क्लोरोप्लास्ट - प्रकाश संश्लेषी उपकरण या स्थल
क्लोरोप्लास्ट - प्रकाश संश्लेषी उपकरण या स्थल
- प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया क्लोरोप्लास्ट (Chloroplast, Gk, Chloros green, plastas = moulded) नामक हरे रंग के लवक (Plastid) में सम्पन्न होती है जिसे प्रकाश संश्लेषी उपकरण के नाम से जाना जाता है। स्वयंपोषी पौधों के भिन्न-भिन्न समूहों में भिन्न-भिन्न प्रकार के प्रकाश संश्लेषी उपकरण पाये जाते हैं- प्रोकैरियोटिक रूपों जैसे—जीवाणु एवं नीली-हरी शैवालों (सायनोजीवाणु) में प्रकाश संश्लेषी उपकरण कोशिकाद्रव्य में स्वतंत्र रूप से पाये जाने वाले प्रकाश संश्लेषी लैमिली (Photosynthetic lamellae) में होता है।
- समस्त शैवालों (नीलो-हरी शैवाल को छोड़कर) में प्रकाश संश्लेषी लैमिली एक-दूसरे के समानान्तर एवं पास-पास व्यवस्थित होते हैं तथा इनमें ग्रैना एवं स्ट्रोमा का क्षेत्र अलग-अलग नहीं होता है। ऐसे प्रकाश संश्लेषी उपकरणों में सामान्यतः कैरोटिनॉइड लवकों की अधिकता होती है इसी कारण इन्हें क्रोमैटोफोर्स (Chromatophores) कहते हैं।
- उच्चवर्गीय पौधों (आवृत्तबोजियों), ब्रायोफाइट्स, टेरिडोफाइट्स एवं अनावृत्तबीजियों में प्रकाश- -संश्लेषी उपकरण पूर्ण विकसित होता है तथा इसे क्लोरोप्लास्ट (Chloroplast) कहते हैं।
प्रकाश संश्लेषी वर्णक
(PHOTOSYNTHETIC PIGMENTS)
प्रकाश संश्लेषण में सम्बन्धित समस्त वर्णक (Pigments) क्रोमैटोफोर्स (Chromatophores) में पाये जाते हैं। ये वर्णक प्रकाश संश्लेषण के समय प्रकाश ऊर्जा को रासायनिक ऊर्जा में परिवर्तित करने का कार्य करते हैं।
पौधों में निम्नलिखित तीन प्रकार के प्रकाश संश्लेषी वर्णक पाये जाते हैं-
(A) क्लोरोफिल (Chlorophyll),
(B) कैरोटीनॉयड्स (Carotenoids) एवं
(C) फाइकोविलिन्स (Phycobillins) |
(A) क्लोरोफिल (Chlorophyll; Gk, Chlor green, phyll = leaf)
यह क्लोरोप्लास्ट के अन्दर पाया जाने वाला हरा वर्णक (Green pigment) है तथा यह प्रकाश संश्लेषण की क्रिया में भाग लेता है। पौधों में दस प्रकार के क्लोरोफिल पाये जाते हैं-
(1 से 5) क्लोरोफिल a, b, c, d एवं
(6 से 9) बैक्टीरियोक्लोरोफिल-a, b, c एवं d
(10) — क्लोरोबियम क्लोरोफिल (बैक्टीरियोवीरिडीन)
क्लोरोफिल- एवं b समस्त स्वपोषी पौधों (वर्णक युक्त जीवाणु, भूरी एवं लाल शैवालों को छोड़कर) में पाया जाता है।
क्लोरोफिल-a (Chlorophyll-a)—
यह नीले-हरे (Blue green) रंग का वर्णक है, जो कि पेट्रोलियम ईयर (Petroleum ether) में विलेय होता है। प्रकाश संश्लेषण के समय यह लाल व बैंगनी प्रकाश को अवशोषित करता है। Chl-a का सामान्य सूत्र C55H 72O5N4 Mg है।
2. क्लोरोफिल-b (Chlorophyll-b)-
