पदार्थ की ठोस अवस्था रसायन विज्ञान | State if Solid in Hindi

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 पदार्थ की ठोस अवस्था रसायन विज्ञान

पदार्थ की ठोस अवस्था रसायन विज्ञान | State if Solid in Hindi



अवयवी कणों की गतिशीलता में पदार्थ की भौतिक अवस्था

  • पदार्थ के अवयवी (constituent) कण गतिशील रहते हैं। यह धारणा पदार्थ की गतिज धारणा (kinetic theory) कहलाती है। पदार्थ के अवयवी कणों की गतिशीलता के आधार पर इसे तीन भौतिक अवस्थाओं में वर्गीकृत किया गया है। अवयवी कणों की सर्वाधिक गतिशीलता में पदार्थ की भौतिक अवस्था गैस (gas) होती है जबकि निम्नतम गतिशीलता अर्थात् स्थिरता में पदार्थ की भौतिक अवस्था ठोस होती है। इनके मध्य की अवस्था द्रव अवस्था कहलाती है।

 

  • पदार्थ की गैस व द्रव अवस्था में अवयवी कणों के मध्य अन्तरकण (interparticle) बल दुर्बल होता है। पदार्थ की ठोस अवस्था में यह बल सबसे अधिक पाया जाता है। परिणामस्वरूप इस अवस्था में ठोस के कण गतिशील नहीं होते परन्तु अपने स्थान पर कम्पन (vibration) करते रहते हैं। अवयवी कणों की स्थिरता पदार्थ की ठोस अवस्था को दृढ़ता (rigidity) एवं निश्चित आकृति (shape) प्रदान करती है।

 

पदार्थ की ठोस अवस्था में निम्नलिखित सामान्य लक्षण पाये जाते हैं- 

(1) अवयवी कर्णो के मध्य प्रबल अन्तरकण बल। 

(2) अवयवी कणों के मध्य निम्नतम दूरी। 

(3) पदार्थ की निश्चित आकृति । 

(4) अवयवी कर्णो का स्थिर रहते हुए अपने स्थान पर कम्पन 

(5) दृढ़ता (rigidity) एवं असंपीडनीयता (non-compressibility)

 

  • हम ठोसों को द्रवों एवं गैसों की अपेक्षा अधिक उपयोग में लाते हैं। विभिन्न उपयोगों में भिन्न गुण वाले ठोसों की आवश्यकता होती है। ठोसों के गुण अवयवी कणों की प्रकृति एवं उनके मध्य उपस्थित बलों पर निर्भर करते हैं। अतः ठोसों की संरचना का अध्ययन महत्वपूर्ण है। संरचना एवं गुणों के मध्य सम्बन्ध वांछित गुणों वाले नये ठोस पदार्थों (जैसे- चुम्बकीय ठोस, पैकिंग के लिए जैव निम्नीकरणीय ठोस बहुलक, उच्च तापीय अतिचालक, शल्यक प्रत्यारोपण में काम आने वाले जैव सुनम्य ठोस आदि) की खोज में उपयोगी हैं।

 

क्रिस्टलीय एवं अक्रिस्टलीय ठोस 

ठोसों को रचक कणों की व्यवस्था के आधार पर दो भागों में बाँटा जाता है- 

(1) क्रिस्टलीय ठोस (Crystalline Solid) 

वे ठोस जिनमें उनकी रचक इकाई (constituent unit) (आयन या परमाणु या अणु) एक नियमित (regular) व क्रमिक रूप से व्यवस्थित रहती हैं, क्रिस्टलीय ठोस कहलाते हैं, जैसे-हीरा, सोडियम क्लोराइड, सोडियम सल्फेट, आयोडीन आदि। 

क्रिस्टलीय ठोसों के मुख्य लक्षण निम्नलिखित हैं 

(i) अवयवी घटक नियमित क्रम में व्यवस्थित होते हैं। 

(ii) ये तीक्ष्ण (sharp) एवं निश्चित गलनांक रखते हैं। 

(iii) क्रिस्टल निर्माण के समय बाहरी सतह भी नियमित क्रम दर्शाती है। 

(iv) ये विषमदैशिक (anisotropic) होते हैं।

 

(2) अक्रिस्टलीय ठोस (Non-crystalline Solid) 

वे ठोस जिनमें उनकी रचक इकाई नियमित व क्रमिक रूप से व्यवस्थित नहीं रहती है, अक्रिस्टलीय ठोस कहलाते हैं, जैसे- काँच, प्लास्टिक, रबर आदि ।

 

