प्रकाश संश्लेषण की आवश्यकताएँ |REQUIREMENTS OF PHOTOSYNTHESIS

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प्रकाश संश्लेषण की आवश्यकताएँ 

प्रकाश संश्लेषण की आवश्यकताएँ  |REQUIREMENTS OF PHOTOSYNTHESIS

प्रकाश संश्लेषण की आवश्यकताएँ 

कार्बन डाइ ऑक्साइड (CO2) को कार्बोहाइड्रेट (Carbohydrate) में परिवर्तित करने के लिये निम्नलिखित आवश्यकताएँ होती हैं- 

 

1. कार्बन डाइऑक्साइड (CO) - यह कार्बन का प्रमुख स्रोत होता है जिसे स्थलीय पौधे वायुमण्डल से तथा जलीय पौधे जल प्राप्त करते हैं।

2. जल (Water) जल प्रकाश संश्लेषण क्रिया के लिये अत्यधिक महत्त्वपूर्ण होता है क्योंकि-

(i) जल की उपस्थिति में ही समस्त जैव-रासायनिक (Biochemical) एवं एन्जाइमिक प्रक्रियाएँ (Enzymatic reactions) से पूर्ण होती हैं।  

(ii) प्रकाश संश्लेषण की क्रिया में जल (H2O) का प्रकाश रासायनिक अपघटन या फोटोलिसिस (Photolysis) होता है. तथा मुक्त हुए इलेक्ट्रॉन (e) एवं प्रोटॉन (H'),क्लोरोफिल के अणु को उत्तेजित करने का कार्य करते हैं तथा NADP को NADPH2 में अपचयित कर देते हैंजो कि अंधकार अभिक्रिया (Dark reaction) में काम आता है।

 

3 क्लोरोफिल (Chlorophyll)- क्लोरोफिल सौर ऊर्जा को ग्रहण करने वाला प्रमुख वर्णक होता है। यह प्रकाश ऊर्जा को रासायनिक ऊर्जा में परिवर्तित करने का कार्य करता है।


4. प्रकाश (Light)-इस प्रक्रिया में प्रकाश का उपयोग केवल अपचायक शक्ति (Reducing power) एवं ATP के निर्माण के लिये किया जाता है। ये दोनों प्रकाश संश्लेषण को अन्धकार प्रक्रिया में CO, को कार्बोहाइड्रेट में परिवर्तित करने के लिये उपयोग किये जाते हैं। इस प्रकार CO को कार्बोहाइड्रेट में परिवर्तित करने के लिए मुख्यतः निम्नलिखित दो आवश्यकताएँ होती हैं-

 

(i) अपचायक (Reducing power) NADPH, के रूप में। 

(ii) ATP (Adenosine triphosphate) |

 

स्टीफेन हेल्स (Stephen Hales, 1677-1761) ने सर्वप्रथम बताया कि वायुकार्बनिक पदार्थों का महत्त्वपूर्ण घटक होता है। 

इन्होंने पौधों के पोषण में सूर्य प्रकाशवायु एवं हरी पत्तियों के महत्व को स्पष्ट किया। 

प्रकाश संश्लेषण की आधारभूत प्रक्रिया का ज्ञान होने के पश्चात् वैज्ञानिकों के मन में विचार आया कि प्रकाश संश्लेषण की क्रिया में मुक्त हुई ऑक्सीजन (O) का स्रोत क्या होता है। इसे स्पष्ट करने के लिये रूबेनहसीद एवं कैमेन (Ruben, Hassid and Kamen, 1941) ने प्रयोगों के द्वारा सिद्ध किया कि प्रकाश संश्लेषण के दौरान मुक्त हुई O, जल (HO) की ऑक्सीजन होती है। इन्होंने इसे सिद्ध करने के लिए O2 युक्त जल (H2O) का उपयोग प्रकाश संश्लेषण क्रिया में किया तथा पाया कि मुक्त हुई ऑक्सीजन O2 युक्त (ऑक्सीजन का भारी समस्थानिक) थी। 


 

प्रकाश संश्लेषण सम्बन्धी प्रारंभिक खोजें  

1. पृथक्कृत क्लोरोप्लास्ट पर हिल का कार्य (Hills work with Isolated chloroplast) 

रॉबर्ट हिल (Robert Hill, 1937) ने बताया कि जब पृथक्कृत क्लोरोप्लास्ट को जल में मिलाकर उसका निस्यन्दन (Suspension) तैयार करके उसे प्रकाश में रखा जाता हैतब ऑक्सीजन गैस मुक्त होती हैलेकिन जब इस निस्यन्दन में कोई लौह लवण (Iron salt) जैसे- फेरोसायनाइड (Ferricyanide) मिलाया जाता हैतब यह क्लोरोप्लास्ट के द्वारा अपचपित हो जाता है। यहाँ पर फेरीसायनाइड ऑक्सीकारक (Oxidant) की भाँति कार्य करता है तथा यह हाइड्रोजन ग्राही (Hydrogen acceptor) होता है। यहाँ पर फेरिक (Ferric salts) को फेरस लवणों (Ferrous salts) में अपचयित कर है तथा O2 गैस मुक्त करता है। इन ऑक्सीकारकों (Oxidants) को हिल अभिकर्मक (Hill reagent) तथा इस अभिक्रिया को हिल अभिक्रिया (Hill) reaction) कहते हैं।

