अंग्रेज़ भौतिकीविद् माइकेल फैराडे (1791 1867) -
- फैराडे का 1831 का एक प्रयोग जिसमें विद्युत् चुंबकीय प्रेरण दर्शाया गया है। बैटरी (B) के कारण छोटी कुंडली (A) में धारा बहती है । जब छोटी कुंडली को बड़ी कुंडली (C) के या बाहर चलाया जाता है, तो उसका चुंबकीय क्षेत्र कुंडली C में क्षणिक वोल्टता प्रेरित करता है, जिसे गैल्वेनोमीटर (G) द्वारा संसूचित किया जाता है।
- अंग्रेज़ भौतिकीविद् माइकेल फैराडे (1791 1867) ने विद्युत् चुंबकीय प्रेरण, विद्युत् चुंबकत्व और विद्युत् - रसायन के अध्ययन के लिए प्रसिद्ध हैं। उन्होंने विद्युत्-चुंबकीय प्रेरण, प्रतिचुंबकत्व और विद्युत्- अपघटन के आधारभूत सिद्धांतों की खोज की।
फैराडे का विद्युत् चुंबकीय प्रेरण नियम
आइए, पहले हम माइकेल फैराडे के उन मुख्य प्रयोगों की संक्षेप में चर्चा करें जिनके कारण 1831 में विद्युत्-चुंबकीय प्रेरण की खोज हुई। आप उस प्रयोग के बारे में जानना चाहेंगे जिसे उनका अत्यंत महत्वपूर्ण प्रयोग कहा जा सकता है। इस प्रयोग में उन्होंने तार की दो विद्युत्रोधी कुंडलियों को लोहे के एक वलय पर लपेटा और देखा कि जब एक कुंडली में धारा बहती थी तो क्षण भर के लिए दूसरी कुंडली में धारा प्रेरित होती थी । इस परिघटना को आज हम अन्योन्य प्रेरकत्व के नाम से जानते हैं।
फैराडे के लौह वलय- कुंडली प्रयोग का व्यवस्था आरेख
- एक और महत्वपूर्ण खोज तब हुई जब फैराडे ने प्रश्न किया : क्या होगा अगर तार की एक कुंडली को स्थिर रखा जाये और एक चुंबक को उसकी ओर या उससे परे ले जाया जाये? या फिर चुंबक को स्थिर रखा जाये और कुंडली को उसकी ओर या उससे परे ले जाया जाये? फैराडे ने अनेक प्रयोग किए और उन प्रयोगों के परिणामों से प्रेरित विद्युत् धारा की अवधारणा की खोज हुई ।
1 प्रेरित धाराएं
हम यहां फैराडे द्वारा किए गए प्रयोगों से मिलते जुलते तीन प्रयोगों का संक्षेप में विवरण देंगे ।
1. एक प्रयोग में एक चुंबक को विरामावस्था में रखी कुंडली से होकर गुज़ारा जाता है। तब देखा जाता है कि कुंडली में धारा प्रवाहित होती है । जब चुंबक रुक जाता है तो धारा का बहना भी बंद हो जाता है।
2. एक अन्य प्रयोग में यह देखा जाता है कि जब एक स्थिर चुंबक के ऊपर से कुंडली को ले जाया गया तो उसमें धारा प्रवाहित होती है। फिर से जब कुंडली स्थिर हो जाती है तो धारा का बहना बंद हो जाता है।
3. एक प्रयोग में कुंडली और चुंबक को स्थिर रखकर चुंबकीय क्षेत्र को परिवर्तित किया जाता है। ऐसा हम एक विद्युत् चुंबक का उपयोग करके और उसकी कुंडली में बह रही धारा को बदल कर कर सकते हैं । एक बार फिर हम देखते हैं कि कुंडली में धारा बहती है।
क्या आप बता सकते
हैं कि इन तीनों प्रयोगों में कौन सी बात समान है? आप देख सकते हैं
कि सभी प्रयोगों में चुंबकीय क्षेत्र परिवर्तित हो रहा है। अतः, इन प्रयोगों से
