पादप वृद्धि एवं परिवर्धन प्रश्न उत्तर
प्रश्न 1. वृद्धि , विभेदन, परिवर्धन, निर्विभेदन, पुनर्विभेदन, सीमित वृद्धि, मेरिस्टेम तथा वृद्धि दर की परिभाषा दें।
उत्तर-
वृद्धि-
- किसी कोशिका, अंग अथवा जीव शरीर के आकार एवं आयतन में होने वाला स्थायी व अनुक्रमणीय परिवर्तन जिसके परिणामस्वरूप उसका शुष्क भार बढ़ता है, वृद्धि कहलाता है।
विभेदन
- सरल, अविभेदित, विभज्योतक कोशिकाओं में किसी विशिष्ट कार्य के लिए होने वाले रूपान्तरण को विभेदन (Differentiation) कहते हैं।
परिवर्धन-
- किसी जीव पादप के जीवन चक्र में आने वाले वे सारे परिवर्तन जो बीजांकुरण से जरावस्था के बीच आते हैं, परिवर्धन कहलाते हैं। व्यापक तौर पर परिवर्धन को वृद्धि एवं विभेदन के योग के रूप में माना जाता है।
निर्विभेदन-
- कुछ जीवित विभेदित कोशिकाएँ विशेष परिस्थितियों में विभाजन की क्षमता पुनः प्राप्त कर लेती हैं। यह क्रिया निर्विभेदन (Dedifferentation) कहलाती है।
पुनर्विभेदन-
- जब निर्विभेदित कोशिकाओं या ऊतकों में पुनः विभेदन होता है जिससे अमुक कोशिका या ऊतक विशिष्ट कार्य के अनुरूप विकसित हो जाता है तो इसे पुनर्विभेदन (Redifferentiation) कहते हैं।
सीमित वृद्धि -
- ऐसी वृद्धि जिसमें पौधों के अंग विशेष में एक निश्चित आकार ग्रहण करने के बाद वृद्धि रूक जाती हैं, सीमित वृद्धि कहलाती है। पौधों सीमित एवं असीमित दोनों प्रकार की वृद्धि देखने को मिलती है। पौधों की पत्तियों, पुष्पों व फलों में सीमित वृद्धि होती है जबकि जड़ व तनों में असीमित वृद्धि की क्षमता होती है।-
मेरिस्टेम
- कोशिकाओं का वह समूह जिसमें विभाजन की क्षमता होती है या विभाजित हो रही हो या होने वाली हों, मेरिस्टेम या विभज्योतक कहलाती हैं। इनके द्वारा पौधे की प्राथमिक एवं द्वितीयक वृद्धि होती है।
वृद्धि दर
- इकाई समय में होने वाली वृद्धि, वृद्धि दर कहलाती है। इसे अंकगणित व ज्यामितीय दोनों प्रकार से व्यक्त कर सकते हैं।
प्रश्न 2. पुष्पीय पौधों के जीवन में किसी एक प्राचालिक
(पैरामीटर) से वृद्धि को वर्णित नहीं किया जा सकता है, क्यों ?
उत्तर - पुष्पीय पौधों में वृद्धि, जीवद्रव्य मात्रा में वृद्धि का परिणाम है। चूँकि जीवद्रव्य की वृद्धि को सीधे मापना अत्यन्त कठिन है। अतः वृद्धि को विभिन्न मापदण्डों, जैसे- ताजा भार, शुष्क भार, लम्बाई, क्षेत्रफल, आयतन तथा कोशिकाओं की संख्या द्वारा मापा जाता है। इनमें से कोई एक पैरामीटर पौधे की वृद्धि नापने हेतु आवश्यक जानकारी उपलब्ध नहीं करा सकता। अतः इसी कारण से किसी एक पैरामीटर से वृद्धि को वर्णित नहीं किया जा सकता।
प्रश्न 3. संक्षिप्त वर्णन कीजिए-
(i) अंकगणितीय वृद्धि, (ii) वृद्धि, (iii) सिग्मॉयड वृद्धि
वक्र, (iv) सम्पूर्ण तथा सापेक्ष वृद्धि दर
उत्तर-
(i) अंकगणितीय वृद्धि (Arithmetic Growth) -
इस प्रकार की वृद्धि में वृद्धि दर प्रारम्भ से अन्त समान या अपरिवर्ती है। यह वृद्धि अंकगणितीय श्रेणी (जैसे2 46 8) में होती है। इस वृद्धि दर का समय के साथ ग्राफ एक रैखिक वक्र प्राप्त होता है।
(ii) ज्यामितीय वृद्धि (Geometric Growth)-
इस प्रकार की वृद्धि प्राय: सूक्ष्मजीवों एवं एक कोशिकीय जीवों में देखने को मिलती है। इसमें पहले प्रत्येक कोशिका विभाजित होती है फिर सभी सन्तति कोशिकाएँ वृद्धि करके विभाजन करती हैं। इसमें प्रारम्भ में वृद्धि भीगे होती है, परन्तु इसके बाद चार पातकी दर से तीव्र हो जाती है। इस वृद्धि दर का समय के साथ ग्राफ सिग्मॉयड वक्र प्राप्त होता है।
(iii) सिग्मॉयड वृद्धि वक्र (Sigmoid Growth Curve) -
प्राकृतिक वातावरण की वृद्धि एक s आकृति के वक्र द्वारा प्रदर्शित होती है जिसे सम्मसिट वक्र कहते हैं। इस वक्र की प्रमुख प्रावस्थाएँ है-लैग फेज, लॉग फेज, डिक्लाइन फेज तथा स्टैडी फैज.
