मानव शरीर के विभिन्न संस्थान | All Systems of Human Body in Hindi

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मानव शरीर के विभिन्न संस्थान

 (All Systems of Human Body in Hindi)

मानव शरीर के विभिन्न संस्थान  (All Systems of Human Body in Hindi)



मानव शरीर के विभिन्न संस्थान - 

हमारा शरीर अनेक अंगों से मिलकर बना है। इन अंगों के द्वारा शरीर के अनेक कार्यो का सम्पादन होता है। शरीर के उन भागों को जो किसी कार्य विशेष को करते हैंउन्हें अंग कहते हैं। प्रत्येक अंग की अलग क्रियायें (Function) होती हैंजैसे पैर का चलनाहाथ द्वारा पकड़नाआँखों का देखनाआमाशय द्वारा भोजन को पचाना आदि क्रियायें होती है। जब अनेक अंग समूह मिलकर किसी एक विशेष कार्य को करते है। तब उन क्रियाओं के कार्य समूह को संस्थान कहा जाता है। इस प्रकार अनेक अंग मिलकर एक संस्थान (System) बनाते हैंऔर अनेक संस्थान मिलकर एक शरीर बनाते हैं। इस प्रकार मनुष्य शरीर में मुख्य ग्यारह ( 11 ) संस्थान (System) माने गये है जो इस प्रकार हैं-

 

1 ज्ञानेन्द्रिय संस्थान - 

  • हमारे शरीर के वह अंग जिनसे हमें अपने चारों के परिवेश ज्ञान प्राप्त होता है। उन्हें ज्ञानेन्द्रिय कहा जाता है। हमारे शरीर में ज्ञानेन्द्रियों की संख्या 5 है । आँखेंनाककानजिह्वा तथा त्वचाइन ज्ञानेन्द्रियों का सीधा संबध हमारे देखनेसूनेसुननेस्वाद तथा स्पर्श आदि पाँच संवेदनों से होता है। इन पाँच ज्ञानेन्द्रियों से मिलकर ही ज्ञानेन्द्रिय संस्थान बनता है। आँख के कार्य सम्पादन में विभिन्न भाग कार्नियाउपतारा (Iris) तथा पुतली (Pupil) तथा रेटिना (Retina) महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं तथा हमें देखने संबधी संवेदना की अनुभूति होती है। कान की संरचना को तीन भागों में विभक्त किया जा सकता हैएक वाह्यमध्य तथा आंतरिक कान। वाह्य कान ध्वनि तरंगों को मध्य कान तक पहुँचाता हैतथा मध्य कान यह तरंगों को आन्तरिक कान तक पहुँचाता है। गंध का ज्ञान कराने वाली ज्ञानेंन्द्री नाक के दो प्रमुख भाग होते हैं - पहला बाहरी तथा दूसरा आंतरिक। घ्राण संवेदना का अहसास कराने वाले कोश आंतरिक नाक में उपस्थित नासिका गुहा में होते हैं। यही कोश गंध युक्त पदार्थों से निकलने वाले सूक्ष्म वाष्पमय कणों से प्रभावित होकर संबधित संवेदना को मस्तिष्क केन्द्रों के घ्राण शिरा तक पहुँचाते हैंजिसके फलस्वरूप हमें गंध का अहसास होता है।

 

  • स्वाद का ज्ञान कराने वाली ज्ञानेंन्द्रिय जिह्वा में स्थान-स्थान पर गड्ढ़े तथा उभार होते हैंजिनमें स्वाद कलिकाएँ होती है। जिह्वा की नोक पर उपस्थित स्वाद कलिकाएँ मिठास का तथा पश्च भाग में स्थित कलिकाएँ कड़वेपनपार्श्व किनारों में स्थित कलिकाएँ खट्टेपन तथा मध्य और आगे के भाग में स्थित कलिकाएँ नमकीनपन के स्वाद का अहसास कराने में सहायक होती है। जो भोजन हम ग्रहण करते हैं वे लार में अच्छी तरह मिलकर जिह्वा के स्वाद तंतुओं के द्वारा स्वाद कोशों में पहुँचता है। यहीं स्वाद कोश संवेदना से उत्तेजित होकर अपनी उत्तेजना स्वाद कलिकाओं तक पहुँचाते हैं । जिसके परिणामस्वरूप मस्तिष्क की सहायता से विभिन्न स्वादों का अहसा कराते हैं ।

