उच्च पौधों में प्रकाश संश्लेषण नोट्स | Photosynthesis in higher plants notes In Hindi

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 उच्च पौधों में प्रकाश संश्लेषण नोट्स 

उच्च पौधों में प्रकाश संश्लेषण नोट्स



प्रकाश-संश्लेषण 

वह प्रक्रिया जिसमें पौधे की हरी कोशिकाओं के द्वारा प्रकाश की उपस्थिति में CO2 एवं H2O का उपयोग करके क्लोरोफिल की सहायता से कार्बोहाइड्रेट्स जैसे सरल भोज्य पदार्थों का निर्माण किया जाता है, उसे प्रकाश-संश्लेषण कहते हैं।"

 

प्रकाश-संश्लेषण

  • वास्तव में, इस क्रिया में विभिन्न एन्जाइमों की उपस्थिति में CO2 का अपचयन (Reduction) होता है तथा कार्बोहाइड्रेट्स का निर्माण होता है। 
  • प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया के दौरान हरे पौधे सूर्य प्रकाश की प्रकाश ऊर्जा (Light energy) को रासायनिक ऊर्जा (Chemical energy) में परिवर्तित कर देते हैं।

 

प्रकाश संश्लेषण का महत्त्व  

1. प्रकाश संश्लेषण की क्रिया के फलस्वरूप अकार्बनिक पदार्थों जैसेजल एवं CO2 से कार्बनिक भोज्य पदार्थों का निर्माण होता है। 

2. इस प्रक्रिया के द्वारा जीवधारियों के लिये प्रत्यक्ष रूप में शाक-सब्जियाँ एवं अप्रत्यक्ष रूप में मांस अथवा जन्तुओं में दूध प्राप्त होता है क्योंकि सभी शाकाहारी जन्तु हरे पेड़-पौधों का भक्षण करते हैं। 

3. प्रकाश संश्लेषण की क्रिया द्वारा वातावरण में O2 की सान्द्रता नियंत्रित रहती है। 

4. प्रकाश संश्लेषण की क्रिया में श्वसन में छोड़ी गई वायुमण्डलीय CO, का उपयोग किया जाता है तथा ऑक्सीजन छोड़ा जाता है। अतः यह पर्यावरण का शुद्धीकरण करती है तथा CO2 एवं O2  के अनुपात को बनाये रखती है।

 

क्लोरोप्लास्ट - प्रकाश संश्लेषी उपकरण या स्थल 

प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया क्लोरोप्लास्ट  नामक हरे रंग के लवक (Plastid) में सम्पन्न होती है जिसे प्रकाश-संश्लेषी उपकरण के नाम से जाना जाता है। स्वयंपोषी पौधों के भिन्न-भिन्न समूहों में भिन्न-भिन्न प्रकार के प्रकाश संश्लेषी उपकरण पाये जाते हैं.

उच्चवर्गीय पौधों (आवृत्तबीजियों), ब्रायोफाइट्स, टेरिडोफाइट्स एवं अनावृत्तबीजियों में प्रकाश संश्लेषी उपकरण पूर्ण विकसित होता है तथा इसे क्लोरोप्लास्ट (Chloroplast) कहते हैं।

 

प्रकाश संश्लेषी वर्णक 

प्रकाश संश्लेषण में सम्बन्धित समस्त वर्णक (Pigments) क्रोमैटोफोर्स (Chromatophores) में पाये जाते हैं। ये वर्णक प्रकाश संश्लेषण के समय प्रकाश ऊर्जा को रासायनिक ऊर्जा में परिवर्तित करने का कार्य करते हैं। 

पौधों में निम्नलिखित तीन प्रकार के प्रकाश संश्लेषी वर्णक पाये जाते हैं- 

(A) क्लोरोफिल (Chlorophyll), 

(B) कैरोटीनॉयड्स (Carotenoids) एवं 

(C) फाइकोबिलिन्स (Phycobillins) । 


(A) क्लोरोफिल  

यह क्लोरोप्लास्ट के अन्दर पाया जाने वाला हरा वर्णक (Green pigment) है तथा यह प्रकाश संश्लेषण की क्रिया में भाग लेता है। पौधों में दस प्रकार के क्लोरोफिल पाये जाते हैं- 

  • क्लोरोफिल- a, b, c, d एवं e 
  • बैक्टीरियोक्लोरोफिल- a, b, c एवं d 
  • क्लोरोबियम क्लोरोफिल (बैक्टीरियोवीरिडीन) 


