एन्जाइम की क्रिया विधि अथवा कार्य प्रणाली |MECHANISM OF ENZYME ACTION

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 एन्जाइम की क्रिया विधि अथवा कार्य प्रणाली 

एन्जाइम की क्रिया विधि अथवा कार्य प्रणाली |MECHANISM OF ENZYME ACTION


एन्जाइम की क्रिया विधि अथवा कार्य प्रणाली 

प्रत्येक एन्जाइम एक विशेष प्रकार के जैव-रासायनिक प्रतिक्रिया को सम्पादित करते हैं। प्रत्येक यौगिक के स्थायी अणुओं में भी गतिज ऊर्जा (Kinetic energy) होती है। यदि किसी स्थायी अणु में गतिज ऊर्जा बढ़ा दी जाये तो यह अस्थायी (Unstable) हो जाता हैअर्थात् अभिक्रियाशील (Reactive) हो जाता है। दूसरे शब्दों मेंकिसी पदार्थ के अणु को क्रियाशील बनाने के लिए उसके गतिज ऊर्जा में वृद्धि आवश्यक होती है। स्थायी अणु ऊर्जा रोध (Energy barrier) के कारण अभिक्रियाशील नहीं हो पाते। ऊर्जा की वह मात्रा जो अणु के ऊर्जा रोध को पार करने के लिए आवश्यक होती हैउस अणु की सक्रियण ऊर्जा (Energy of activation) कहलाती है। एन्जाइम की अनुपस्थिति में अभिक्रिया हेतु यह ऊर्जा तापप्रकाश अथवा अन्य माध्यम से प्रदान की जाती है। एन्जाइम की उपस्थिति में अणुओं की सक्रियण ऊर्जा का मान (Value) काफी कम हो जाता है। इस प्रकार एन्जाइम जैव रासायनिक क्रिया को उत्प्रेरित करते हैं।

 

एन्जाइम की क्रियाविधि को समझाने हेतु दो सिद्धान्त प्रतिपादित किये गये हैं-

 

ताला चाबी सिद्धान्त (Lock and Key theory)- 

  • इस सिद्धान्त को सर्वप्रथम इमिल फिशर (Emil Fischer) नामक वैज्ञानिक ने 1890 ई. में प्रतिपादित किया। बाद में ब्राउन (Brown 1902) ने इस सिद्धान्त को विस्तार से समझाया। माइकेलिस एवं मेण्टेन (Michaelis and Menten) ने 1913 ई. में इस सिद्धान्त का विस्तार किया। इस सिद्धान्त के अनुसार एन्जाइम में प्रोटीन की द्वितीयकतृतीयक एवं चतुर्थक संरचना के कारण एन्जाइम के प्रत्येक अणु की सतह पर कुछ विशिष्ट सक्रिय विन्दु (Active sites) पाये जाते हैं। इन्हें सक्रिय डोमेन (Active domain) भी कहा जाता है। ये सक्रिय स्थल एन्जाइम की क्रियाशीलता में प्रमुख भूमिका निभाता है। इन सक्रिय स्थानों की तुलना चाबी अथवा कुंजी पर बने खाँचों से कर सकते हैं। एन्जाइम अणुओं की सतह पर पाये जाने वाले इन सक्रिय स्थलों पर कुछ विशेष संरचना वाले अभिकारक अणु ही जुड़ सकते हैं। इस प्रकार यह सिद्धान्तएन्जाइम्स की विशिष्टता (Specificity) की व्याख्या करता है।

 

ताला चाबी सिद्धान्त (Lock and Key theory)-

  • जब एन्जाइम एवं अभिकारक के अणु आपस में संपर्क में आते हैं तो एन्जाइम सबट्रेट कॉम्प्लेक्स (Enzyme substrate complex) का निर्माण होता है। इस कॉम्प्लेक्स के बनने के लिए बलवान्डर वाल्स आकर्षण बल (vander Waals attraction force), हाइड्रोजन बंध (Hydrogen bond) अथवा विभिन्न वैद्युत स्थैतिक अन्तःक्रियाओं (Electrostatic interaction) से प्राप्त बल उपयोग में लाया जाता है। इसके द्वारा अभिकारक की सक्रियण ऊर्जा (Activation energy) काफी कम हो जाती है। एन्जाइम सक्रियता के लिए यदि कोएन्जाइम (Co-enzyme) आवश्यक होता है तो यह भी इसी क्रिया के द्वारा जुड़ जाता है। सक्रियण ऊर्जा कम होते ही एन्जाइम अभिकारक कॉम्प्लेक्स में जुड़े अभिकारक के अन्तराआण्विक बन्ध (Intramolecular bonds) ढीले पड़ जाते हैं। अन्त में यह टूटकर उत्पाद (Products) में बदल जाता है।

