अन्धकार अभिक्रिया ब्लैकमैन अभिक्रिया
- इस अभिक्रिया को ब्लैकमैन अभिक्रिया (Blackman's reaction) या ताप रासायनिक अभिक्रिया (Thermochemical reaction) भी कहते हैं। इस अभिक्रिया में प्रकाश अभिक्रिया में बने NADPH2 एवं ATP का उपयोग CO2 के अपचयन या स्थिरीकरण में किया जाता है। यह अभिक्रिया क्लोरोप्लास्ट के स्ट्रोमा (Stroma) में होती है। पौधों में पाये जाने वाले कुल कार्बन का लगभग 90% वातावरण को CO2 से प्राप्त किया जाता है।
अन्धकार अभिक्रिया में भिन्नताएं (Variations in Dark Reaction)
उच्चवर्गीय पौधों में तीन प्रकार की अन्धकार अभिक्रियाएँ पायी गई हैं-
1. केल्विन चक्र (Calvin cycle) या C3 चक्र
2. हैच एवं स्लैक चक्र (Hatch and Slack Cycle) या C4 चक्र
3. CAM चक्र (Crassulation acid metabolism cycle)
केल्विन चक्र प्रायः शीतोष्ण प्रदेशों (Temperate regions) में पाये जाने वाले पौधों में पाया जाता है जहाँ पर CO2 स्थिरीकरण के लिए दिन का तापक्रम 15-25°C तक होता है। C4 चक्र प्रायः उष्ण कटिबन्धीय क्षेत्रों में पाये जाने वाले पौधों में पाया जाता है, यहाँ पर दिन का तापक्रम 30-45°C तक होता है। इसी प्रकार CAM चक्र मांसलोद्भिद पौधों में हो पाया जाता है, जिनमें रंध्र रात्रि में खुलते है।
केल्विन चक्र या C3 चक्र, (CALVIN CYCLE OR C3 CYCLE)
- कार्बन डाइऑक्साइड के स्थिरीकरण की इस विधि का वर्णन केल्विन, बेन्सन एवं वाशम (Calvin, Benson and Bassham 1957) ने किया था। चूंकि इस क्रिया का प्रथम स्थायी यौगिक फॉस्फोग्लिसरिक अम्ल (PGA) होता है, जो 3 कार्बन युक्त यौगिक है, अतः इस चक्र को C3 चक्र एवं वे पौधे जिनमें यह चक्र पाया जाता है, उन्हें C3 पौधे कहते हैं। केल्विन ने C3 चक्र का अध्ययन करने के लिए क्लोरेला (Chlorella) एवं सिनडेस्मस (Scenedesmus) नामक एककोशिकीय शैवाल का उपयोग किया। माध्यमिक उत्पादों की पहचान के लिए इन्होंने रेडियो ट्रेसर तकनीक (Radio tracer technique) को अपनाया।
इन्होंने C3 चक्र को निम्नलिखित दो निरीक्षणों के आधार पर प्रस्तुत किया-
(i) जब प्रकाश संश्लेषण करने वाले पौधों को कम प्रकाश मिलता है तो इनमें PGA (फॉस्फोग्लिसरिक अम्ल) की मात्रा बढ़ जाती है जबकि RuDP (रिबुलोज डाइफॉस्फेट) की मात्रा कम हो जाती है।
(ii) जब प्रकाश संश्लेषण करते हुए पौधे को कम CO2 प्राप्त होता है तो RuDP की मात्रा में वृद्धि हो जाती है जबकि PGA को मात्रा कम हो जाती है।
- इनमें से प्रथम निरीक्षण का प्रमुख कारण प्रकाश को अनुपस्थिति में NADPH + H+ एवं ATP का निर्माण नहीं हो पाना होता है। NADPH + H+ एवं ATP, PGA के रूपान्तरण के लिये आवश्यक होता है। अत: PGA की मात्रा कम हो जाती है।
- द्वितीय निरीक्षण का प्रमुख कारण CO2 के अभाव में RuDP का PGA में परिवर्तित नहीं हो पाना होता है, परन्तु अभिक्रिया के पूर्व उपस्थित PGA ही ATP एवं NADPH + H की सहायता से RuDP में रूपान्तरित हो जाता है।
केल्विन चक्र की क्रियाविधि (Mechanism of Calvin Cycle)
केल्विन चक्र निम्नलिखित चरणों में पूर्ण होता है-
1. कार्बनीकरण (Carboxylation)
2. अपचयन (Reduction)
3. हेक्सोज शर्करा का निर्माण (Hexose sugar formation)
4. राइबुलोज -5 फॉस्फेट का पुनर्निर्माण (Regeneration of Rib-S-P)।
1 कार्बनीकरण (Carboxylation)
