जैव विकास के विभिन्न प्रमाण | Biological evolution in Hindi

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जैव विकास के विभिन्न प्रमाण  

जैव विकास के विभिन्न प्रमाण

विकास किसे कहते हैं? 

भूवैज्ञानिक काल के दौरान सरल प्रकार के पूर्वजों से "परिवर्तन" के फलस्वरूप जटिल जीवों का बनना विकास या जैव विकास कहलाता है।

 

जैव विकास सिद्धान्त के अनुसार 

  • आज के विभिन्न जीव उसी रूप में नहीं बने जिस रूप में आज पाए जाते हैंबल्कि वे एक सामान्य पूर्वज रूप सेजो कहीं अधिक सरल प्रकार का रहा होगाधीरे-धीरे विकसित हुए। 
  • जीवों के लक्षण विगत काल में बदलते रहे हैं (वे आज भी बदल रहे हैंऔर भविष्य में भी वे बदलते रहेंगे)ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि जीव जिस वातावरण में रह रहे हैं वह भी बदलता रहता हैऔर इस परिवर्तनशील वातावरण में जीवों को जीवित बने रहने के लिए अनुकूलन की आवश्यकता होती है। 
  • विगत काल के अनेक जीव आज विलुप्त हो चुके हैं। 
  • आज जो विभिन्न प्रजातियां (Species) मिलती हैंउनका उद्भव एक क्रमिक और अत्यधिक धीमी प्रक्रिया रही है। इस प्रक्रिया में सैकड़ों वर्षों से लेकर हजारों वर्ष तक लगे होंगे। यद्यपि ब्लैक पीपर्ड शलभ या बहुगुणित प्रकार की कुछ फसलें या पीडकनाशी प्रतिरोधी मच्छरों का विकास बहुत ही कम समय में हुआ होगा।

 

धीमी और क्रमिक परिवर्तन की इसी प्रक्रिया को जैव विकास कहते हैं।

 

इस प्रकारजैवविकास के सिद्धान्त के अनुसार पृथ्वी पर मिलने वाले सभी जीवधारी समान पूर्वज के वंशज हैं और इन्हीं पूर्वजों में हुए रूपांतरणों द्वारा विकसित हुए हैं

 

2 जैव विकास के विभिन्न प्रमाण 

जैव विकास का समर्थन करने वाले प्रमाण जीवविज्ञान के विभिन्न क्षेत्रों में मिलते हैं। इनमें से प्रमुख प्रमाण चार क्षेत्रों में लिए गए हैं :

 

1. आकारिकीय प्रमाण 

2. भ्रौणिकीय प्रमाण

3. जीवाश्मिकीय प्रमाण 

4. आण्विक प्रमाण


1. आकारिकी प्रमाण 

यद्यपि विभिन्न प्रजातियों के समूहों के जीव एक-दूसरे से सर्वथा भिन्न होते हैं तथापि उनके कुछ लक्षणों में समानता होती है। विकास के संदर्भ में आकारिकीमूलक प्रमाण निम्न लक्षणों में मिलते हैं।

 

(i) समजात व समवृत्ति अंग  

(ii) अवशेषी अंग 

(iii) संयोजक कड़ियाँ 


विभिन्न समूहों के कशेरूकी प्राणियों के विभिन्न अंगों के तुलनात्मक अध्ययन से कुछ उभयनिष्ठ लक्षण दृष्टिगोचर होते हैं जो इस बात की पुष्टि करते हैं कि इन जीवों का विकास एक ही पूर्वज से हुआ है। 

 

 

समजात अंग : 

  • समजात अंगवे अंग होते हैं जो संरचनात्मक रूप से और उत्पत्ति के आधार पर तो समान ही है लेकिन देखने में भिन्न होते हैं और जो भिन्न कार्य करते हैं। 
  • कशेरुकियों के अग्रपाद समजात अंगों का एक अच्छा उदाहरण हैइनके निर्माण की मूलभूत योजना समान है तथापि ये भिन्न-भिन्न दिखाई देते हैं और भिन्न-भिन्न कार्य करते हैं।  
  • समजात अंग दर्शाते हैं कि विभिन्न जीवों की अलग-अलग सृष्टि नहीं हुई हैबल्कि वे विकास प्रक्रिया द्वारा बने हैं।

 

समवृत्ति अंग - 

कार्य में समान लेकिन संरचनात्मक रूप से भिन्न अंग समवृत्ति अंग कहलाते हैं। एक कीट का पंख व एक पक्षी या चमगादड़ या टेरोडैक्टाइल का पंख समवृत्ति अंग के उदाहरण है, पंख का कार्य समान है (उड़ने के लिए) लेकिन कीट के पंख और कशेरुकियों के पंख के बीच कोई संरचनात्मक समानता नहीं है।

 

अवशेषी अंग-

अवशेषी अंग कोई भी छोटाहासित या अपूर्ण रूप से विकसित (अक्रियात्मक) अंग है जो किसी पूर्वज में पूर्ण विकसित व क्रियात्मक रहा होगा। इन अक्रियात्मक अंगों की उपस्थिति के बारे में केवल यही तर्क दिया जा सकता है कि ये पूर्वजों से चले आ रहे हैं जिनमें कभी उनका कुछ कार्य रहा होगा। 

 

संयोजी कड़ियाँ - 

जंतु या पौधे जिनमें दो विभिन्न समूहों के जीवों के अभिलक्षण होते हैं उन्हें संयोजी कड़ियाँ कहा जाता है। संयोजी कड़ियों से यह प्रमाणित हो जाता है कि जीवों के एक समूह का विकास दूसरे समूह से हुआ है। यही बात जीवों की श्रृंखला में एक निरंतरता स्थापित करती है। इसका एक अच्छा उदाहरण जीवाश्म पक्षी आर्किओप्टेरिक्स है जो कि सरीसृप व पक्षी वर्ग के बीच की एक संयोजी कड़ी है। इस पक्षी की दंतयुक्त चोंच थी व एक ( छिपकली की भाँति ) लंबी अस्थियुक्त पूंछ और इसके पंखों में पक्षियों की भाँति पर थे.  


