रुधिर प्लेटलेट्स या थ्रोम्बोसाइट्स |रुधिराणुओं का जीवनकाल एवं उत्पति | Blood Plateletes or Thrombocytes

Admin
0

रुधिर प्लेटलेट्स या थ्रोम्बोसाइट्स (Blood Plateletes or Thrombocytes)

रुधिर प्लेटलेट्स या थ्रोम्बोसाइट्स |रुधिराणुओं का जीवनकाल एवं उत्पति | Blood Plateletes or Thrombocytes
 

रुधिर प्लेटलेट्स या थ्रोम्बोसाइट्स 

  • रुधिर प्लेटलेट्स केवल स्तनधारियों के रुधिर में पायी जाती हैं। मनुष्यों में इनकी संख्या 2-5 लाख प्रति घन मिमी रुधिर होती है। ये अतिसूक्ष्म (2-4µ व्यास की) केन्द्रकविहीनसंकुचनशीलगोल या अण्डाकार-सी उभयोत्तलतस्तरीनुमा होती है। ये पूर्ण कोशिकाएँ नहीं होती अपितु अस्थि मज्जा की कुछ कोशिकाओं (मेगाकैरियोसाइट्स) के विखण्डन से बने टुकड़ों के रूप में होती है। इसका प्रमुख कार्य रुधिर स्कंदन (clotting) में सहायता करना होता है। रुधिर स्कंदन या थ्रॉम्बस द्वारा रुधिर स्राव को रोकने की प्रक्रिया को हीमोस्टैसिस (hemostasis) कहते हैं।

 

स्पिण्डल कोशिकाएँ Spindle Cells 

  • ये कोशिकाएँ चपटी व तर्कुरूपी (spindle-shaped) होती हैं और संरचना में छोटे लिम्फोसाइट्स से मिलती हैं। ये स्तनधारियों के अतिरिक्त अन्य सभी कशेरुकी प्राणियों में पायी जाती हैं। इनका जीवद्रव्य कणिका विहीन (agranular) तथा केन्द्रक गोल अथवा अण्डाकार होता है। चोट लगने पर जब रुधिर केशिकाएँ फट जाती हैं तब ये रुधिर को जमाने में भाग लेती हैं। ये कोशिकाएँ भी अन्य प्रकार के श्वेत रुधिराणुओं के साथ विकसित होती हैं।

 

रुधिराणुओं का जीवनकाल एवं उत्पति 

Lifespan of Blood Corpuscles and Formation 

  • लाल रुधिराणु का जीवनकाल लगभग 120 दिन और कणिकामय श्वेत रुधिर कणिकाओं का 4 दिन होता हैजबकि कणिका रहित श्वेत रुधिराणु कुछ दिनों तक जीवित रहते हैं। रुधिर प्लेटलेट्स और स्पिण्डल कोशिकाओं का जीवनकाल मात्र 1-10 दिन तक होता है। छोटी आयु में शरीर की 1% लाल एवं 30% श्वेत रुधिराणु प्रतिदिन समाप्त होते हैं। कुछ संयोजी ऊतकों की सहायता से रुधिराणु प्रतिदिन उत्पन्न होते रहते हैं।

 

एरिथ्रोपॉइसिस Erythropoiesis 

  • भ्रूणीय अवस्था में रुधिराणुअस्थि मज्जापीतक स्यून (yolk sac), यकृततिल्लीलसिका गाँठों और थाइमस में बनते हैंपरन्तु वयस्क में अधिकांश रुधिराणुओं (जैसे लाल रुधिराणुकणिकामय श्वेत रुधिराणुमोनोसाइट्स तथा प्लेटलेट्स) का निर्माण केवल हाथ-पैरों की लम्बी हड्डियोंपसलियोंउरोस्थिकशेरुकाओं की हड्डियों की लाल अस्थि मज्जा में होता हैं। लिम्फोसाइट का निर्माण मुख्यतया थाइमस में और कुछ प्लीहा या लसिका गाँठों में भी होता है। लाल अस्थि मज्जा के संयोजी ऊतक की सूक्ष्म रुधिर वाहिनियों के बाहर उन कोशिकाओं का जमाव होता है जिनमें रुधिराणु बनते हैंये कोशिकाएँ भ्रूण की मीसेनकाइम से उत्पन्न होती है। इन्हें रुधिरोत्पादक वंश कोशिकाएँ (haemopoietic stem cells) कहते हैं।

