जीवाणुविक प्रकाश संश्लेषण, रसायन संश्लेषण | Bacterial Photosynthesis

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जीवाणुविक प्रकाश संश्लेषण  (Bacterial Photosynthesis)

जीवाणुविक प्रकाश संश्लेषण, रसायन संश्लेषण | Bacterial Photosynthesis


 

जीवाणुविक प्रकाश संश्लेषण  (Bacterial Photosynthesis)

  • कुछ जीवाणुओं में यह क्षमता पायी जाती है कि वे हरे पौधे के समानप्रकाश-संश्लेषी उत्पाद बना सकेंकिन्तु ये जीवाणु हरे पौधों के समान दृश्य प्रकाश का प्रयोग न कर अवरक्त लाल (Infrared), अदृश्य (Invisible) प्रकाश का उपयोग करते हैं। ज्ञातव्य है कि मानव आँख अवरक्त लाल (Infrared) प्रकाश को देख नहीं सकती। 
  • जीवाणुओं में बैक्टीरियोक्लोरोफिल नामक वर्णक कण इस तरंगदैर्ध्य (800-890nm ) वाले प्रकाश का उपयोग करने में समर्थ होते हैं। 
  • जीवाणुविक प्रकाश संश्लेषण की विशेषता यह है कि इसमें चूंकि जल के अलावा अन्य पदार्थ हाइड्रोजन दाता का कार्य करते हैंइसलिए O2 नहीं निकलती। इसमें भी वर्णक तन्त्र होते हैंपरन्तु दोनों स्वतन्त्र रूप से कार्य करते हैं। 


प्रकाश संश्लेषी जीवाणुओं के तीन समूह हैं- 

1. हरित सल्फर जीवाणु (Green sulphur bacteria)

  • इनमें बैक्टीरियोवीरिडीन (Bacterioviridin) नामक वर्णक पाया जाता हैजो कि रचनात्मक दृष्टिकोण से सामान्य क्लोरोफिल के समान होता है। ये जीवाणु HS माध्यम में मिलते हैं। इनमें प्रकाशीय माध्यम में CO2 का अपचयन होता है। यह क्रिया ऊर्जाजनिक (Exerganic) होती है। उदाहरण- क्लोरोबैक्टीरियम (Chloro- bacterium), क्लोरोबियम (Chlorobium)

 

2. बैंगनी सल्फर जीवाणु (Purple sulphur bacteria)- 

  • इन जीवाणुओं में बैक्टीरियोक्लोरोफिल (Bacteriochlorophyll). नामक वर्णक पाया जाता है। ये जीवाणु विभिन्न प्रकार के सल्फर यौगिकों (Sulphur compounds) एवं आण्विक हाइड्रोजन (Molecular hydrogen) का उपयोग करते हैं। अकार्बनिक सल्फर यौगिकों को अनुपस्थिति में ये जीवाणु कार्बनिक यौगिकों पर विषमघोषी (Heterophically) जीवनयापन करने लगते हैं। उदाहरण- क्रोमॅशियम (Chromatium)

 

3. बैंगनी असल्फर जीवाणु (Purple non-sulphur bacteria) — 

कुछ उदाहरणों को छोड़कर सभी अन्य जीवाणु सल्फर रहित कार्बनिक यौगिकों जैसे- कार्बनिक अम्लऐल्कोहॉल आदि का उपयोग करते हैं। 

 

रसायन संश्लेषण (CHEMOSYNTHESIS) 

प्रकृति में बहुत से स्वयंपोषी जीवाणु भी पाये जाते हैं जो कि प्रकाश संश्लेषण नहीं करते हैं। इनमें किसी भी प्रकार के प्रकाश का उपयोग करने वाले वर्णक नहीं पाये जाते हैं। ये जीवाणु विभिन्न अकार्बनिक यौगिकों के ऑक्सीकरण के दौरान मुक्त हुई ऊर्जा का उपयोग करके उसका उपयोग कार्बन के स्थिरीकरण के लिये करते हैं। इन्हें रसायन संश्लेषी जीवाणु (Chemosynthetic) bacteria) कहते हैं तथा इस क्रिया को रसायन संश्लेषण (Chemosynthesis) कहते हैं। इन जीवों में CO2 के अपचयन को क्रियाविधि अन्य प्रकाश संश्लेषी जीवों के समान ही होती है। उदाहरण- 