(i) केल्विन चक्र का प्रारम्भिक यौगिक 5 कार्बन वाला एक यौगिक राइबुलोज मोनोफॉस्फेट (Ribulose monophosphate or RuMP) होता है। फॉस्फोराइबुलोकाइनेज (Phosphoribulokinase) एन्जाइम की उपस्थिति में RuMP के 6 अणु ATP के 6 अणुओं के साथ क्रिया करके राइबुलोज-1, 5-डाइफॉस्फेट या RuDP (Ru-1, 5-DP) के अणुओं का निर्माण करते हैं।
- (i) राइबुलोज-1, 5-डाइफॉस्फेट ( Ru-1, 5-DP) केल्विन चक्र में CO2 को ग्रहण करने वाला (CO2 acceptor) यौगिक होता है Ru-1, 5-DP, CO2 एवं H2O के 6-6 अणुओं के साथ क्रिया करके RuDP काबोंक्सीलेज (RuDP-carbaxy- lase or RuDP-CO) एन्ज़ाइम की उपस्थिति में फॉस्फोग्लिसरिक अम्ल (Phosphoglyceric acid, PGA) के 12 अणुओं का निर्माण करता है।
- RuDP- कार्बोक्सिलेज, कॉपर (Cu) युक्त एन्जाइम (Copper containing enzyme) है। इसकी क्रियाशीलता के लिए Mg** की आवश्यकता होती है। इसे RUBISCO भी कहते हैं।
2. अपचयन (Reduction)
- (ii) उपर्युक्त प्रक्रिया में बने फॉस्फोग्लिसरिक अम्ल (PGA) के 12 अणु, ATP के 12 अणुओं के साथ फॉस्फोग्लिसरोकाइनेज (Phosphoglycerokinase) एन्जाइम की उपस्थिति में फॉस्फेटीकरण (Phosphorylation) के पश्चात् 1, 3- डाइफॉस्फोग्लिसरिक अम्ल (1, 3-diphosphoglyceric acid, 1, 3-DPGA) के 12 अणुओं का निर्माण करते हैं। PGA के फॉस्फोरिलेशन के लिए आवश्यक ATP प्रकाश संश्लेषण की प्रकाश अभिक्रिया से प्राप्त होते हैं।
- (iv) अब उपर्युक्त प्रक्रिया में बने 1, 3-डाइफॉस्फोग्लिसरिक अम्ल (1, 3-DPGA) का अपचयन प्रकाश अभिक्रिया में बने NADPH+H+ के द्वारा होता है और इस क्रिया में 3-फॉस्फोग्लिसरल्डिहाइड (3-PGAL) के 12 अणुओं का निर्माण होता है। यह क्रिया डीहाइड्रोजिनेज एन्जाइम (Delydrogenase enzyme) की उपस्थिति में होती है।
- (v) केल्विन चक्र में बने 3-PGAId के 12 अणुओं में से 5 अणु अपने समावयवी (Isomer) डाइहाइड्रॉक्सी ऐसीटोन फॉस्फेट (Dihydroxyacetone phosphate, DHAP) में बदल जाते हैं।
3. हेक्सोज शर्करा का निर्माण (Hexose sugar formation)-
(vi) द्वितीय चरण में 3- फॉस्फोग्लिसरैल्डिहाइड (3-PGAL) के 3 अणु एवं डाइहाइड्रॉक्सी ऐसीटोन फॉस्फेट (DHAP) के 3 अणु ऐल्डोलेज (Aldolase) एन्जाइम की उपस्थिति में क्रिया करके फ्रक्टोज-1, 6-डाइफॉस्फेट (Fructose-1, 6- diphosphate or Fru-1, 6-DP) के 3 अणुओं का निर्माण करते हैं।
- (vii) इसके पश्चात् फ्रक्टोज-1, 6-डाइफॉस्फेट का डीफॉस्फोरिलेशन (Dephosphorylation) होता है और फ्रक्टोज-6- फॉस्फेट (Fru-6-P) के 3 अणुओं का निर्माण होता है। यह क्रिया फॉस्फेटेज (Phosphatase) एन्जाइम को उपस्थिति में होती है।
- इस प्रकार बने फ्रक्टोज-6-फॉस्फेट का एक अणु पहले फ्रक्टोज-1 फॉस्फेट में बदल जाता है और बाद में इससे ग्लूकोज-1- फॉस्फेट (Glucose-I-phosphate) बनता है।
- ग्लूकोज-1-फॉस्फेट (Glucose-1-P) ATP अथवा UTP से क्रिया करके ADP glucose या UDP glucose बनाता है। बाद में इसी ग्लूकोज से स्टार्च का निर्माण होता है, जो कि पौधों का प्रमुख संग्रहण उत्पाद (Storage product) होता है।
4- राइबुलोज 5. फॉस्फेट का पुनर्निर्माण (Reformation of ribulose 5 phosphate) -
(Viii) तृतीय चरण में 3-फॉस्फोग्लिसरैल्डिहाइड (3-PGAL) के 2 अणु फ्रक्टोज - 6- फॉस्फेट (Fru-6-P) के 2 अणुओं के साथ ट्रान्सकीटोलेज (Transketolare) एन्जाइम की उपस्थिति में इरीथ्रोज-4-फॉस्फेट (Erythrose 4 phosphate, E-4- (P) एवं जाइलुलोज 5-फॉस्फेट (Xylulose-S-phosphate, X-5-P) के दो-दो अणुओं का निर्माण करते हैं।
