वर्गीकरण का अर्थ श्रेणियाँ |Classification categories in Hindi

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वर्गीकरण का अर्थ श्रेणियाँ

वर्गीकरण का अर्थ श्रेणियाँ |Classification categories in Hindi


 वर्गीकरण का अर्थ 

वर्गीकरण का अर्थ है विभिन्न प्रकार के जीवों के बीच समानताएँ व असमानताएँ पता करना और तत्पश्चात् सदृश्य य समानजीवों को एक समूह में व भिन्न-भिन्न प्रकार के जीवों को अलग-अलग समूहों में रखना।

 

वर्गिकी - 

कुछ विशेष नियमों का पालन करते हुए जीवों को विभिन्न वर्गों में वगीकृत करने के विज्ञान को वर्गीकरण विज्ञान या वर्गिकी (Taxonomy) कहते हैं - आरंभिक वर्गीकरण वैज्ञानिकों ने जीवों का केवल आकारिकीय लक्षणें के आधार पर वर्गीकरण किया। जैवविकास की संकल्पना स्वीकृत हो जाने के पश्चात् वर्गिकीविदों ने विभिन्न प्रकार के जीवों के बीच विकासीय संबंध खोजने शुरू किए। इसको वर्गीकरण विज्ञान पद्धति (Systematics) कहते हैं। वर्तमान में वर्गिकी व वर्गीकरण विज्ञान एक-दूसरे के पर्यायवाची माने जाते हैं क्योंकि जैविक वर्गीकरण के लिए आकृतिपरक समानता व जैवरासायनिक समानता और यहाँ तक कि डी. एन. ए. (DNA) व आर. एन. ए. (RNA) अणुओं के बीच समानता का अध्ययन विकास संबंधों की स्थापना करने के लिए किया जाता है।

 

वर्गीकरण श्रेणियाँ 

एक जीव का वर्गीकरण करते समय इसे उन श्रेणियों में रखा जाता है जो इसके अन्य समूह के जीवों के साथ विकास संबंधों को दर्शाती है। प्रत्येक स्तर या श्रेणी को वर्गक (टेक्सोन) (बहुवचन टैक्सा) कहा जाता है। वर्गीकरण या वर्गक की सबसे निचली श्रेणी स्पीशीज़ (Species) है। दूसरी श्रेणियाँ स्पीशीज़ के ऊपर व्यवस्थित किए जाते हैं। इस प्रकार श्रेणियों का एक अनुक्रम बन जाता है। विभिन्न वर्गीकरण श्रेणियाँ निम्न प्रकार हैं।

 

जाति (स्पीशीज़) 

एक प्रकार के जीवों का समूह जो अंतःप्रजनन द्वारा उर्वर या जनन क्षम संतति पैदा कर सकते हैं। 

वंश (जीनस) 

स्पीशीज़ों के एक-दूसरे से कई प्रकार की समानता रखने वाले समूह जो एक साझे पूर्वज की ओर संकेत करते हैं। 

कुल (फैमिली) 

इसमें समान अभिलक्षणों वाले वंशों का समूह जैसे फेलिस डोमेस्टिका (बिल्ली ) और पैन्थेरा टिगरिस दोनों फेलिडी कुल में आते हैं। 

गण (आर्डर) 

सदृश्य अभिलक्षणों को दर्शाने वाले कुलों का समूह । 

वर्ग (क्लास)

ये परस्पर संबंधित क्रम में आते हैं। 

संघ (फाइलम) 

इसमें परस्पर संबंधित वर्ग आते हैं। 

 

विभिन्न संघों (फाइलमों) के क्रमश: अपने जगत् (किंगडम) होते हैं। जीवों के पाँच जगत् (Kingdom) हैं जिनके बारे में आप बाद में जानेंगे। मनुष्य ऐनिमेली जगत् में आते हैं और इसका वर्गीकरण सजीवों को वर्गीकृत करने के तरीकों के उदाहरण स्वरूप दिया जा सकता है।

 

जीवों का वैज्ञानिक नामकरण 

भिन्न-भिन्न प्राणियों व पौधों के अलग-अलग सामान्य नाम होते हैं-अंग्रेजी में 'कैटनाम से जाने जाने वाले प्राणी को हिंदी में 'बिल्ली', बंगाली में 'बिडाल', तमिल में 'पुन्नईव मराठी में 'मंजरनाम से जाना जाता है। फ्रेंच व जर्मन भाषाओं में बिल्ली के अलग-अलग नाम हैं। जीवों को ऐसे वैज्ञानिक नाम दिए जाने की आवश्यकता पैदा हुई जिन्हें संपूर्ण विश्व में समझा जा सके। अतः जीवों को वैज्ञानिक नाम प्रदान किए गए। जीवों के वैज्ञानिक नाम समस्त विश्व में समझे जा सकते हैं।

