उच्च पौधों में प्रकाश-संश्लेषण
उच्च पौधों में प्रकाश-संश्लेषण एक परिचय
- प्रकाश-संश्लेषण (Photosynthesis, Gk, Photos light, Synthesis Pulling = together) स्वयंपोषी पौधों में पायी जाने वाली वह प्रक्रिया है जिसके ऊपर सभी जीवधारियों का अस्तित्व निर्भर होता है। प्रकृति में पाये जाने वाले समस्त जीवों को अपना जीवनयापन करने के लिए ऊर्जा की आवश्यकता पड़ती है। अप्रत्यक्ष रूप से प्रत्येक प्रकार के जीव इस ऊर्जा को पौधों से ही प्राप्त करते हैं।
- प्रकृति में पाये जाने वाले समस्त हरे पेड़-पौधे सूर्य प्रकाश की सौर ऊर्जा (Solar energy) को क्लोरोफिल (Chlorophyll) की सहायता से रासायनिक ऊर्जा में बदल देते हैं। यह रासायनिक ऊर्जा ही कार्बोहाइड्रेट्स के रूप में एकत्र कर ली जाती है। चूँकि उपर्युक्त प्रक्रिया में ऊर्जा युक्त पदार्थ का निर्माण प्रकाश की उपस्थिति में क्लोरोफिल के द्वारा होता है, अतः इसे प्रकाश संश्लेषण (Photosynthesis) कहते हैं।
सर्वप्रथम स्टीफेन हेल्स (Stephan Hales, 1727) ने प्रकाश संश्लेषण की क्रिया में सूर्य प्रकाश के महत्त्व को समझाया। इसके पश्चात् इस क्षेत्र में बहुत से अनुसंधान कार्य हुए। प्रकाश संश्लेषण एक उपचयी (Anabolic) प्रक्रिया है जिसके द्वारा कार्बनिक यौगिकों का निर्माण होता है। इसे निम्न प्रकार से परिभाषित किया जा सकता है-
प्रकाश-संश्लेषण की परिभाषा
" वह प्रक्रिया जिसमें पौधे की हरी कोशिकाओं के द्वारा प्रकाश की उपस्थिति में CO2 एवं H2O का उपयोग करके क्लोरोफिल की सहायता से कार्बोहाइड्रेट्स जैसे सरल भोज्य पदार्थों का निर्माण किया जाता है, उसे प्रकाश संश्लेषण कहते हैं।
- वास्तव में, इस क्रिया में विभिन्न एन्जाइमों की उपस्थिति में CO2 का अपचयन (Reduction) होता है तथा कार्बोहाइड्रेट्स का निर्माण होता है।
- प्रकाश संश्लेषण की क्रिया के दौरान हरे पौधे सूर्य प्रकाश की प्रकाश ऊर्जा (Light energy) को रासायनिक ऊर्जा (Chemical energy) में परिवर्तित कर देते हैं। यह रासायनिक ऊर्जा कार्बनिक पदार्थ, जैसे—कार्बोहाइड्रेट्स में संग्रहित हो जाती है। CO2 और H2O प्रकाश संश्लेषण क्रिया के कच्चे पदार्थ होते हैं जिनके संयोग के पश्चात् ग्लूकोज जैसे कार्बोहाइड्रेटों का निर्माण होता है। ग्लूकोज (C6H12O6) के एक अणु में लगभग 686 kcal ऊर्जा पायी जाती है। इस प्रकार प्रकाश- संश्लेषण एक स्वयंपोषण की प्रक्रिया है, जिसमें हरे पौधे अपना भोजन स्वयं बनाते हैं।
- सम्पूर्ण पृथ्वी पर होने वाले कुल प्रकाश-संश्लेषण का लगभग 90% प्रकाश संश्लेषण समुद्री एवं स्वच्छ जलीय शैवालों के द्वारा होता है।
प्रकाश संश्लेषण का महत्त्व
1. प्रकाश संश्लेषण की क्रिया के फलस्वरूप अकार्बनिक पदार्थों जैसे- जल एवं CO2 से कार्बनिक भोज्य पदार्थों का निर्माण होता है।
2. इस प्रक्रिया के द्वारा जीवधारियों के लिये प्रत्यक्ष रूप में शाक-सब्जियों एवं अप्रत्यक्ष रूप में मांस अथवा जन्तुओं में दूध प्राप्त होता है क्योंकि सभी शाकाहारी जन्तु हरे पेड़-पौधों का भक्षण करते हैं।
3. भोज्य पदार्थों को प्रदान करने के साथ-साथ अप्रत्यक्ष रूप से इस क्रिया के द्वारा कोयला, पेट्रोलियम, पीट, लकड़ी एवं गौवर के रूप में ऊर्जा प्राप्त होती है।
