मानव शरीर विज्ञान - शरीर संगठन | Human Physiology – Body Organization

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 मानव शरीर विज्ञान - शरीर संगठन

मानव शरीर विज्ञान - शरीर संगठन | Human Physiology – Body Organization


 

मानव शरीर विज्ञान प्रस्तावना- 

  • मनुष्य शरीर अत्यन्त दुर्लभ माना गया है, किन्तु इस शरीर को प्राप्त करने में कुछ विशेष शुभ संकल्पों अथवा कर्मों की आवश्यकता होती है। ऋषि और मनीषियों का मानना है, कि यह जन्म और शरीर विभिन्न जन्मान्तरों के पुण्यों का परिणाम होता है। लौकिक दृष्टि से कहें अथवा आध्यात्मिक दृष्टि से मनुष्य को अपने लक्ष्य के लिये अथवा मुक्ति को प्राप्त करने के लिये स्वस्थ मन एवं शरीर की नितान्त आवश्यकता होती है।

 

  • मनुष्य शरीर के अन्दर दो प्रकार की क्रियाएं सदैव चलती रहती हैं। निर्माण संबधी तथा विनाश संबंधी, शरीर की कोशिकायें जो शरीर की सबसे छोटी इकाई है, अपनी पूर्ण आयु अथवा पूर्ण अवस्था को प्राप्त कर लेने पर स्वतः ही नष्ट हो जाती हैं, और उनके स्थान पर नयी कोशिकाओं का निर्माण होता है। बाल्यावस्था में यह निर्माण सम्बन्धी प्रक्रिया तेज होती है तथा विनाश सम्बन्धी प्रक्रिया धीमी होती है। निर्माण संबधी प्रक्रिया के फलस्वरूप यह शरीर वृद्धि को प्राप्त होता है, वृद्धि को प्राप्त करता हुआ युवा बन जाता है। युवावस्था में ये प्रक्रियायें लगभग समान रहती हैं। तथा उस समय यह शरीर कुछ समय के लिये एक सा बना रहता है । परन्तु वृद्धावस्था में निर्माण की प्रक्रिया की अपेक्षा विनाश की प्रक्रिया तेज होती जाती है। परिणामस्वरूप यह शरीर धीरे- धीरे घटता जाता है। इस प्रकार निरन्तर विनाश को प्राप्त करता हुआ यह शरीर अन्त में वृद्धावस्था के उपरान्त मृत्यु को प्राप्त हो जाता है और मृत्यु को प्राप्त होना उसका धर्म है तथा यह संसार की नियति भी है। इस प्रकार अनेक छोटी छोटी इकाईयों से - मिलकर बना यह मानव शरीर उत्कृष्टता की अनमोल कृति है।  

मानव शरीर संगठन- एक परिचय- 

मनुष्य शरीर अनेक अवयवों का सम्मिलित रूप है। जिस प्रकार एक मशीन अनेक कलपुर्जों से मिलकर बनी है। उसी प्रकार हमारा शरीर भी अनेक अंग अवयवों से मिलकर बना है। हमारा शरीर अनेकों कोशिकाओं से मिलकर बना है। कोशिका शरीर की सबसे छोटी इकाई होती है। ये कोशिकायें शरीर में असंख्य मात्रा में होती है। कोशिकाओं को सूक्ष्मदर्शी यन्त्र के माध्यम से ही देखा जा सकता है। इन कोशिकाओं मे स्वयं वृद्धि करने का गुण पाया जाता है। मनुष्य का जन्म केवल दो कोशिकाओं की वृद्धि से ही होता है। ये कोशिकायें हैं क्या? यह जानने के लिये इनका विस्तृत अध्ययन करना अनिवार्य है -

 

1 शरीर की सबसे छोटी इकाई - कोशिका (Cell) 

  • शरीर की प्रत्येक कोशिका एक तरल (जैली) पदार्थ से बनी है। उसे जीवद्रव्य कहते हैं। जीवद्रव्य के बीच में एक केन्द्रक होता है। केन्द्रक, कोशिका का महत्वपूर्ण भाग होता है। केन्द्रक जनन आदि क्रियाओं पर नियंत्रण रखता है, केन्द्रक में Genes होते है। ये R.N.A तथा D.N.A से मिलकर बनती है। ये जीन्स पैतृक गुणों के संवहन का कार्य करते हैं, इनके द्वारा ही कोशिका अपने जैसी अन्य कोशिकायें उत्पन्न करती है। कोशिकायें विकास के कुछ समय बाद नष्ट भी होती है, तथा फिर पुनः नयी कोशिका का निर्माण होता रहता है। इस तरह कई कोशिकायें मिलकर ऊतक का निर्माण करती हैं।