स्पष्ट होता है कि जल ही O2 का स्रोत हैतथा जल के विखण्डन (Splitting) की इस क्रिया को जल का प्रकाश रासायनिक अपघटन या फोटोलिसिस (Photochemical breakdown of water or Photolysis) कहते हैं। 


2. पृथक्कृत क्लोरोप्लास्ट पर आरनन का कार्य (Arnon's work with isolated chloroplast) 

आरनन (Amon 1951) के अनुसारक्लोरोफिल का अणु प्रकाश ऊर्जा को ग्रहण जल का प्रकाश रासायनिक अपघटन कर देता है तथा उत्पन्न हाइड्रोजन NADP+ (कोएन्जाइम II) के द्वारा ग्रहण कर लिया जाता है।

इस क्रिया में बना NADPH) (या NADPH + H') प्रकाश संश्लेषण के समय CO2 के अपचयन में उपयोग किया जाता है। सन् 1954 में आरनन (Amon, 1954) ने पुनः पृथक्कृत क्लोरोप्लास्ट पर कार्य करके बताया कि यह क्लोरोप्लास्ट प्रकाश को उपस्थिति में ADP एवं अकार्बनिक फॉस्फेट (Pi) का उपयोग करके ATP बनाता हैइसे फोटोफॉस्फोरिलेशन (Photophosphorylation) कहते हैं। यह क्रिया क्लोरोप्लास्ट के ग्रैना (Grana) में होती है। 

2NADP+4H₂O+2ADP+2Pi → 2NADPH2 + 2ATP + 2H2O + O2 

सन् 1959 में आरनन (Armon) ने पुनः पृथक्कृत क्लोरोप्लास्ट पर कार्य करके बताया कि यह क्लोरोप्लास्ट प्रकाश की अनुपस्थिति में CO का अपचयन करता है और कार्बोहाइड्रेट का निर्माण करता है। CO2 का शर्करा (कार्बोहाइड्रेट) में परिवर्तन या अन्धकार प्रक्रिया क्लोरोप्लास्ट के स्ट्रोमा (Stroma) में होता है। 

इस प्रकार आरनन के कार्य से स्पष्ट होता है कि प्रकाश- संश्लेषण की क्रिया में निम्नलिखित दो प्रकार की अभिक्रियाएँ होती हैं- 

(i) प्रकाश अभिक्रिया (Light reaction) 

(ii) अंधकार अभिक्रिया (Dark reaction)

 

3. रेड ड्रॉपइमरसन प्रभाव एवं दो वर्णक तंत्र (Red drop, Emerson effect and Two pigment system) 

  • इमरसन (Robert Emerson, 1957) नेक्लोरेला (Chlorella) नामक शैवाल में विभिन्न रंग के प्रकाश की विभिन्न तरंगदैर्ध्य (Different wavelengths) पर प्रकाश संश्लेषण का क्वाटण्म उत्पादन (Quantum yield) निकाला। "एक क्वाण्टम प्रकाश का अवशोषण करने के पश्चात् मुक्त ऑक्सीजन के अणुओं की संख्या को ही क्वाण्टम उत्पादन कहते हैं।"

 

  • रॉबर्ट इमरसन एवं सहयोगियों ने पाया कि Co2 के एक अणु का अपचयन एवं O2 के एक अणु को उत्पन्न करने के लिए प्रकाश के 8 क्वाण्टम की आवश्यकता पड़ती है। इमरसन एवं लेविस (Emerson and Lewis, 1943) ने क्लोरेला (Chlorella) नामक शैवाल को मोनोक्रोमैटिक (Monochromatic) (अर्थात् एक समय में एक तरंगदैर्घ्य) प्रकाश में रखा तथा क्वाण्टम उत्पादन व तरंगदैयों के मध्य ग्राफ खींचा तो पाया कि 680 nm तरंगदैर्घ्य वाले लाल प्रकाश (Red light) में क्वाण्टम उत्पादन सबसे कम हो जाता हैअर्थात् क्वाण्टम उत्पादन में अचानक गिरावट आ जाती है। इस घटना को उन्होंने रेड ड्राप (Red drop) कहा है।

 

  • इमरसन (Emerson) ने 1957 में द्वितीय प्रयोग किया और निष्कर्ष निकाला कि जब 680 nm तरंगदैर्ध्य से अधिक तरंगदैर्ध्य वाले प्रकाश (700 nm) के साथ-साथ कम तरंगदैर्ध्य वाले प्रकाश (653nm) में पौधे को अनावृत किया जाता हैतब प्रकाश संश्लेषण की दर या क्वाण्टम उत्पादन (Quantumn yield) इन प्रकाशों को अलग-अलग अनावृत करने की अपेक्षा अधिक होती है। इसे इमरसन का वृद्धिकारी प्रभाव (Emerson's enhancement effect) कहते हैं।

