प्रकाश संश्लेषण की क्रियाविधि
प्रकाश संश्लेषण की क्रियाविधि
प्रकाश संश्लेषण की क्रिया को समझाने के लिये समय-समय पर विभिन्न सिद्धान्त प्रस्तुत किए गये हैं। आधुनिक वैज्ञानिकों के अनुसार प्रकाश संश्लेषण की क्रिया में निम्नलिखित तीन प्रक्रियाएँ सम्पादित होती हैं--
1. सर्वप्रथम पौधों में उपस्थित वर्णक तंत्रों (Pigment systems) के द्वारा प्रकाश ऊर्जा (Light energy) का अवशोषण होता है।
2. इसके पश्चात् अवशोषित की गई प्रकाश ऊर्जा, रासायनिक ऊर्जा में परिवर्तित की जाती है।
3. अन्त में कार्बोहाइड्रेट्स का निर्माण होता है।
इनमें से प्रथम दो प्रक्रियाएँ प्रकाश की उपस्थिति में होती हैं, अतः इसे प्रकाश अभिक्रिया (Light reaction) कहते हैं, जबकि अन्तिम प्रक्रिया अत्यन्त जटिल होती है और इस प्रक्रिया के लिये प्रकाश की आवश्यकता नहीं होती है, अतः इसे अन्धकार अभिक्रिया (Dark reaction) कहते हैं।
इस प्रकार प्रकाश संश्लेषण की क्रिया निम्नलिखित दो चरणों में पूर्ण होती है-
(A) प्रकाश अभिक्रिया (Light reaction) (B) अन्धकार अभिक्रिया (Dark reaction)।
प्रकाश संश्लेषण की प्रकाश अभिक्रिया
प्रकाश अभिक्रिया (LIGHT REACTION)
- यह प्रक्रिया प्रकाश के नियन्त्रण में होती है अर्थात् इस क्रिया के लिए प्रकाश आवश्यक होता है, इसलिए इसे प्रकाश अभिक्रिया कहते हैं। यह अभिक्रिया क्लोरोप्लास्ट के ग्रैना (Grana) में होती है।
- इस अभिक्रिया में प्रकाश ऊर्जा का उपयोग होता है तथा ATP एवं अपचायक शक्ति (Reducing power) का निर्माण होता है। NADPH + H' ही समस्त प्रकाश संश्लेषी जीवों में अपचायक शक्ति या कारक का कार्य करता है।
- प्रकाश अभिक्रिया की खोज रॉबर्ट हिल (Robert Hill, 1937) नामक वैज्ञानिक ने की थी, इसलिए इस क्रिया को हिल अभिक्रिया (Hill reaction) भी कहते हैं।
सम्पूर्ण प्रकाश अभिक्रिया या हिल अभिक्रिया (Hill reaction) निम्नांकित चरणों में पूर्ण होती है-
1. क्लोरोफिल द्वारा प्रकाश ऊर्जा का अवशोषण,
2. सहायक वर्णकों द्वारा प्रकाश ऊर्जा का अवशोषण,
3. प्रकाश के फोटॉन्स के द्वारा क्लोरोफिल का सक्रियण,
4. जल का प्रकाश रासायनिक अपघटन एवं ऑक्सीजन की उत्पत्ति,
5. इलेक्ट्रॉन अभिगमन एवं ऐसिमिलेटरी शक्ति (NADPH + H' एवं ATP) का उत्पादन।
1. क्लोरोफिल द्वारा प्रकाश ऊर्जा का अवशोषण (Absorption of light energy by chlorophyll)-
- प्रकाश संश्लेषण की क्रिया के समय सर्वप्रथम पत्तियों में पाये जाने वाले विभिन्न प्रकार के क्लोरोफिल (Chlorophyll) के अणु सूर्य प्रकाश की विकिरण ऊर्जा (Radiant energy) को दृश्य प्रकाश के स्पेक्ट्रम में अवशोषित करके उसे अभिक्रिया केन्द्र (Reaction centre) की ओर स्थानान्तरित करते हैं।