पता चलता है कि एक परिवर्ती चुंबकीय क्षेत्र के कारण तार की कुंडली में धारा 'प्रेरित' होती है। कुंडली
और चुंबक के एक-दूसरे के सापेक्ष गतिमान होने के कारण कुंडली में बहने वाली धारा
को प्रेरित धारा (induced current) कहते हैं। फैराडे
ने इन प्रयोगों के परिणामों की व्याख्या के लिए भौतिकी में एक नया सिद्धांत दिया :
परिवर्ती चुंबकीय क्षेत्र, विद्युत् क्षेत्र उत्पन्न करता है।
- इस नये सिद्धांत द्वारा हम प्रेरित धारा के उद्गम की व्याख्या कर सकते हैं : परिवर्ती चुंबकीय क्षेत्र के कारण विद्युत् क्षेत्र 'प्रेरित' होता है जिसके कारण कुंडली के तार में स्थित आवेश गतिमान होते हैं और इसी के कारण कुंडली में धारा प्रेरित होती है।
- इस तरह, अपने युगांतरकारी प्रयोगों से फैराडे ने यह स्थापित किया कि परिवर्ती चुंबकीय क्षेत्र प्रेरित विद्युत् धारा उत्पन्न करता है । प्रेरित धारा उत्पन्न करने के लिए प्रति एकक आवेश पर किया गया कार्य प्रेरित विद्युत्-वाहक बल (induced electromotive force) कहलाता है। यह परिघटना जिसमें परिवर्ती चुंबकीय क्षेत्र के कारण विद्युत् क्षेत्र, विद्युत्-वाहक बल और विद्युत् धारा प्रेरित होते हैं, विद्युत् चुंबकीय प्रेरण (electromagnetic induction) कहलाती है । सार रूप में, फैराडे ने देखा कि-
एक परिपथ / कुंडली / लूप में, जिसे परिवर्ती चुंबकीय क्षेत्र में रखा जाता था, प्रेरित धारा प्रवाहित होती थी ।
यह तो इस परिघटना
गुणात्मक व्याख्या है। साथ ही साथ हमें प्रेरित धारा और परिवर्ती चुंबकीय क्षेत्र
/ धारा के बीच एक परिमाणात्मक संबंध भी स्थापित करना चाहिए । आइए, अब हम फैराडे के
विद्युत् चुंबकीय प्रेरण नियम का गणितीय कथन दें। लेकिन उसे पढ़ने से पहले आप एक
बोध प्रश्न करें।
फैराडे के नियम का गणितीय कथन
आइए, चर्चा की शुरुआत हम इस सवाल से करें : किसी परिपथ में धारा का प्रवाह किस कारण से होता है? जैसाकि आप स्कूल की भौतिकी से जानते होंगे, धारा प्रवाह के लिए हमें विद्युत्-वाहक बल के स्रोत, जैसेकि बैटरी या विद्युत् प्रदाय (power supply), की आवश्यकता होती है जो परिपथ को ऊर्जा प्रदान करता है। अतः, फैराडे ने सोचा कि जब एक परिपथ में प्रेरित धारा प्रवाहित होती है तो वहां भी एक प्रेरित विद्युत् - वाहक बल उपस्थित होना चाहिए । अतः, फैराडे ने प्रयोग से प्राप्त अपने परिणामों के आधार पर एक व्यापक नियम प्रस्तुत किया कि जब भी ( और किसी भी कारण से) किसी परिपथ / लूप / कुंडली में उससे होकर जाने वाला चुंबकीय अभिवाह परिवर्तित होता है, तो उसमें विद्युत्-वाहक बल प्रेरित होता है, और
किसी परिपथ/लूप/कुंडली में प्रेरित विद्युत्-वाहक बल, उससे होकर जाने वाले चुंबकीय अभिवाह B के परिवर्तन की दर के ऋणात्मक मान के समानुपाती होता है.