(i) रसायन संश्लेषी जीवाणु जैसे थायोस्पाइरिलमबेगीएटोआ 

(ii) नाइट्रीफाइंग जीवाणु जैसे- नाइट्रोसोमोनासनाइट्रोबॅक्टर 

(iii) लौह जीवाणु जैसे- लेप्टोबिक्सक्लैडोथिक्स 

(iv) हाइड्रोजन एवं मीथेन जीवाणु जैसे मीथेनोमोनासबेसीलस पॅनेटोट्रॉफस । 


 ब्लैकमैन का सीमाकारकों का सिद्धान्त  

प्रकाश संश्लेषण की दर को अनेक बाह्य एवं आन्तरिक कारक प्रभावित करते हैं। जैसे- प्रकाश (Light), CO2, तापमान, H2O, क्लोरोफिल वर्णक एवं खनिज पदार्थ उपर्युक्त सभी कारक किसी न किसी प्रकार से प्रकाश संश्लेषण की दर को प्रभावित करते हैं। सर्वप्रथम लीविंग (Liebing. 1843) ने न्यूनता का नियम (Law of minimum) दिया जिसके अनुसार, "किसी फिजियोलॉजिकल क्रिया (Physiological process) की दर न्यूनतम मात्रा में उपस्थित कारक द्वारा ही नियंत्रित होती है।" एफ.एफ. ब्लैकमैन (F.F. Blackman, 1905) ने लीबिंग के नियम का विस्तार करते हुए 'सीमाकारकों का सिद्धान्त' (Law of limiting factors) प्रस्तावित किया। इस नियम के अनुसार- 


जब किसी क्रिया की तीव्रता (Rapidity) बहुत से पृथक् पृथक् कारकों के द्वारा निर्धारित होती हैतब उस क्रिया की दर न्यूनतम मात्रा में उपस्थित कारकों के द्वारा ही सीमित (Limited) की जाती है।"

 

ब्लैकमैन के सौमाकारकों के सिद्धान्त को निम्नलिखित उदाहरण के द्वारा समझा जा सकता है- 

  • मान लीजिए किसी पौधे की पत्तियों को इतनी तीव्रता (Intensity) वाला प्रकाश दिया जाये कि जिसके प्रभाव से पत्तियाँ एक घण्टे में 5mg CO2 का उपयोग करती हैं। ग्राफ में A, CO2 की अनुपस्थिति में प्रकाश संश्लेषण को प्रदर्शित करता है। जब CO, की सान्द्रता को 0 से 1mg तक बढ़ाया जाता हैतो प्रकाश संश्लेषण की दर में वृद्धि होती है। यह वृद्धि कुछ समय तक जारी रहती हैलेकिन बाद में CO2 की कमी के कारण प्रकाश संश्लेषण को दर में वृद्धि रुक जाती है। जब CO2 की मात्रा 5mg प्रति घण्टे की दर से बढ़ाते हैंतब प्रकाश संश्लेषण की दर में से तक वृद्धि होती हैलेकिन प्रकाश संश्लेषण की दर से आगे नहीं बढ़ पाती है और CD रेखा में स्थिर (Constant) हो जाती है। इस समय CO2 की मात्रा में और वृद्धि करने पर भी प्रकाश- संश्लेषण की दर में कोई परिवर्तन नहीं होता हैक्योंकि यहाँ पर प्रकाश की तीव्रता (Light intensity) सीमाकारक (Limiting factor) की भाँति कार्य करती है।

 

ब्लैकमैन का सीमाकारकों का सिद्धान्त

  • जब CO2 की बढ़ी हुई मात्रा के साथ-साथ प्रकाश की तीव्रता (Light intensity) में भी वृद्धि की जाती हैतब प्रकाश- संश्लेषण की दर में से रेखा तक वृद्धि होकर EF रेखा पर स्थिर हो जाती है। पर आते हो प्रकाश की तीव्रता पुनः सोनाकारक (Limiting factor) हो जाती है। प्रकाश की तीव्रता में और अधिक वृद्धि करने पर प्रकाश संश्लेषण को दर में से तक वृद्धि होकर GH रेखा पर स्थिर हो जाती है। यहाँ पर प्रकाश की तीव्रता पुनः सोमाकारक (Limiting factor) हो जाती है। इस प्रकार उपर्युक्त ग्राफ में C, E एवं ऐसे बिन्दु हैंजहाँ पर प्रकाश के सीमाकारक स्वभाव (Lim iting nature) के कारण प्रकाश संश्लेषण की क्रिया स्थिर हो जाती है। इस प्रकार यदि प्रकाश संश्लेषण की दर को चित्र 11-15 ब्लैक के सीमाकारकों के नियम का ग्राफीय निरूपण सीधी रेखा ACE एवं को दिशा में बढ़ाना हैतब यह आवश्यक हो जाता है कि CO, की सान्द्रता में वृद्धि के अनुपात में प्रकाश की तीव्रता में भी मानुपातिक वृद्धि की जाये।

 

  • ब्लैकमैन ने बताया कि प्रकाश एवं CO2 के साथ-साथ अन्य कारक भी विभिन्न स्थितियों में सीमाकारक का कार्य करते हैं।

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