श्वसनतंत्र की क्रियाविधि | Machanism of Respiratory System

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श्वसनतंत्र की क्रियाविधि

श्वसनतंत्र की क्रियाविधि



श्वसनतंत्र की क्रियाविधि (Machanism of Respiratory System) 

  • जिस समय नासिका से श्वास लिया जाता है उस समय बाह्य वातावरण से वायु नासिका एवं नासिका गुहा में प्रवेश करती है। नासिका में गुहा में उपस्थित सूक्ष्म रोम केशों का जाल धूल एवं धुंए के कणों को छान देता है। यहां पर उपस्थित संवेदी नाड़ियां वायु की गन्ध का ज्ञान मस्तिष्क को करती है। यहां से आगे यह वायु ग्रसनी में पहुंच जाती है। ग्रसनी में उपस्थित कण्ठच्छद (Epiglottis) अन्न नलिका के द्वार को बन्द कर देता है जिससे यह वायु स्वर यन्त्र से होती हुई श्वास नलिका में चली जाती है। श्वास नलिका में रोमिकाएं पायी जाती है तथा यहां पर श्लेष्मा ग्रन्थियां श्लेष्मा का स्रावण करती रहती है। इसके परिणामस्वरूप वायु धुंएसूक्ष्म जीव आदि इस नलिका में चिपक जाते हैं। 

  • श्वासनलिका से वायु क्रमशः दाहिने एवं बाएं फेफड़ों में भर जाती है। श्वास नलिका से श्वसनी एवं श्वसनी से श्वसनिकाओं में होती हुई यह वायु आगे चलकर वायु कोषों में भर जाती है। वायु भरने के कारण ये वायुकोष फूल जाते हैं। ये वायुकोष एककोशीय दीवारों के बने होते हैं तथा इन वायुकोषों के मध्य रक्तवाहिनीयों का घना जाल उपस्थित होता है। इन रक्तवाहिनियों में हृदय से आया कार्बन डाई आक्साइड की अधिकता युक्त अशुद्ध रक्त भरा होता है। इस प्रकार यहाँ वायुकोषों एवं रक्त वाहिनियों के मध्य गैसों का आदान प्रदान होता है। 
  • गैसों के आदान-प्रदान के परिणामस्वरूप बाह्य वायु मण्डल की आक्सीजन रक्तवाहिनीयों में चली जाती है एवं रक्त वाहिनियों में उपस्थित कार्बन डाई आक्साइड वायु कोषों में भर जाती है। तत्पश्चात वायुकोषों से कार्बनडाई आक्साइड श्वसनिकाओं मेंश्वसनिकाओं से श्वसनी मेंश्वसनी से श्वासनलिका मेंश्वासनलिका से स्वर यन्त्रग्रसनी से होती हुई नासिका के माध्यम से बाह्य वायुमण्डल में भेज दी जाती हैश्वसन की यह क्रिया निःश्वसन कहलाती है।

 

श्वसन दर (Respiratory Rate) - 

  • एक मिनट में एक मनुष्य जितनी संख्या में श्वास-प्रश्वास की क्रिया करता हैश्वसन दर कहलाती है। बाल्यावस्था के प्रथम पाँच वर्षों में शरीर का विकास तेज होने के कारण श्वसन दर तीव्र जो आगे चलकर (व्यस्क अवस्था) 16-18 श्वास प्रति मिनट स्थिर हो जाती है। एक नवजात शिशु की श्वसन दर प्रति मिनट 40 होती हैयह श्वसन दर उम्र बढ़ने के साथ कम होती हुई 16-18 श्वास प्रति मिनट पर स्थिर हो जाती है। स्त्रियों में पुरूषों की तुलना में श्वसन दर कुछ अधिक होती है। इस श्वसन दर पर कार्यपरिस्थितिस्थान आदि कारक सीधा प्रभाव रखते हैं। स्वच्छ वातावरण एवं शान्त अवस्था में श्वसन दर कम हो जाती है जबकि इसके विपरित प्रदूषित वातावरणक्रोध एवं चिड़चिड़ाहट की स्थिति में श्वसन दर बढ़ जाती है।

 