क्लोरोफिल-a (Chlorophyll-a) 

यह नीले-हरे (Blue green) रंग का वर्णक है, जो कि पेट्रोलियम ईयर (Petroleum ether) में विलेय होता है। प्रकाश संश्लेषण के समय यह लाल व बैंगनी प्रकाश को अवशोषित करता है। 

क्लोरोफिल-b (Chlorophyll-b)-

यह पीले-हरे (Yellow green) रंग का वर्णक है, जो कि मेथिल ऐल्कोहॉल  में अच्छी तरह घुलनशील है। प्रकाश संश्लेषण के समय यह वर्णक भी लाल व बैंगनी प्रकाश को ही अवशोषित करता है।  

क्लोरोफिल c (Chlorophyll-c)- 

क्लोरोफिल- बैसीलेरियोफाइसी एवं फियोफाइसी वर्ग की शैवालों में पाया जाता है।  

क्लोरोफिल- d (Chlorophyll-d) 

क्लोरोफिल-d, रोडोफाइसी वर्ग के अन्तर्गत आने वाली शैवालों में पाया जाता है। 

 

प्रकाश संश्लेषण की क्रियाविधि 

प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया को समझाने के लिये समय-समय पर विभिन्न सिद्धान्त प्रस्तुत किए गये हैं। आधुनिक वैज्ञानिकों के अनुसार प्रकाश संश्लेषण की क्रिया में निम्नलिखित तीन प्रक्रियाएँ सम्पादित होती हैं- 

1. सर्वप्रथम पौधों में उपस्थित वर्णक तंत्रों (Pigment systems) के द्वारा प्रकाश ऊर्जा (Light energy) का अवशोषण होता है। 

2. इसके पश्चात् अवशोषित की गई प्रकाश ऊर्जा, रासायनिक ऊर्जा में परिवर्तित की जाती है। 

3. अन्त में कार्बोहाइड्रेट्स का निर्माण होता है।

 

इनमें से प्रथम दो प्रक्रियाएँ प्रकाश की उपस्थिति में होती हैं, अत: इसे प्रकाश अभिक्रिया (Light reaction) कहते हैं, जबकि अन्तिम प्रक्रिया अत्यन्त जटिल होती है और इस प्रक्रिया के लिये प्रकाश की आवश्यकता नहीं होती है, अतः इसे अन्धकार अभिक्रिया (Dark reaction) कहते हैं।

 

इस प्रकार प्रकाश संश्लेषण की क्रिया निम्नलिखित दो चरणों में पूर्ण होती है- 

(A) प्रकाश अभिक्रिया (Light reaction) 

(B) अन्धकार अभिक्रिया (Dark reaction)

 

प्रकाश अभिक्रिया 

यह प्रक्रिया प्रकाश के नियन्त्रण में होती है अर्थात् इस क्रिया के लिए प्रकाश आवश्यक होता है, इसलिए इसे प्रकाश अभिक्रिया कहते हैं। यह अभिक्रिया क्लोरोप्लास्ट के ग्रैना (Grana) में होती है। इस अभिक्रिया में प्रकाश ऊर्जा का उपयोग होता है तथा ATP एवं अपचायक शक्ति (Reducing power) का निर्माण होता है। NADPH + H+ ही समस्त प्रकाश संश्लेषी जीवों में अपचायक शक्ति या कारक का कार्य करता है। 

प्रकाश अभिक्रिया की खोज रॉबर्ट हिल (Robert Hill, 1937) नामक वैज्ञानिक ने की थी, इसलिए इस क्रिया को हिल अभिक्रिया (Hill reaction) भी कहते हैं। 


सम्पूर्ण प्रकाश अभिक्रिया या हिल अभिक्रिया (Hill reaction) निम्नांकित चरणों मेंपूर्ण होती है-

 

1. क्लोरोफिल द्वारा प्रकाश ऊर्जा का अवशोषण, 

2. सहायक वर्णकों द्वारा प्रकाश ऊर्जा का अवशोषण, 

3. प्रकाश के फोटॉन्स के द्वारा क्लोरोफिल का सक्रियण

4. जल का प्रकाश रासायनिक अपघटन ऑक्सीजन की उत्पत्ति

5. इलेक्ट्रॉन अभिगमन एवं ऐसिमिलेटरी शक्ति (NADPH+H+ एवं ATP) का उत्पादन।

 