(iv) सम्पूर्ण (Absolute) तथा सापेक्ष (Relative) वृद्धि दर
किसी
जीव या उसके अंगों में इकाई समय में होने वाली पूर्ण वृद्धि सम्पूर्ण वृद्धि दर
कहलाती है जबकि किसी प्रणाली तन्त्र में प्रति इकाई समय पर वृद्धि की सामान्य आधार
पर प्रकट करना, सापेक्ष वृद्धि दर कहलाता है।
प्रश्न 5. ऐब्सीसिक एसिड को तनाव हॉर्मोन कहते हैं? क्यों?
उत्तर- ऐब्सीसिक एसिड प्राकृतिक रूप से पाया जाने वाला एक वृद्धि संदमक (Growth inhibitor) हॉर्मोन है जो पादप उपापचय में निरोधक का कार्य करता है। यह बीजों के अंकुरण का विरोध करता है तथा बाह्यत्वचीय पट्टिकाओं में रन्ध्र को बन्द रखता है। इस प्रकार यह पौधों में विभिन्न प्रकार के तनाव को सहने की क्षमता तथा प्रतिकूल वातावरणीय दशाओं का सामना करने की सामर्थ प्रदान करता है। इसी कारण इसे तनाव कहा जाता है।
प्रश्न 6. उच्च पादपों में वृद्धि एवं विभेदन खुला होता है, टिप्पणी करें।
उत्तर- पौधों में जीवनभर असीमित वृद्धि की क्षमता होती है। ये क्षमता उन्हें मेरिस्टेम ऊतकों की विभाजन क्षमता एवं निरंतरता के कारण उपलब्ध होती है। अतः इस प्रकार की वृद्धि जहाँ पर मेरिस्टेम की क्रियात्मकता से पौधे के शरीर में सदैव नई कोशिकाओं को जोड़ा जाता है, वृद्धि का खुला स्वरूप कहा जाता है।
प्रश्न 7. अगर आपको ऐसा करने को कहा जाए तो एक पादप वृद्धि नियामक का नाम दें-
(i) किसी टहनी में जड़ पैदा करने हेतु,
(ii) फल को जल्दी पकाने हेतु,
(iii) पत्तियों की जरावस्था को रोकने हेतु,
(iv) कक्षस्थ कलिकाओं में वृद्धि कराने हेतु,
(v) एक रोजेट पौधे में 'वोल्ट' हेतु,
(vi) पत्तियों के रन्ध्र को तुरन्त बन्द करने हेतु।
उत्तर- (I) ऑक्सिन (IIT) एथिलीन (III) साइटोकाइनिन, (iv) साइटोकाइनिन, (v) जिबरेलिन,
(vi) ऐब्सीसिक एसिड (ABA)।
प्रश्न 8. क्या हो सकता है, अगर-
(i) जी ए (GA3) को धान के नवोद्भिदों पर छिड़क दिया जाए,
(ii) विभाजित कोशिका विभेदन करना बन्द कर दें,
(iii) एक सड़ा फल कच्चे फलों के साथ मिला दिया जाए,
(iv) अगर आप संवर्धन माध्यम में साइटोकाइनिन्स डालना भूल जाएं।
उत्तर- (i) जी ए को धान के नवोद्भिदों पर छिड़कने से, धान नवोद्भिद के इण्टरनीड या पर्व लम्बे हो जायेंगे परिणामस्वरूप नवोद्भिद की ऊँचाई बढ़ जाएगी।
(ii) यदि विभाजित कोशिकाएँ विभेदन करना बन्द कर दें तो पौधे के विभिन्न अंग; जैसे- पत्तियाँ, तना, जड़ आदि का निर्माण नहीं हो पाएगा तथा अविभेदित कोशिकाओं का समूह कैलस कहलाएगा।
(iii) यदि एक सड़ा फल कच्चे फलों के साथ मिला दिया जाए तो सड़े हुए फल से उत्पन्न एथिलीन गैस कच्चे फलों को पका देगी।
(iv) अगर हम संवर्धन माध्यम में साइटोकाइनिन्स डालना
भूल जाएँ तो कोशिका विभाजन, वृद्धि एवं विभेदन दिखाई नहीं देगा।
प्रश्न 1. पादप वृद्धि की कुल कितनी अवस्थाएँ हैं? उनके नाम लिखिए।
उत्तर- पादप वृद्धि की कुल तीन प्रावस्थाएँ होती हैं-