4. प्रकाश संश्लेषण की क्रिया द्वारा वातावरण में O, की सान्द्रता नियंत्रित रहती है।
5. सभी प्रकार के उपयोगी पादप उत्पाद जैसे—इमारती लकड़ी, रबर, रेजिन, गोंद, तेल एवं रेशे आदि प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया द्वारा ही उत्पन्न होते हैं।
6. प्रकाश संश्लेषण की क्रिया में श्वसन में छोड़ी गई वायुमण्डलीय CO का उपयोग किया जाता है तथा ऑक्सीजन छोड़ा जाता है। अतः यह पर्यावरण का शुद्धीकरण करती है तथा CO2 एवं O2 के अनुपात को बनाये रखती है।
7. पृथ्वी पर जीवन
प्रकाश संश्लेषण के कारण ही संभव होता है क्योंकि इसी क्रिया के द्वारा जीवधारियों
को भोजन प्राप्त होता है।
प्रकाश-संश्लेषण संबंधी महत्त्वपूर्ण खोजों का इतिहास
प्रकाश संश्लेषण
का अध्ययन अत्यधिक रोचक है क्योंकि इस प्रक्रिया के द्वारा अरस्तू (Aristotle) एवं थियोफ्रास्टस
(Theo- phrastus, 320
B.C.) के समय से हमारे ज्ञान के विकास की जानकारी प्राप्त होती है। प्रकाश संश्लेषण
के सम्बन्ध में जितनी भी आधुनिक जानकारियाँ प्राप्त हुई हैं ये वास्तव में
प्रारंभिक दार्शनिकों एवं विचारकों के द्वारा प्रस्तुत अवधारणाओं पर ही आधारित
हैं। इन सभी का वर्णन करना यहाँ पर संभव नहीं है, फिर भी यहाँ पर कुछ महत्त्वपूर्ण खोजों के बारे
में वर्णन किया जा रहा है-
अरस्तू और प्रकाश संश्लेषण
महान् दार्शनिक अरस्तू ने बताया कि समस्त हरे पौधे अपना पोषण (Nourishment) जड़ों के द्वारा भूमि से अवशोषण क्रिया द्वारा करते हैं।
सन् 1727 में सर्वप्रथम स्टीफेन हेल्स ने बताया कि पत्तियाँ वातावरण की वायु का उपयोग करके सूर्य प्रकाश की उपस्थिति में भोज्य पदार्थों का निर्माण करती हैं। स्टीफेन हेल्स को पादप कार्यिकी के जनक' (Father of Plant Physiology) के रूप में जाना जाता है।
प्रीस्टले (Priestley)
इन्होंने सन् 1772 में बताया कि प्रकाश संश्लेषण क्रिया में गैसीय आदान-प्रदान (Gaseous exchange) होता है। इन्होंने ऑक्सीजन की खोज की तथा बताया कि अशुद्ध वायु (Impure air) जिसमें साँस लेने से चूहे मर जाते हैं, उस वायु को पौधे शुद्ध कर सकते हैं। इसे सिद्ध करने के लिये इन्होंने दो चूहों को अलग-अलग बेलजार में ढँक दिया। प्रथम बेलजार में केवल चूहा रखा तथा द्वितीय बेलजार में चूहे के साथ मिन्ट (Mint) का पौधा रख दिया। कुछ समय पश्चात् प्रथम जार में रखा चूहा मृत हो गया, परन्तु द्वितीय जार में रखा गया चूहा जीवित रहा। इस आधार पर इन्होंने निष्कर्ष निकाला कि पौधा चूहे द्वारा छोड़ी गई अशुद्ध वायु का शुद्धीकरण कर देता है, जिसके कारण द्वितीय जार में रखा चूहा जीवित रहता है ।
इंगन्हौज
इन्होंने सन् 1779 में प्रीस्टले के कार्य को आगे बढ़ाया और बताया कि पौधे वायु का शोधन सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में ही करते हैं। इन्होंने यह भी बताया कि प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया में प्रकाश (Light) एवं क्लोरोफिल (Chlorophyll) आवश्यक होते हैं।
जीन सेनेवियर (Jean Senebier)