अन्धकार अभिक्रिया (DARK REACTION) 

इस अभिक्रिया को ब्लैकमैन अभिक्रिया (Blackman's reaction) या ताप रासायनिक अभिक्रिया (Thermochemical reaction) भी कहते हैं। इस अभिक्रिया में प्रकाश अभिक्रिया में बने NADPH2 एवं ATP का उपयोग CO2 के अपचयन या स्थिरीकरण में किया जाता है। यह अभिक्रिया क्लोरोप्लास्ट के स्ट्रोमा (Stroma) में होती है।  


उच्चवर्गीय पौधों में तीन प्रकार को अन्धकार अभिक्रियाएँ पायी गई हैं- 

1. केल्विन चक्र (Calvin cycle) या C3 चक्र 

2. हैच एवं स्लैक चक्र (Hatch and Slack Cycle) या C4 चक्र 

3. CAM चक्र (Crassulation acid metabolism cycle)

 

  • केल्विन चक्र प्रायः शीतोष्ण प्रदेशों (Temperate regions) में पाये जाने वाले पौधों में पाया जाता है, जहाँ पर CO2 स्थिरीकरण के लिए दिन का तापक्रम 15-25°C तक होता है। 
  • C4 चक्र प्रायः उष्ण कटिबन्धीय क्षेत्रों में पाये जाने वाले पौधों में पाया जाता है, जहाँ पर दिन का तापक्रम 30 - 45°C तक होता है। 
  • CAM चक्र मांसलोद्भिद पौधों में ही पाया जाता है, जिनमें रन्ध्र रात्रि मैं खुलते हैं।

 

प्रकाशीय (प्रकाश) अभिक्रिया और अप्रकाशीय (अंधकार) अभिक्रिया में अंतर 

प्रकाशीय (प्रकाश) अभिक्रिया 

1. यह प्रकाश की उपस्थिति में होती है तथा इसकी पूर्णता के लिए प्रकाश अत्यावश्यक होता है। 

2. इस क्रिया में प्रकाश अवशोषण तथा इलेक्ट्रॉन अभिगमन की क्रिया होती है। 

3. इस क्रिया में ATP तथा अवकृत होकर NADPH2 का संश्लेषण होता है। 

4. इस प्रक्रिया में जल का विघटन तथा ऑक्सीजन का उत्सर्जन होता है। 

5. यह क्रिया हरितलवक की ग्रेना में होती है। 

अप्रकाशीय (अंधकार) अभिक्रिया 

1. इसमें प्रकाश की आवश्यकता नहीं होती है। 

2. इसमें प्रकाश अवशोषण तथा इलेक्ट्रॉन अभिगमन नहीं होता है। 

3. इसमें ATP तथा NADPH, का संश्लेषण नहीं होता है। बल्कि उसका उपयोग किया जाता है। 

4. इस प्रक्रिया में CO2 का अवसरण कार्बोहाइड्रेट के रूप में होता है। 

5. यह क्रिया हरितलवक के स्ट्रोमा में होती है।

 

C3 पौधे और C4 पौधे  पौधों में अंतर  

C3 पौधे  

1. प्रकाश संश्लेषण के समय CO2 का यौगिकीकरण केवल C3 चक्र या केल्विन चक्र के द्वारा ही होता है। 

2. इस चक्र का प्रथम स्थायी उत्पाद तीन कार्बन वाला (3-C) यौगिक फॉस्फोग्लिसरिक अम्ल (PGA) होता है। 

3. C3 पौधों में राइबुलोज 1, 5 डाइफॉस्फेट (RuDP) के द्वारा CO2 ग्रहण की जाती है। 

4 प्रकाश संश्लेषण करने वाली पत्तियों में विसरित प्रकार का मीजोफिल ऊतक पाया जाता है तथा इनमें केवल एक ही प्रकार का क्लोरोप्लास्ट पाया जाता है। 