2. सहायक वर्णकों द्वारा प्रकाश ऊर्जा का क्लोरोफिल-ए में स्थानान्तरण
- पत्ती की प्रकाश-संश्लेषक इकाई में उपस्थित क्लोरोफिल- को छोड़कर अन्य सभी प्रकाश-संश्लेषी वर्णकों (Photosynthetic pigments) को सहायक (Accessory) एन्टिना क्लोरोफिल (Antenna chlorophyll) कहते हैं। इन सहायक अथवा एन्टिना क्लोरोफिल के द्वारा अवशोषित प्रकाश ऊर्जा, अभिक्रिया केन्द्र (Reaction centre), क्लोरोफिल-a-700 या P 700 (Chlorophyll-a-700/or P-700) में हस्तान्तरित कर दी जाती है, जो कि प्राथमिक प्रकाश रासायनिक अभिक्रिया (Primary photochemical reaction) में भाग लेता है। क्लोरोफिल- भी प्रकाश ऊर्जा का अवशोषण करने में सक्षम होता है। वर्णक तंत्र द्वितीय (Pigment system- II or PS-II) में अभिक्रिया केन्द्र (Reaction centre) का कार्य P. 680 एवं प्रथम वर्णक तंत्र (Pigment system-1/or PS.1) में P 700 अभिक्रिया केन्द्र का कार्य करता है।
3. प्रकाश के फोटॉन्स के द्वारा क्लोरोफिल का सक्रियण (Activation of chlorophyll-a-molecules by photons of light)—
- सामान्य अवस्था में क्लोरोफिल के अणु ग्राउन्ड अवस्था (Ground state) अर्थात् कम ऊर्जा अवस्था (Lowenergy state) में होते हैं। जब क्लोरोफिल के के एक फोटॉन (Photon) का अवशोषण करते हैं तो वे उत्तेजित अवस्था अथवा सिंग्लेट अवस्था (Excited or Singlet stage) में आ जाते हैं जिसके कारण जल का प्रकाश रासायनिक अपघटन (Photolysis) होता है।
4. जल का प्रकाश रासायनिक अपघटन एवं O2 की उत्पत्ति
- जल का प्रकाश रासायनिक अपघटन द्वितीय वर्णक तन्त्र (PS-II) के समय Mn++ एवं CI-] आपनों की उपस्थिति में होता है। वॉन नील (Van Niel, 1941), फ्रेन्क (Franck, 1945) आदि के अनुसार, क्लोरोफिल- का उतेजित अणु जल के साथ रासायनिक क्रिया करता है। इस अवस्था में PS-II सक्रिय हो जाता है, जिसके परिणामस्वरूप जल का अणु HT आयन एवं OH- आयनों में वियोजित (Dissociated) हो जाता है। इस क्रिया को जल का प्रकाश रासायनिक अपघटन (Photolysis of water) कहते हैं। अब OH- आयन से इलेक्ट्रॉन निकल जाते हैं और अन्त में जल का अणु प्राप्त होता है तथा इस क्रिया में O2 गैस मुक्त होती है। ऐसा विश्वास किया जाता है कि जल का प्रकाश रासायनिक अपघटन एक शक्तिशाली। ऑक्सीकारक (Strong oxidant) की उपस्थिति के कारण होती है, जिसकी पहचान नहीं की जा सकती है तथा इसे 'Z' की संज्ञा दी गई है।
इलेक्ट्रॉन अभिगमन एवं ऐसिमिलेटरी शक्ति (NADPH+HT, ATP) का उत्पादन