 

  • त्वचा स्पर्शतापशीतदबाव और पीड़ा का ज्ञान कराने वाली इंद्रिय है। त्वचा की तीन परत निम्न है - 1. बाह्य 2. मध्य 3. आंतरिक । सभी परतों में अलग- अलग प्रकार के स्पर्श संबधी संवेदना कोश उपस्थित होते है। यही कोश उपर्युक्त पदार्थो से उत्तेजित होकर भिन्न- भिन्न प्रकार के स्पर्श संबधी संवेदन का आभास कराते हैं।

 

2 अस्थि संस्थान अथवा कंकाल तंत्र -

 

  • मनुष्य शरीर का आधार अस्थि तंत्र ही है। यह अस्थि तंत्र ही मांसत्वचाधमनियोंशिराओंस्नायु व शरीर के सभी कोमल अंगों को सुरक्षा देता है। मानव शरीर को आकार प्रदान करना,शरीर की सन्धियों को व्यवस्थित करना तथा शरीर को कार्य करने तथा चलने-फिरने आदि के योग्य बनाना यह कार्य अस्थि तंत्र द्वारा सम्पादित होता है।

 

  • अस्थि तंत्र लगभग 206 हड्डियों से मिलकर बना है। ये हड्डियाँ आपस में जुड़कर मजबूत ढाँचे का निर्माण करती है। अस्थियों के विकास के लिये कैल्शियमफास्फोरस जैसे खनिज लवण तथा विटामिन 'सीऔर 'डीआवश्यक होते हैं। अस्थि पंजर में कुछ हड्डियाँ लम्बीकुछ चपटीकुछ गोलकुछ टेढ़ी - मेढ़ी और कुछ बेलनाकार होती है। हड्डियों की लम्बाई चौड़ाई भी अलग- अलग पायी जाती है। शरीर में हड्डियों का भार शरीर के भार का प्रायः 16वां हिस्सा होता है।

 

  • अस्थि तंत्र में हाथों की ऊपरी भुजा कंधों से जुड़ी होती है। कंधे से जुड़ी एक हड्डी जिसे ह्यूमरस (Humerus) कहते हैका ऊपरी सिरा कंधे के जोड़ से जुड़ा रहता है। कंधे के जोड़ में सामने की ओर कालर बोन (Collar Bone) तथा पीछे की ओर त्रिभुजाकार हड्डी (Scapula) होती है। कोहनी के जोड़ से ह्यूमरस का निचला हिस्सा जुड़ा रहता है। इस जोड़ में नीचे (Radius) और अलना (ulna) नामक दो हड्डियाँ होती हैये मिलकर अग्रभुजाका निर्माण करती है। इसके निचले सिरे कलाई की हड्डियों से जुड़े रहते हैंतथा इनसे अंगुलियों की तीन - तीन हड्डियाँ जुड़ी रहती हैं। मेरूदण्डजिसमें गर्दन की सबसे पहली कशेरूका स्थित हैगर्दन की पहली कशेरूका से खोपड़ी जुड़ी होती है। इसके कई भाग होते हैं। जैसे कपालास्थिजिसमें मस्तिष्क होता हैतथा सामने की ओर दो गहरे गड्ढे (Orbit) होते है। जिसमें नाक की हड्डी होती है। नाक के नीचे ऊपरी जबड़ा (Mandible) होता है तथा इस ऊपरी जबड़े के ठीक नीचे दूसरा बड़ा (निचला जबड़ा) होता है। जो कान के पास की टेम्पोरल (Temporal) हड्डी से निकले हुये सिरों के दोनों ओर जुड़ा होता है। दोनों जबड़ों में 16 - 16 दाँत हड्डियों के बने खाँचों में लगे रहते है।

 

