ठोसों में संकुलन | Packing in Solids in Hindi

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 ठोसों में संकुलन  (Packing in Solids in Hindi)

ठोसों में संकुलन | Packing in Solids in Hindi


 

 ठोसों में संकुलन

ब्रह्माण्ड का प्रत्येक तंत्र स्थायित्व की ओर अग्रसर है। अत: क्रिस्टल निर्माण भी स्थायित्व के लिए होता है। क्रिस्टल के रचक अवयव इस प्रकार संकुलित (pack) होते हैं कि उनका घनत्व व स्थायित्व अधिकतम रहे। क्रिस्टलों के रचक अवयव आकार में भिन्न होते हैं, अतः उनका संकुलन भी ज्यामिति के अनुसार भिन्न होता है। ठोसों के क्रिस्टल में यह संकुलन दो प्रकार का होता है-

 

(1) द्विविमीय निविड संकुलन (Two-dimensional close packing) 

(2) त्रिविमीय निविड संकुलन (Three-dimensional close packing)

 

संकुलन में समन्वय संख्या की जानकारी भी आवश्यक है।

 

समन्वय संख्या या उपसहसंयोजन संख्या (Co-ordination Number or Lattice Co-ordination Number) - 

  • किसी क्रिस्टल जालक में कोई परमाणु अपने निकटतम जितने परमाणुओं या पड़ोसियों से घिरा रहता है उसे उस परमाणु की समन्वय संख्या कहते हैं। यह किसी त्रिविम (space) जालक की विशिष्टता है तथा क्रिस्टल जालक मॉडल के निरीक्षण से इसका मान ज्ञात किया जा सकता है। सरल घनीय जालक की समन्वय संख्या का मान 6, काय केन्द्रित घनीय जालक की समन्वय संख्या का मान 8 तथा फलक केन्द्रित घनीय जालक की समन्वय संख्या का मान 12 होता है। 
  • इसी प्रकार द्विविमीय जालकों में भिन्न-भिन्न समन्वय संख्या होती है।

 

द्विविमीय निविड संकुलन (Two-dimesional Close Packing) 

किसी तल में क्रिस्टल के रचक अवयवों का संकुलन द्विविमीय संकुलन कहलाता है। रचक अवयव गोलाकार (spherical) जाते हैं। द्विविमीय संकुलन दो प्रकार के हो सकते हैं-

 

(1) वर्गाकार निविड संकुलन (Square Close Packing) - 

इस प्रकार के संकुलन में प्रत्येक पंक्ति के गोले (रचक अवयव) अपने से नीचे वाले गोलों की सीध में होते हैं (चित्र 1.7)। इस संकुलन में समन्वय अंक चार होता है। 

(2) षट्भुजाकार निविड संकुलन (Hexagonal Close Packing) - 

इस प्रकार के संकुलन में प्रत्येक पंक्ति के गोले अपने से नीचे वाली पंक्ति के गोलों से बने छिद्रों पर रखे जाते हैं । इस संकुलन में समन्वय अंक छः होता है।

 

षट्भुजाकार संकुलन वर्गाकार संकुलन की तुलना में अधिक घना (dense) है। वर्गाकार संकुलन में कुल 52.4 प्रतिशत स्थान गोलों द्वारा घिरा होता है जबकि षट्भुजीय संकुलन में 60.4 प्रतिशत ।

 

त्रिविमीय निविड संकुलन (Three-dimensional Close Packing) 

सभी क्रिस्टल त्रिविमीय होते हैं। त्रिविमीय निविड संकुलन में द्विविमीय निविड संकुलित गोलों के ऊपर गोले या उन पर बने छिद्रों पर गोले रखकर क्रमशः परतें बनती जाती हैं। चूँकि द्विविमीय संकुलन दो प्रकार के होते हैं, अतः त्रिविमीय संकुलन भी दो प्रकार के होते हैं। 

(1) वर्गाकार द्विविमीय निविड संकुलन से त्रिविमीय निविड संकुलन 

  • इस त्रिविमीय संकुलन में द्विविमीय वर्गाकार संकुलित गोलों के ठीक ऊपर गोले रखे होते हैं। अर्थात् प्रत्येक तल अपने नीचे वाले तल के गोलों के ऊपर गोले रखकर बनता है। इस संकुलन से सरल घनीय जालक (simple cubic lattice) बनता है। इस जालक का एकक सेल प्राथमिक घनीय एकक सेल कहलाता है। इसका समन्वय अंक छः होता है. 

