कोशिका चक्र एवं कोशिका विभाजन | Cell Cycle and Cell Division

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 कोशिका चक्र एवं कोशिका विभाजन (Cell Cycle and Cell Division)

कोशिका चक्र एवं कोशिका विभाजन | Cell Cycle and Cell Division


 

 कोशिका चक्र एवं कोशिका विभाजन

  • वृद्धि और प्रजनन जीवधारियों के प्रमुख लक्षण हैं। सभी बहुकोशिकीय जीवधारी अपने जीवन का आरम्भ एक कोशिका से करते हैं। इसमें निरन्तर विभाजन व वृद्धि होते रहने से उनका शरीर वृद्धि करता है। प्रत्येक कोशिका में कोशिकाद्रव्य (cytoplasm) तथा केन्द्रक (nucleus) उपस्थित होता है। इनमें एक घनिष्ठ सम्बन्ध होता है तथा कोशिका की निरन्तर वृद्धि के कारण एक ऐसी स्थिति आ जाती है जब केन्द्रकद्रव्य एवं कोशिकाद्रव्य के मध्य सम्बन्ध टूट जाता है। इस प्रकार मातृ कोशिका (mother cell) सन्तति कोशिकाओं (daughter cells) में विभक्त हो जाती है। प्रकार मातृ कोशिका से सन्तति कोशिकाओं के निर्माण को ही कोशिका विभाजन (cell divison) और इस प्रक्रिया के दौरान कोशिका जिन क्रमबद्ध अवस्थाओं से गुजरती है उस अवस्थाओं के क्रम को कोशिका चक्र (cell cycle) कहते हैं।

 

कोशिका चक्र Cell Cycle 

  • कोशिका चक्र के बारे में सबसे पहले हावर्ड तथा पेले (Howard and Pele; 1953) ने बताया। यह वह प्रक्रिया है जिसमें कोशिकाएँ अपना जीनोम (genome) द्विगुणित करके तथा कोशिका अवयवों का निर्माण करके विभाजित होकर सन्तति कोशिकाओं का निर्माण करती हैं। इस प्रकार कोशिका विभाजन चक्र जीवन का चक्र है। सभी घटनाएँ व अवस्थाएँ जोकि कोशिका विभाजन से सम्बन्धित है आनुवंशिक रूप से जीन द्वारा नियन्त्रित होती हैं।

 

कोशिका चक्र एवं कोशिका विभाजन | Cell Cycle and Cell Division


कोशिका चक्र की अवस्थाएँ Phases of Cell Cycle 

  • कोशिका चक्र में मुख्यतया दो अवस्थाएँ होती हैं। विभाजन प्रारम्भ होने से पूर्व की अवस्था विभाजनान्तराल अवस्था (interphase) तथा विभाजन (dividing) अवस्था। विभाजनान्तराल अवस्था G₁, S तथा G2 से मिलकर बनी होती हैजबकि विभाजन अवस्था में केन्द्रक विभाजन व कोशिका द्रव्य विभाजन प्रावस्थाएँ होती है। 

कोशिका चक्र की विभिन्न प्रावस्थाएँ निम्न चित्र में दर्शाई गई हैं-

  • समसूत्री विभाजन (mitotic division) के अन्त में एक केन्द्रक दो केन्द्रकों में विभाजित हो जाता है जिससे एक मातृ- कोशिका से दो पुत्री कोशिकाओं का निर्माण होता है। कुल कोशिका चक्र समय में से 10-20 घण्टे विभाजनान्तराल अवस्था में लगते हैं तथा 1-2 घण्टे विभाजन अवस्था में लगते हैं। 

(i) G₁-प्रावस्था (G₁-Phase or first gap or Post mitotic phase) 