  • पसलियों के 7 जोड़े स्टर्मम (Sternum) से जुड़े होते हैंऔर पीछे की ओर ये पसलियाँ वक्ष की कशेरूकाओं से जुड़ी होती हैं। नीचे वाली दो जोड़ी पसलियों के अग्रभाग स्वतन्त्र होते हैं धड़ में श्रोणी (Pelvis) की अस्थियां दो समान भागों की बड़ी अस्थियों से मिलकर बनती है। पीछे की ओर ये क्रम से जुड़ी होती है। इनके दोनों तरफ से कूल्हे के जोड़ों से जांघ की लम्बी बेलनाकार हड्डी जुड़ी होती है। जो फीमर (Femur) कहलाता है। फीमर का निचला सिरा घुटने के जोड़ द्वारा टिबिया (Tibia) और फिबुला (Fibula) नाम की दो लम्बी अस्थियों से जुड़ होता है। इन दोनों के निचले सिरे एवं पैर के पंजे की हड्डियाँ मिलकर Ankle Joint या पंजे का निर्माण करती है। पैर पंजे में 5 मेटाटारसल (Metatarsal) और टारसल (Tarsal) अस्थियाँ होती है। इनमें पैर छोटी - छोटी अंगुलियों की हड्डियाँ जुड़ी रहती है। 


मांसपेशी संस्थान अथवा पेशीय तंत्र- 

  • पेशी संस्थान (Muscular System) मनुष्य शरीर मांस पेशीय संस्थान के कारण ही सुन्दर तथा सुडौल दिखाई देता है। क्योंकि शरीर का ऊपरी ढाँचा पूर्णतः मांसाच्छादित होता है।

 

  • मनुष्य शरीर का अधिकांश वाह्य तथा आन्तरिक भाग मांसपेशियों से ढका रहता है। 'मांसअथवा मांसपेशियाँ‘ लसदार समूह का नाम है। मांसपेशियाँ एक - एक मांससूत्र होती है या मांस का गुच्छा विशेष होती है। मांसपेशियां में संकोचन एवं शिथिलन का विशेष गुण होता है। संकोचन के गुण के कारण ही हम अपने हाथ पैर सिर व अन्य शारीरिक अवयवों को विभिन्न दिशाओं में सरलतापूर्वक घुमा सकते हैंजैसे- हाथों से लिखनापैरों से चलनामुँह खोलना - बंद करनाहृदय का धड़कनाआँखों की पुतलियों का इधर उधर होनासिकुड़ना आदि कार्य भी इन्हीं मांसपेशियों के विशेष गुण से ही सम्भव है।

 

मनुष्य शरीर में छोटी-बड़ी लगभग कुल 519 मांसपेशियां पायी जाती हैं। मांसपेशियों दो प्रकार की पाई होती है।

 

1. ऐच्छिक पेशी (Voluntary) 

2. अनैच्छिक पेशी (Non Voluntary)

 

1. ऐच्छिक पेशी (Voluntary) जैसा कि नाम से स्पष्ट है जिन पेशियों पर हम अपनी इच्छानुसार परिवर्तन कर सकते हैं। ऐच्छिक पेशी वे होती हैंजो मनुष्य इच्छानुसार कार्य करती हैंमनुष्य इन्हें अपनी इच्छानुसार चला सकता है। ऐच्छिक पेशी को पराधीन मांसपेशी भी कहते हैं।

 

2. अनैच्छिक पेशी (Non Voluntary) अनैच्छिक पेशियां स्वतंत्र रूप से अपना कार्य करती रहती हैं। मनुष्य अपनी इच्छानुसार इन्हें नहीं चला सकता ये पेशियाँ दिन - रात अपना कार्य निरन्तर करती रहती हैं। जैसे- हृदयश्वसन संस्थानअग्न्याशयअन्न नली आदि की माँसपेशियाँ अपना कार्य करती रहती है। मनुष्य शरीर की मांसपेशियाँ सुदृढ़ होती हैं। मनुष्य का शरीर मांसपेशियों को सुदृढ़ होने के कारण ही सुगठितसुन्दर और शक्तिशाली होता है। मांसपेशियों से शरीर को उष्णता प्राप्त होती है। अनैच्छिक मांसपेशी को स्वाधीन मांसपेशी भी कहते हैं।