(i) कोशिका निर्माण प्रावस्था,
(ii) कोशिका-विवर्धन प्रावस्था तथा
(iii) परिपक्वन अथवा विभेदन प्रावस्था।
प्रश्न 2. पौधों की वृद्धि के लिए आवश्यक दशाएँ लिखिए।
उत्तर- पौधों की वृद्धि के लिए प्रमुख आवश्यक दशाएँ/कारक हैं- पोषक तत्वों की आपूर्ति, कार्बन/ नाइट्रोजन अनुपात, उचित तापमान, पर्याप्त जल, ऑक्सीजन व प्रकाश आदि।
प्रश्न 3. पादप वृद्धि नियन्त्रक या फाइटोहॉर्मोन्स से क्या आशय है?
उत्तर- पादपों में वृद्धि एवं विभेदन का नियमन उनमें निर्मित होने वाले कुछ विशेष रसायनों द्वारा होता है जो अत्यन्त सूक्ष्म मात्रा में प्रयुक्त होने पर भी उनकी वृद्धि एवं परिवर्धन को अत्यधिक प्रभावित करते हैं। ये रसायन पादप वृद्धि नियन्त्रक या फाइटोहॉर्मोन्स कहलाते हैं; जैसे-ऑक्सिन, जिबरेलिन, साइटोकाइनिन आदि।
प्रश्न 4. वृद्धि निरोधक हॉर्मोन्स किसे कहते हैं?
उत्तर- पौधों की वृद्धि को रोकने वाले हॉर्मोन वृद्धि
निरोधक हॉर्मोन कहलाते हैं। ऐब्सीसिक अम्ल (ABA) एक वृद्धि निरोधक
हॉर्मोन है।
पादप वृद्धि एवं परिवर्धन लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. पौधों में वृद्धि के प्रमुख चरण कौन-कौन से हैं? संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर- पौधों में वृद्धि के प्रमुख तीन चरण हैं-
(1) कोशिका निर्माण या विभाजन प्रावस्था (Phase of cell formation or division ) - इस प्रावस्था में समसूत्री विभाजन द्वारा कोशिकाओं की संख्या बढ़ती है। इस प्रावस्था में वृद्धि की गति धीमी रहती है।
(2) कोशिका विवर्धन या दीर्घन प्रावस्था (Phase of cell elongation ) - इस प्रावस्था में कोशिकाओं की लम्बाई, आयतन एवं भार में वृद्धि होती है। इस प्रावस्था में वृद्धि तेजी से होती है।
(3) कोशिका विभेदन या परिपक्वन प्रावस्था (Phase of cell differentiation or maturation)-
इस प्रावस्था में कोशिकाएँ एक निश्चित आकार ग्रहण करके
स्थायी रूप धारण कर लेती हैं। इस प्रावस्था में वृद्धि की गति धीमी परन्तु स्थिर
होती है।
प्रश्न 2. समग्र वृद्धि काल से आपका क्या तात्पर्य है? समझाइए।
उत्तर- पौधों में वृद्धि की गति कभी भी एक जैसी नहीं रहती।
प्रारम्भ में वृद्धि की गति बहुत धीमी होती है। इसके पश्चात् यह अत्यन्त तीव्र
होकर एक उच्चतम सीमा पर पहुँच जाती है तथा फिर धीरे-धीरे कम होकर बिल्कुल रुक जाती
है। अगर इस वृद्धि दर का समय के साथ ग्राफ खींचा जाए तो यह 'S' की आकृति का
प्राप्त होता है। इसे ही सिग्मॉयड वक्र कहते हैं तथा पौधे की पूर्ण वृद्धि में लगे
कुल समय को समग्र वृद्धि काल कहते हैं।