अक्रिस्टलीय ठोसों के मुख्य लक्षण निम्नलिखित हैं- 

(i) अवयवी घटक नियमित क्रम में व्यवस्थित नहीं होते हैं। 

(ii) ये तीक्ष्ण व निश्चित गलनांक नहीं रखते हैं। 

(iii) ठोस निर्माण के समय बाहरी सतह भी नियमित क्रम नहीं दर्शाती है। 

(iv) ये समदैशिक ( isotropic ) होते हैं।

 

क्रिस्टलीय तथा अक्रिस्टलीय ठोसों में अन्तर 

क्रिस्टलीय ठोस 

1. इन ठोसों में रचक इकाई नियमित व क्रमिक व्यवस्था रखती है। 

2. ठोस निर्माण में बाहरी सतह भी नियमितता दर्शाती है। 

3. ये निश्चित गलनांक रखते हैं। 

4. ये विषमदैशिक होते हैं।

5.यह वास्तविक (true) ठोस होते हैं। 

6. पैनी धार वाले हथियार से काटने पर ये ठोस कटी सतह पर भी रचक घटकों का नियमित क्रम रखते हैं।

 

अक्रिस्टलीय ठोस 

  1. रचक इकाई अनियमित व अक्रमिक व्यवस्था रखती है। 
  2. ठोस निर्माण में बाहरी सतह भी अनियमितता दर्शाती है। 
  3. ये निश्चित गलनांक नहीं रखते हैं। 
  4. ये समदैशिक होते हैं। 
  5. ये आभासी (pseudo) ठोस होते हैं। वास्तव में ये अतिशीतित द्रव होते हैं। 
  6. ये ठोस कटी सतह पर भी रचक घटकों का अनियमित क्रम रखते हैं, अर्थात् इनका विदलन नहीं होता है।

 

क्रिस्टलीय तथा अक्रिस्टलीय प्रमुख तथ्य 

1. अक्रिस्टलीय ठोसों की संरचना द्रवों के समान होती है। ये आभासी ठोस या अतिशीतित द्रव भी कहलाते हैं। 

2. गर्म करने पर एक निश्चित ताप पर अक्रिस्टलीय ठोस क्रिस्टलीय ठोस में परिवर्तित हो जाते हैं।

3. क्रिस्टलीकरण के कारणअति प्राचीन काँच की वस्तुओं में दूधियापन दिखायी देता है। 

4. अक्रिस्टलीय सिलिकन सूर्य के प्रकाश को विद्युत् में परिवर्तित करने वाला श्रेष्ठतम उपलब्ध प्रकाश वोल्टीय (photo- voltaic) पदार्थ है।

 

विभिन्न बन्धन बलों के आधार पर ठोसों का वर्गीकरण 

पदार्थों के कणों के मध्य बन्धन बल (binding force) इस तथ्य पर निर्भर करते हैं कि रचक घटकों की प्रकृति क्या है ? बन्धन के आधार पर क्रिस्टलीय ठोसों को चार भागों में वर्गीकृत किया जाता है।

 

(1) आयनिक ठोस (lonie Solid) 

आयनिक ठोस वे ठोस पदार्थ हैं जिनके क्रिस्टलों की संरचनात्मक इकाई आयन (धनायन व ऋणायन) होती है। उदाहरण- NaCl, CsCl, ZnCl2 आदि। NaCl में संरचनात्मक इकाई Na' Cl आयन होते हैं।

 

आयनिक ठोसों के लक्षण (Characteristics of Ionie Solids) 

आयनिक ठोसों के लक्षण (Characteristics of Ionic Solids ) - 

(i) ये ठोस धन व ऋण आवेश वाले आयनों से बने होते हैं। 

(ii) विपरीत आवेश वाले आयनों के मध्य कूलॉम (coulomb) आकर्षण बल होता है। अतः इन टोसों में बन्धन बल कूलॉम आकर्षण बल होता है। 

(iii) ये ठोस कठोर (hard) व भंगुर (brittle) प्रकृति रखते हैं। 

(iv) ये ठोस सूत्र इकाइयों (formula units) के मध्य भी प्रबल (strong) वैद्युत आकर्षण बल रखते हैं जिसके कारण ये उच्च गलनांक व उच्च क्वथनांक रखते हैं। 

(v) ये उच्च (high) वाष्पन ऊष्मा (heat of vaporisation) रखने के कारण अवाष्पशील (non-volatile) होते हैं। 

(vi) ये ध्रुवीय विलायकों (polar solvents) में विलेय होते हैं। 

(vii) ये ठोस अवस्था में विद्युत् के कुचालक (bad conductor) व विलयन या गलित (fused) अवस्था में विद्युत् के चालक होते हैं। ठोस अवस्था में आयन गतिशील नहीं होते हैं जबकि अन्य अवस्थाओं में गतिशील होते हैं।

 

(2) आण्विक ठोस (Molecular Solid) 