यह पीले-हरे (Yellow green) रंग का वर्णक है, जो कि मेथिल ऐल्कोहॉल (Me- thyl alcohol) में अच्छी तरह घुलनशील होता है। प्रकाश संश्लेषण के समय यह वर्णक भी लाल व बैंगनी प्रकाश को हो. अवशोषित करता है। आधुनिक खोजों के अनुसार Chl-b दो रूपों में Chl-b 640 एवं Chi-b 650 में पाया जाता है। इसका सामान्य सूत्र (Empirical formula) C55H70O6N4 Mg है।
क्लोरोफिल-c (Chlorophyll-c) -
क्लोरोफिल-c बेसीलेरियोफाइसी एवं फियोफाइसी वर्ग की शैवालों में पाया जाता है। इसका सामान्य सूत्र (Empirical formula) C35H32 O5N4 Mg है।
क्लोरोफिल-d (Chlorophyll-d)
क्लोरोफिल-d, रोडोफाइसी वर्ग के अन्तर्गत आने वाली शैवालों में पाया जाता है। इसका सामान्य सूत्र (Empirical formula) C544H7o6gN4Mg है।
क्लोरोफिल की संरचना (Structure of Chlorophyll)
विलस्टैटर, स्टॉल एवं फिशर (Wilstatter, Stoll and Fischer) ने सन् 1912 में क्लोरोफिल की संरचना का अध्ययन किया था इन्होंने बताया कि क्लोरोफिल टेडपोल लार्वों के समान दो भागों से मिलकर बना होता है-
(i) सिर (Head) यह पायरॉल (Pyrrole) समूह का बना होता है।
(ii) पूँछ (Tail) — यह फायटॉल (Phytol) समूह का बना होता है।
पायरॉल (Pyrrole ) —
क्लोरोफिल की आधारभूत संरचना एक पोरफाइरिन तंत्र (Porphyrin system) होती है। इसमें चार पायरॉल वलय (Tetrapyrol rings) होते हैं, जो आपस में मीथेन ब्रिज (Methane Bridge) के द्वारा जुड़े रहते हैं। प्रत्येक पायरॉल वलय (Pyrrole ring) चार कार्बन तथा एक नाइट्रोजन अणु से मिलकर बना होता है। चारों पायरॉल] वलयों के मध्य में मैग्नीशियम (Mg) का एक अणु स्थित होता है। यह जलस्नेही (Hydrophilic ) होता है। फायटॉल (Phytol)—यह जलविरोधी (Hydrophobic) होता है। यह ऐल्कोहॉल (Phytol chain C28H39OH) का बना होता है। यह श्रृंखला मुख्यतः क्लोरोफिल की लिपोइडल विलेयता (Lipoidal solubility) के लिए उत्तरदायी होती है।
क्लोरोफिल- एवं b में अन्तर
क्लोरोफिल-a I-a (Chlorophyll-a)
1. यह नीला-हरा होता है।
2. इसके द्वितीय पायरॉल वलय में तृतीय कार्बन के साथ मेथिल समूह (—CH 3) जुड़ा होता है।
3. यह प्राथमिक प्रकाशग्राही अणु है।
4. यह चक्रिक एवं अचक्रिक फोटोफॉस्फोरिलेशन के समय मुक्त करता है ।
5. यह पेट्रोलियम ईथर में विलेय होता है।
6. प्रकाश-संश्लेषी जीवाणुओं को छोड़कर यह सभी प्रकाश-संश्लेषी जीवों में पाया जाता है।
7. यह लाल प्रकाश को अवशोषित करता है।
क्लोरोफिल-b (Chlorophyll-b)
1. यह पीला-हरा होता है।
2. यहाँ पर एल्डिहाइड समूह (-CHO) जुड़ा रहता है।
3. यह सहायक वर्ण अणु है।
4. यह अवशोषित विकिरण ऊर्जा को क्लोरोफिल में स्थानान्तरित करता है।
5.यह मेथिल ऐल्कोहॉल में विलेय होता है।
6. यह उच्चवर्गीय पौधों एवं हरी शैवालों में पाया जाता है।
7. यह नीले प्रकाश को अवशोषित करता है।
क्लोरोफिल के कार्य (Functions of chlorophyll)
1. यह सूर्य की विकिरण ऊर्जा का अवशोषण करता है।
