  • कार्ल ऊज ने जीवों को वर्गीकृत करने के लिए तीन डोमेन पद्धति प्रस्तुत की। इस पद्धति में कोशिकीय जैवरूपों को तीन डोमेन - (i) आर्की, (ii) बैक्टीरियाएवं (iii) यूकैरियोटा में वर्गीकृत किया गया है।

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