एन्जाइम की सक्रियता को प्रभावित करने वाले कारक | एन्जाइम के जैविक महत्व| FACTORS AFFECTING ACTIVITY OF ENZYMES

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 एन्जाइम की सक्रियता को प्रभावित करने वाले कारक  

एन्जाइम की सक्रियता को प्रभावित करने वाले कारक | एन्जाइम के जैविक महत्व| FACTORS AFFECTING ACTIVITY OF ENZYMES

एन्जाइम की सक्रियता को प्रभावित करने वाले कारक

जीवित कोशिकाओं अथवा किसी भी माध्यम में एन्जाइम की सक्रियता कई कारकों पर निर्भर करती है। 


तापमान (Temperature)- 

प्रत्येक एन्जाइम एक निश्चित तापमान के रेंज में ही सक्रिय होते हैं। यदि 0°C तापक्रम से शुरू किया जाय तो जैसे-जैसे माध्यम का तापमान बढ़ाया जाता हैएन्जाइम द्वारा संपन्न होने वाली प्रतिक्रिया की दर बढ़ती जाती है। हर 10°C तापमान बढ़ा देने से प्रतिक्रिया की दर दो गुनी हो जाती है। इस प्रकार प्रतिक्रिया का Q10 मान (Q10 value) 2 के बराबर होता है। तापमान बढ़ाये जाने के बाद एक खास तापमान पर एन्जाइम की सक्रियता सर्वाधिक होती है। यह अनुकूलतम तापमान (Optimum temperature) कहलाता है। इससे और अधिक तापमान पर एन्जाइम की सक्रियता कम होने लगती है एवं अन्त में बिल्कुल ही समाप्त हो जाती है। 60-70°C पर प्रायः सभी एन्जाइम निष्क्रिय हो जाते हैं।

 

2. हाइड्रोजन आयन की सान्द्रता (Concentration of H ions or pH)— 

सभी एन्जाइम्स एक निश्चित pH रेंज में कार्य करते हैं। उससे अधिक अथवा कम pH पर इनकी सक्रियता शिथिल हो जाती है। उदाहरण के लिएआहारनाल में पाये जाने वाले एन्जाइम पेप्सिन (Pepsin) के लिए अनुकूलतम pH रेंज 1-5 से 2-0 के बीच होता है। अर्थात् यह अम्लीय माध्यम क्रियाशील रहता है। जबकि ट्रिप्सिन (Trypsin) के लिए अनुकूलतम pH 8 से 11 के बीच होता है। वैसे अधिकांशतः एन्जाइम 6-8 pH रेंज में कार्य करते हैं।

 

3. अभिकारक की सान्द्रता (Concentration of sub- strate)- 

  • माध्यम में अभिकारक की सान्द्रता बढ़ाकर एन्जाइम की क्रियाशीलता एक सीमा तक बढ़ायी जा सकती है। इस सीमा के और ऊपर इसकी सान्द्रता बढ़ाने से एन्जाइम की क्रियाशीलता नहीं बढ़ती ।

4 एन्जाइम की सान्द्रता (Concentration of enzyme ) — 

  • अभिकारक की सान्द्रता के समान एन्जाइम की सान्द्रता एक सीमा तक बढ़ाने से एन्जाइम अभिक्रिया की क्रियाशीलता बढ़ती है तथा बाद में यह स्थिर हो जाती है अर्थात् एन्जाइम की सान्द्रता और बढ़ाने से अभिक्रिया की गति नहीं बढ़ती।

 

5. उत्पाद की सान्द्रता (Concentration of products) – 

  • लगातार अभिक्रिया होने के कारण माध्यम में उत्पाद की मात्रा बढ़ती जाती हैं। यदि इसे न हटाया जाये तो यह एन्जाइम की क्रियाशीलता को प्रभावित करता है। इसके फलस्वरूप एन्जाइम द्वारा उत्प्रेरित अभिक्रिया की क्रियाशीलता धीमी हो जाती है।

 