2. यह ATP के निर्माण में सहायक होता है।
3. यह इलेक्ट्रॉन परिवहन में सक्रिय भूमिका निभाता है।
4. यह प्रकाश संश्लेषण क्रिया को सम्पादित करता है।
कैरोटीनॉइड्स (Carotenoids)
यह समस्त हरे पौधों में क्लोरोफिल के साथ-साथ पाया जाता है। यह पीला अथवा नारंगी (Yellow or Orange) रंग का वर्णक होता है। समस्त कैरोटीनॉइड्स कार्बनिक विलायकों (Organic solvents) में विलेय (Soluble) होते हैं। इनका प्रमुख कार्य प्रकाश ऑक्सीकरण (Photo-oxidation) से क्लोरोफिल की रक्षा करना है। ये दो प्रकार के होते हैं-
1. कॅरोटीन्स (Carotenes) –
यह असंतृप्त हाइड्रोकार्बन होते हैं जिनका सामान्य सूत्र C40H56 होता है। यह नारंगी लाल रंग का होता है। उदाहरण-B-कैरोटीन यह गाजर में पाया जाने वाला प्रमुख कैरोटीन है। यह नीले एवं हरे प्रकाश की अवशोषित करता है।
2. जैन्योफिल्स (Xanthophylls)
इनका सामान्य सूत्र C40H56O2 होता है। ये कैरोटीन्स के ऑक्सीजन व्युत्पन्न (Oxygen) derivative) होते हैं। यह पीले रंग का वर्णक है, जो क्लोरोफिल के साथ वर्णक तंत्र दो (PS II) में पाया जाता है।
उदाहरण – ल्यूटीन (Leutin), जियाजैन्थिन (Zeaxanthin) आदि। फ्यूकोजन्थिन (CapHgO2) शैवालों में पाया जाता है। यह भी सहायक वर्णकों (Accessory pigments) की श्रेणी में आता है।
कैरोटीनॉइड्स के कार्य (Functions of carotenoids)—
1. कैरोटिनॉइड्स प्रकाश-ऑक्सीकरण (Photo-oxidation) से क्लोरोफिल की रक्षा करते हैं।
2. ये प्रकाश ऊर्जा को अवशोषित कर, उसे क्लोरोफिल-a (Chlorophyll-a) को स्थानान्तरित करने का कार्य करते हैं।
फाइकोबिलिन्स (Phycobilins)
ये वर्णक फाइकोबिलिसोम्स (Phycobilisomes) के अन्दर पाये जाते हैं। फाइकोविलिन्स मुख्यत: भूरी (Brown) एवं लाल शैवालों (Red algae) में पाये जाते हैं। ये जल में विलेय होते हैं। ये वर्णक प्रोटीन के साथ संबंधित होते हैं तथा उच्च ताप पर नष्ट हो जाते हैं। क्लोरोफिल के समान ये वर्णक भी खुली श्रृंखला वाले टेट्रापायरॉल (Open Chain Tetrapyrrole) होते हैं, परन्तु इनमें मैग्नीशियम (Mg) एवं फाइटॉल श्रृंखला (Phytol chain) का अभाव होता है। ये वर्णक प्रकाश ऊर्जा का अवशोषण करके उसे क्लोरोफिल-a (Chl-a) को स्थानान्तरित कर देते हैं।
फाइकोबिलिन्स दो प्रकार के होते हैं-
1. फाइकोइरिथ्रिन (Phycoerythrin)—यह लाल रंग का फाइकोबिलिन है। उदाहरण--फाइकोइरिथ्रिन (नौली-हरी शैवालों में) एवं फाइकोइरिथ्रिन (लाल शैवालों में)।
2. फाइकोसायनिन (Phycocyanin)—यह नीले रंग का फाइकोबिलिन है। उदाहरण--फाइकोसायनिन (नौली-हरी शैवालों में) एवं फाइकोसायनिन (लाल शैवालों में)।
फाइकोबिलिन्स लाल एवं नीली हरी शैवालों में फाइकोबिलिसोमों में पाये जाते हैं जो कि बायलेकॉइड्स से जुड़े रहते हैं। फाइकोविलिन्स क्रोमैटिक अनुकूलन में उपयोगी होते हैं।