 

रुधिर का थक्का जमना या स्कंदन 

Clotting or Coagulation of Blood 

  • चोट लगने के बाद घाव से रुधिर निकलता है और कुछ समय बाद रुधिर के जम जाने से रुधिर बहना बन्द हो जाता है तथा पीले रंग के द्रव की एक बूँद जमे हुए रुधिर के ऊपर दिखाई देती है। यह द्रव रुधिर प्लाज्मा होता है। इसे सीरम (serum) कहते हैं। चोट के स्थान पर जमे हुए रुधिर को थक्का (clot) कहते हैइस क्रिया में लगभग 10 मिनट का समय लगता है।

 

रुधिर के स्कंदन की क्रियाविधि Mechanism of Blood Clotting 

धक्का बनने की क्रिया घुलनशील रुधिर प्रोटीन फाइब्रिनोजन (जो सामान्य रूप से प्लाज्मा में घुला रहता है) के अघुलनशील तन्तु प्रोटीन फाइब्रिन ये परिवर्तित होने पर निर्भर करती है। इसके लिए होवेल (Howell) का सिद्धान सर्वाधिक मान्य है। रुधिर वाहिनियों में बहते रहने के लिए रुधिर का हिपेरिस नामक प्रतिस्कंदक पदार्थ रुधिर को तरल अर्थात् सॉल की दशा में बनाए रखता है। इसलिए हिपेरिन को एन्टीप्रोथ्रॉम्बिन भी कहते हैं। रुधिर के जमने की क्रियाविधि निम्नलिखित है-

 

  • (a) रुधिर के थक्का बनने की क्रिया एक जटिल क्रिया है। जब किसी स्थान से रुधिर बहने लगता है और यह वायु के सम्पर्क में आता हैतो रुधिर में उपस्थित थ्रॉम्बोसाइट्स टूट जाती हैं तथा इससे एक विशिष्ट रासायनिक पदार्थ मुक्त होकर रुधिर के प्रोटीन से क्रिया करता है तथा प्रोथ्रॉम्बोप्लास्टिन नामक पदार्थ में बदल जाता है। यह प्रोथ्रॉम्बोप्लास्टिन रुधिर के कैल्शियम आयन से क्रिया करके थ्रॉम्बोप्लास्टिन बनाती है। थ्रॉम्बोप्लास्टिनकैल्शियम आयन (Ca2+) तथा ट्रिप्टेज नामक एन्जाइम के साथ क्रिया करके निष्क्रिय प्रोथ्रॉम्बिन को सक्रिय थ्रॉम्बिन नामक पदार्थ में परिवर्तित कर देती है।

 

  • (b) यह सक्रिय थ्रॉम्बिन रुधिर के प्रोटीन फाइब्रिनोजन पर क्रिया करता है और उसे फाइबिन में परिवर्तित कर देता है। फाइब्रिन बारीक एवं कोमल तन्तुओं का जाल होता है। यह जाल इतना बारीक एवं सूक्ष्म होता है कि इसमें रुधिर के कणविशेषकर RBC, फँस जाते हैं और एक लाल ठोस पिण्ड-सा बन जाता हैं। इसे रुधिर थक्का कहते हैं। थक्का बनने से रुधिर का बहना रुक जाता है। रुधिर स्कंदन के बाद सीरम का निर्माण हो जाता हैं। सीरम का थक्का नहीं बन सकता क्योंकि इसमें फाइब्रिनोजन नहीं होता हैं। रुधिर में उपस्थित प्रतिस्कंदक हिपेरिनप्रोथ्रॉम्बिन के उत्प्ररेण को रोकता है।

 

रुधिर के थक्का बनने के दौरान होने वाली महत्त्वपूर्ण प्रक्रिया संक्षिप्त रूप में इस प्रकार है- 