  • मनुष्यों में श्वसन क्रिया स्वचलित रुप में चलती रहती है। इस क्रिया पर कुछ काल तक एैच्छिक नियंत्रण सम्भव होता हैकिन्तु शरीर की कोशिकाओं में कार्बन डाई ऑक्साइड की मात्र बढ़ने पर श्वास लेने के लिये बाध्य होना पडता है। मनुष्य में श्वसन क्रिया का नियन्त्रण मस्तिष्क में स्थित मेड्यूला नामक स्थान से होता है। शरीर की विभिन्न अवस्थाओं में यह केन्द्र श्वसन दर को कम एवं अधिक बनाता हैं। शरीर के अधिक क्रियाशील होने पर श्वसन दर बढ़ जाती है जबकि शरीर द्वारा कार्य नही करने की दशा में श्वसन दर कम हो जाती है। कठिन श्रम की अवस्था में भी श्वसन दर बढ़ जाती है। बाह्य जीवाणु अथवा रोगाणु से संक्रमण की अवस्था में जब शरीर का तापक्रम बढ़ जाता है तब ऐसी अवस्था में श्वसन दर बढ़ जाती है। पहाड़ों में ऊँचे स्थानों पर जाने पर अथवा आक्सीजन की कमी वाले स्थानों पर जाने पर श्वसन दर बढ़ जाती है। क्रोधभय एवं मानसिक तनाव आदि विपरित अवस्थाओं में श्वसन दर त्रीव हो जाती है। इसके विपरीत सहज एवं सकारात्मक परिस्थितियों में श्वसन दर कम एवं श्वास की गहराई बढ़ जाती है। श्वसन दर त्रीव होने पर फेफड़े तेजी से कार्य करते हैं किन्तु इस अवस्था में फेफड़ों का कम भाग ही सक्रिय हो पाता हैजबकि लम्बी एवं गहरी श्वसन क्रिया में फेफडों का अधिकतम भाग सक्रिय होता है जिससे फेफड़ें स्वस्थ बनते हैं।

 

वायु की धारिता: 

एक मनुष्य द्वारा प्रत्येक श्वास में जिस मात्रा में वायु ग्रहण की जाती है तथा प्रश्वास में जिस मात्रा में वायु छोड़ी जाती है इस मात्रा की नाप वायु धारिता कहलाती है। इसे नापने के लिए स्पाइरोमीटर (Spirometer) नामक यंत्र का प्रयोग किया जाता है। मनुष्य की वायु धारिता के कुछ महत्वपूर्ण बिन्दुओं का वर्णन इस प्रकार है-

 

1. प्राण वायु (Tidal volume) वायु की वह मात्रा जो सामान्य श्वास में ली जाती है तथा सामान्य प्रश्वास में छोड़ी जाती है प्राण वायु कहलाती है। यह मात्रा 500 एम एल होती है। यह मात्रा स्त्री और पुरुष दोनों में समान होती है। 

2 प्रश्वसित आरक्षित ( Inspiratory Reserve Volume) - सामान्य श्वास लेने के उपरान्त भी वायु की वह मात्रा जो अतिरिक्त रूप से ग्रहण की जा सकती है।

प्रश्वसित आरक्षित आयतन कहलाती है। वायु की यह मात्रा 3300 एम एल होती है।

3. निश्वसित आरक्षित आयतन (Expiratory Reserve Volume)- सामान्य प्रश्वास छोड़ने के उपरान्त भी वायु की वह मात्रा जो अतिरिक्त रूप से बाहर छोड़ी जा सकती हैनिश्वसित आरक्षित आयतन कहलाती है। वायु की यह मात्रा 1000 एम एल होती है।

4. अवशिष्ट आयतन ( Residual Volume) - 

हम फेफड़ों को पूर्ण रूप से वायु से रिक्त नहीं कर सकते अपितु गहरे प्रश्वास के उपरान्त भी वायु की कुछ मात्रा फेफड़ों में शेष रह जाती हैवायु की यह मात्रा अवशिष्ट आयतन कहलाती है। वायु की इस मात्रा का आयतन 1200 एम एल होता है।

 

5 फेफड़ों की प्राणभूत वायु क्षमता (Residual Volume) 