 

दो वर्णक तंत्र (Two Pigment System) 

इस प्रकार इमरसन प्रभाव की खोज से यहाँ पर दो प्रकाश रासायनिक प्रक्रियाओं का पता चलता है- 

(i) प्रथम प्रक्रिया 680 nm से अधिक तरंगदैर्ध्य वाले प्रकाश में होती है। 

(ii) जबकि द्वितीय प्रक्रिया 680 nm से कम तरंगदैर्ध्य वाले प्रकाश में होती है। 

उपर्युक्त दोनों प्रकाश रासायनिक प्रक्रियाएँ दो विभिन्न वर्णक तंत्रों (Two different pigment systems) से सम्बन्धित होती हैंइन्हें क्रमश: प्रथम वर्णक तंत्र (Pigment system-l) एवं द्वितीय वर्णक तंत्र (Pigment system-II) कहते हैं।

 

प्रकाश संश्लेषण तथ्य 

1. दो वर्णक तन्त्र (Two pigment system) की खोज इमरसन (1957) ने की थी। 

2. PS-1 का अभिक्रिया केन्द्र P-700 होता है। 

3. P5-11 का अभिक्रिया केन्द्र P-680 होता है। 

4. जल का प्रकाश रासायनिक अपघटन (PS-II) में हो होता हैक्योंकि इस अवस्था में एक तीव्र अपचायक पदार्थ प्रकाश संश्लेषण  Mg++ आयन रहते हैं।  

5. PS-I के समय 2ATP तथा PS-II के समय 1 ATP बनता है। सम्पूर्ण फोटोफॉस्फोरिलेशन के फलस्वरूप 2 ATP बनते हैं। 

6. 3ATP एवं 1 NADPH2 प्रकाश अभिक्रिया के उत्पाद होते हैं।

 

बटलर (Butler, 1966) के अनुसारक्लोरोफिल-a (Chlorophyll-a) के दो रूप होते हैं- 

(i) वह Chl-a जिसमें अधिकतम अवशोषण 673 nm पर होता हैउसे Chl-a 673 कहते हैं । (ii) जबकि द्वितीय रूप अधिकतम 688 nm वाले प्रकाश को अवशोषित करता है। इसे Chl-a 688 कहते हैं। 

सन् 1966 में क्लेटन (Clayton, 1966) ने Chl-a के तीसरे रूप (Form) की खोज की जो कि अधिकतम 700 nm तरंगदैर्घ्य वाले प्रकाश को अवशोषित करता हैइसे P 700 नाम दिया गया।

 

दो वर्णक या प्रकाश तंत्र 

1. प्रकाश तंत्र-I (PS-I) – 

  • यह ग्रैना एवं स्ट्रोमा दोनों में पाया जाता है। 
  • इसमें Chl-a 670, Chl- a 680, Chl-a 700 (P 700) तथा Chi-b-650 ऊर्जा संग्रहण वर्णक के रूप में पाये जाते हैं। 
  • PS-I में ही चक्रिक फोटोफॉस्फोरिलेशन क्रिया होती है।

 

2. प्रकाश तंत्र-II (PS-II) –

  •  यह ग्रैना में पाया जाता है। 
  • इसमें ऊर्जा संग्रहण वर्णक के रूप में Chl-a 670, Chl-a 680 (P- 680) एवं Chl-b 650 पाया जाता है। 
  • इस तंत्र में ही अचक्रिक फोटोफॉस्फोरिलेशन होता है।

 

प्रकाश तंत्र-I (PS-I) और प्रकाश तंत्र-II (PS-II) अंतर 

प्रकाश तंत्र-I (PS-I) 

1. इस तंत्र में अभिक्रिया केन्द्र P-700 होता है। 

2. इस तंत्र में चक्रिक फोटोफॉस्फोरिलेशन स्वतंत्र रूप से होता है। 

3. यह तंत्र क्लोरोप्लास्ट के ग्रैना एवं स्ट्रोमा के पश्च भाग पाया जाता है। 

4. यह तंत्र अचक्रिक फोटोफॉस्फोरिलेशन के समय PS-II से प्राप्त करता है। 

5. इस तंत्र में Chl-a की मात्रा Chl-b से दुगुनी होती है।

 

प्रकाश तंत्र-II (PS-II) 

1. यहाँ पर अभिक्रिया केन्द्र P-680 होता है। 

2. इस तंत्र में अचक्रिक फोटोफॉस्फोरिलेशन PS-I के साथ- साथ होता है। 

3. यह तंत्र ग्रैनम लैमिली के सामने वाले भाग में पाया जाता में है। 

4. यह तंत्र जल के प्रकाश रासायनिक अपघटन से मुक्त इलेक्ट्रॉन इलेक्ट्रॉनों को ग्रहण करता है। 

5. इस तंत्र में Chl-a एवं b. की मात्रा लगभग बराबर होती है।

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