  • इस प्रावस्था में DNA संश्लेषण के लिए जिन विकरों (enzymes) की आवश्यकता होती है उनका संग्रह एवं संश्लेषण होता है तथा प्रोटीन तथा RNA भी बनता है। इसमे उपापचयी दर अधिक होती है। इसमें कोशिका चक्र का 30%-40% तक समय लगता इस प्रावस्था में गुणसूत्र लम्बी व पतली अवस्था में पाए जाते हैं। इस समय ये किसी प्रकार के अभिरंजक (stain) को ग्रहण नहीं करते हैं। ये सभी गुणसूत्र एक-दूसरे पर लिपटे रहते हैं। इस समय इन्हें गुणसूत्र जालक (chromatin reticulum) कहते हैं। 

G₁-प्रावस्था के अन्त में कोशा के लिए दो विकल्प होते हैं- 

  • यह S-प्रावस्था में प्रवेश करती है अथवा Go-अवस्था में आ जाती है। 
  • Go अविभाजित (non-dividing) प्रावस्था है। इसकी अवधि कोशा की प्रकृति के आधार पर भिन्न होती है। अधिकांश तन्त्रिका कोशाओं व पेशी कोशाओं में यह अवस्था पूर्ण वयस्क जीवन तक रहती है। Go-अवस्था कोशिकाओं में वह अवस्था है जब उनमें विभेदन (differentiation) होना आरम्भ होता है तथा ये कोशिकाएँ ऊतकों में बदलना प्रारम्भ कर देती हैं। Go-अवस्था (Quiscent-stage) को निष्क्रिय चरण या प्रशान्त अवस्था भी कहते हैं। 
  • Go-अवस्था की कोशिकाएँ, आरक्षित कोशिकाओं की भाँति होती हैं। ये कोशिकाएँ किसी कोशिका के अवयव को संश्लेषित नहीं करती, परन्तु उपापचयी रूप से सक्रिय रहती है। इनमें कोशिका विभाजन के लिए, उत्प्रेरक; जैसे-माइटोजन (mitogen) तत्व नहीं पाए जाते हैं।

 

(ii) S-प्रावस्था (S-phase or Synthesic phase) 

  • इस प्रावस्था में हिस्टोन प्रोटीन्स तथा DNA संश्लेषित होता है अर्थात् DNA की मात्रा 2C-4C हो जाती हैं यह प्रावस्था G₁ के बाद आती है। इस अवस्था में गुणसूत्र द्विगुणित होता है अथवा प्रत्येक गुणसूत्र से दो अर्द्धगुणसूत्र बन जाते हैं। इस प्रावस्था में कोशिका चक्र का 30-50% समय लगता है। इसमें हेलिकेस एन्जाइम (helicase enzyme) DNA की दोनों कुण्डलियों को पृथक् करने में सहायक होता है तथा DNA का द्विगुणन अर्द्धपरिमित (semiconservative) विधि से होता है।

 

(iii) G₂-प्रावस्था (G₂-phase or Premitotic phase) 

  • S-प्रावस्था के बाद G₂-प्रावस्था में कोशिका अगले कोशिका विभाजन की तैयारी करती है। इस प्रावस्था में उन सभी यौगिकों (DNA को छोड़कर) का संश्लेषण होता है, जोकि कोशिका विभाजन के लिए आवश्यक (जैसे-टयूब्यूलिन प्रोटीन) है। इस प्रावस्था में 10-20% का समय लगता है।

 

(iv) M-प्रावस्था (Dividing phase or Mitotic phase)

यह अवस्था G₂-प्रावस्था के बाद आती है। यह वास्तविक कोशिका विभाजन की बुनियादी अवस्था (basic phase) है। इस अवस्था में पूर्ण कोशिका चक्र का 5-10% समय लगता है। 

इसे मुख्यतया दो उप-अवस्थाओं में विभाजित करते हैं- 

(a) केन्द्रक विभाजन (Karyokinesis) यह केन्द्रक का विभाजन है। शब्द 'कैरियोकाइनेसिस' स्कनीडर (Schneider) ने सन् 1887 में दिया। यह पुनः निम्न प्रावस्थाओं में विभाजित होती है 