 

पोषण या पाचक संस्थान अथवा आहार तंत्र - 

  • पाचन संस्थान के अन्तर्गत मुखअन्न नलिकाअग्न्याशयपक्वाशयक्लोम ग्रन्थि (अग्न्याशय) पित्ताशययकृतछोटी आँतबड़ी आँत आते है। पाचन तंत्र विभिन्न खाद्य पदार्थो का पाचन कर शरीर के लिये उपयोगी बनाता है। जिससे शरीर उनका उपयोग ऊर्जा एवं बृद्धि के लिये कर सके।

 

  • जब किसी खाद्य पदार्थ को मुँह में दाँतों द्वारा चबाया जाता हैतो इस दौरान मुँह में उस भोज्य पदार्थ में लार ग्रन्थियों से लार निकलकर उसमें मिल जाती है। लार खाद्य पदार्थ को गला देती है। जिससे खाद्य पदार्थ आसानी से आमाशय में चला जाता है। आमाशय एक बड़ी थैलीमा होता हैजब आमाशय में लार मिला भोजन पहुँचता हैतब आमाशय की दीवारों की ग्रन्थियों में मौजूद हाइड्रोक्लारिक अम्ल निकलकर भोजन में मिलता है। तत्पश्चात लगभग 3-5 घंटे में इसे पक्वाशय में भेज दिया जाता है । पक्वाशय में यह भोजन कुछ पतला (लेई जैसा) आता हैइसमें पित्ताशय से पित्त रस यहाँ आकर मिलता है। पित्त और पक्वाशय से निकले रस से भोजन फिर क्षारीय बन जाता है। इसके बाद भोजन छोटी आँत में आता है। पचे हुये भोज्य पदार्थो का छोटी आँत की दीवारों द्वारा अवशोषण होता हैतथा यह भोजन आँतों में होने वाली गति से आगे बढ़ता जाता है। छोटी आँत लगभग 6-7 मीटर लम्बी होती है। तथा इसके द्वारा भोजन के प्रायः सभी आवश्यक तत्व अवशोषित कर लिये जाते है। इसके बाद पचा हुआ भोजन बड़ी आँत में पहुँचता है। बड़ी आँत में भी कुछ मात्रा में पानी व लवण का अवशोषण होता है। बड़ी आँत में यह क्रिया 5-6 घंटे तक चलती है। इस क्रिया के पश्चात् पचा हुआ आहार मल के रूप में परिवर्तित हो जाता है। जो उत्सर्जी अंगों द्वारा बाहर निकाल दिया जाता है। मनुष्य शरीर को भोजन के पाचन द्वारा शर्कराप्रोटीनवसाविटामिन्सखनिज लवण व पानी आदि प्राप्त होते हैं। भोजन के पाचन में लगभग 14 - 18 घंटे तक का समय लग जाता है।

 

श्वासोच्छावास संस्थान अथवा श्वसन संस्थान- 

  • श्वसन संस्थान के अन्तर्गत श्वसन संबधी यन्त्र तथा नाकस्वरयन्त्र (Larynx) श्वसन नलिका (Wind Pipe) व फेफड़े (Lungs) आते हैं। इस संस्थान के मुख्य कार्य दूषित रक्त को शुद्ध प्राणवायु (Oxygen) प्रदान कर शरीर को शुद्ध करना है। जिससे कि समस्त अंग सुचारू रूप से अपना कार्य कर सकें। मनुष्य भोजन और पानी के बिना कुछ समय जीवित रह सकता हैकिन्तु श्वास‘ के बिना एक भी पल जीवित नहीं रह सकता है। जिस क्रिया द्वारा बाहरी वातावरण से शुद्ध प्राण वायु अर्थात् ऑक्सीजन (O) को ग्रहण किया जाता हैतथा शरीर के विभिन्न भागों में उत्पन्न कार्बन-डाईऑक्साइड (CO) व अशुद्धियों को शरीर से बाहर निकाला जाता है उसे श्वसन क्रिया अथवा 'श्वासोच्छवास क्रिया कहते हैं। प्रत्येक जीव जगत के समस्त जीवित प्राणी में क्रिया स्वाभाविक रूप से चलती रहती है। यह क्रिया यदि बंद हो जाए तो प्राणी मृत्यु हो जाती है।