5. इनके क्लोरोप्लास्ट में ग्रैना (Grana) पाये जाते हैं। 

6. C3 पौधों में प्रकाश-संश्लेषण के लिए अधिकतम 10 से 25°C तापमान की आवश्यकता होती है। 

7. C3 पौधों में प्रकाश श्वसन पाया जाता है। 

8. प्रकाश संश्लेषण की दर अपेक्षाकृत कम होती है।  

9. इन पौधों में CO2 की अत्यधिक मात्रा बाहर निकलती है। 

10. CO2 के एक अणु के स्वांगीकरण हेतु 2NADPH2 एवं 3 ATP की आवश्यकता होती है। 

11. इस चक्र में ग्लूकोज के एक अणु के निर्माण हेतु 18 ATP की आवश्यकता होती है।

 

C4 पौधे 

1. प्रकाश-संश्लेषण के समय CO2 का यौगिकीकरण C4- डाइकार्बोक्सिलिक अम्ल चक्र या हैच एवं स्लैक पथ के द्वारा होता है। इस चक्र में C4 चक्र के साथ-साथ C3 चक्र भी क्रियाशील रहता है । 

2. इस चक्र का प्रथम स्थायी उत्पाद चार कार्बन (4-C) वाला यौगिक ऑक्जेलोऐसीटिक अम्ल (OAA) होता है। 

3. C4 पौधों में CO2 को ग्रहण करने वाला यौगिक फॉस्फोइनॉल पाइरुविक अम्ल (PEP) होता है। 

4. इन पौधों की पत्तियों में क्रैन्ज प्रकार (Kranz type) की शरीर संरचना पायी जाती है। ऐसी पत्तियों में संवहन पूलों के चारों | ओर बण्डल-शीथ (Bundle sheath) कोशिकाएँ पायी जाती हैं, जिसमें मोजोफिल ऊतकों से भिन्न प्रकार का क्लोरोप्लास्ट पाया जाता है। अर्थात् C4 पौधों में क्लोरोप्लास्ट द्विरूपी (Dimorphic) होता है। 

5. C4 पौधों की पत्तियों की बण्डलशीथ कोशिका में उपस्थित क्लोरोप्लास्ट में ग्रैना का अभाव होता है, जबकि मीजोफिल क्लोरोप्लास्ट में ग्रैना उपस्थित होते हैं। 

6. C4 पौधों में प्रकाश-संश्लेषण के लिए अधिकतम 30 से 45°C तापमान की आवश्यकता होती है। 

7. C4 पौधों में प्रकाश श्वसन नहीं पाया जाता है। 

8. प्रकाश संश्लेषण की दर अपेक्षाकृत बहुत  होती है।  

9. इन पौधों में CO2 नहीं के बराबर छोड़ी जाती है। 

10. CO2 के एक अणु के स्वांगीकरण हेतु 2NADPH2 एवं 5 ATP की आवश्यकता होती है। 

11. इस चक्र में 30 ATP की आवश्यकता होती है।

 


प्रकाश-संश्लेषण की दर को प्रभावित करने वाले कारक 

प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया एवं उसकी दर अनेक कारकों के द्वारा नियंत्रित एवं प्रभावित होती है। इन समस्त कारकों को निम्नलिखित दो समूहों में बाँटा गया है- 

(A) बाह्य कारक (External factors) - 1. प्रकाश (Light), 2. तापमान (Temperature), 3. कार्बन-डाइऑक्साइड (CO2), 4. जल (Water), 5. ऑक्सीजन (O2)

 

(B) आन्तरिक कारक (Internal factors)—1. क्लोरोफिल की मात्रा (Chlorophyll contents), 2. जीवद्रव्य (Protoplasm), 3. प्रकाश संश्लेषण के अन्तिम उत्पाद का संचय (Accumulation of end product of photosynthesis), 4. पत्ती की आन्तरिक संरचना (Internal structure of leaf)

  

(1) प्रकाश (Light) - 

प्रकाश संश्लेषण की क्रिया सूर्य के प्रकाश में होती है। इस कारण प्रकश का प्रकार उसकी तीव्रता एवं अवधि आदि इसके लिए आवश्यक व महत्त्वपूर्ण कारक है। प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया बहुत कम तीव्रता के प्रकाश पर भी शुरू हो जाती है तथा प्रकाश की तीव्रता बढ़ाने पर बढ़ती जाती है, परन्तु अधिक तीव्रता पर क्लोरोफिल के विघटन के कारण कम हो जाती है। तीव्रता के अलावा प्रकाश का प्रकार भी इसे प्रभावित करता है। लाल रंग के प्रकाश में प्रकाश संश्लेषण की क्रिया सबसे तीव्र तथा हरे रंग के प्रकाश में सबसे कम होती है।