  1. पूर्वावस्था (Prophase) 
  2. मध्यावस्था (Metaphase) 
  3. पश्चावस्था (Anaphase) 
  4. अन्त्यावस्था (Telophase)

 

(b) कोशिकाद्रव्य विभाजन (Cytokinesis) 

  • इस प्रावस्था में कोशिकाद्रव्य का विभाजन होता है। शब्द 'साइटोकाइनेसिस' विट्दैन (Whitman) ने सन् 1887 में दिया। पादप कोशिका मे कोशिकाद्रव्य विभाजन कोशिका प्लेट (cell plate) बनने से तथा जन्तु कोशिका में कोशिकाद्रव्य विभाजन कोशिका झिल्ली के अन्तर्वलन (invagination) से होता है।

 

कोशिका चक्र का नियन्त्रण  

  • कोशिका चक्र का नियन्त्रण प्रोटीन काइनेज तथा साइक्लिन डिपेन्डेन्ट काइनेज (Cyclin dependent kinases or Cdks) द्वारा होता है। प्रोटीन काइनेज को मैचुरेशन प्रोमोटिंग फैक्टर (MPF) भी कहा जाता है। इसकी अपचयन इकाई (catalytic unit) ATP के फॉस्फेट समूह को प्रोटीन के सीरीन और थ्रियोनिन मे पहुँचाता है तथा रेगुलेटरी इकाई को साइक्लिन कहते हैं। Cdks एक निश्चित साइक्लिन द्वारा सक्रिय होता है। 

कोशिका चक्र में नियन्त्रण की विभिन्न अवस्थाएँ होती है जोकि निम्न प्रकार है-  

(a) G₁-प्रावस्था G₁ एवं S अवस्था के मध्य स्थित होता है इसका नियन्त्रण Cdk4 या साइक्लिन तथा Cdk6, आदि द्वारा होता है। 

(b) G₂-प्रावस्था G₂M अवस्था के मध्य होता है इसका नियन्त्रण Cdk2 या साइक्लिन b या M अवस्था प्रोत्साहक कारक (M-phase Promoting Factor or MPF) द्वारा होता है। 

(c) मध्यावस्था (Metaphase) यह मध्यावस्था तथा पश्चावस्था के मध्य पायी जाती है इसका नियन्त्रण साइक्लिन b के विखण्डन से सम्बन्धित है।

 

कोशिका विभाजन Cell Division 

  • एककोशिकीय जीवों में कोशिका विभाजन का अर्थ प्रजनन से है, जबकि बहुकोशिकीय जीवों में यह शरीर की वृद्धि क्षतिग्रस्त भागों की मरम्मत तथा जनन में सहायक है। कोशिका विभाजन दो प्रकार का होता है। समसूत्री विभाजन (mitosis) एवं अर्द्धसूत्री विभाजन (meiosis) समसूत्री विभाजन कायिक एवं जनन कोशिकाओं तथा अर्द्धसूत्री विभाजन जनन कोशिकाओं में पाया जाता है। समसूत्री विभाजन तथा अर्द्धसूत्री विभाजन का नामकरण सन्तति कोशिकाओं में गुणसूत्रों की संख्या के आधार पर दिया गया है । 

 

समसूत्री विभाजन Mitosis 

  • सूत्री विभाजन की खोज डब्ल्यू फ्लेमिंग (W Flemming) ने सन् 1882 में की और इसे माइटोसि नाम दिया। यह विभाजन जनन कोशिकाओं के अतिरिक्त सभी प्रकार की कायिक कोशिकाओं (somatic cells) में पाया जाता है। इसमें पुत्री कोशिकाओं में गुणसूत्रों की संख्या मातृ के गुणसूत्रों की संख्या के बराबर होती है। 
  • प्याज के मूल शीर्ष (root tip) में सूत्री विभाजन का अध्ययन सरलता से किया जा सकता है।

 

समसूत्री विभाजन को दो भागों में बाँटा जा सकता है 

(i) केन्द्रक विभाजन 

(ii) कोशिकाद्रव्य विभाजन

 