इन्होंने सन् 1800 में सर्वप्रथम वनस्पतियों के ऊपर CO2 के प्रभाव का अध्ययन किया। इन्होंने बताया कि प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया में पौधों के द्वारा मुक्त की गई ऑक्सीजन, CO, की ऑक्सीजन होती है। इन्होंने यह भी बताया कि प्रकाश के दृश्य स्पेक्ट्रम (Visible spectrum) वाले लाल रंग के प्रकाश में प्रकाश-संश्लेषण की दर सबसे अधिक होती है।
थियोडोर डी-सॉसर
(Theodore de- Saussure)
इन्होंने सन् 1804 में बताया कि पौधों में गैसों का आदान-प्रदान दो प्रक्रियाओं के दौरान होता है-
(i) प्रकाश की उपस्थिति में (प्रकाश संश्लेषण के दौरान)
(ii) अन्धकार में (श्वसन के दौरान इन्होंने यह भी बताया कि प्रकाश की उपस्थिति में पौधे जल एवं CO2 का उपयोग करते हैं तथा O, गैस छोड़ते हैं। इसी समय CO2, जल से क्रिया करके कार्बन का स्वांगीकरण (Carbon assimilation) करता है, जिसके कारण पौधों के शुष्क भार में वृद्धि होती है।
ड्यूट्रोचेट
सन् 1837 में इन्होंने स्पष्ट किया कि प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया के लिए क्लोरोफिल (Chlorophyll) आवश्यक होता है।
लीबिंग
इन्होंने स्पष्ट किया कि पौधों के लिये कार्बन का प्रमुख स्रोत वायु में उपस्थित CO2 ही होती है
सैक्स (Sachs)
इन्होंने सन् 1864 में बताया कि प्रकाश संश्लेषण में कार्बोहाइड्रेट्स का निर्माण होता है।इन्होंने ही हाफ लीफ प्रयोग (Half Leaf Experiment) किया था।
ब्लैकमैन
इन्होंने सन् 1905 में सीमा कारकों का सिद्धान्त' (Law of Limiting Factor ) प्रस्तुत किया।
वारबर्ग
वारवर्ग (Warburg, 1923) ने प्रकाश-संश्लेषण क्रिया के अध्ययन में क्लोरेला (Chlorella) नामक शैवाल का उपयोग किया था।
इन्होंने सन् 1937 में सर्वप्रथम बताया कि प्रकाश-संश्लेषण की प्रकाश अभिक्रिया (Light Reaction) क्लोरोप्लास्ट (Chloroplast) में होती है।
मेल्विन केल्विन एवं एन्ड्रयूज बेन्सन (Melvin Calvin and Andreus Benson)
इन्होंने (सन् 1940-50) प्रकाश-संश्लेषण में CO2 के कार्बोहाइड्रेट के रूप में स्थिरीकरण की रूपरेखा प्रस्तुत की। केल्विन ने इस कार्य में 14CO2 का उपयोग किया तथा प्रकाश- संश्लेषण के दौरान कार्बन के पथ (Carbon path) की खोज की। इस कार्य हेतु इन्हें सन् 1961 में नोबल पुरस्कार प्रदान किया गया।
कोर्टशैक (Kortschak, 1954)
इन्होंने बताया कि C4 पौधों में प्रकाश-संश्लेषण क्रिया के समय C4 डाइकार्बोक्सिलिक | अम्ल (Cr-dicarboxylic acid) का निर्माण होता है।
(Danieal Arnon, 1954)
इन्होंने सर्वप्रथम बताया कि प्रकाश-संश्लेषण की प्रकाश अभिक्रिया (Light reaction) 1 क्लोरोप्लास्ट के ग्रैना (Grana) में होती है, जबकि अन्धकार अभिक्रिया (Dark reaction) स्ट्रोमा (Stroma) में होती है।
इमरसन एवं सहयोगी
इमरसन प्रभाव (Emmerson effect), रेड ड्रॉप (Red drop) एवं दो तंत्रों (Two pigment systems) की खोज ।
हिल एवं बेन्डाल
इन्होंने प्रदर्शित किया कि प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया के समय होने वाला इलेक्ट्रॉन संवहन (E.T.S.) दो चरणों में पूर्ण होता है।
हैच एवं स्लैक
इन्होंने कोर्टशैक (Kortschak) के कार्य को आगे बढ़ाया और C4 चक्र की खोज की।
रुहानी एवं सहयोगी
इन्होंने सीडम (Sedum) के पौधे में क्रैसुलेशन ऐसिड मेटाबोलिज्म (Crassulation Acid Metabolism—C.A.M) चक्र की खोज की।