फैराडे का विद्युत् चुंबकीय प्रेरण नियम
- किसी परिपथ में प्रेरित विद्युत्-वाहक बल, उससे होकर जाने वाले चुंबकीय अभिवाह के परिवर्तन की दर के ऋणात्मक मान के समानुपाती होता है।
लेन्ज़ का नियम
प्रेरित धारा ऐसा चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न करती है जो उसे उत्पन्न करने वाले चुंबकीय अभिवाह में परिवर्तन का विरोध करता है ।
हम लेन्ज़ के नियम का कथन इस तरह भी देते हैं-
प्रेरित धारा (या प्रेरित विद्युत्-वाहक बल ) की दिशा ऐसी होती है कि वह इसको उत्पन्न करने वाले परिवर्तन का विरोध करती है/
प्रेरकत्व
- आप जानते हैं कि जब किसी परिपथ में बहने वाली धारा में परिवर्तन होता है तो उसके चारों ओर चुंबकीय क्षेत्र में भी परिवर्तन होता है। यदि इस परिवर्ती चुंबकीय क्षेत्र का कोई अंश स्वयं उसी परिपथ से होकर गुज़रता है तो उसमें विद्युत्-वाहक बल प्रेरित होता है। यदि उसके निकट एक अन्य परिपथ मौजूद हो तो उससे होकर जाने वाला चुंबकीय अभिवाह बदलता है, जिसके कारण उस दूसरे परिपथ में विद्युत्-वाहक बल प्रेरित हो जाता है। इस तरह, हम यह पाते हैं कि निम्न दो स्थितियों में परिपथों में प्रेरित धारा या प्रेरित विद्युत्-वाहक बल उत्पन्न हो सकता है
- i) जब एक या अधिक फेरों वाली कुंडली में बहने वाली धारा में परिवर्तन होता है, तो उसी कुंडली में विद्युत्-वाहक बल प्रेरित होता है। आप जानते हैं कि प्रेरित विद्युत्-वाहक बल कुंडली से होकर जाने वाले चुंबकीय अभिवाह में परिवर्तन के कारण उत्पन्न होता है। इस प्रक्रिया को स्व-प्रेरण (self-induction) कहते हैं।
- ii) जब दो कुंडलियां आस-पास स्थित होती हैं, जिससे कि एक कुंडली से संबद्ध चुंबकीय अभिवाह दूसरी कुंडली में से होकर गुज़रता है, तो एक कुंडली की परिवर्ती धारा के कारण दूसरी कुंडली में प्रेरित विद्युत्-वाहक बल उत्पन्न होता है। इस प्रक्रिया को अन्योन्य प्रेरण (mutual induction) कहते हैं।
- पहली स्थिति में हम कुंडली के स्व-प्रेरकत्व की बात करते हैं और दूसरी स्थिति में दोनों कुंडलियों के अन्योन्य प्रेरकत्व की।
स्व-प्रेरकत्व
- एक वृत्ताकार लूप लीजिए जिसमें धारा । प्रवाहित हो रही हो (चित्र 15.9 ) इस लूप में प्रवाहित हो रही धारा के कारण चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न होता है । अतः, उससे चुंबकीय अभिवाह संबद्ध होता है। जब तक धारा अपरिवर्ती रहती है तब तक चुंबकीय अभिवाह में कोई परिवर्तन नहीं होता और तब परिपथ में प्रेरित धारा भी उपस्थित नहीं होती । लेकिन यदि हम लूप में प्रवाहित हो रही धारा में परिवर्तन करें तो उससे संबद्ध चुंबकीय अभिवाह में भी परिवर्तन होता है और तब परिपथ में विद्युत्-वाहक बल प्रेरित हो जाता है। उसमें तब तक प्रेरित धारा बहती है जब तक उससे होकर जाने वाला चुंबकीय अभिवाह परिवर्तित होता रहता है। लूप में धारा जितनी तेजी से बदलती है, उतनी ही अधिक चुंबकीय अभिवाह के परिवर्तन की दर होती है और उतना ही अधिक विद्युत्- वाहक बल प्रेरित होता है जो लूप में प्रवाहित धारा के परिवर्तन का विरोध करता है ।
ट्रांसफॉर्मर