गहरे श्वास में ली गयी वायु तथा गहरे प्रश्वास में छोड़ी गयी वायु का आयतन फेफड़ों की प्राणभूत वायु क्षमता कहलाती है। वायु की यह मात्रा 4800 एम एल होती है।

 

6 फेफड़ों की कुल वायु धारिता (Total lung capacity) - 

फेफड़ों द्वारा अधिकतम वायु ग्रहण करने की क्षमता फेफड़ों की कुल वायु धारिता कहलाती है। वायु की यह मात्रा 6000 एम एल होती है।

 

आन्तरिक श्वसन: 

  • आपने जाना कि बाह्य श्वसन तंत्र के माध्यम से बाह्य वायुमण्डल से वायु (आक्सीजन) फेफड़ों की वायुकोषों में भर जाती है। यहां पर गैसों के आदान-प्रदान की क्रिया होती है। यहीं से आन्तरिक श्वसन तंत्र की संरचना का प्रारम्भ होता है। आन्तरिक श्वसन तंत्र को ऊतकीय श्वसन के नाम से भी जाना जाता है। यह श्वसन क्रिया का अत्यन्त महत्वपूर्ण भाग है क्योंकि यहां से यह वायु रक्त के साथ मिल जाती है तथा रक्त के साथ परिभ्रमण करती हुई सम्पूर्ण शरीर की कोशिकाओं में फैल जाती है। वितरण के उपरान्त यह वायु भोजन रस (ग्लूकोज) के दहन की क्रिया में उपभोग में ले ली जाती है तथा दहन (आक्सीकरण) की क्रिया में कार्बनडाई आक्साइड गैस की उत्पत्ति होती इस कार्बनडाईआक्साइड गैस को कोशिकाओं एवं ऊतकों से रक्त के माध्यम पुनः फेफड़ों में लाया जाता है। 

आन्तरिक श्वसन के प्रकार 

  • आन्तरिक श्वसन का अर्थ भोजन से उत्पन्न रस (ग्लूकोज) के दहन एवं दहन की क्रिया में उत्पन्न ऊर्जा से होता है। आन्तरिक श्वसन के फलस्वरुप शरीर के अन्दर स्थित कोशिकाएं ऊर्जा प्राप्त करती हैं। इस क्रिया में भोजन से प्राप्त ग्लूकोज का दहन होता है। आन्तरिक श्वसन की क्रिया में ग्लूकोज का दहन दो प्रकार से होता है - 

(क) आक्सी श्वसन (Aerobic Respiration) 

जब कोशिका में आक्सीजन उपस्थित होती है तब आक्सीजन की उपस्थिति में ग्लूकोज का पूर्ण रूप से आक्सीकरण होता है तथा इस क्रिया में जल के साथ-साथ अधिकतम ऊर्जा की उत्पत्ति होती है। ग्लूकोज के एक अणु के आक्सी श्वसन के परिणामस्वरूप 38 ए.टी.पी. की उत्पत्ति होती है। मनुष्य की अधिकांश कोशिकाओं में आक्सी श्वसन की क्रिया के परिणामस्वरूप ऊर्जा उत्पन्न होती है।

 (ख) अनाक्सी श्वसन

  • जब कोशिका में आक्सीजन की उपस्थिति नहीं होती किन्तु शरीर को तुरन्त ऊर्जा की अत्यधिक आवश्यकता होती है। ऐसी अवस्था में कोशिका ग्लूकोज का दहन आक्सीजन की अनुपस्थिति में ही कर देती है। यह क्रिया अनाक्सी श्वसन कहलाती है। इस क्रिया में ग्लूकोज का आंशिक विघटन होता है तथा ग्लूकोज के एक अणु के दहन के परिणामस्वरूप बहुत कम ऊर्जा (2 ए.टी.पी.) की ही उत्पत्ति होती है। मनुष्य शरीर में अनाक्सी श्वसन कठिन श्रम की अवस्थातेज भागनेकठिन व्यायाम की अवस्था में होता है।

 

  • इस प्रकार अनाक्सी श्वसन के परिणामस्वरूप लैक्टिक एसिड की उत्पत्ति होती है इस लैक्टिक एसिड की अधिकता पेशियों में थकावट उत्पन्न करती है।

 


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