 

  • श्वसन तंत्र में नाकश्वास नलिका एवं फेफड़े शामिल होते हैं। इसके अतिरिक्त डायफ्रामवक्ष और उदर की पेशियाँ भी श्वसन क्रिया में सहायता करती है। जब ताजी हवा फेफड़ों में भर जाती हैतब वह बारीक रक्त नलिकाओं के माध्यम से रक्त के सम्पर्क में आती है। तथा इस दौरान रक्त में कार्बन - डाईऑक्साइड वाष्पशील हानिकारक पदार्थ निकल जाते हैं। उसमें ऑक्सीजन मिल जाती है। मनुष्य सामान्य तौर पर एक मिनट में 16 से 24 बार श्वास लेता हैऔर छोड़ता हैतथा छोटे बच्चों में यह क्रिया और जल्दी-जल्दी होती है। नवजात शिशु एक मिनट में 40 बार श्वांस लेता हैऔर छोड़ता है । श्वांस की गति दौड़नेकाम करने या अन्य तरह के परिश्रम करने से भी तेज होती है। क्योंकि परिश्रम करते समय शरीर को अधिक मात्रा में ऑक्सीजन की आवश्यकता होती हैऔर इसकी आपूर्ति से श्वसन क्रिया तेज हो जाती है। 

मूत्रवाहक एवं मलत्याग संस्थान या उत्सर्जन तंत्र - 

  • मनुष्य शरीर में स्वस्थ रहनेजीवित रहने के लिये प्रकृति ने पोषण व निष्कासन जैसी महत्वपूर्ण प्रणाली बनाई है। इस प्रणाली के शरीर में ठीक प्रकार से कार्य ना करने पर शरीर से वर्ज्य पदार्थ बाहर नहीं निकल पाते हैजिससे शरीर रोगों का घर बन जाता है। भोजन के पाचन होने से तथा कोशिकीय प्रतिक्रियाओं के फलस्वरूप जो कोशिकाओं की टूट फूट होती रहती है। इस टूट-फूट एवं मरम्मत की क्रिया के फलस्वरूप शरीर में बहुत से दूषित पदार्थ एकत्र होते रहते दूषित पदार्थो को शरीर विभिन्न प्रक्रियाओं के द्वारा उत्सर्जी अंगों से बाहर निकालता रहता है। इन्हीं उत्सर्जी अंगों से मिलकर उत्सर्जन संस्थान का निर्माण होता है। इन अंगों में त्वचावृक्कफेफड़ेबड़ी आँतमूत्राशय एवं मलाशय इत्यादि आते हैं। त्वचा से अतिरिक्त जल एवं दूषित पदार्थ शरीर से बाहर निष्कासित होते हैं। वृक्क रक्त से मूत्रअम्लजल आदि को निष्कासि करता है तथा फेफड़े से कार्बन-डाईऑक्साइड एवं बड़ी आँत अनुपयोगी (दूषित) भोजन को शरीर से बाहर निष्कासित करती है।

 

रक्त वाहक संस्थान अथवा रक्त परिवहन तंत्र (Blood Circulatory System) 

  • रक्त वाहक संस्थान अथवा परिवहन तंत्र या परिसंचरण तंत्र प्रमुख रूप से हृदय और रक्त नलिकाओं से मिलकर बनता है। रक्त वहिकाएं समस्त शरीर में फैली होती हैं। रक्त वहिकाएं रक्त संचरण का कार्य करती है।

 