- हमें ज्ञात है कि क्लोरोफिल- a, प्रकाश के एक फोटॉन (1 क्वाण्टम) को अवशोषित करके उत्तेजित अवस्था में चला जाता है तथा इससे मुक्त होने वाली ऊर्जा एवं इलेक्ट्रॉन्स (Electrons) दोनों वर्णक तन्त्र (Both pigment systems) में प्रवेश कर जाते हैं। ये इलेक्ट्रॉन्स बहुत से इलेक्ट्रॉन वाहकों (Electron carriers) के माध्यम से पुनः वापस आ जाते हैं अथवा इलेक्ट्रॉन्स NADP +को अपचयित (Reduced) करके NADP + H' का निर्माण करते हैं। इन इलेक्ट्रॉनों के साथ आयी (Carried) ऊर्जा इलेक्ट्रॉन परिवहन तन्त्र (E.T.S.) में विभिन्न स्थलों पर ATP के में काम आती है। इस प्रकार प्रकाश (Light) की उपस्थिति में क्लोरोफिल द्वारा ADP एवं अकार्बनिक फॉस्फेट (Inorganic phosphate) की सहायता से ATP का निर्माण फोटोफॉस्फोरिलेशन (Photophosphorylation) कहलाता है। प्रकाश प्रतिक्रिया में प्रकाश फॉस्फोरिलेशन (Photophosphorylation) की क्रिया होती है, जिसमें ATP बनते हैं।
आरनन (Amon) तथा उनके सहयोगियों ने प्रकाश ऊर्जा का रासायनिक ऊर्जा में परिवर्तन के सम्बन्ध में महत्त्वपूर्ण खोज की। आरनन के अनुसार फोटोफॉस्फोरिलेशन की क्रिया अग्रलिखित दो चरणों में पूर्ण होती है-
अचक्रीय फोटोफॉस्फोरिलेशन (Non-cyclic photophosphorylation)-
- हिल एवं बैण्डाल (Hill and Bendal, 1960) एवं रोबिनोविच एवं गोविन्दजी (Robinowitch and Govindjee, 1965) ने अचक्रीय फोटोफॉस्फोरिलेशन को समझाने के लिए 'Z' योजना (Z-scheme) प्रस्तुत की। इनके अनुसार प्रकाश अभिक्रिया के समय होने वाली दोनों प्रकाश रासायनिक अभिक्रियाएँ ( PS-I एवं PS-II ) एक श्रृंखला (Series) में होती हैं तथा एक अभिक्रिया का उत्पाद दूसरी अभिक्रिया में उपयोग किया जाता है। रॉबर्ट हिल (Robert Hill) ने सर्वप्रथम बताया कि क्लोरोप्लास्ट (Chloroplast) भी प्रकाश संश्लेषण की क्रिया में ठीक उसी प्रकार सायटोक्रोम (Cytochrome) का उपयोग करता है, जिस प्रकार माइटोकॉण्ड्रिया श्वसन में ।
- हिल (Hill) के अनुसार, जब प्रथम वर्णक तन्त्र (PS-I) में उपस्थित क्लोरोफिल- 683 प्रकाश के एक फोटॉन (एक क्वाण्टम) को अवशोषित करके उसे P-700 (Reaction centre) को स्थानान्तरित कर देते हैं, जिसके कारण ये P-700 उत्तेजित अवस्था (Excited stage) में चला जाता है। इसी समय इससे कुछ इलेक्ट्रॉन्स मुक्त होते हैं। ये इलेक्ट्रॉन 'X ox नामक पदार्थ द्वारा ग्रहण कर लिए जाते हैं, जिससे X- अपचयित अवस्था 'X red में आ जाता है। 'Xred से ये इलेक्ट्रॉन आयरन सल्फर प्रोटीन कॉम्प्लेक्स (Iron-sulphur-protein complex) के द्वारा ग्रहण कर लिये जाते हैं। इस कॉम्प्लेक्स को A (FeS) द्वारा व्यक्त किया जाता है। इलेक्ट्रॉन को ग्रहण करने के पश्चात् A (FeS) अपचयित (Reduced) हो जाता है। अपचयित A (FeS) से ये इलेक्ट्रॉन्स फेरीडॉक्सिन रिड्यूसिंग पदार्थ (Ferre- doxin reducing substance) द्वारा ग्रहण कर लिए जाते हैं।