 

(2) तापमान (Temperature)-

इस क्रिया के लिए 25°-30°C का तापमान सर्वाधिक उपयुक्त रहता है। ज्यादातर पौधों में 10°-30°C ताप पर प्रकाश-संश्लेषण की दर बढ़ती है। 10°C से कम तापमान पर क्रिया की दर कम हो जाती है। इसी तरह 30°C से अधिक होने पर पहले बढ़ती है लेकिन कुछ समय बाद कम हो जाती है।

 

(3) कार्बन डाइऑक्साइड (CO2)- 

वातावरण में CO2 की मात्रा 0-03% होती है। यदि एक सीमा तक CO2 की बढ़ाई जाए तो प्रकाश संश्लेषण की दर भी बढ़ती है, लेकिन अधिक होने से घटने लगती है। 

(4) जल (Water)- 

इस क्रिया के लिए जल एक महत्त्वपूर्ण यौगिक है। जल की कमी होने से प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया प्रभावित होती है, क्योंकि जीवद्रव्य की सक्रियता घट जाती है, स्टोमेटा बन्द हो जाते हैं और प्रकाश संश्लेषण दर घट जाती है।

 

(5) ऑक्सीजन (O2)-

प्रत्यक्ष रूप से ऑक्सीजन की सान्द्रता से प्रकाश संश्लेषण की क्रिया प्रभावित नहीं होती है लेकिन यह गया है कि वायुमण्डल में O2 की मात्रा बढ़ने से प्रकाश संश्लेषण की दर परती है। 

उपर्युक्त कारकों के अतिरिक्त कुछ आन्तरिक कारक; जैसे- क्लोरोफिल, पक्षी की आन्तरिक संरचना एवं कोशिका में संचित भोज्य पदार्थ की मात्रा भी प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया को प्रभावित करते हैं।

 

इलेक्ट्रॉन अभिगमन एवं ऐसिमिलेटरी शक्ति का उत्पादन 

क्लोरोफिल-a प्रकाश के एक फोटॉन को अवशोषित करके उत्तेजित अवस्था में चला जाता है तथा इससे मुक्त होने वाली ऊर्जा एवं इलेक्ट्रॉन्स (Electrons) दोनों वर्णक तन्त्र में प्रवेश कर जाते हैं। ये इलेक्ट्रॉन्स बहुत से इलेक्ट्रॉन वाहकों  के माध्यम से पुनः वापस आ जाते हैं अथवा इलेक्ट्रॉन्स NADP+ को अपचयित करके NADP + H+ का निर्माण करते हैं। इन इलेक्ट्रॉनों के साथ आयी  ऊर्जा इलेक्ट्रॉन परिवहन तन्त्र (E.T.S.) में विभिन्न स्थलों पर ATP के निर्माण में काम आती है। इस प्रकार प्रकाश (Light) की उपस्थिति में क्लोरोफिल द्वारा ADP एवं अकार्बनिक फॉस्फेट की सहायता से ATP का निर्माण फोटोफॉस्फोरिलेशन कहलाता है। प्रकाश प्रतिक्रिया में प्रकाश फॉस्फोरिलेशन (Photophosphorylation) की क्रिया होती है, जिसमें ATP बनते हैं। 


फोटोफॉस्फोरिलेशन की क्रिया अग्रलिखित दो चरणों में पूर्ण होती है- 

अचक्रीय फोटोफॉस्फोरिलेशन (Non-cyclic photophosphorylation )-

हिल एवं बैण्डाल एवं रोबिनोविच एवं गोविन्दजी ने अचक्रीय फोटोफॉस्फोरिलेशन को समझाने के लिए 'Z' योजना (Z-scheme) प्रस्तुत की। इनके अनुसार प्रकाश अभिक्रिया के समय होने वाली दोनों प्रकाश रासायनिक अभिक्रियाएँ ( PS-1 एवं PS-II) एक श्रृंखला (Series) में होती हैं तथा एक अभिक्रिया का उत्पाद दूसरी अभिक्रिया में उपयोग किया जाता है। 

 

चक्रीय फोटोफॉस्फोरिलेशन (Cyclic photophosphorylation )