  • हृदय रक्त संचरण की क्रिया का सबसे प्रमुख अंग है। यह एक नाशपाती के आकार का मांसपेशी की एक थैली जैसा होता है। हृदय को शरीर का पम्पिंग स्टेशन कहा जाता हैक्योंकि हृदय की मांसपेशियों के द्वारा ही रक्त का परिसंचरण होता है। मनुष्य का हृदय विशेष तरह की मांसपेशियों का बना होता है। यह दो भागों बायें तथा दायें भागों या प्रकोष्ठों में बंटा होता है। इन दोनों भागों का आपस में कोई संबंध नहीं होता है। ये दोनों भाग ऊपरी तथा निचले दो हिस्सों में बटे रहते हैं और इन दोनों भागों के बीच में कपाट या वाहक (Valves) होते हैजो एक ही ओर खुलते हैं। रक्त ऊपर के प्रकोष्ठ से आ तो सकता हैलेकिन वापस नहीं जा सकता है।

 

  • इस प्रकार हृदय में 4 प्रकोष्ठ होते हैं। बायें प्रकोष्ठ में शुद्ध रक्त होता है जो (बायें निचले प्रकोष्ठ) बायें निलय के संकुचल सेधमनियों द्वारा समस्त शरीर में संचारित होता है। अशुद्ध रक्त दायें प्रकोष्ठों में रहता हैजो शरीर की समस्त शिराओं द्वारा आता है। यह रक्त दायें निलय (दायें निचले प्रकोष्ठ) के संकुचन से फुफ्फुस धमनी (Pulmonary Artery) द्वारा फेफड़ों को भेज दिया जाता है। फेफड़ों में श्वसन क्रिया द्वारा रक्त को ऑक्सीजन प्राप्त होती हैऔर कार्बन- डाईआक्साइड निकलती है। फेफड़ों में जब रक्त शुद्ध हो जाता हैतब उसे फुफ्फुस शिराओं द्वारा ऊपरी प्रकोष्ठ में भेज दिया जाता हैवहाँ से बायें निलय द्वारा फिर समस्त शरीर में संचारित हो जाता है। इस तरह मनुष्य शरीर में रक्त परिसंचरण की क्रिया चलती है।

 

अंतस्त्रावी तंत्र (Endocrine System)- 

इस तंत्र के अन्तर्गत अंतस्त्रावी ग्रन्थियाँ आती हैं। इन ग्रन्थियों से महत्वपूर्ण और उपयोगी हारमोन्स स्रावित होते हैं। जो शरीर की महत्वपूर्ण क्रियाओं का सम्पादन करते हैं। अंतःस्रावी ग्रन्थियों के स्राव नलिकाओं द्वारा अंगों तक जाकर सीधे रक्त प्रवाह में मिलकर सभी अंगों में पहुँचते हैं। ये ग्रन्थियाँ शरीर के विभिन्न भागों में स्थित होती है। प्रमुख अंतःस्रावी ग्रन्थियों क वर्णन निम्न है

 

1. पीयूष ग्रन्थि (Pituitary Gland) - 

यह मस्तिष्क के निचले भाग में अग्रभाग में स्थित होती है। इस ग्रन्थि से कई तरह के हार्मोन्स निकल कर रक्त में मिलते हैं। ये हार्मोन्स निम्न हैं-

 

a. थायराइड उत्तेजक हार्मोन्स (Thyroid Stimulating Hormones) -  यह हार्मोन थायराइड के कार्यों जैसे आयोडीन को थायराइड हार्मोन्स में बदलनेरक्त में उसके प्रवाह आदि को नियंत्रित करने में सहयोग करता है।

 

b. एड्रीनोकार्टीकोट्राफिक हार्मोन (A. C. T. H) - एड्रीनल ग्रन्थियों के विकास तथा उससे निकलने वाले हार्मोन पर नियंत्रण करता है।

 

c. वृद्धि हार्मोन (Growth Hormone) - यह हार्मोन शरीर विभिन्न ऊतकों की वृद्धि में सहायता करता है। जब इसका स्राव कम मात्रा में होता हैतो कद नाटा रह जाता है। इस ग्रन्थि के स्राव से बच्चों की ऊंचाई बढ़ती है।

 

d. फॉलिकल उत्तेजक हार्मोन (Folicle Stimulating Harmons)) - यह गन्थि स्त्रियों के डिम्ब निर्माण ओवेरियन फॉलिकल (Ovarian Follicles) और पुरूषों शुक्राणुओं के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

e. ल्यूटिनाइजिंग हार्मोन (LH) यह हार्मोन स्त्रियों में कार्पस ल्यूटिस (Corpus Lutes) के निर्माण में सहायक होता हैतथा गभिर्णी स्त्री के स्तनों का भी विकास करता है। पुरूषों में टेस्टोस्टेरान का स्राव करता है।