- FRS ox इलेक्ट्रॉन्स को ग्रहण कर अपचयित अवस्था 'FRSred' में आ जाता है, जिससे यह इलेक्ट्रॉन फेरीडॉक्सिन (Fd) द्वारा ग्रहण कर लिए जाते हैं, जो अपचयित अवस्था में आ जाता है। अब फेरीडॉक्सिन से इलेक्ट्रॉन R (Fd-NADP Reductase) फिर NADP+ द्वारा ग्रहण किये जाते हैं, जो जल के वियोजन से प्राप्त हाइड्रोजन द्वारा अपचयित होकर NADP.H+H' अवस्था में आ जाता है। इस तरह 'P- 700' के उत्तेजित अणुओं से उत्सर्जित इलेक्ट्रॉन्स द्वारा NADPH+H' का निर्माण करके प्रथम वर्णक तंत्र (PS-I) समाप्त हो जाता है।
- ठीक इसी प्रकार जब द्वितीय वर्णक तन्त्र (PS-II) 680 nm तरंगदैर्घ्य वाले प्रकाश को अवशोषित कर उसे अभिक्रिया केन्द्र (Reaction P-680 को देता है, तब इससे मुक्त इलेक्ट्रॉन्स क्विनोन (Quinone, Q) को स्थानान्तरित कर दिये जाते हैं। इसके पश्चात् ये इलेक्ट्रॉन्स क्रमश: Cyt-b 559 (Cytochrome-b 559), प्लास्टोक्विनोन (Plastoquinone,PQ). FeS, सायटोक्रोम - f (Cytochrome-f) से होते हुए प्लास्टोसायनिन (Plastocyanin, PC) तक पहुँच जाते हैं।
- FeS से, Cyt-f में इलेक्ट्रॉन्स के स्थानान्तरण के समय मुक्त ऊर्जा की सहायता से ADP एवं iP को ATP में परिवर्तित कर लिया जाता है। इस प्रकार यहाँ पर 1ATP बनता है। PC से इलेक्ट्रॉन्स PS-1 में स्थानान्तरित कर दिये जाते हैं। इस प्रकार PS-II, PS-I के द्वारा हुई इलेक्ट्रॉन्स की हानि को पूरा कर देता है। ठीक इसी समय जल H' आयन एवं OH- आयनों में विघटित हो जाता है।
2NADP* +2H2O +2ADP + 2Pi- → 2NADPH +2H* +2ATP + O2
- OH- आयनों से इलेक्ट्रॉन Z की स्थानान्तरित कर दिये जाते हैं तथा OH रेडिकल (Radicals) का निर्माण होता है। ये इलेक्ट्रॉन Z से होते हुए PS-II में स्थानान्तरित हो जाते हैं। OH रेडिकल विघटित होकर जल (H2O) एवं O2 गैस मुक्त करते हैं।
- जल के जल अपघटन से प्राप्त हाइड्रोजन आयन (H+) NADP+ को NADPH + H+ में अपचयित कर देते हैं। यह NADPH + H* अपचायक पदार्थ (Reducing agent) की भाँति कार्य करता है। इस प्रकार इस चक्र में हम देखते हैं कि PS-II से मुक्त इलेक्ट्रॉन वापस PS-II में नहीं पहुँच पाते हैं, इसलिए इसे अचक्रीय फोटोफॉस्फोरिलेशन कहते हैं।
(ii) चक्रीय फोटोफॉस्फोरिलेशन (Cyclic photophosphorylation )