(ix) इरीथ्रोज-4-फॉस्फेट (E-4-P) एवं डाइहाइड्रॉक्सी-ऐसीटोन फॉस्फेट (DHAP) के दो-दो अणु ऐल्डोलेज (Aldolase) एन्जाइम की उपस्थिति में क्रिया करके सीडोहेप्टुलोज-1, 7- डाइफॉस्फेट (Sedoheptulose-1, 7-diphosphate or S-I, 7-DP) के दो अणुओं का निर्माण करते हैं।
(x) अब सीडोहेप्टुलोज-1, 7- डाइफॉस्फेट (S-1, 7-DP) के दोनों अणुओं का डीफॉस्फोरिलेशन (Dephosphorylation) होता है और सीडोहेप्युलोज-7-फॉस्फेट (S-7-P) के दो अणुओं का निर्माण होता है।
(xi) सीडोहेप्लोटुज - 7 - फॉस्फेट (S-7-P) एवं 3-फॉस्फोग्लिसरल्डिहाइड (3PGAL) के दो-दो अणु मिलकर ट्रांसकीटोलेज (Transketolase) एन्जाइम की उपस्थिति में क्रिया करके राइबोज 5 फॉस्फेट (Ribose 5 phosphate) एव जाइलुलोज 5 फॉस्फेट (Xylulose-S-phosphate, X-5-P) के दो-दो अणुओं का निर्माण करते हैं।
(xii) अब राइबोज-5-फॉस्फेट (Ribose 5 phosphate, R-5-P) का समावयवीकरण (Isomerization) होता है तथा राइवुलोज-S-फॉस्फेट (Ribulose 5 phosphate) का निर्माण होता है। यह क्रिया इपीमरेज (Epimerase) एन्जाइम की उपस्थिति में होती है।
उपर्युक्त अभिक्रियाओं (viii, xi) में जाइलुलोज - 5 फॉस्फेट (X-S-P) के दो-दो अणु बनते हैं। इस प्रकार बने जाइलुलोज- 5-फॉस्फेट के चारों अणु इपीमरेज (Epimerase) एन्जाइम की उपस्थिति में राइबुलोज 5 फॉस्फेट (Ribulose 5-phos- phate) के चार अणुओं का निर्माण करते हैं। इस प्रकार राइबुलोज 5 फॉस्फेट या राइबुलोज मोनोफॉस्फेट के कुल छः अणु बन जाते हैं। राइबुलोज मोनोफॉस्फेट (Ribulose monophosphate) के 6 अणु पुन: ATP के 6 अणुओं से क्रिया करके राइबुलोज 1-5 डाइ फॉस्फेट के 6 अणु बना लेते हैं और पुनः केल्विन चक्र प्रारम्भ हॉट जाता है ।
अन्धकार अभिक्रिया तथ्य
1. केल्विन चक्र की खोज मेल्विन केल्विन (1961) ने की थी। इस चक्र को विभिन्न रासायनिक क्रियाओं का वर्णन बेन्सन एवं बाशम ने किया था।
2. केल्विन चक्र को C3 चक्र भी कहते हैं, क्योंकि इस क्रिया का प्राथमिक स्थायी उत्पाद 3 कार्बन वाला यौगिक P.G.A. होता है।
3. केल्विन चक्र निम्नलिखित चरणों में पूर्ण होता है- (i) कार्बोक्सीलेशन, (ii) अपचयन, (iii) हेक्सोज शर्करा का निर्माण, (iv) राइबुलोज - 5-फॉस्फेट, का पुनर्निर्माण
4. C3 चक्र में 16 ATP एवं 12 NADPH2 का उपयोग CO2 के अपचयन में किया जाता है।
प्रकाशीय अभिक्रिया एवं अन्धकार (अप्रकाशीय) अभिक्रिया में अन्तर
(DIFFERENCES BETWEEN LIGHT AND DARK REACTION)
प्रकाशीय (प्रकाश) अभिक्रिया
1. यह प्रकाश की उपस्थिति में होती है तथा इसकी पूर्णता के लिए प्रकाश अत्यावश्यक होता है।
2. इस क्रिया में प्रकाश अवशोषण तथा इलेक्ट्रॉन अभिगमन की क्रिया होती है।
3. इस क्रिया में ATP तथा अवकृत होकर NADPH2 का संश्लेषण होता है।
4. इस प्रक्रिया में जल का विघटन तथा ऑक्सीजन का उत्सर्जन होता है।
5. यह क्रिया हरितलवक की ग्रेना में होती है।
अप्रकाशीय (अंधकार) अभिक्रिया
1. इसमें प्रकाश की आवश्यकता नहीं होती है।
2. इसमें प्रकाश अवशोषण तथा इलेक्ट्रॉन अभिगमन नहीं होता है।
3. इसमें ATP तथा NADPH2 का संश्लेषण नहीं होता है। बल्कि उसका उपयोग किया जाता है।
4. इस प्रक्रिया में CO2 का अवसरण कार्बोहाइड्रेट के रूप में होता है।
5. यह क्रिया हरितलवक के स्ट्रोमा में होती है।