इस चक्र में फोटोऑक्सीकृत (Photo-oxidized) P-700 से मुक्त इलेक्ट्रॉन X, A (FeS), FRS से होते हुए Fd में स्थानान्तरित होते हैं। Fd से ये इलेक्ट्रॉन Cyt-b6 , Cyt-f  एवं PC से होते हुए वापस P 700 में पहुँच जाते हैं। जब ये इलेक्ट्रॉन Fd से Cyt-b6 एवं Cyt-b6 से Cyt-f में स्थानान्तरित होते हैं, ठीक उसी समय इन इलेक्ट्रॉनों के स्थानान्तरण से एक-एक ATP (कुल 2ATP) का निर्माण होता है। इस प्रकार हम देखते हैं कि इस चक्र में P-700 से मुक्त इलेक्ट्रॉन वापस P-700 तक पहुँच जाते हैं, इसलिए इसे चक्रीय फोटोफॉस्फोरिलेशन कहते हैं। 

 

 चक्रीय तथा अचक्रीय फोटोफॉस्फोरिलेशन में अंतर 

 चक्रीय फोटोफॉस्फोरिलेशन 

1. यह क्रिया प्रथम वर्णक तन्त्र (PS-I) से सम्बन्धित होती है। 

2. इस क्रिया में क्लोरोफिल अणु से मुक्त हुए इलेक्ट्रॉन्स पुनः क्लोरोफिल तक वापस आ जाते हैं। 

3. इस क्रिया में जल का प्रकाश-रासायनिक अपघटन एवं O2 का उत्पादन नहीं होता है। 

14. इस क्रिया दो स्थानों पर फोटोफॉस्फोरिलेशन क्रिया होती है तथा 2 ATP का निर्माण होता है। 

5. इस क्रिया में NADP+ का अपचयन नहीं होता है।

 

अचक्रीय फोटोफॉस्फोरिलेशन  

1. यह क्रिया द्वितीय वर्णक तन्त्र (PS-II) से सम्बन्धित होती है। 

2. इस क्रिया में क्लोरोफिल से मुक्त हुए इलेक्ट्रॉन्स वापस नहीं पहुँचते हैं। अत: इनकी आपूर्ति जल के प्रकाश- रासायनिक अपघटन से मुक्त इलेक्ट्रॉन्स के द्वारा होती है। 

3. इस में जल का प्रकाश-रासायनिक अपघटन एवं O2 का उत्पादन होता है। 

4. इस क्रिया में केवल एक ही बार फोटोफॉस्फोरिलेशन होता है तथा केवल 1 ATP का ही निर्माण होता है। 

5. इस क्रिया में NADP+, NADPH + H + में अपचयित हो जाता है।

केल्विन चक्र या C 3 चक्र  

कार्बन डाइऑक्साइड के स्थिरीकरण की इस विधि का वर्णन केल्विन, बेलान एवं बाशम ने किया था। चूंकि इस क्रिया का प्रथम स्थायी यौगिक फॉस्फोग्लिसरिक अम्ल (PGA) होता है, जो 3 कार्बनयुक्त यौगिक है, अतः इस चक्र को C) चक्र एवं ये पौधे जिनमें यह चक्र पाया जाता है, उन्हें C, पौधे कहते हैं। । 

इन्होंने C3  चक्र निम्नलिखित दो निरीक्षणों के आधार प्रस्तुत किया- 

(i) जब प्रकाश संश्लेषण करने वाले पौधों को कम प्रकाश मिलता है तो इनमें PGA (फॉस्फोग्लिसरिक अम्ल) की मात्रा बढ़जाती है जबकि RuDP (रिमुलोज डाइफॉस्फेट) की मात्रा कम हो जाती है। 

(ii) जब प्रकाश संश्लेषण करते हुए पौधे को कम CO2 प्राप्त होता है तो RuDP की मात्रा में वृद्धि हो जाती है जबकि PGA की मात्रा कम हो जाती है। 

 

केल्विन चक्र की क्रियाविधि (Mechanism of Calvin Cycle) 

केल्विन चक्र निम्नलिखित चरणों में पूर्ण होता है- 

1. कार्बनीकरण (Carboxylation) 

2. अपचयन (Reduction) 

3. हेक्सोज शर्करा का निर्माण (Hexose sugar formation) 

4. राइबुलोज - 5 फॉस्फेट का पुनर्निर्माण (Regeneration of Rib-S-P)

 