 

 पीयूष ग्रन्थि  ग्रन्थि के पश्च भाग से स्रावित होने वाले हार्मोन-

 

a. आक्सीटोसिन (Oxytocin ) यह हार्मोन स्त्रियों के गर्भाशय की पेशियों पर प्रभाव डालता है।

 

b. एण्टीडाययूरोटिक हार्मोन (A.D.H) - इस हार्मोन के प्रभाव से मूत्र की मात्रा में कमी आती है। जब। A.D.H कम मात्रा में निकलता हैतो गुर्दों द्वारा पानी का अवशोषण कम होता है। इससे मूत्र की मात्रा बढ़ जाती है। इस हार्मोन की अधिक मात्रा रक्त चाप को बढ़ा देती है।

 

2. थायराइड ग्रन्थि (Thyroid Gland) - यह ग्रन्थि गर्दन के सामने नीचे की ओर स्थित होती है। थायरॉयड ग्रन्थि थायरॉक्सिन का स्राव करती हैतथा ऊतकों की चयापचय क्रियाओं का नियमन करती है। थायरॉक्सिन के कम स्रावण से अंगों में विकृति तथा अधिक स्रावण से हायपरथायरोडिज्म नामक रोग हो जाता है।

 

3. पैराथायराइड ग्रन्थि (Parathyroid Gland) - यह ग्रन्थि थायराइड ग्रन्थि के पास उससे लगी हुयी होती है। यह ग्रन्थि मटर दाने के आकार की होती हैतथा इनकी संख्या 4 होती है। इनसे निकलने वाला हार्मोन पैराथारमोनशरीर में कैल्शियम तथा फास्फोरस का वितरण तथा चयापचयी क्रियाओं का नियमन करता है। इस हार्मोन की अधिकता से हड्डियाँ कमजोर तथा गुर्दों में पथरी बनने लगती है। इसकी कमी से कैल्शियम की कमी हो जाती है।

 

4. एडरीनल ग्रन्थियाँ (Adrenal Gland)- ये ग्रन्थियाँ दोनों गुर्दो के ऊपर स्थित होती हैं। एड्रीनल से दो हार्मोन एड्रेनलीन और नारएड्रेनलीन निकलते है।

 

5. थाइमस ग्रन्थि (Thymus Gland)- ये ग्रन्थि दोनों फेफड़ों के मध्य स्थित होती है। यह बच्चों में दो वर्षो तक बढ़ती है। उसके पश्चात सिकुड़कर छोटी हो जाती हैऔर व्यस्क में तंतुमय अवशेष के रूप में ही रह जाती है।

 

6. पीनियल ग्रन्थि (Pineal Gland) - ये ग्रन्थि लाल रंग की गुठली के आकार की होती है। जो मस्तिष्क के पश्च भाग में स्थित होती है।

 

लसिका तंत्र (Lymphatic System) 

  • लसिका तंत्र की शरीर की प्रतिरक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका है। लसिका तंत्र के निर्माण में लसिका द्रवलसिका कोशिकाएं एवं लसिका ग्रन्थियाँ सहायक होती हैं। लसिका द्रव छोटी - छोटी रक्त नलिकाओं से छन कर आया होता है। जो वापस रक्त वहिकाओं में नहीं जा पाता है। लसिका कोशिकायें ऊतकों के बीच में बारीक नलिकाओं के रूप में फैली होती हैंये ऊतकों से द्रव को एकत्रित कर लसिका वाहिकाओं में भेजती है।

 

  • लसिका गाढ़े या लिम्फ नोड्सछोटी व बड़ी दोनों आकार की हो सकती हैं लसिका वाहिकाएं इनमें लिम्फ आती है। इन गाँठों में श्वेत रक्त कणिकाएं आती है। रक्त के लिये श्वेत रक्त कणिकाओं का निर्माण भी लिम्फ गाठों में होता है। ये शरीर की सुरक्षा के लिये कुछ प्रतिपिण्डों का निर्माण करते हैं।