 

  • एन्जाइम अणु की सतह पर जितनी संख्या में सक्रिय स्थल पाये जाते हैंउतनी ही संख्या अभिकारक के अणु उससे एक साथ जुड़ सकते हैं। अभिकारक अणुओं की संख्या जो किसी एन्जाइम के एक अणु द्वारा एक मिनट में उत्पाद में बदले जाते हैंएन्ज़ाइम का 'टर्न ओवर संख्या' (Turn over number) कहलाता है।

 

उत्प्रेरित जुड़ाव सिद्धान्त (Induced fit theory) - 

वास्तव में यह सिद्धान्त नया न होकर ताला चाबी सिद्धान्त का रूपान्तरण (Modification) है। यह डी.ई. कोशलैण्ड (D.E. Koshland) नामक वैज्ञानिक द्वारा सन् 1963 में प्रतिपादित किया गया। इसके अनुसार एन्जाइम अणुओं के सक्रिय स्थल पर दो समूह पाये जाते हैं-

 

(i) बट्रेसिंग समूह (Buttressing group) एवं 

(ii) अभिक्रियात्मक समूह (Catalytic group)। 


बट्रेसिंग समूह अभिकारक अणु को एन्जाइम की सतह पर सहारा प्रदान करता है। अभिक्रियात्मक समूह अपनी संरचना में मामूली परिवर्तन करने में सक्षम होता है साथ ही यह अभिकारक के अणु में उपस्थित बन्धों को कमजोर बनाता है। जैसे ही अभिकारक अणु एन्जाइम अणु के सम्पर्क में आता हैअभिक्रियात्मक समूह अपनी संरचना में मामूली एवं अस्थायी परिवर्तन करता है। यह रासायनिक परिवर्तन की क्रिया को गति प्रदान करता है। अभिकारक उत्पाद में बदल जाता है। उत्प्रेरण के बाद एन्जाइम का सक्रिय स्थल अपनी पुरानी स्थिति में लौट आता है।

 

एन्जाइम संदमन अथवा निरोधन (ENZYME INHIBITION) 

प्रकृति में कुछ ऐसे पदार्थ पाये जाते हैं जो एन्जाइम की सक्रियता को कम कर देते हैं अथवा समाप्त कर देते हैं। इस क्रिया को एन्जाइम निरोधन (Enzyme inhibition) एवं ऐसे पदार्थ को एन्जाइम निरोधक (Enzyme inhibitor) कहते हैं। एन्जाइम निरोधन की प्रक्रिया निम्न चार प्रकार की होती है-

 

1. प्रतिस्पर्धी निरोधक (Competitive inhibition)- 

इस प्रकार के निरोधन में एन्जाइम की सक्रिय स्थलों (Active domains) से संयोजित होने के लिए किसी दूसरे यौगिक के अणु प्रतिस्पर्धा करते हैं। ये पदार्थ निरोधक (Inhibitor) कहलाते हैं। एक बार निरोधक के साथ कॉम्प्लेक्स बनाने के बाद अभिकारक के अणु एन्जाइम के साथ तब तक नहीं जुड़ पाते जब तक उसके सक्रिय स्थलों से निरोधक अलग नहीं हो जाते। ऐसी स्थिति में अधिकारक के प्रति एन्जाइम की क्रियाशीलता काफी कम हो जाती है। उदाहरण- मैलोनिक एसिडसक्सिनिक एसिड डीहाइड्रोजनेज नामक एन्जाइम के लिए निरोधक का कार्य करते हैं। यह सक्सिनिक एसिड के लिए प्रतिस्पर्धी होता है।

 

निरोधन की यह क्रिया निम्नानुसार होती है- 

E+S ⟺ ES---E + P 

E+ I→ EI     - No space is left on enzyme molecule (No reaction) 

यहाँ, E=Enzyme, 

S = Substrate, 

ES - Enzyme substrate complex 

I = Inhibitor,

EI-  Enzyme inhibitor complex. 

