जाति उद्भवन विस्थानिक समस्थानिक
जाति उद्भवन ( Speciation )
नई स्पीशीज़ों का विकास जाति उद्भवन कहलाता है। यह निम्न प्रकार से होता है और तदनुरूप उसका नामकरण किया जाता है:
विस्थानिक जाति उद्भवन (एलोपेट्रिक)
विस्थानिक जाति उद्भवन तब होता है जब समष्टि का एक भाग पैतृक जनसंख्या से भौगोलिक रूप से अलग हो जाता है ( भौगोलिक विलगन)। उदाहरण के लिए पक्षियों के एक समूह के सदस्य पहाड़ की तलहटी छोड़कर ऊँचे स्थानों पर चले जाते हैं और भौगोलिक रूप से विलगित यानी अलग-अलग हो जाते हैं। दोनों के लिए परिवर्तन व प्राकृतिक चयन अलग-अलग प्रकार से कार्य करेगा क्योंकि इन दोनों के पर्यावरण में अंतर होता है। क्रमशः आनुवंशिक परिवर्तनों के कारण उनमें जनन-विलगन हो जाता है।
समस्थानिक उद्भवन (सिमपेट्रिक)
कभी-कभी व आनुवंशिक अवरोध (जनन अवरोध) एक ही स्पीशीज़ की समष्टि के एक भाग के सदस्यों का अन्य सदस्यों से बीच जनन को रोकता है। ऐसा कुछ पौधों में बहुगुणिता (Polyploidy ) के कारण होता है । बहुगुणिता एक उत्परिवर्तन है जिसमें सामान्य - द्विगुणित संख्या में गुणसूत्र, समष्टि के एक भाग में कोशिका द्विखंडन की अवधि में अनियमितताओं के कारण दो गुना या तीन गुना (2n... 31, 4n, 5n आदि) हो जाते हैं। समष्टि का बहुगुणिता भाग तब परस्पर जनन में सक्षम नहीं रहता और एक नई स्पीशीज़ बन जाती है।
जाति उद्भवन के मॉडल
जैवविविधता को जन्म देने वाले जाति उद्भवन के दो स्वीकृत मॉडल हैं
1. जातिवृतीय क्रमिकता (Phyletic gradualism) मॉडल
एक उभयनिष्ठ पूर्वज से उत्पन्न दो प्रजातियाँ, दोनों में अलग प्रकार के अनुकूलन होने पर धीरे-धीरे संरचनात्मक रूप से और अधिक भिन्न हो जाती हैं । डार्विन ने भी माना कि विकास एक धीमी व क्रमिक प्रक्रिया है।
2. विरामित या अंतरायित (पंक्चुएटेड) साम्यावस्था
एक नई प्रजाति का निर्माण प्रारंभ में बड़े-बड़े परिवर्तनों के कारण होता है और तब यह स्पीशीज एक लंबी अवधि तक बिना किसी परिवर्तन के ऐसी ही बनी रहती है तथा इस लंबी अवधि के बाद ही इसमें कोई बदलाव आता है। इस मॉडल का सुझाव जीवाश्मविद् नील्स एल्ड्रेज और स्टीफन जे गोल्ड ने दिया था।
हार्डी - वायनबर्ग साम्य
इस संकल्पना का संबंध आनुवांशिकी और विकास दोनों से है और इसे जी.एच. हार्डी एवं डबल्यू. वायनबर्ग ने प्रस्तावित किया था।
लैंगिक रूप से जनन करने वाले जीवों की किसी समष्टि को जिसमें यादृच्छिक रूप से संगम होने के कारण जीन यादृच्छिक रूप से मिश्रित हो जाते हैं सार्वमिश्रित (पैनमिक्टिक) कहा जात है। दूसरे शब्दों में कहें तो एक सार्वमिश्रित समष्टि वह होती है, जिसमें संयुग्मनी या संगम करने वाले साथी का विशिष्ट रूप से नहीं चुने जाते। उदाहरण के लिए, हम मानव शादी तय करते समय आमतौर से किसी विशिष्ट रुधिर-समूह की तलाश नहीं करते, इसलिए रुधिर-प्रकारों के लिए हम सार्वमिश्रित होते हैं।
हार्डी- वायनबर्ग नियम के अनुसार यदि किसी सार्वमिश्रित समष्टि में उत्परिवर्तन, वरण, आनुवंशिक विचलन आदि का कोई दबाव नहीं हो तो जीनों के किसी युग्म की आपेक्षिक बारंबारता रहती है। उदाहरण के लिए, किसी समष्टि में एक जीन के दो युग्मविकल्पी (ऐलील) हैं और उनमें कोई उत्परिवर्तन अथवा वरण आदि नहीं हुआ है, तब इन दोनों एलीलों की बारंबारता पीढ़ी-दर-पीढ़ी स्थिर बनी रहेगी। इसका गणितीय निरूपण इस प्रकार किया जा सकता है-
(p + q) 2 = 1 अथवा p2 + 2pg + q2 = 1