एन्जाइम्स इतिहास एवं संरचना
एन्जाइम्स परिचय
- कोशिकाओं के अन्दर एक साथ अनेक प्रकार की जैव रासायनिक क्रियाएँ (Biochemical reactions) होती रहती हैं। ये कोशिकाओं अथवा जीवन के अस्तित्व के लिए आवश्यक होते हैं। इनमें से प्रत्येक क्रिया एक विशिष्ट प्रकार के पदार्थ द्वारा उत्प्रेरित होते हैं। ये पदार्थ एन्जाइम अथवा प्रकिण्व (Enzymes) कहलाते हैं। चूंकि ये कोशिकीय जैव-रासायनिक क्रियाओं को उत्प्रेरित करते हैं, अतः इन्हें जैव उत्प्रेरक कहते हैं।
एन्जाइम्स की परिभाषा इस प्रकार दी जा सकती है -
एन्जाइम वे जैव उत्प्रेरक हैं, जो जैविक तन्त्रों (Biological systems) में रासायनिक क्रियाओं को गति प्रदान करते हैं परन्तु अंतिम उत्पाद की प्रकृति को प्रभावित नहीं करते।"
- एन्जाइम सामान्य उत्प्रेरक से भिन्न होते हैं। इनमें मुख्य अंतर यह है कि एन्जाइस अभिकारकों (Substrates) से भिन्न होकर कार्य करते हैं। इसके अलावा इनकी प्रकृति अति विशिष्ट (Specific) होती है। रासायनिक रूप से प्रत्येक एन्जाइम प्रोटीन होते हैं। प्रोटीन स्वभाव के होने के कारण एन्जाइम के अणु जटिल (Complex) एवं दीर्घकार (Macromolecule) होते हैं।
एन्जाइम्स का इतिहास (History of Enzyme ) -
- किरचॉफ (Kirchoff) नामक वैज्ञानिक ने 1812 में बताया कि स्टार्च को कुछ विशेष कारकों की उपस्थिति में शर्करा (Sugars) में बदला जा सकता है।
- 1835 ई. में बर्जीलियस (Berzelius) ने जीवित कोशिकाओं के अन्दर जैव उत्प्रेरकों (Biological catalysts) के अस्तित्व के बारे में बताया।
- एन्जाइम शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम कुहने (Kuhne) नामक वैज्ञानिक द्वारा 1878 ई. में किया गया।
- ग्रीक भाषा में एन्जाइम का अर्थ 'यीस्ट के अंदर' (Enzyme = In yeast) होता है। इस प्रकार का नामकरण इसलिए किया गया क्योंकि, इस काल में यह मान्यता थी कि शर्करा के किण्वन के लिए यीस्ट कोशा (Yeast cells) की जैविक गतिविधियाँ आवश्यक हैं। सन् 1897 में एडवर्ड बुकनर (Edward Buchner) ने इस मत खण्डन किया कि किण्वन के लिए जीवित योस्ट कोशिका आवश्यक है। उन्होंने प्रदर्शित किया कि किण्वन की यह क्रिया यीस्ट कोशिकाओं से निकाले गये सारसत्व (Extract) की उपस्थिति में भी होती है। उन्होंने इस रस से जाइमेज (Zymase) नामक एन्जाइम की खोज की।
- जे. बी. समनर (J.B. Sumner) ने सन् 1926 में जैकबीन (Jack bean) के सारसत्व (Extract) से यूरिएज (Urease) नामक एन्जाइम को शुद्ध रवे (Pure crystals) के रूप में प्राप्त किया। इस प्रकार उन्होंने एन्जाइम रसायन शास्त्र (Enzyme chemistry) अथवा एन्जाइमोलॉजी (Enzymology) नामक नये विज्ञान की शाखा की आधारशिला रखी।
एन्जाइम की खोज का इतिहास
- एन्जाइम की खोज एक अचानक घटने वाली घटना है। वास्तव में बुकनर बंधु औषधीय उपयोग के लिए यीस्ट का रस निकाल रहे थे। परन्तु, सूक्ष्म जैविक संक्रमण (Microbial contamination) से यह बार- बार खराब होता जा रहा था। इससे बचने के लिए उन्होंने इस रस में शर्करा मिला दिया। उन्होंने देखा कि कुछ ही समय बाद शर्करा ऐल्कोहॉल में बदल गया। निश्चित रूप से यह किण्वन के कारण हुआ इसके पहले लुई पाश्चर जीवित यीस्ट कोशिकाओं द्वारा होने वाले किण्वन (शर्करा का ऐल्कोहॉल में बदलना) की खोज कर चुके थे। परन्तु, बुकनर बंधुओं ने बताया कि किण्वन के लिए यीस्ट कोशिकाएँ ही आवश्यक नहीं हैं, बल्कि इसे कोशिकीय सारसत्व (Cell extract) की उपस्थिति में भी यह क्रिया होती है। बाद में इस रस अथवा सार में जाइमेज नामक एन्जाइम की खोज की गयी।