 

वातनाड़ी संस्थान या तंत्रिका तंत्र 

  • शरीर का एक महत्वपूर्ण तंत्र है। यह संस्थान शरीर के सभी संस्थानों पर नियंत्रण रखता हैऔर उनको नियमित भी करता है। इसमें मस्तिष्कमेरूदण्ड में स्थित सुषुम्ना या मेरूरज्जु (Spinal cord) एवं इनसे निकलने वाली तंत्रिकायें (Nerve) आती है।

 

  • मस्तिष्क के दो प्रमुख भाग होते हैंपहला लघु मस्तिष्क और दूसरा वृहद् मस्तिष्क । वृहद् मस्तिष्क के अलग अलग क्षेत्र अपना अलग अलग कार्य करते है। कुछ चिंतन - मनन का - कार्य करते हैं। स्मरण शक्ति भी वृहद् मस्तिष्क में एक रहती है। वृहद् मस्तिष्क के कार्य हैं जैसे - पीड़ाउष्णताशीतलतास्पर्श आदि का ज्ञान वृहद् मस्तिष्क का दायां हिस्सा शरीर के बायें भाग पर नियंत्रण रखता हैतथा बायाँ हिस्सा शरीर के दायें भाग पर नियन्त्रण रखता है। लघु मस्तिष्क शरीर में विभिन्न पेशियों की गति पर नियंत्रण रखता है । शरीर की गतिचलना-फिरना आदि कार्यों का नियमन इनके द्वारा होता है।

 

  • मस्तिष्क बुद्धिविवेकविचारअनुभव इत्यादि का केन्द्र है। इन्द्रियों का बोध जैसे- श्रवणदृष्टिगंधस्पर्शस्वाद इत्यादि विभिन्न नाड़ियों के माध्यम से मस्तिष्क करवाता है। नाड़ियों (Nerve) के कार्य विद्युत तारों के समान ही होते हैं। क्योंकि जिस तरह धातु के तारों

 

  • द्वारा विद्युत एक स्थान से दूसरे स्थान को भेजी जाती है। उसी प्रकार तंत्रिकाएं या नाड़ियाँ भी संदेशों को आदान - प्रदान करती है। तंत्रिकाएं समस्त शरीर में फैली होती हैं। इनमें से कुछ सीधे मस्तिष्क से निकलती हैं। इन्हें मस्तिष्कीय कपालिक तंत्रिकाए (Cranial Nerves) कहते हैं। इनकी संख्या 12 होती है। शेष अन्य बहुत सी तंत्रिकाएं मेरूरज्जु के अलग- अलग हिस्सों से निकलती हैं। ये 31 जोड़े होती हैंहमारे सम्पूर्ण शरीर का संचालन इन्हीं नाड़ियों या तंत्रिकाओं द्वारा होता है।

 

उत्पादक संस्थान अथवा प्रजनन तंत्र - 

  • प्रजनन तंत्र भी शरीर का एक महत्वपूर्ण तंत्र है। यह संस्थान जनन अंगों से मिलकर बनता है। यह संस्थान प्रजनन अथवा सन्तानोत्पत्ति के लिये समस्त प्राणियों में आवश्यक है। स्त्री और पुरूषों में अलग - अलग तरह के प्रजनन अंग होते हैं। बाह्य जननांग तथा आंतरिक जननांग । स्त्रियों के जनन अंगडिम्ब ग्रन्थियाँडिम्ब वाहिनियाँ व गर्भाशय आती हैये अंग श्रेणी गुहा के अन्दर स्थित होते है।

 

  • डिम्ब ग्रन्थि डिम्ब या अण्डे का निर्माण तथा वृषण शुक्राणुओं का निर्माण करते हैं। जब डिम्ब व शुक्राणु मिलते हैंतब भ्रूण की रचना होती है। डिम्ब व शुक्राणु के आधे - आधे क्रोमोसोम (23) होते हैं। डिम्ब और शुक्राणु जब मिलते हैंक्रोमोसोम्स पूरे 46 हो जाते हैं।

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