हैच एवं स्लैक चक्र अथवा C4 चक्र
C4 चक्र
- प्रारम्भ में ऐसा विश्वास किया जाता था कि CO2 का स्थिरीकरण केल्विन चक्र के द्वारा ही होता है, लेकिन कोर्टशेक (Kortsheck) नामक वैज्ञानिक ने पाया कि जब गन्ने के पौधों को कुछ सेकण्ड तक "CO2 दिया जाता है, तब प्रारम्भ में ऑक्जेलो ऐसीटिक अम्ल (Oxalo acetic acid) एवं मैलिक अम्ल (Malic acid) में 14C के आइसोटोप पाये गये। बाद में हुँच एव स्लैक (Hatch and Slack) नामक वैज्ञानिकों ने सन् 1971 में उपर्युक्त प्रयोग में 14CO2 को काफी समय तक गन्ने को दिया तो पाया कि उपर्युक्त दोनों अम्लों के अतिरिक्त ऐस्पार्टिक अम्ल एवं C3 चक्र के समस्त यौगिकों में 14C के आइसोटोप पाये गये।
- उपर्युक्त निष्कर्ष के आधार पर हैच एवं स्लैक (Hatch and Slack, 1966) ने उपर्युक्त प्रयोग में 14CO2 में पत्तियों को अधिक समय के लिए अनावृत (Expose) किया तो पाया कि प्रारंभ में तीनों C4 -डाइकार्बोक्सिलिक अम्लों में 14C के आइसोटोप (Isotopes) उपस्थित हैं, लेकिन जब "CO के अनावरण (Exposure) की समयावधि बढ़ा दी गई तो उपर्युक्त तीनों Cr- डाइकार्बोॉक्सिलिक अम्लों के साथ-साथ C, चक्र के 3- फॉस्फोग्लिसरिक अम्ल (3-PGA), हेक्सोज मोनोफॉस्फेट एवं सुक्रोज (Sucrose) में भी 14C के आइसोटोप का समावेश हो जाता है। उपर्युक्त निरीक्षणों के आधार पर हैच एवं स्लैक (Hatch and Slack, 1966) ने अन्य पौधों में भी इस क्रिया का अध्ययन किया और निष्कर्ष निकाला कि पौधों में CO2 के स्थिरीकरण का एक अतिरिक्त (Alternative) पथ होता है, जिसे C4-डाइ-कार्बोक्सिलिक अम्ल चक्र (C4-dicarboxylic acid cycle) या C4 चक्र (C4 cycle) या बीटा कार्बोक्सिलेशन चक्र (B-carboxylation cycle) भी कहते हैं। इसे C चक्र इसलिये कहा जाता है, क्योंकि इस चक्र का प्रथम स्थायी उत्पाद (First stable product) चार कार्बन युक्त यौगिक, ऑक्जेलो ऐसीटिक अम्ल (Oxalo acetic acid) होता है।
- C4 टाइकार्बोक्सिलिक अम्ल चक्र प्रैमिनी कुल (Family-Graminas) के सदस्यों मक्का (Maize) एवं गन्ना (Sugarcane) में पाया जाता है। इन्हें उष्ण कटिबन्धीय घास (Tropical grasses) कहते हैं। इसके अतिरिक्त यह चक्र साइप्रेसी (Cyperaceae), एजोएसी (Azoaceae), अमेरेन्बेसी (Amaranthaceae), चीनोपोडिएसी (Chenopodiaceae), यूफोविंएसी (Euphorbiaceae) एवं निक्टेजिनेसी (Nyctaginaceae) आदि कुलों के कुछ सदस्यों में पाया जाता है।
C 4 पौधों के लक्षण (Characteristic Features of C Plants)
C4 चक्र युक्त पौधों के विशिष्ट लक्षण निम्नलिखित हैं-
1. C4 पौधे प्रायः उष्ण कटिबन्धीय प्रदेशों (Tropical regions) में पाये जाते हैं, जहाँ पर तापक्रम 30-35°C एवं प्रकाश की तीव्रता उच्च (Highlight intensity) होती है।
2. C4 पौधों में प्रकाश श्वसन (Photorespiration) नहीं होता है अथवा प्रकाश श्वसन की दर अत्यन्त कम होती है।
3. इन पौधों में प्रकाश संश्लेषण की दर अधिक (40-80 mg CO2 प्रति घंटा) होती है, जबकि C, पौधों में प्रकाश संश्लेषण की दर 10-15 mg CO/ hr होती है।