केन्द्रक विभाजन Karyokinesis 

केन्द्रक विभाजन में कोशिका चक्र के पूरे समय का 5-10% समय लगता है। सूत्री विभाजन की इस अवस्था में निम्नलिखित प्रावस्थाएँ आती है-  

पूर्वावस्था Prophase 

(a) यह विभाजन की प्रथम अवस्था है। (चित्र 27.3 B) 

(b) गुणसूत्र पतले, तन्तुओं के समान लम्बे रहते हैं, परन्तु कुण्डलित होकर छोटे व स्पष्ट होने लगते हैं। 

(c) प्रत्येक गुणसूत्र दो अर्द्धगुणसूत्रों बना का होता है जो एक-दूसरे पर लिपटे रहते हैं, अर्द्धगुणसूत्र गुणसूत्र बिन्दु पर जुड़े रहते हैं। 

(d) गुणसूत्रों पर क्रोमोमीयर (chromomere) कणिकाएँ दिखाई देने लगती हैं तथा गुणसूत्र के चारों ओर मैट्रिक्स (matrix) एकत्रित हो जाता है। 

(e) अन्त में केन्द्रक झिल्ली व केन्द्रिका विलोपित (disappear) हो जाते हैं।

 

मध्यावस्था Metaphase 

(a) मध्यावस्था पूर्वावस्था से अपेक्षाकृत छोटी होती है। (चित्र 27.3 C) 

(b) गुणसूत्र मध्य रेखा (equatorial plane) पर एकत्र होते हैं तथा एक तर्क उपकरण का निर्माण होता है जिसे केन्द्रिकीय तर्क (nuclear spindle) कहते हैं। 

(c) तर्कु तन्तुओं का निर्माण सूक्ष्म नलिकाओं से होता है तथा ये ट्यून्यूलिन (tubuline) प्रोटीन के बने होते हैं। 

(d) तन्तु, जो एक ध्रुव से दूसरे ध्रुव पर निरन्तर (continuous) होते हैं, उन्हें सर्पोटिंग तन्तु (supporting fibres) या नॉन-काइनेटोकोर तन्तु कहते हैं। 

(e) अन्य तन्तु, जो ध्रुवों से चलकर गुणसूत्रों के गुणसूत्र बिन्दु से जुड़े रहते हैं, उन्हें ट्रेक्टाइल तन्तु (tractile fibres) या काइनेटोकोर तन्तु कहते हैं। प्राणी कोशिकाओं में तारककाय (centrosome) से दो तारककेन्द्र (centriole) पृथक् होकर विपरीत ध्रुवों पर पहुँचते हैं तथा इनसे प्रोटीन की तारकीय किरणें (astral rays) निकलती हैं। ये पादप कोशिकाओं ने नहीं होती यद्यपि पादप कोशिकाओं में ट्रेक्टाइल तन्तु बनते हैं। 

(f) कुछ समय पश्चात् प्रत्येक गुणसूत्र बिन्दु दो भागों में विभाजित हो जाता है। 

(g) एक गुणसूत्र से उत्पन्न दो अर्द्धगुणसूत्र एक-दूसरे से अलग होने लगते हैं।

 

पश्चावस्था Anaphase 

(a) समसूत्री विभाजन की अन्य अवस्थाओं को देखते हुए यह सबसे छोटी होती है। इस अवस्था में अर्द्धगुणसूत्र (chromatids) अलग हो जाते हैं। (चित्र 27.3 D) 

(b) इस समय गुणसूत्र U, V या L का आकार लेना प्रारम्भ कर देते हैं गुणसूत्र का आकार गुणसूत्र बिन्दु पर निर्भर करता है। 

(c) गुणसूत्रों के अलग होने का प्रमुख कारण सन्तति गुणसूत्र के मध्य एक प्रकार का प्रतिकर्षण बल (repulsive force) उत्पन्न होना हो सकता है और इस कारण ट्रेक्टाइल तन्तुओं का ध्रुवों की ओर खिंचाव भी हो सकता है। 