विकर, प्रकिण्व अथवा एन्जाइम परिभाषा (Definition)—
विकर, प्रकिण्व अथवा एन्जाइम वह प्रोटीन है जो जीवित कोशिकाओं के अन्दर बनते हैं एवं जैविक प्रणाली में रासायनिक क्रियाओं को गति प्रदान करते हैं, परन्तु प्राप्त उत्पादों की प्रकृति पर कोई प्रभाव नहीं डालते ।
बाह्य एवं अन्तः एन्जाइम्स (Exo and Endoenzymes)
यह बात सर्वमान्य है कि एन्ज़ाइम का निर्माण हमेशा जीवित कोशिकाओं में होता है। परन्तु, इसका कार्यक्षेत्र कोशिका के अन्दर अथवा बाहर हो सकता है। वैसे एन्जाइम जो उन्हीं कोशिकाओं के अंदर कार्य करते हैं, जिनमें इसका निर्माण होता है, अन्तःएन्जाइम (Endoenzyme) कहलाते हैं। प्राणियों में श्वसन एवं पौधों में प्रकाश-संश्लेषण में भाग लेने वाले अधिकांश एन्जाइम, अन्तःएन्जाइम होते हैं। दूसरी ओर, वैसे एन्जाइम जिनका कार्यक्षेत्र उन कोशिकाओं से बाहर होता है जहाँ इनका निर्माण होता है, बाह्य एन्जाइम (Exoenzyme) कहलाते हैं। जन्तुओं के आहारनाल (Alimentary canal), जीवाणुओं तथा कवकों में स्वावित होने वाले एन्जाइम्स इस श्रेणी में आते हैं।
एन्जाइम की संरचना (STRUCTURE OF ENZYMES)
रासायनिक रूप से सभी एन्जाइम्स जटिल प्रोटीन अणुओं के बने
होते हैं, अतः इनकी प्रकृति, रासायनिक गुण एवं
भौतिक गुण भी प्रोटीन के समान ही होते हैं। परन्तु कुछ एन्जाइम्स द्वारा रासायनिक
क्रिया संपन्न होने के लिए इनके साथ किसी प्रकार का अप्रोटीन भाग (Non-protein part) का जुड़ा होना
आवश्यक होता है। ये अप्रोटीन भाग कार्बनिक (Organic) अथवा अकार्बनिक (Inorganic) दोनों प्रकार के
हो सकते हैं। इस आधार पर एन्जाइम्स दो प्रकार के होते हैं-
1. सरल एन्जाइम (Simple enzyme)—
ये वे एन्जाइम्स हैं जो केवल प्रोटीन के बने होते हैं एवं जल अपघटन के बाद केवल अमीनो अम्ल प्रदान करते हैं। पाचक एन्जाइम पेप्सिन (Pepsin), ट्रिप्सिन (Tripsin) तथा कीमोट्रिप्सिन (Chemotripsin) इस श्रेणी में आते हैं।
2. संयुग्मी एन्जाइम (Conjugated enzyme)—
- ये वे एन्जाइम्स हैं, जिनके अणुओं में प्रोटीन भाग के अलावा अप्रोटीन भाग (Non-protein part) भी पाये जाते हैं। इस अप्रोटीन भाग को कोफैक्टर अथवा प्रोस्थेटिक समूह (Prosthetic group) कहते हैं। इसकी अनुपस्थिति में प्रोटीन अक्रियाशील (Inert) होते हैं। ऐसे एन्जाइम्स के प्रोटीन भाग को एपोएन्जाइम (Apoenzyme) कहते हैं। एपोएन्जाइम एवं कोफैक्टर के जुड़ने से प्राप्त क्रियाशील एन्जाइम अणु होलोएन्जाइम (Holoenzyme) कहलाता है।