 

जीवों के नामकरण की एक सरलीकृत पद्धति 'द्विनाम पद्धतिदो शताब्दियों से भी अधिक समय से मानक पद्धति मानी जाती रही है। इस पद्धति को स्वीडन के जीवविज्ञानी केरोलस लिनियस (1707-1778) ने प्रस्तुत की । द्विनाम नामकरण ( Binomial nomenclature) का तात्पर्य नामकरण के लिए दो पदों का प्रयोग करना है। प्रत्येक प्रकार के जीव के नाम के दो भाग होते हैं-वंश (जीनस) व उसके बाद जाति (स्पीशीज़) का नाम । अंग्रेजी में (जीनस) के नाम का पहला अक्षर बड़े अक्षर यानी कैपिटल लेटर से व स्पीशीज के नाम का पहला अक्षर छोटे अक्षर से यानी स्माल लेटर से लिखा जाता है- उदाहरणतया Homo sapiens (होमो सेपियंस) आधुनिक मानव का और Mangifera indica (मैंजीफेरा इन्डिका) आम का वैज्ञानिक नाम है।

 

जैविक नामकरण के तीन मुख्य लक्षण निम्न प्रकार हैं- 

1. वैज्ञानिक नाम को परंपरागत रूप में तिरछे अक्षरों (इटालिक्स) में लिखा जाता है अथवा हाथ से लिखे जाने पर रेखांकित कर दिया जाता है। 

2. वैज्ञानिक नाम नामकरण के वैज्ञानिक नियमों के आधार पर रखे जाते हैं। 

3. वैज्ञानिक नाम अधिकतर ग्रीक या लैटिन में होते हैं। ये पूरे विश्व में समझे जाते हैं और इनके द्वारा जीवों के बारे में परस्पर सूचना संचार सुविधापूर्ण हो गया है।

 

प्राक्केन्द्रकी/ प्रोकैरियोट (Prokaryotes) और सुकेन्द्रकी यूकेरियोट (Eukaryotes) 

  • पृथ्वी पर सर्वप्रथम विकसित होने वाले जीव जीवाणु (बैक्टीरिया) हैं। उनके एकल गुणसूत्र के चारों ओर कोई केन्द्रकीय झिल्ली नहीं पाई जाती है।

 

  • सुस्पष्ट केंद्रक की अनुपस्थिति के कारण या अपरिष्कृत केंद्रक के कारण इनका नाम प्राक्केन्द्रकी या असीमकेंद्रकी (pro = आदि; karyon = केन्द्रक) पड़ा। नील हरित शैवाल (साएनोबैक्टीरिया) सहित सभी जीवाणु प्राक्केन्द्रकीय हैंइसके विपरीत बैक्टीरिया के अतिरिक्त अन्य जीवों में सुकेन्द्रकी या ससीमकेंद्रकी (Eukaryotes) (eu= यथार्थ; karyon = केन्द्रक) होते हैं जिनमे केंद्र (केंद्रक)सुस्पष्ट (सुपारिभाषित) होता है।

 

जीवों के पाँच जगत 

हाल ही तक वर्गीकरण के लिए केवल दो ही जगत् थे - प्लांटी व एनिमली। इस द्विजगतीय वर्गीकरण में कई कमियाँ थींउदाहरणतया बैक्टीरिया ( जीवाणु) व कवकों को पादपों के साथ रखा गया था यद्यपि वे बहुत भिन्न हैं। 

आर. एच. व्हिटेकर ने सन् 1969 में पाँच जगत् वर्गीकरण का प्रस्ताव रखा जो निम्न तीन बातों पर आधारित था ।

 

(i) सुस्पष्ट केंद्रक का होना या न होना 

(ii) एककोशिकीय अथवा बहुकोशिकीय 

(iii) पोषण की विधि

 

ये पाँच जगत् हैं-मोनेराप्रोटिस्टा या प्रोटोक्टिस्टा और फंजाईप्लांटीएनिमेली ऊपर वर्णित तीन मापदंडों पर आधारित. 

 

पाँच जगत् वर्गीकरण की व्याख्या नीचे दी गई है।

 

पाँच जगत् वर्गीकरण की व्याख्या नीचे दी गई है।

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