हैच एवं स्लैक चक्र अथवा C4 चक्र 

प्रारम्भ में ऐसा विश्वास किया जाता था कि CO2 का स्थिरीकरण केल्विन चक्र के द्वारा हो होता है। लेकिन  हैच एव स्लैक  नामक वैज्ञानिकों ने सन् एक प्रयोग के द्वारा निष्कर्ष निकाला कि पौधों में CO2 के स्थिरीकरण का एक अतिरिक्त (Alternative) पथ होता है, जिसे C4- डाइ-कार्बोक्सिलिक अम्ल चक्र (C-dicarboxylic acid cycle) या C4 चक्र कहते हैं। इसे C4 चक्र इसलिये कहा जाता है, क्योंकि इस चक्र का प्रथम स्थायी उत्पाद चार कार्बन युक्त यौगिक, ऑक्जेलो ऐसीटिक अम्ल होता है।

 

प्रकाश श्वसन या C2  चक्र  

प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया प्रकाश की उपस्थिति में होती है तथा श्वसन क्रिया प्रकाश एवं अन्धकार दोनों ही स्थितियों में समान दर से होती है। आधुनिक खोजों से यह ज्ञात हुआ है कि पौधों में प्रकाश की उपस्थिति में श्वसन की दर अंधकार को अपेक्षा तीन से पाँच गुना तीव्र गति से होती है। इसे प्रकाश श्वसन (Photorespiration) कहते हैं। यह क्रिया शीतोष्ण प्रदेशों में पाये जाने वाले पौधों जैसेजौ, धान, गेहूं आदि में पाई जाती है। 

प्रकाश श्वसन की परिभाषा  

"पौधों के हरे भागों की कोशिकाओं में होने वाली वह क्रिया जिसमें श्वसन क्रिया के समय प्रकाश की उपस्थिति में ऑक्सीजन का उपयोग होता है तथा CO2 गैस मुक्त होती है उसे प्रकाश श्वसन कहते हैं।" 


सामान्य श्वसन क्रिया में श्वसन पदार्थ सुक्रोज या ग्लूकोज होता है, परन्तु प्रकाश श्वसन क्रिया में श्वसन पदार्थ ग्लाइकोलिक अम्ल (Glycolic acid) या ग्लाइकोलेट (Glycolate) होता है जो कि 2 कार्बन वाला यौगिक होता है। इसीलिये प्रकाश श्वसन को C2 चक्र या ग्लाइकोलिक अम्ल चक्र भी कहते हैं।  

C2 चक्र के विशिष्ट लक्षण 

इस चक्र में श्वसन पदार्थ 2 वाला यौगिक ग्लाइकोलेट होता है। 

यह यौगिक तत्काल निर्मित होता है।

 

C 4 पौधों के लक्षण  

  • C 4 पौधे प्रायः उष्ण कटिबन्धीय प्रदेशों (Tropical regions) में पाये जाते हैं, जहाँ पर तापक्रम 30-35°C एवं प्रकाश की तीव्रता उच्च (Highlight intensity) होती है। 
  • C 4 पौधों में प्रकाश श्वसन (Photorespiration) नहीं होता है अथवा प्रकाश श्वसन की दर अत्यन्त कम होती है। 
  • C 4 पौधों की पत्तियों में एक विशिष्ट शरीर संरचना पायी जाती है। इन पौधों की पत्तियों में संवहन बंडल (Vascular Bundles) बंडल शीथ कोशिकाओं (Bundle sheath cells) के द्वारा भिरे रहते हैं। बंडल शीथ कोशिकाएँ भी मौजोफिल कोशिकाओं (Mesophyll cells) के द्वारा घिरी रहती हैं। इस प्रकार की शरीर संरचना को क्रेन्ज एनाटॉमी (Kranz. anatomy) कहते हैं बन्डल शीथ कोशिकाएँ एवं मोजोफिल कोशिकाएँ आपस में प्लाज्मोडेस्मेटा के द्वारा जुड़ी रहती हैं।


 उच्च पौधों में प्रकाश संश्लेषण अन्य महत्वपूर्ण जानकारी 

फोटॉन  

प्रकाश किरणें छोटे-छोटे गतिशील कर्णो की बनी होती है, जिन्हें फोटॉन (Photon) कहते हैं। ये प्रकाश की इकाई है। एक फोटॉन प्रकाश की वह मात्रा है, जो इलेक्ट्रॉन को उत्तेजित करने के लिए आवश्यक होती है।

 