- जैसा कि ऊपर बतलाया गया है, प्रोस्थेटिक समूह कार्बनिक अथवा अकार्बनिक प्रकृति के हो सकते हैं। यदि यह अकार्बनिक होता है तो इसे कोफैक्टर (Cofactor) अथवा एक्टीवेटर (Activator) कहा जाता है। यदि एक्टीवेटर के रूप में कोई धातु के आपन अथवा परमाणु उपस्थित हो तो यह मेटल एक्टीवेटर (Metal activator) कहलाता है। उदाहरण- एस्कॉर्बिक एसिड ऑक्सिडेज (Ascorbic acid oxidase) नामक एन्जाइम में कॉपर (Cu) तथा नाइट्रोजिनेज नामक एन्जाइम में मोलिब्डेनम (Mo) मेटल एक्टिवेटर के रूप में पाया जाता है। कोशिकाओं के अंदर ऐसे अनेक एन्जाइम्स पाये जाते हैं, जिनमें Mg, Mn. K. Na, Co.. Zn, Ca आदि तत्व के परमाणु मेटल एक्टिवेटर के रूप में उपस्थित होते हैं।
- कुछ एन्जाइम्स में प्रोस्थेटिक समूह कार्बनिक होता है। ये कोएन्जाइम्स (Coenzymes) कहलाते हैं। ये स्वभाववश ताप स्थिर (Thermo stable) होते हैं। NAD, NADP, FAD,
- FMN, ATP, AMP, Co-A आदि जीवित कोशिकाओं में पाये जाने वाले प्रमुख कोएन्जाइम्स हैं। कभी-कभी कुछ एन्जाइम दूसरे एन्जाइम पर निर्भर होकर एक श्रृंखला में कार्य करते हैं। ये संयुक्त एन्जाइम (Enzyme complex) कहलाते हैं। ऐसी अवस्था में एक एन्जाइम का उत्पाद (Product) दूसरे एन्जाइम के लिए क्रियाधार ( Substrate) के रूप में कार्य करते हैं। उदाहरण- माइटोकॉन्ड्रिया के अंदर एक एन्जाइम तन्त्र (Enzyme system) पाया जाता है, जो सामूहिक रूप से श्वसन क्रिया में भाग लेते हैं।
आइसोएन्जाइम (Isoenzymes ) —
पहले ऐसा माना जाता था कि एक जैव रासायनिक क्रिया में भाग लेने वाले एक सब्स्ट्रेट पर एक ही एन्जाइम क्रिया करता है। परन्तु आधुनिक शोध निष्कर्षो ने प्रमाणित किया है कि किसी जैव रासायनिक अभिक्रिया में एक सब्स्ट्रेट पर एक से अधिक प्रकार के एन्जाइम क्रिया कर सकते हैं। ये सभी एन्जाइम्स, आइसोएन्जाइम्स (Isocnzymes) कहलाते हैं। इसे निम्न प्रकार से परिभाषित किया जा सकता है,
“वैसे एन्जाइम्स जिनकी आण्विक संरचना तथा आण्विक भार भिन्न होते हैं, परन्तु कार्य एक समान होते हैं, आइसोएन्जाइम्स कहलाते हैं।"
उदाहरण- लैक्टिक एसिड डिहाइड्रोजिनेज नामक एन्जाइम के पाँच
आइसोएन्जाइम्स विभिन्न जन्तु ऊतकों में पाये जाते हैं। इसी प्रकार एस्पर्जिलस
निडुलान्स नामक कवक में ATPase
के तीन
आइसोएन्जाइम्स पाये जाते हैं।
जाइमोजेन्स (Zymogens) –
किसी एन्जाइम के निष्क्रिय (Inactive) भाग अथवा अवस्था
को जाइमोजेन्स (Zymogens)
कहते हैं।
उदाहरण- ट्रिप्सिनोजेन (Trypsinogen),
ट्रिप्सिन (Trypsin) नामक एन्जाइम का
जाइमोजेन रूप है। इसमें पॉलीपेप्टाइड के एक भाग में विच्छेदन से यह सक्रिय रूप
ट्रिप्सिन में बदल जाता है। वास्तव में जाइमोजेन सक्रिय एन्जाइम के पूर्वगामी (Precursor) पदार्थ होते हैं।
राइबोजाइम (Ribozyme) —
- हाल के वर्षों तक यह माना जाता था कि एन्जाइम्स प्रोटीन हो होते हैं। परन्तु, हाल के वर्षों में पता चला है कि RNA भी एन्जाइम की तरह कार्य करते हैं। अब तक ऐसे दो RNA अणुओं की खोज की जा चुकी है। इन्हें राइबोजाइम (Ribozyme) कहते हैं। एक राइबोजाइम की खोज सेक एवं साथियों (Cech et al., 1981) द्वारा की गयी। यह जीन्स (Genes) के इन्ट्रोन भाग (Intron regions) के विलोपन का कार्य करता है। दूसरे राइबोजाइम, राइबोन्यूक्लिएज-पी (Ribonuclease-P) की खोज अल्टमेन एवं साथियों (Altman et al.) ने 1983 ई. में की। यह hRNA से RNA को पृथक् करने का कार्य करता है। इसके अलावा पेप्टीडाइल ट्रांसफरेज (Peptidyl transferase) को भी RNA का भाग माना जाता है।