4. C4 पौधों की पत्तियों में एक विशिष्ट शरीर संरचना पायी जाती है। इन पौधों की पत्तियों में संवहन बंडल (Vascular Bundles) बंडल - शीथ कोशिकाओं (Bundle sheath cells) के द्वारा घिरे रहते हैं। बंडल शीथ कोशिकाएँ भी मोजोफिल कोशिकाओं (Mesophyll cells) के द्वारा घिरी रहती हैं। इस प्रकार की शरीर संरचना को कैन्ज एनाटॉमी (Kranz anatomy) कहते हैं। बन्डल शीथ कोशिकाएँ एवं मीजोफिल कोशिकाएँ आपस में प्लाज्मोडेस्मेटा (Plasmodesmata) के द्वारा जुड़ी रहती हैं।
5. C. पौधों में दो प्रकार के क्लोरोप्लास्ट पाये जाते हैं-
(i) मीजोफिल क्लोरोप्लास्ट (Mesophyll chloroplast) एवं
(ii) बण्डल - शीथ क्लोरोप्लास्ट (Bundle sheath chloroplast)
बण्डल - शीथ कोशिकाओं में उपस्थित क्लोरोप्लास्ट आकार में बड़ा होता है। इसमें ग्रैना (Grana) अनुपस्थित होता है तथा ये स्टार्च कण (Starch grain) युक्त होती है, जबकि मीजोफिल कोशिकाओं में उपस्थित क्लोरोप्लास्ट आकार में छोटे होते हैं तथा इनमें ग्रैना (Grana) उपस्थित होता है, जबकि इनमें स्टार्च कणों का अभाव होता है पाइरुविक अम्ल से मैलिक अम्ल व ऐस्पार्टिक अम्ल का निर्माण भीजोफिल क्लोरोप्लास्ट में होता है।
6. इसमें CO, का स्थिरीकरण करने वाले दो प्रकार के एन्जाइम पाये जाते हैं-
(i) मोनोफिल कोशिकाओं में फॉस्फोइनॉल पाइरुविक अम्ल (PEP) पाया जाता है जो C4 चक्र द्वारा CO2 का उपयोग करता है। करता है।
(ii) बण्डल -शीय कोशिकाओं में RuDP-C या RUBISCO एन्जाइम पाया जाता है जो कि C, चक्र द्वारा CO, का उपयोग C पौधों में CO, का स्थिरीकरण दो चक्रों C, एवं C द्वारा होता है।
C4 चक्र की क्रिया विधि
हैच एवं स्लैक चक्र में दो कार्बोक्सिलेशन क्रियाएँ (Carboxylation reaction) होती हैं। इनमें से प्रथम कार्बोक्सिलेशन क्रिया मोफिल क्लोरोप्लास्ट (Mesophyll chloroplast) एवं द्वितीय कार्बोक्सिलेशन क्रिया बण्डल शीथ क्लोरोप्लास्ट (Bundle) sheath chloroplast) में निम्नलिखित चरणों में पूर्ण होती हैं-
1. मौसोफिल कोशिका में (In mesophyll cells)
(i) सर्वप्रथम CO2 रनों के माध्यम से पत्ती की मी जोफिल कोशिकाओं में प्रवेश करती है तथा कोशिका में यह CO2 फॉस्फोइनॉल पाइरुविक अम्ल (PEP) जो कि C4 चक्र का CO2 ग्राही यौगिक होता है, से क्रिया करके ऑक्लोएसिटिक अम्ल (OAA) का निर्माण करता है। यह क्रिया PEP- कार्योंक्सीलेज एन्जाइम (PEP-C) की उपस्थिति में होती है।
(ii) उपर्युक्त क्रिया के फलस्वरूप बना ऑक्जेलोऐसीटिक अम्ल अब मीजोफिल क्लोरोप्लास्ट में विसरित (Diffused) हो जाता है तथा ट्रांसएमिनेज एन्जाइम (Transaminase enzyme) की उपस्थिति में यह ऐस्पार्टिक अम्ल (Aspartic acid) में परिवर्तित हो जाता है अथवा NADP+ स्पेसिफिक मैलेट डीहाइड्रोजिनेज एन्जाइम (NADP* specific malate dely- drogenase enzyme) की उपस्थिति में मैलिक अम्ल में अपचयित हो जाता है।
बण्डल- शीघ्र कोशिका में (In bundle sheath cells) -
(iii) मोजोफिल क्लोरोप्लास्ट में बना मैलिक प्लाज्मोडेस्मेटा (Plasmodesmata) के द्वारा विसरित होकर बण्डल शोष क्लोरोप्लास्ट में पहुँच जाता है और वहाँ पर विकार्बनीकृत (Decarboxylated) होकर पाइरुविक अम्ल एवं CO निर्माण करता है।