क्वाण्टोसोम  

क्वाण्टोसोम क्लोरोप्लास्ट की पायलेॉइड झिल्ली पर पायी जानी वाली सूक्ष्म संरचनाएँ है। इन्हें प्रकाश संश्लेषण की इकाई माना गया है। 

रेड ड्रॉप  

विंट इमर्सन व उनके साथियों ने जब पौधों को एक समय में केवल 680 nm से अधिक तरंगदैर्ध्य एकवर्णी प्रकाश दिया तो उन्होंने पाया कि प्रकाश-संश्लेषण की दर (क्वाण्टम उत्पाद) में कमी आती है। चूँकि यह तरंगदैर्ध्य दृश्य स्पेक्ट्रम के लाल क्षेत्र से सम्बन्धित है, अतः उक्त घटना को उन्होंने रेड ड्रॉप कहा। 

इमर्सन प्रभाव  

रेड ड्रॉप घटना के बाद इमर्सन ने यह देखा कि यदि 680 nm से अधिक तरंगदैर्ध्य के प्रकाश के साथ-साथ इससे कम तरंगदैर्ध्य का प्रकाश भी पौधों को दिया जाए तो प्रकाश संश्लेषण में क्वाण्टम उत्पाद की वृद्धि हुई, इसे इमर्सन प्रभाव कहते हैं तथा इमर्सन के रेड ड्रॉप व वृद्धि प्रभाव को संयुक्त रूप से इमर्सन प्रभाव कहा गया।


उच्च पौधों में प्रकाश संश्लेषण मुख्य बिन्दु 

  • प्रकाश संश्लेषण एक उपचयी (Anabolic) क्रिया है जो प्रकाश की उपस्थिति में क्लोरोफिलयुक्त पादप कोशिकाओं में सम्पन्न होती है। इस क्रिया में कार्बन डाइऑक्साइड एवं जल के संयोग से ग्लूकोज एवं अन्य कार्बोहाइड्रेट्स का निर्माण होता है। इस क्रिया में सौर ऊर्जा को रासायनिक ऊर्जा में बदला जाता है। 
  • क्लोरोप्लास्ट प्रकाश-संश्लेषण के क्रिया-स्थल हैं। 
  • प्रकाश-संश्लेषण के प्रमुख वर्णक है- क्लोरोफिल-a, क्लोरोफिल-b, जैन्योफिल तथा कैरोटिनॉइड) इनमें से क्लोरोफिल- मुख्य वर्णक है। शेष सहायक वर्णक हैं। 
  • प्रकाश-संश्लेषण की दो चरणों में सम्पन्न होती है-प्रकाश अभिक्रिया तथा अप्रकाशिक अभिक्रिया। 
  • प्रकाश-संश्लेषण की प्रकाश अभिक्रिया क्लोरोप्लास्ट के ग्रैना में तथा अप्रकाशिक अभिक्रिया स्ट्रोमा भाग में सम्पन्न होती है। 
  • क्लोरोफिल अणु का प्रकाश अवशोषित करके उत्तेजित होना, प्रकाश संश्लेषण का प्रथम चरण है। 
  • रैंड ड्रॉप एवं इमर्सन वृद्धि प्रभाव की खोज से यह स्पष्ट हुआ कि प्रकाश का अवशोषण करने के लिए दो वर्णक तन्त्र (वर्णक तन्त्र-1 एवं वर्णक तन्त्र-II) पाये जाते हैं। 
  • वर्णक तन्त्र का अभिक्रिया केन्द्र P700 एवं वर्णक तन्त्र-II का अभिक्रिया केन्द्र P680 होता है। 
  • वर्णक तन्त्र 1 चक्रीय तथा अचक्रीय दोनों प्रकार के फोटोफॉस्फोरिलेशन में जबकि वर्णक तन्त्र 2 केवल अचक्रीय फोटोफॉस्फोरिलेशन में भाग लेता है। 
  • C3 पौधों में CO2 ग्राही RuBP (राइबुलोज वाइफॉस्फेट) तथा प्रकाश संश्लेषण का पहला स्थायी कार्बनिक यौगिक PGA अम्ल) है। 
  • C4 पौधों में CO2 ग्राही PEP (फॉस्फोइनोल पाइरुविक अम्ल) तथा प्रथम स्थायी कार्बनिक यौगिक ऑक्सलिक अम्ल है।

      

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