- अभी आपने पढ़ा है कि एक कुंडली की परिवर्ती धारा के कारण दूसरी कुंडली में विद्युत्-वाहक बल प्रेरित हो जाता है। और, दूसरी कुंडली में प्रेरित विद्युत्-वाहक बल का मान कुंडली से संबद्ध चुंबकीय अभिवाह की परिवर्तन दर के बराबर होता है। मान लें कि हम दो कुंडलियां लेते हैं और उनमें से एक कुंडली को एक ए सी जेनरेटर से जोड़ देते हैं। धारा में लगातार परिवर्तन होते रहने से दूसरी कुंडली में परिवर्ती चुंबकीय अभिवाह उत्पन्न होता है। इस परिवर्ती चुंबकीय अभिवाह के कारण दूसरी कुंडली में एक प्रत्यावर्ती विद्युत्-वाहक बल प्रेरित होता है जिसकी आवृत्ति वही होती है जो पहली कुंडली में बहने वाली धारा की होती है । अब यदि हम दूसरी कुंडली में फेरों की संख्या पहली कुंडली के फेरों की संख्या से अधिक कर दें, तो पहली कुंडली के विद्युत्-वाहक बल की तुलना में दूसरी कुंडली में प्रेरित विद्युत्-वाहक बल का मान अधिक किया जा सकता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि एक दिए हुए चुंबकीय क्षेत्र में कुंडली से होकर जाने वाला चुंबकीय अभिवाह, कुंडली के फेरों की संख्या के समानुपाती होता है। यह एक उच्चायी (step-up) ट्रांसफॉर्मर का बुनियादी सिद्धांत है।
- इसी तरह, दूसरी कुंडली के फेरों की संख्या को कम करके, पहली कुंडली के विद्युत्-वाहक बल की तुलना में दूसरी कुंडली में प्रेरित विद्युत्-वाहक बल को कम किया जा सकता है। यह अपचायी (step-down) ट्रांसफॉर्मर का बुनियादी सिद्धांत है। इस तरह के ट्रांसफॉर्मर विद्युत् शक्ति वितरण तंत्रों में पाये जाते हैं।
चुंबकीय क्षेत्र में संचित ऊर्जा
- स्व-प्रेरकत्व के बारे में पढ़ते हुए आपने एक प्रेरक के विरोधी विद्युत्-वाहक बल की अवधारणा सीखी है। आप जानते हैं कि परिपथ में धारा को प्रवाहित करने के लिए विरोधी विद्युत्-वाहक बल के विरुद्ध कार्य करना होता है। इसका अर्थ है कि परिपथ में प्रेरित धारा प्रवाहित करने के लिए कुछ ऊर्जा लगती है। इस ऊर्जा को धारा के चुंबकीय क्षेत्र में संचित ऊर्जा माना जा सकता है। इकाई के इस भाग में हम प्रेरक युक्त धारावाही परिपथ में संचित ऊर्जा का परिमाण ज्ञात करेंगे और फिर चुंबकीय क्षेत्र में संचित ऊर्जा ज्ञात करेंगे।
प्रेरक युक्त धारावाही परिपथ में संचित ऊर्जा
- जब स्व-प्रेरकत्व L वाले प्रेरक युक्त परिपथ या लूप में धारा प्रवाहित होना शुरू करती है या वह बढ़ती है तब उसमें एक विरोधी विद्युत्-वाहक बल प्रेरित होता है जो धारा के प्रवाह का विरोध करता है । अतः, धारा प्रवाह शुरू करने के लिए या धारा के मान में वृद्धि करने के लिए, प्रेरक के विरोधी विद्युत्-वाहक बल के विरुद्ध कार्य करना होता है। यह कार्य, धारा का मान शून्य से तक बढ़ाने के लिए आवश्यक कार्य के बराबर होता है। यह कार्य, उस परिपथ में जिसमें परिमित स्व-प्रेरकत्व वाला प्रेरक जुड़ा हो, चुंबकीय ऊर्जा के रूप में संचित होता है। इस चुंबकीय ऊर्जा का मान नियत होता है और उसे वापस प्राप्त किया जा सकता है। यह ऊर्जा हमें तब वापस मिलती है जब परिपथ में धारा प्रवाह बंद कर दिया जाता है या धारा को शून्य कर दिया जाता है। हम इस चुंबकीय ऊर्जा की गणना फैराडे के विद्युत् चुंबकीय प्रेरण के नियम से कर सकते हैं।
- विद्युत् चुंबकीय प्रेरण वह परिघटना है जिसमें परिवर्ती चुंबकीय क्षेत्र में रखे परिपथ / कुंडली / लूप में विद्युत्-वाहक बल और विद्युत् धारा प्रेरित होते हैं । इसकी व्याख्या के लिए एक नये सिद्धांत की आवश्यकता हुई जिसे फैराडे का विद्युत् चुंबकीय प्रेरण का नियम कहा जाता है : परिवर्ती चुंबकीय क्षेत्र प्रेरित विद्युत् क्षेत्र उत्पन्न करता है।