निरोधक द्वारा एन्जाइम की निरोधन क्षमता निम्न बातों पर निर्भर करती है- 

(i) अभिकारक की सान्द्रता

(ii) निरोधक की सान्द्रता, 

(iii) एन्जाइम की निरोधक एवं अभिकारक की आपेक्षिक बंधुता ।

 

2 अप्रतिस्पर्धी निरोधन (Non-competitive inhibition) - 

इस प्रकार के निरोधन में निरोधकएन्जाइम के सक्रिय स्थलों के लिए अभिकारक से प्रतियोगिता नहीं करता बल्कि यह एन्जाइम के दूसरे स्थलों से चिपक जाता है। फलतः सक्रिय स्थलों का भौतिक विस्तार अथवा आकार (Physical dimension) बदल जाता है। ऐसी स्थिति में एन्जाइम के अणु अभिकारक से प्रतिक्रिया करने योग्य नहीं रह जाता। एन्जाइम तथा निरोधक के बीच होने वाला ऐसा इन्टरेक्शनएलोस्टेरिक इन्टरेक्शन (Allosteric interaction) कहलाता है। 

उदाहरण – सायनाइड नामक विषैला पदार्थ सायटोक्रोम ऑक्सीडेज नामक एन्जाइम के लिए अप्रतिस्पर्धी निरोधक की तरह कार्य करता है। इससे जुड़ने के बाद यह एन्जाइम सायटोक्रोम से नहीं जुड़ पाता। यह इलेक्ट्रॉन परिवहन तंत्र के लिए आवश्यक एन्जाइम है। सायनाइड की उपस्थिति में श्वसन क्रिया रुक जाती है तथा प्राणी की मृत्यु हो जाती है। 


3 अन्त्य उत्पाद निरोध अथवा पुनर्भरण निरोध अथवा एलोस्टीरिक संदमन 

इस प्रकार के निरोधन में एन्जाइम अभिकारक अभिक्रिया के पश्चात् बने उत्पाद ही अधिक मात्रा में एकत्रित होकर अपने उत्पादन अथवा एन्जाइम सक्रियता को प्रभावित करता है। यह प्राय: श्रृंखला में होने वाली प्रतिक्रियाओं में होता है। इस क्रिया में अन्त्य उत्पाद एन्जाइम की सतह से जुड़ जाता हैफलतः यह पुनः अभिकारक से क्रिया करने योग्य नहीं रह जाताजब तक कि उत्पाद एन्जाइम से अलग न हो जाये। उदाहरण- ग्लूकोज से ग्लूकोज - 6 फॉस्फेट बनाने वाला एन्जाइम 'हेक्सोकाइनेजग्लूकोज - 6 फॉस्फेट उत्पाद द्वारा संदमित होता है। इसी प्रकार 'श्रीयोनीन डिएमीनेजनामक एन्जाइमजो श्रीयोनीन को कीटो ब्यूटिरिक अम्ल में बदलता हैकी सक्रियता C-कोटो ब्यूटिरिक अम्ल द्वारा प्रभावित होती है।

 

4 प्रोटीन का विकृतिकरण (Denaturation of proteins) - 

सभी एन्जाइम्स रासायनिक रूप से प्रोटीन होते हैं। प्रोटीन अनेक भौतिक एवं रासायनिक कारकों द्वारा प्रभावित होते हैं। इनके द्वारा प्रोटीन की संरचना में विकृति पैदा होती है। इस क्रिया को प्रोटीन विकृतिकरण (Protein denaturation) कहते हैं। विकृतिकरण के बाद प्रोटीन के गुण जाते रहते हैं। अतः विकृत प्रोटीन अथवा एन्जाइम अभिकारकों के साथ प्रतिक्रिया नहीं कर पाते।

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