6. निरोधक की उपस्थिति (Presence of inhibitors) – 

  • माध्यम में एन्जाइम सक्रियता को प्रभावित करने वाले निरोधक अथवा विषैले पदार्थों की उपस्थिति अभिक्रिया की दर को प्रभावित करते हैं। अनेक तत्वजैसे- Cl, As. Fe, Cu, Hg. Ag आदि अकार्बनिक पदार्थ भी एन्जाइम निरोधक के समान कार्य करते हैं।

 

7. सक्रिय कारक की उपस्थिति (Presence of activators) - 

अनेक एन्जाइम्स की क्रियाशीलता विभिन्न प्रकार के पदार्थ की माध्यम में उपस्थिति के कारण बढ़ जाती है। ये पदार्थ सक्रिय कारक (Activator) कहलाते हैं। 

8. प्रकाश (Light) - 

  • तेज़ सामान्य प्रकाश (Normal light) एवं पराबैंगनी प्रकाश (UV light) की उपस्थिति में भी एन्जाइम की सक्रियता हो जाती है।

 

एन्जाइम सक्रियता को प्रदर्शित करने वाला प्रयोग  

हमारे लार (Saliva) में टायलिन अथवा एमाइलेज (Ptyalin or Amylase) नामक एन्जाइम पाया जाता है। यह को जल कर ग्लूकोज में परिवर्तित करता है। लार में इस एन्जाइम की उपस्थिति सिद्ध करने के लिए निम्न प्रयोग कर सकते हैं 

1. उबलते पानी में स्टार्च मिलाकर स्टार्च का घोल तैयार करते हैं। 

2. घोल को A, B एवं तीन परखनलियों में बराबर-बराबर बाँट लेते हैं। 

3. अपने मुँह को लार को लगभग 3 ml मात्रा एक साफ बाँच ग्लास में इकट्ठा करते हैं। इसमें लगभग बराबर मात्रा में पानी मिलाते हैं। इसकी बराबर मात्रा दोनों परखनली तथा में डाल देते हैं। 

4. ध्यान देने वाली बात हैकि परखनली में लार नहीं डाला गया है। लार मिलाने तत्काल बाद परखनली के मिश्रण को स्पिरिट लैंप के लोहे के ऊपर रखकर उबालते हैं। इस प्रकार इस परखनली में डाला गया लार का एन्जाइम निष्क्रिय हो जाता है। 

5. तीनों परखनलियों को आधे से एक घंटे तक छोड़ दिया जाता है। 6. तीन वाँच ग्लास में आयोडीन का घोल लिया जाता है एवं प्रत्येक में A, B एवं परखनलियों का मिश्रण डाला जाता है। परिणाम A, B एवं परखनलियों का मिश्रण डाला जाता है। परिणाम निम्नानुसार प्राप्त होता है-

 

(i) परखनली का द्रव डालने पर नीला रंग प्राप्त होता हैक्योंकि उसमें लार नहीं डाला गया था। 

(ii) परखनली का द्रव डालने पर वॉच ग्लास में रखे मिश्रण का रंग नीला नहीं होता हैक्योंकि इस द्रव में उपस्थित स्टार्च लार में उपस्थित एन्जाइम द्वारा ग्लूकोज में बदल चुके होते हैं। 

(iii) परखनली का द्रव भी वॉच ग्लास में डालने पर नीला हो जाता है। ऐसा इसलिए होता हैक्योंकि इसके मिश्रण को उबालने के कारण लार में उपस्थित एन्जाइम टायलिन निष्क्रिय हो जाते हैं।

 

इस प्रकार प्राप्त निष्कर्ष यह दर्शाता है कि परखनली में उपस्थित स्टार्च लार के टायलिन तथा एमाइलेज द्वारा ग्लूकोज में अपपटित हो जाता है। परखनली में डाला गया लार यह कार्य नहीं कर सकाक्योंकि उबालने के कारण इसके एन्जाइम विकृत हो जाते हैं।

एन्जाइम के जैविक महत्व  

एन्जाइम हमारे दैनिक जीवन में अत्यन्त उपयोगी होते हैं। इसके महत्वपूर्ण उपयोग निम्नांकित हैं-