(iv) अब द्वितीय कार्बोक्सिलेशन की क्रिया बण्डल- [-शीध कोशिका के क्लोरोप्लास्ट में होती है। उपर्युक्त क्रिया (iii) के द्वारा मुक्त हुई आन्तरिक CO2, RuDPC एन्जाइम (RuDP carboxylase) की उपस्थिति में राइवलोज वाइफॉस्फेट (RuDP) के द्वारा ग्रहण कर ली जाती है तथा केल्विन चक्र या C3 चक्र की भाँति फॉस्फोग्लिसरिक अम्ल (PGA) का निर्माण होता है। यह फॉस्फोग्लिसरिक अम्ल C3 चक्र में उपयोग कर लिया जाता है और हेक्सोज मोनोफॉस्फेट, सुक्रोज व स्टार्च का निर्माण होता है।
(v) तृतीय चरण में मण्डल- सी कोशिका के कोशिकाद्रव्य में बना पाइरुविक अम्ल, प्लान्पोडेस्मैटा (Plasmodesmata) द्वारा मौजोफिल कोशिका के क्लोरोप्लास्ट में विसरित हो जाता है तथा वहाँ पर इसके फॉस्फोरिलेशन के फलस्वरूप पुनः फॉस्फोइनॉल पारूविक अम्ल (PEP) का निर्माण होता है। यह क्रिया पायवेट ऑर्थोफॉस्फेट डाइकाइनेज एन्ज़ाइम की उपस्थिति में होती है।
उपर्युक्त क्रिया में बने AMP का फॉस्फोरिलेशन ATP के द्वारा ऐडीनिलेट टाइकाइनेज (Ademylate dikinase) की उपस्थिति में होता है और 2ADP का निर्माण होता है। बाद में यह ADP प्रकाश संश्लेषण की प्रकाश अभिक्रिया में पुनः ATP में परिवर्तित हो जाता है।
(vi) पाँचवें चरण में बना PEP बाद में मौजोफिल क्लोरोप्लास्ट से विसरित होकर मौजीफिल कोशिका के कोशिका द्रम में विसरित होकर पुन: C चक्र के लिए सबट्रेट की भाँति उपलब्ध रहता है।
C4 चक्र का जैविक महत्त्व (Biological Significance of C Cycle)
C4 चक्र पौधों के लिए अधिक उपयोगी (Efficient) होता है। इसका जैविक महत्त्व इस प्रकार है-
1. C4 पौधों में C3 पौधों की अपेक्षाकृत 2-3 गुना उत्पादन अधिक होता है।
2. C4 पौधे CO की अत्यन्त कम मात्रा का भी उपभोग करने की क्षमता रखते हैं। उष्ण कटिबन्धीय (Tropical) प्रदेशों के बातावरण में CO2 की सान्द्रता अत्यन्त कम होती है, अतः C4 पौधों में CO, की अल्प मात्रा का उपयोग करने के लिए एक अत्यन्त प्रभावशाली एन्जाइम तंत्र (Efficient enzyme system) पाया जाता है, जिसे PEP-C (Phosphoenal pynrvic-carbay- fare) एन्जाइम कहते हैं, यह एन्जाइम मौजोफिल कोशिकाओं के क्लोरोप्लास्ट में पाया जाता है। PEP-C, CO, की अत्यन्त कम सान्द्रता में भी क्रियाशील रहता है।
3. C4 पौधों में प्रकाश श्वसन की दर अत्यन्त कम (नगण्य) होती है, अतः इनमें प्रकाश संश्लेषण की दर भी अधिक होती है।
4. ये अधिक से अधिक प्रकाश ऊर्जा का उपयोग करते हैं क्योंकि CO2 के एक अणु के स्थिरीकरण हेतु 5 ATP की आवश्यकता पढ़ती है।
5. C4 पौधे गैसीय विसरण (Gaseous diffusion) के प्रति अधिक प्रतिरोधी (Resistant) होते हैं, जिससे C4 पौधों को दो लाभ मिलते हैं-
(i) CO2 की सान्द्रता में वृद्धि होती है।
(ii) वाष्पोत्सर्जन के द्वारा जल की हानि में कमी होती है।
वाष्पोत्सर्जन की दर में कमी आने के कारण C4 पौधे उष्ण एवं शुष्क वातावरण में भी आसानी से विकास करते हैं।