 

(2) षट्भुजीय या षट्कोणीय द्विविमीय निविड संकुलन से त्रिविमीय निविड संकुलन 

  • षट्भुजाकार द्विविमीय संकुलन वाले तल के गोलों से बने छिद्रों पर गोले रखकर द्वितीय परत बनती है। प्रथम परत A तथा द्वितीय परत B कही जा सकती है। द्वितीय परत के गोलों के रखने पर दो प्रकार के छिद्र उत्पन्न होते हैं-समचतुष्फलकीय (tetrahedral) (t) एवं अष्टफलकीय (Octahedral)। समचतुष्फलकीय छिद्र प्रथम परत के गोलों के ऊपर बनते हैं जबकि अष्टफलकीय छिद्र प्रथम परत के गोलों के छिद्रों पर बनते हैं। समचतुष्फलकीय छिद्र प्रत्येक परत के गोले बनाते हैं जबकि अष्टफलकीय छिद्र दो परतों के गोले मिलकर बनाते हैं . 
  • अब तृतीय परत के गोले दो प्रकार से द्वितीय परत के गोलों पर रखे जा सकते हैं। इससे संकुलन भी दो प्रकार का प्राप्त होता है।

 

(i) षट्भुजीय या षट्कोणीय निविड संकुलन (Hexagonal close packing -hep) - 

  • द्वितीय परत पर बने समचतुष्फलक छिद्रों पर तृतीय परत के गोले रखने से यह परत प्रथम परत के समान हो जाती है। अत: यह परत भी A परत होती है। चतुर्थ परत B के अर्थात् द्वितीय परत के समान हो जाती है। इस प्रकार यह संकुलन ABABAB... संकुलन भी कहलाता है। यह संकुलन षट्भुजीय (hexagonal) सममिति (symmetry) देता है। इस संकुलन में समन्वय संख्या 12 होती है। मैग्नीशियम (Mg), जिंक (Zn) आदि में यह संकुलन पाया जाता है।

 

(ii) घनीय निविड संकुलन (Cubic close packing-eep) - 

  • द्वितीय परत पर बने अष्टफलकीय छिद्रों पर तृतीय परत के गोले रखने से एक नये प्रकार की परत बनती है। यह परत प्रथम व द्वितीय किसी भी परत से समानता नहीं रखती है। इसे C परत कहते हैं । यहाँ चतुर्थ परत प्रथम परत से समानता रखती है। इस प्रकार यह संकुलन ABCABCABC ... संकुलन भी कहलाता है । यह संकुलन घनीय (cubic) सममिति देता है। इस संकुलन में समन्वय संख्या 12 होती है। कॉपर (Cu), सिल्वर (Ag) आदि में यह संकुलन पाया जाता है। इस संकुलन में एकक सेल फलक केन्द्रित घन (face centred cubic-fcc) होता है। 

 

ठोसों में संकुलन महत्वपूर्ण जानकारी  

  • काय केन्द्रित घनीय संकुलन (body centred cubic packing-bcc) भी ठोस क्रिस्टलों में पाया जाता है। इस संकुलन में प्रथम परत वर्गाकार द्विविमीय संकुलन के समान मानी जा सकती है। परन्तु इसमें गोले एक-दूसरे के सम्पर्क में न होकर कुछ दूरी पर होते हैं। द्वितीय परत प्रथम परत के छिद्रों पर गोले रखकर प्राप्त होती है। तृतीय परत प्रथम परत की पुनरावृत्ति (repetition) होती है। इस संकुलन में समन्वय संख्या आठ होती है। इस संकुलन के एकक सेल को काय केन्द्रित घन (body centred cube) कहा जाता है।

 

संकुलन दक्षता [Packing Efficiency] 

ठोस में अवयवी कणों को किसी भी प्रकार संकुलित किया जाए, उसमें कुछ रिक्त स्थान सदैव पाया जाता है। क्रिस्टलीय ठोस में कुल उपलब्ध स्थान का वह प्रतिशत अवयवी कणों द्वारा घिरा होता है उसकी संकुलन क्षमता कहलाता है।

 

(1) सरल घनीय जालक में संकुलन क्षमता (Packing Efficiency in Simple Cubic Lattice)

इस प्रकार के एकक सेल में घन के कोनों पर उपस्थित परमाणु एक-दूसरे के सम्पर्क में रहते हैं।   

(2) अंत्य-केन्द्रित घनीय जालक में संकुलन क्षमता (Packing Efficiency in Body Centred Cubic Lattice) - 

इस प्रकार के एकक सेल में घन के कोनों पर उपस्थित परमाणु एकक सेल केन्द्र पर उपस्थित परमाणु के साथ विकर्णीय सम्पर्क रखते हैं 

(3) घनीय निविड संकुलित अथवा फलक-केन्द्रित घनीय जालक में संकुलन क्षमता 

इस प्रकार के एकक सेल में घन के कोनों पर उपस्थित परमाणु एकक सेल के फलक केन्द्र पर उपस्थित परमाणु के साथ विकर्णीय सम्पर्क रखते हैं।  

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