 

रासायनिक विश्लेषण में (In biochemical analysis) - 

  • चिकित्सा हेतु हमें अपने शरीर के अनेक पदार्थों का विश्लेषण रवाना होता है। यूरीएज (Urease) नामक एन्जाइम का उपयोग रक्त में उपस्थित यूरिक अम्ल (Uric acid) तथा यूरिया rea) की मात्रा ज्ञात करने के लिए किया जाता है। इसी प्रकार सुक्रोज एवं रेफीनोज की मात्रा क्रमशः सुक्रेज तथा मेलोबायेज =uctase and Melibiase) एन्जाइम की सहायता से ज्ञात की जाती है।

 

रक्त के थक्के को घोलने में (Indisolving blood clot) - 

उच्च रक्त चाप के कारण कभी-कभी मस्तिष्क तथा धर्मनियों में र के थक्के बनकर जमा हो जाते हैं। यह जानलेवा होता है। इन थक्कों (Clots) को यूरोकाइनेज नामक एन्जाइम द्वारा हटाया जाता है। 

3. रक्त समूहों में परिवर्तन (Change in blood groups )-

पहले ऐसा माना जाता था कि मनुष्य का रक्त समूह बदला जाना संभव नहीं है। परन्तु जापानी वैज्ञानिक प्रो. केन फुरुकाया (Prof. Ken Furukawa, 1981) ने अपनी नवीन शोधों के आधार पर बताय है कि मानव का रक्त समूह, R.B.CS में उपस्थित शर्कराओं के द्वारा निर्धारित होता है। इन शर्कराओं पर विशिष्ट एन्जाइम्स पाये हैं। इन एन्ज़ाइम्स को विघटित करके रक्त समूह A, B अथवा AB को रक्त समूह 'O' में बदला जा सकता है। 

4. त्वचा से बालों को हटाना (Dehairing of hides) - 

चमड़ा उद्योग अथवा शृंगार हेतु त्वचा से बालों को हटाना आवश्यक होता है। यह कार्य अग्नाशयी एन्जाइम्स की सहायता से किया जाता है। ये एन्जाइम रोम पुटिकाओं (Hair follicles) को विघटित कर देते हैं। अतः रोम अपने आप गिर जाते हैं।

 

5. घावों को भरना (Healing of wounds) - 

मनुष्य में घावों को भरने के लिए सुअर (Pig) के अग्नाशय (Pancreas) से प्राप्त प्रोटीन पाचक एन्जाइम (Proteolytic enzymes) का उपयोग किया जाता है। ये एन्जाइम मानव शरीर के प्रोटीन पाचक एन्जाइम को घाव के स्थान से नष्ट करते हैं।

 

6. मक्खन निर्माण में (In cheese making) – 

जन्तु रेनिन अथवा रीनेट (Rennet) का उपयोग प्रमुख रूप से मक्खन एवं चीज (Cheese) बनाने में किया जाता है। वास्तव में यह दूध में उपस्थित कैसीन (Casein) नामक प्रोटीन को आपस में जोड़कर चौ एवं मक्खन को अलग कर देता है।

 

7. फलों के रसे उत्पादन में (In manufacture of fruit juice) - 

अंगूरसेब आदि फलों से प्राप्त रस के शोधन के लिए कुछ एन्जाइम्स का प्रयोग किया जाता है। इस कार्य के लिए खासकर पेक्टिनेज (Pectinase) नामक एन्जाइम महत्वपूर्ण होता है। यह रस में उपस्थित पेक्टिन (Pectin) को नष्ट कर रस को अधिक स्वादिष्ट बनाता है। इसके फलस्वरूप इसका व्यापारिक गुणवचा बड़ जाता है। उपरोक्त उपयोगों के अलावा एन्जाइम्स की उपयोगिता के अनेक उदाहरण हैं। उदाहरणस्वरूपऐल्कोहॉल उत्पादन समस्त विश्व में यीस्ट द्वारा अथवा इससे प्राप्त इन्वर्टेज एवं जाइमेज नामक एन्जाइम की सहायता से किया जाता है।

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