प्रश्न 3. ऑक्सिन के दो प्रकार्यात्मक प्रभावों (Physiological effects) को समझाइए । उत्तर- ऑक्सिन के प्रकार्यात्मक प्रभाव - (1) शीर्षस्थ प्रभाविता- अनेक पौधों में शीर्षस्थ प्रभाविता पाई जाती है अर्थात् जब तक पौधे पर शीर्षस्थ (अग्रस्थ) कलिका रहती है तब तक पाश्र्व कलिकाओं की वृद्धि नहीं होती तथा शीर्षस्थ कलिका को काट देने पर अन्य पार्श्व कलिकाओं की वृद्धि होने लगती है। उसका कारण अग्रस्थ कलिका में ऑक्सिन उत्पन्न होना है जो अन्य पार्श्व कलिकाओं में पहुँच कर उनकी वृद्धि को रोक देता है। शीर्षस्थ कलिका को काट देने पर ऑक्सिन का प्रभाव समाप्त हो जाता है परिणामस्वरूप पार्श्व कलिकाएँ वृद्धि करने लगती हैं।
(2) जड़ों का निर्माण-कायिक जनन के समय पौधों की कलम के निचले सिरे को ऑक्सिन के तनु घोल में डुबोकर लगाने पर जड़ें शीघ्र निकलती हैं।
प्रश्न 4. जिबरेलिन के कार्य लिखिए।
जिबरेलिन के उपयोग एवं महत्व लिखिए।
उत्तर- (1) बौनी जाति के पौधों पर जिबरेलिन्स के छिड़काव से पौधे विशेष रूप से लम्बे हो जाते हैं।
(2) इनके छिड़काव से द्विवर्षी पौधों को एकवर्षी पौधों में परिवर्तित किया जाता है।
(3) ये पौधों में पुष्पन एवं फलों के परिवर्द्धन में सहायता पहुँचाते हैं।
(4) इनके प्रयोग से छोटे दिन वाली अवस्थाओं में भी लम्बे दिन वाले पौधों में पुष्पन प्रेरित किया जा सकता है।
(5) गन्ने की फसल पर इनके प्रयोग द्वारा पौधों के आकार तथा शर्करा पैदावार में वृद्धि की जा सकती
(6) इनका उपयोग बीज रहित अंगूर के उत्पादन में किया जाता
है।
प्रश्न 6. बीज अंकुरण से आप क्या समझते हैं ? यह कितने प्रकार का होता है ?
उत्तर- एक ऐसी भौतिक रासायनिक प्रक्रिया जिसके अन्तर्गत बीज के अन्दर उपस्थित प्रसुप्त भ्रूण, सक्रिय होकर एक शिशु पौधे को जन्म देता है, बीज अंकुरण कहलाती है। बीज अंकुरण दो प्रकार का होता है-
(1) अधोभूमिक बीज अंकुरण (Hypogeal seed germination)-
इस प्रकार का अंकुरण चना, मटर आदि में पाया जाता है। इसमें बीजपत्राधर (हाइपोकोटाइल) की वृद्धि रुक जाती है तथा बीजपत्रोपरिक (एपीकोटाइल) सक्रिय होकर लम्बाई में वृद्धि करता है, परन्तु बीजपत्र भूमि सतह के नीचे रह जाते हैं।
(2) उपरिभूमिक बीज अंकुरण (Epigeal seed germination)-
इस प्रकार का
अंकुरण अण्डी, सेम, मूंगफली आदि में पाया जाता है। इसमें
हाइपोकोटाइल तेजी से वृद्धि करता है, परिणामस्वरूप
बीजपत्र भूमि सतह से बाहर निकल आते हैं।
प्रश्न 8. बीज अंकुरण को प्रभावित करने वाले किन्हीं चार बाह्य कारकों का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर-
(1) जल (Water) - बीजों के अंकुरण के लिए जल अति आवश्यक है। जल अवशोषित करके बीज की जैविक क्रियाएँ तीव्र हो जाती हैं, साथ ही बीजांकुरण में भाग लेने वाले विकर भी सक्रिय होकर बीज को अंकुरित होने में मदद करते हैं।
(2) प्रकाश (Light) - अधिकांश बीज प्रकाश में अंकुरण नहीं करते लेकिन कुछ बीजों के अंकुरण के लिए यह अति आवश्यक कारक है।
(3) तापमान (Temperature ) - अंकुरण के लिए प्रत्येक पौधे को एक अनुकूल तापमान की आवश्यकता होती है।
(4) ऑक्सीजन (Oxygen)- ऑक्सीजन अंकुरण के लिए बहुत आवश्यक है जो अंकुरण के समय वातावरण से प्राप्त होती है।