इस चक्र में फोटोऑक्सीकृत (Photo-oxidized) P-700 से मुक्त इलेक्ट्रॉन X, A (FeS), FRS से होते हुए Fd में स्थानान्तरित होते हैं। Fd से ये इलेक्ट्रॉन Cyt-bg (Cytochrome-ba), Cyt-f (Cytochrome-f) एवं PC (Plastocyanin) से होते हुए वापस P 700 में पहुँच जाते हैं। जब ये इलेक्ट्रॉन Fd से Cyt-b6 एवं Cyt-b6 से Cyt-f में स्थानान्तरित होते हैं, ठीक उसी समय इन इलेक्ट्रॉनों के स्थानान्तरण से एक-एक ATP (कुल 2ATP) का निर्माण होता है। इस प्रकार हम देखते हैं कि इस चक्र में P-700 से मुक्त इलेक्ट्रॉन वापस P 700 तक पहुँच जाते हैं, इसलिए इसे चक्रीय फोटोफॉस्फोरिलेशन कहते हैं।
NADPH + H' एवं ATP के निर्माण के साथ ही प्रकाश संश्लेषण की प्रकाश रासायनिक (Photochemical) या प्रकाश अभिक्रिया (Light reaction) पूर्ण हो जाती है।
वर्णक तंत्र के विशिष्ट लक्षण (Salient Features of Two Pigment System)
प्रकाश अभिक्रिया के वर्णन से स्पष्ट होता है कि प्रकाश अभिक्रिया (Light reaction) के दौरान होने वाली प्रकाश रासायनिक अभिक्रिया (Photochemical reaction) के कारण अग्र घटनायें होती हैं-
(i) जल का प्रकाश रासायनिक अपघटन (Photolysis of water) होता है तथा O2 गैस मुक्त होती है।
3 ATP का निर्माण होता है।
(iii) 2NADPH2 का निर्माण होता है।
ATP एवं NADPH, अन्धकार अभिक्रिया (Dark Reaction) में CO2 के अपचयन (Reduction) के काम आते हैं। इस प्रकार
- ATP एवं NADPH2 सूर्य प्रकाश (Sunlight) की ऊर्जा (Energy) को अन्धकार अभिक्रिया तक पहुँचाने के लिये एक वाहक (Carrier) का कार्य करते हैं। ATP एवं NADPH, को एक साथ स्वांगीकरण शक्ति (Assimilatory power) तया NADPH2 को अकेले अपचायक शक्ति (Reducing power) कहते हैं।
चक्रीय फोटोफॉस्फोरिलेशन और अचक्रीय फोटोफॉस्फोरिलेशन में अंतर
चक्रीय फोटोफॉस्फोरिलेशन (Cyclic photophosphorylation)
1. यह क्रिया प्रथम वर्णक तन्त्र (PS-I) से सम्बन्धित होती है।
2. इस क्रिया में क्लोरोफिल अणु से मुक्त हुए इलेक्ट्रॉन्स पुनः क्लोरोफिल तक वापस आ जाते हैं।
3. इस क्रिया में जल का प्रकाश-रासायनिक अपघटन एवं O2 का उत्पादन नहीं होता है।
4. इस क्रिया में दो स्थानों पर फोटोफॉस्फोरिलेशन क्रिया होती है तथा 2 ATP का निर्माण होता है।
5. इस क्रिया में NADP+ का अपचयन नहीं होता है।
अचक्रीय फोटोफॉस्फोरिलेशन (Non-cyclic photophosphorylation)
1. यह क्रिया द्वितीय वर्णक तन्त्र (PS-II) से सम्बन्धित होती है।
2. इस क्रिया में क्लोरोफिल से मुक्त हुए इलेक्ट्रॉन्स वापस नहीं पहुँचते हैं। अत: इनकी आपूर्ति जल के प्रकाश- रासायनिक अपघटन से मुक्त इलेक्ट्रॉन्स के द्वारा होती है।
3. इस क्रिया में जल का प्रकाश-रासायनिक अपघटन एवं O2 का उत्पादन होता है।
4. इस क्रिया में केवल एक ही बार फोटोफॉस्फोरिलेशन होता है तथा केवल 1 ATP का ही निर्माण होता है।
5. इस क्रिया में NADP+, NADPH + H+ में अपचयित हो जाता है।