विषाणु (वाइरस ) खोज संरचना
विषाणु (वाइरस )
- आपने सुना होगा कि कुछ रोग जैसे इन्फ्लुएंजा, पोलियो, कनफेड़ा (मम्पस) रेबीज, चेचक, एड्स तथा डेंगू आदि वाइरसों से पैदा होते हैं।
- ये निर्जीव हैं और प्रोटीन परत से आवृत्त डी. एन. ए. या आर. एन. ए. से बने हैं, इनमें प्रतिकृतियन (replication) हो सकता है, लेकिन ये स्वयं जनन नहीं कर सकते। ये जीवित कोशिका के अंदर ही जनन कर सकते हैं। अतः इनका वर्गीकरण एक विशेष समस्या है।
- तार्किक दृष्टि से इन्हें पाँच जगतों में से किसी भी जगत् में नहीं रखा जा सकता, क्योंकि ये अपने आतिथेय या पोषी (host ) कोशिकाओं में गुणन कर सकते हैं, उत्परिवर्तित हो सकते हैं - सजीवों की तरह लेकिन यह क्रिस्टलीकृत हो सकता है और निर्जीवों के लक्षण दर्शाते हैं।
विषाणुओं (वाइरसों) की खोज
सन् 1892 में रूसी वनस्पतिशास्त्री इवेनाव्स्की ने तंबाकू के मोज़ेक रोग से ग्रस्त तंबाकू के पौधों का निकर्षण तैयार किया। इस निकर्षण को छाना गया ताकि यदि कोई बैक्टीरिया उसमें हो तो छाने जाने पर बाहर ही रह जाए। फिल्ट्रेट को अब भी संक्रामक पाया गया। डच वैज्ञानिक बीजेरिंक ने सन् 1898 में इन संक्रमण करने वाले कणों को विषाणु (वाइरस) नाम दिया (लैटिन भाषा में वाइरस का अर्थ विष होता है)
आकार
- वाइरस अत्यधिक सूक्ष्म होते हैं और उन्हें केवल इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी ( माइक्रोस्कोप) से ही देखा जा सकता है।
- ये सूक्ष्मतम बैक्टीरिया से भी छोटे होते हैं।
- ये उन फिल्टरों में से भी गुजर जाते हैं जिनसे बैक्टीरिया नहीं निकल पाते हैं।
- इनका आकार नैनोमीटर (nm) में व्यक्त किया जाता है। इनके व्यास का परास 10 नैनो मीटर से 300 नैनीमीटर के बीच होता है।
नैनोमीटर (Nanometer nm)
- यह सूक्ष्मदर्शीय मापन की इकाई है, जो 10 की घात 9 के बराबर होती है। इसे पहले मिलीमाइक्रॉन कहा जाता था।
विषाणु (वाइरस) की संरचना
विषाणु वाइरस एक सरल संरचना है जिसमें एक क्रोड अथवा केंद्रभाग व उसे आच्छादित करने वाला एक आवरण होता है। केंद्र भाग का कण आनुवंशिक पदार्थ होता है या तो डी.एन.ए. या आर. एन. ए.। बाहर का आवरण प्रोटीन का बना होता है जिसे कैप्सिड (Capsid) कहते हैं।
- वाइरस केवल जीवित कोशिका के अंदर ही जनन कर सकता है।
- एक वाइरस स्वयं जनन नहीं कर सकता है। जनन के लिए इसे किसी जीव की कोशिका के अंदर प्रवेश करना होता है। पोषी कोशिका से यह कच्चे पदार्थ, एंजाइमों व ऊर्जा उत्पादक प्रणाली का उपयोग करके स्वयं अपना डी. एन. ए. बनाता है। इस प्रकार परपोषी कोशिका के अंदर अनेक वाइरस कण बन जाते हैं। पोषी कोशिका फूट जाती है और वाइरस कण बाहर आ जाते हैं।
वाइरस सजीव या निर्जीव
हालाँकि वाइरसों में जीवों की भाँति आनुवंशिक पदार्थ न्यूक्लीक अम्ल पाए जाते हैं, वे अपने आप DNA जनन के लिए प्रति नहीं बना सकते हैं। ये केवल जीवित कोशिका के अंदर ही जनन कर पाने में सक्षम हैं। चूंकि उनका आनुवंशिक है, उनमें उत्परिवर्तन होता है। इसके बाद उनके संक्रामी गुणों में विभिन्नता होती है। अतः वाइरस (विषाणु) निर्जीव माने जाते हैं। इसके अतिरिक्त, वे निर्जीव माने जाते हैं क्योंकि ये अकोशिकीय हैं और उनमें अपना प्रकिण्व नहीं होता और इनके क्रिस्टल बनाएँ जा सकते हैं।
वाइरसों के संक्रामी गुण
वाइरस बैक्टीरिया, पौधों या प्राणियों में आक्रमण करते हैं। जीवाणुओं में आक्रमण करने वाले वाइरसों को जीवाणुभोजी (Bacteriophage) कहते हैं ।
वाइरस अपने पोषी व ऊतकों के साथ संबंध स्थापित करने में अति विशिष्ट होते हैं। उदाहरण के लिए मानव में पोलियो वायरस विशेष तंत्रिकाओं पर ही आक्रमण करता है, कनफेड विषाणु मानव को विशेष प्रकार के लाला ग्रंथियों के जोड़े (पैरोटिड ग्रंथि) पर आक्रमण करता है।
वाइरसों में 'उत्परिवर्तन' होता रहता है
- उत्परिवर्तन का अर्थ है आनुवंशिक पदार्थ में परिवर्तन । उदाहरण के लिए फ्लू वायरस में उत्परिवर्तन होता रहता है जिसके कारण प्रतिवर्ष फ्लू एक नए वायरस के कारण होता है और वैज्ञानिकों को इसका इलाज ढूँढने में कठिनाई होती है।
- कुछ और कैंसर वाइरसों द्वारा होते हुए भी पाए गए हैं। इन वाइरसों में RNA का आनुवंशिक पदार्थ होता है तथा इन्हें रेट्रोवायरस ( Retroviruses) कहते हैं।
विषाणुभ (Virioid)
विषाणुभ वर्तुलाकार अणु होते हैं, जिनमें कई सौ न्यूक्लिओटाइड संलग्न होते हैं। ये पौधों को संक्रमित कर देते हैं और उन्हें मार भी सकते हैं। पौधों में, ये एंजाइमों का प्रयोग करके पौधों की कोशिकाएं उसी प्रकार प्रतिकृति बनाने लगती हैं, जिस प्रकार कि विषाणुभ करते हैं। जब वे पौधों को संक्रमित करते हैं, तब RNA अणु पौधे की वृद्धि का नियंत्रण करने वाले नियामक - तंत्र को दोषपूर्ण कर देते हैं। इसीलिए विषाणुभग्रस्त पौधों की वृद्धि अवरुद्ध हो जाती है और उनका परिवर्धन असामान्य हो है।