  • आण्विक ठोस वे ठोस पदार्थ होते हैं जिनके क्रिस्टलों की संरचनात्मक इकाई अणु होती है। उदाहरण-आयोडीन, टोस मीथेन, बर्फ आदि। 
  • आण्विक ठोसों में अणुओं के मध्य वाण्डर वाल्स (van der Waals) बल पाये जाते हैं। ध्रुवीय आण्विक ठोस, जैसे- ठोस कार्बन मोनोऑक्साइड (CO) द्विध्रुव-द्विध्रुव बन्धन बल भी रखते हैं। अध्रुवीय आण्विक ठोस, जैसे-टोस ऑक्सीजन (O2) लण्डन बन्धन बल रखते हैं। इसके अतिरिक्त कुछ आण्विक ठोस हाइड्रोजन बन्धन बल भी रखते हैं, जैसे- बर्फ (H2O), ठोस अमोनिया (NH3) | 

आण्विक ठोसों के लक्षण (Characteristies of Molecular Solids ) - 

(i) ये ठोस अणुओं द्वारा बने होते हैं। 

(ii) इन बेसों में अन्तरकण बन्धन बल वाण्डर वाल्स बल होता है। 

(iii) ये ठोस मुलायम (soft) होते हैं। 

(iv) रचक घटकों के मध्य दुर्बल वाण्डर वाल्स बल के कारण ये ठोस निम्न (low) गलनांक व निम्न क्वथनांक रखते हैं। 

(v) ये निम्न वाष्पन ऊष्मा रखने के कारण सामान्यतः वाष्पशील होते है। 

(vi) ध्रुवीय ठोस व अध्रुवीय ठोस क्रमशः ध्रुवीय व अध्रुवीय विलायकों में विलेय होते हैं। 

(vii) ये ऊष्मा व विद्युत् के कुचालक होते हैं।

 

(3) सहसंयोजी ठोस (Covalent Solid) 

सहसंयोजी ठोस वे ठोस पदार्थ होते हैं जिनकी संरचनात्मक इकाई परमाणु होती हैं। उदाहरण-हीरा (diamond), ग्रेफाइट, सिलिका, सिलिकॉन कार्बाइड आदि। इन ठोसों में परमाणुओं के मध्य सहसंयोजक बन्ध पाये जाते हैं। सहसंयोजक बन्धों के द्वारा इस प्रकार के ठोस विशाल (giant) अन्तरबन्धीय (interlocking) संरचना रखते हैं। अतः ये नेटवर्क ठोस (network solids) भी कहलाते हैं।

 

सहसंयोजक ठोसों के लक्षण (Characteristics of Covalent Solid) 

(i) ये ठोस परमाणुओं द्वारा बने होते हैं। 

(ii) इन ठोसों में सहसंयोजक अन्तरकण बन्धन होता है। 

(iii) ये अति कठोर व भंगुर होते हैं। 

(iv) नेटवर्क के कारण ये अत्यधिक उच्च गलनांक व क्वथनांक रखते हैं। 

(v) ये उच्च वाष्पन ऊष्मा रखने के कारण अवाष्पशील होते हैं। 

(vi) ये ऊष्मा व विद्युत् के कुचालक होते हैं।

 

(4) धात्विक ठोस (Metallic Solid) 

धात्विक ठोस वे ठोस पदार्थ होते हैं जिनकी संरचनात्मक इकाई धातु परमाणु (metal atoms) होती हैं। उदाहरण-कॉपर, रजत, निकिल आदि। इन ठोसों के परमाणुओं के मध्य धात्विक बन्ध पाये जाते हैं। धातु परमाणु, संयोजकता इलेक्ट्रॉनों के समुद्र में निश्चित ज्यामिति रखते हैं। संयोजकता इलेक्ट्रॉन त्यागने के पश्चात् परमाणु का शेष भाग धनावेशित हो जाता है। धनावेशित भाग व इलेक्ट्रॉनों के मध्य आकर्षण बल धात्विक बन्ध कहलाता है।

 

धात्विक ठोसों के लक्षण (Characteristics of Metallic Solids) - 

(i) ये ठोस धातु परमाणुओं द्वारा बने होते हैं। 

(ii) इन ठोसों में अन्तरकण बन्धन धात्विक बन्ध होता है। 

(iii) ये अति मुलायम से अति कठोर होते हैं। जैसे-सोडियम अति मुलायम व ऑस्मियम अति कठोर है। 

(iv) ये निम्न से उच्च गलनांक व क्वथनांक रखते हैं। 

(v) ये निम्न से उच्च वाष्पन ऊष्मा रखते हैं। 

(vi) ये ऊष्मा व विद्युत् के सुचालक होते हैं। 

(vii) ये तन्य (ductile) व आघातवर्धनीय (malleable) होते हैं।

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