(2) भ्रौणिकीय यानी भ्रूणविज्ञान से प्राप्त प्रमाण 

भ्रूणविज्ञान जीव के परिवर्धन का अध्ययन किया जाता है 

जैव विकास - सिद्धान्त का समर्थन करने वाले भ्रूणविज्ञान के पहलू हैं : 

  • सभी जीवों में प्रारंभिक परिवर्धन की समान अवस्थाएँ [ तूतक (मोरुला)कोरक (ब्लैस्टुला ) या कंदुक (गैस्ट्रुला)] पाई जाती है। 
  • सभी कशेरुकियों के भ्रूण प्रारंभिक अवस्था में आकृति व संरचनात्मक रूप से समान होते हैं। यह समानता इतनी अधिक होती है कि उनमें भेद करना कठिन है।  
  • सभी कशेरुकी अपना जीवन एकल कोशिकायुग्मज (जाइगोट) से आरंभ करते है। अपने जीवन इतिहास में वे सभी द्विस्तरीय ब्लास्टुला व त्रिस्तरीय गैस्ट्रला अवस्थाओं व फिर मछली के समान क्लोम छिद्रों (गिल - स्लिट्स गलफड़ों) की स्थिति से गुजरते हैं। 
  • भ्रूणविज्ञान के सभी विभिन्न पहलू इस तथ्य का प्रबल समर्थन करते हैं कि विभिन्न वर्गों के कशेरुकी प्राणियों का एक सर्वनिष्ठ पूर्वज था।

 

(3) जीवाश्मिकी (जीवाश्म विज्ञान ) प्राप्त प्रमाण 

जीवाश्म विज्ञान जीवाश्मों का अध्ययन है। जीवाश्म भूतकाल के जंतु व पादप जीवन के अवशेष हैं जो कि चट्टानों में या तो अंतःस्थापित हुए पाए जाते हैं या साँचे में ढली बनावट अथवा चिह्न के रूप में अस्थिभूत हुए पाए जाते हैं।

 

  • भू-वैज्ञानिक समय माप में आदिम युग के जीवाश्म जीवाणु (बैक्टीरिया) के हैंउसके बाद अकशेरुकी जीवों के और उसके बाद क्रमशः एम्फिबियनोंमछलियोंसरीसृपों और उसके बाद पक्षियों और स्तनधारियों के मिलते हैंतथा स्तनधारियों में भी अंततः मानवों आदि के जीवाश्म मिलते हैं।

 

  • घोड़ाहाथीऊंट और मानव के अब तक के प्राप्त जीवाश्मों से उनके पूर्वजों के इतिहास का पता चलता है  अधिक तीव्र गति के लिए पादांगुलियों की संख्या घटी और क्रमशः इनका आकार बढ़ा व दाँत घास खाने के लिए अनुकूलित हुए।

 

4. विकास के आण्विक प्रमाण 

  • सभी प्राणियों में कोशिकाएँ जीवन की मूलभूत इकाइयाँ होती हैंकोशिका जैव अणुओं से निर्मित होती है जो कि सभी प्राणियों में सर्वनिष्ठ है। 
  • राइबोसोम कोशिकीय अंगक सभी जीवों में पाई जाती हैं। 
  • डी.एन.ए. सभी जीवों का आनुवंशिक पदार्थ हैकेवल कुछ विषाणुओं को छोड़कर । 
  • ए.टी.पी. जैव प्रक्रियाओं के लिए ऊर्जा संग्रह करने व मोचन करने वाला अणु लगभग सभी जीवों में समान 22 ऐमीनो अम्ल प्रोटीनों के अवयव होते हैं। 
  • जीव कोड सार्वत्रिक है (अपवाद बहुत कम है) । 
  • जीव संबंधी सूचना - स्थानांतरण का केंद्रीय सिद्धान्त सभी में समान है। 
  • सभी जीवों में प्रोटीन संश्लेषण के लिए प्रतिलेखन व स्थानांतरण के मूलभूत सोपान चरण है। 
  • न्यूक्लिओटाइडों का अनुक्रम जैसा कि वर्धक (प्रोमोटर) जीव में होता है ( TATA BOX) सभी जीवों में सर्वनिष्ठ होता है। 

तथापिसमान रासायनिक अभिलक्षणों वाले विकास क्रम में अधिक निकट संबंध दर्शाते हैंउदाहरण के तौर पर 

(i) मानव रक्त प्रोटीन सभी कपियों में चिपेंजी के रक्त के सबसे ज्यादा समान है। या

(ii) कुछ पादपों व कुछ शैवालों में क्लोरोफिल पाया जाता है अत: उनका अधिक निकट संबंध है। जीवों में रासायनिक घटकों के बीच की इस प्रकार की समानता को आण्विक सजातीयता (समजातीयता) या जैव रासायनिक सजातीयता कहते हैं और हाल के वर्षों में इनका प्रयोग विकास के संबंधों की स्थापना करने में किया जाता रहा है और यह वर्गीकरण का आधार निर्मित करता है।

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