 

2 कोशिका का समूह - ऊतक (Tissue) 

  • मनुष्य शरीर में भिन्न-भिन्न कार्यों का सम्पादन अलग- अलग प्रकार की कोशिकाएं करती है। एक ही प्रकार की बहुत सी कोशिकाओं से मिलकर जो संरचना बनती है, वह ऊतक कहलाता है।

  

  • एक ही तरह के बहुत से ऊतक मिलकर एक अंग विशेष का निर्माण करते हैं, जैसे शरीर में मस्तिष्क के निर्माण में तंत्रिका कोशिकायें भाग लेती हैं, इनसे पहले ऊतक बनता है और फिर ऊतकों के समूह से मिलकर मस्तिष्क और तंत्रिका तंत्र का निर्माण करते हैं। रचना के अनुसार ऊतक (Connective Tissue) जो शरीर के अंगों को परस्पर जोड़े रखने में सहायक है, अस्थि ऊतक जो कि अस्थि का निर्माण करते हैं, उपकला ऊतक (Epithelial Tissue) त्वचा या अंगों की बाहरी त्वचा का निर्माण करता है। इसी प्रकार तंत्रिका ऊतक तथा पेशी ऊतक अपना - अपना कार्य करते हैं, बहुत से ऊतक मिलकर शरीर के अंग और शरीर के तंत्र (System) का निर्माण करते हैं, और इस तंत्र (System) से मिलकर पूरे शरीर का निर्माण होता है।

 

शरीर के विभिन्न भाग- 

मानव शरीर के चार मुख्य भाग होते हैं। जिनका विवरण इस प्रकार है - 

1. सिर - 

  • मस्तिष्क मानव शरीर का महत्वपूर्ण भाग है जिसके दो भाग किये जा सकते हैं। जिनमें (1) खोपड़ी तथा (2) चेहरा दो भागों में बाँटा जा सकता है।

 

I. खोपड़ी - 

  • खोपड़ी सिर के ऊपरी तथा पिछले भाग की हड्डी का वह आवरण (कोष्ठ) है जिसमें 'मस्तिष्क' सुरक्षित रहता है। खोपड़ी के इस भाग को कपाल भी कहा जाता है।

 

II. चेहरा (Face) - 

  • चेहरा के अन्तर्गत नाक, कान, आँख, मुख तथा ललाट व दोनों जबड़ों की गणना की जाती है। ज्ञानेन्द्रियों में चार चेहरे के अन्तर्गत आती है।

 

2. ग्रीवा ( Neck ) - 

  • गर्दन सिर को धड़ से जोड़ती है। ग्रीवा सिर तथा धड़ के बीच का भाग है, गर्दन के पीछे रीढ़ की हड्डी तथा आगे की ओर टैंटुआ तथा इनके मध्य में ग्रास नली स्थित है। इस प्रकार शरीर के इस छोटे से भाग में भोजन प्रणाली के अंग तथा श्वसन संस्थान के अंग स्थित रहते हैं।

 

3. धड़ (Trunk ) - 

  • गर्दन के नीचे का भाग धड़ कहलाता है। धड़ के दो उपविभाग हैं- (1) ऊपरी भाग वक्षस्थल (2) निचला भाग पेट (उदर) कहलाता है।

 

  • धड़ के इन दोनों भागों को विभाजित करने वाली एक पेशी है, जिसे डायफ्राम कहते है। यह पेशी धड़ के मध्य में एक सिरे से दूसरे सिरे तक फैली होती है। वक्षस्थल के अन्तर्गत फेफड़े तथा हृदय मुख्य अंग हैं, तथा उदर में आमाशय, यकृत, प्लीहा, वृक्क (गुर्दे), छोटी तथा बड़ी आँ श्रोणि मेखला स्थित है।

 

4. शाखायें (Limbs) -

  • धड़ के ऊपरी भाग से दो शाखायें (हाथ) कन्धों की हड्डियों से जुड़े रहते हैं। इनके भी दो उप विभाग हैं- दायाँ (Right) बायाँ (left) धड़ के निम्न भाग में श्रोणी मेखला से दो शाखायें अर्थात् टाँगों के भी दायें व बायें दो भाग हैं।

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