(d) इस प्रकार गुणसूत्रों के आधे लम्बान अर्द्ध भाग अर्थात् अर्द्धगुणसूत्र तर्कु के एक ध्रुव की ओर तथा शेष आधे विपरीत दिशा में स्थित दूसरे ध्रुव की ओर चले जाते हैं। इन अर्द्धगुणसूत्रों को सन्तति गुणसूत्र (daughter chromosomes) कहते हैं।

 

अन्त्यावस्था Telophase 

(a) गुणसूत्र विपरीत ध्रुवों पर पहुँचकर एकत्रित हो जाते हैं। (चित्र 27.3 E) 

(b) केन्द्रक झिल्ली व केन्द्रिका पुनः प्रकट हो जाते हैं। 

(c) अतः सम्पूर्ण प्रक्रिया में एक कोशिका से दो पुत्री केन्द्रक बन जाते हैं। 

(d) तर्क समाप्त होना प्रारम्भ हो जाता है। 


कोशिकाद्रव्य विभाजन Cytokinesis 

केन्द्रक विभाजन के बाद कोशिकाद्रव्य का विभाजन होता है। यह दो प्रकार से होता है, इसे चित्र (27.4) में प्रदर्शित किया गया है।

 

(1) कोशिका खाँच द्वारा (By cell furrow) 

जन्तु कोशिकाओं में कोशिका भित्ति नहीं होती। इसलिए केवल कोशिका कला की बनी बाहरी पर्त काफी लचीली होती है। कोशिका के मध्य भाग पर कोशिका कला चारों ओर से धँसना शुरू होती है। फलस्वरूप, दोनों कोशिकाएँ अलग-अलग हो जाती है व दो सन्तति कोशिकाएँ (daughter cells) बन जाती है।

 

(ii) कोशिका प्लेट द्वारा (By cell plate)

पौधों की कोशिकाओं में कोशिका भित्ति होने के कारण बाहरी पर्त (कोशिका कला कोशिका भित्ति) काफी दृढ़ होती है। ऐसी स्थिति में कोशिकाद्रव्य को विभाजित करने के लिए कोशिका के बीचोंबीच एक कोशिका प्लेट बनती है और परिधि की ओर बढ़ती जाती है। अन्त में दो कोशिकाएँ बन जाती है।

 

समसूत्री विभाजन का महत्त्व Importance of Mitosis 

(1) एककोशिकीय जीवों में अलैंगिक जनन मुख्य रूप से इस विधि से होता है। 

(ii) इससे मातृ व पुत्री कोशिकाओं में गुणसूत्रों की संख्या समान रहती है। 

(iii) कायिक शरीर का निर्माण, जीवों की वृद्धि तथा घावों का भरना, आदि प्रक्रियाएँ समसूत्री विभाजन द्वारा होती है। 

(iv) इस विभाजन द्वारा बनने वाली सन्तति कोशिकाओं तथा जनकीय कोशिकाओं में गुणसूत्रों और आनुवंशिक लक्षणों में अन्तर नहीं होता। अतः यह प्रत्येक पीढ़ी में गुणसूत्रों की संख्या अनुरक्षित (maintain) करता है।

 

कोशिका विभाजन  प्रमुख तथ्य 

समसूत्री व अर्द्धसूत्री विभाजन में मध्यावस्था में गुणसूत्रों का अध्ययन करते हैं, क्योंकि इस अवस्था में गुणसूत्र एक संगठित रूप से पाए जाते हैं। 

काइनेटोकोर (kinetochore) से तर्कुतन्तु जुड़कर कोशिका विभाजन में गुणसूत्रों के विभाजन में सहायता करते हैं। 

कोशिका विभाजन प्रक्रिया पर तापमान का प्रभाव पड़ता है जितना तापमान अधिक होगा सूत्री विभाजन उतने कम समय में पूर्ण होगा तथा कम तापक्रम पर अधिक समय में पूर्ण होगा।

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