  • थ्रॉम्बोप्लास्टिन + प्रोथ्रॉम्बिन + कैल्शियम = थ्रॉम्बिनथ्रॉम्बिन + फाइब्रिनोजन 
  • फाइब्रिनफाइब्रिन + रुधिर रुधिराणु = रुधिर का थक्का क्षतिग्रस्त ऊतक (लाइपोप्रोटीन + फॉस्फोलिपिड = थ्रॉम्बोप्लास्टिन (फैक्टर III) 
  • प्रोथॉम्बिन प्लाज्मा फैक्टर IV, V, VII, X ग्रॉम्बोप्लास्टिन → थ्रॉम्बिन 
  • फाइब्रिनोजन (विलयन) प्लाज्मा फैक्टर IV और XIII थ्रॉम्बिन → फाइब्रिन (ठोस) 
  • रुधिर वाहिका से निकाले गए रुधिर को जमने से बचाने के लिए उसमें थोड़ा-सा ऑक्जेिलेट (सोडियम अथवा पोटैश्मि ऑक्जेिलेट) मिलाया जाता है।

 

रुधिर के कार्य Functions of Blood 

(1)  ऑक्सीजन का परिवहन (Transport of O₂) फुस्फुस केशिकाओं के रुधिर में ऑक्सीजन विसरण द्वारा पहुँचाती है। इसका 2% तो प्लाज्मा में घुल जाता हैकिन्तु इसकी अधिकांश मात्रा लाल रुधिराणु में उपस्थित हीमोग्लोबिन से संयोग करके शरीर के विभिन्न भागों में पहुँचती है। ऑक्सीजन के अधिक सान्द्रता वाले भागों में हीमोग्लोबिन O₂ के साथ मिलकर अस्थायी यौगिक-ऑक्सीहीमोग्लोबिन (oxyhaemoglobin) बना लेता है Hb + O2 → HbO2 (ऑक्सीहीमोग्लोबिन) विभिन्न अंगों एवं ऊतकों में पहुँचने पर (जहाँ O₂ की मात्रा कम होती है)

(ii) ऑक्सीहीमोग्लोबिनऑक्सीजन तथा हीमोग्लोबिन में टूट जाता है और ऑक्सीजन ऊतकों द्वारा श्वसन के लिए ग्रहण कर ली जाती है। हीमोग्लोबिन की उपस्थिति के कारण रुधिर में सामान्य से लगभग 40 गुना अधिक ऑक्सीजन ले जाने की क्षमता होती है। 

(iii) कार्बन डाइऑक्साइड का निस्तारण (Disposal of CO₂) ऊतकों में उत्पन्न हुई CO2 रुधिर के प्लाज्मा में पहुँचकर सोडियम कार्बोनेट के साथ बाइकार्बोनेट यौगिक बना लेती है। 

(iv) पोषक पदार्थों का परिवहन (Transport of food material) पचा हुआ भोजन रुधिर के प्लाज्मा में मिल जाता है और शरीर के भिन्न-भिन्न भागों को पहुँचा दिया जाता है। 

(v) उत्सर्जी पदार्थों का परिवहन (Transport of the excretory products) शरीर के भिन्न-भिन्न भागों से उत्सर्जित पदार्थ रुधिर के प्लाज्मा में एकत्रित होते हैं और ये यकृत या वृक्कों में पहुँचा दिए जाते हैं। यकृत से यूरिया तथा जल की अतिरिक्त मात्रा भी वृक्कों में पहुँचायी जाती है। 

(vi) शरीर के ताप का नियमन (Regulation of body temperature) शरीर के कुछ भागों में उपापचय के कारण अधिक तापमान होता है तथा कुछ भागों में जो वायु के सम्पर्क में आते हैं हमेशा ताप कम होता रहता है। अतः समस्त अंगों का ताप समान रखने का कार्य रुधिर करता है। 

vii) रोग से बचाव (Defence against diseases) शरीर के किसी भाग पर हानिकारक जीवाणुओंविषाणुओंकवकों (fungi), परजीवी कृमियों (parasitic worms), आदि का आक्रमण होते ही रुधिर के श्वेत रुधिराणु इनका भक्षण करके इन्हें नष्ट करते हैं। रुधिर में उपस्थित प्रतिरक्षी विषैले तथा बाह्यहानिकारक पदार्थों एवं रोगजनक जीवाणुओं को निष्क्रिय करके इनका विघटन करते हैं।

 

  1. तरल संयोजी ऊतक शरीर का 8% भाग होता है। 
  2. हीमोग्लोबिन में हीम (4-5%) तथा प्रोटीन ग्लोबिन (96%) होता है। 
  3. RBCs की संख्या का निर्धारण हीमोसाइटोमीटर द्वारा होता है। 
  4. CO (कार्बन मोनो ऑक्साइड) हीमोग्लोबिन के प्रति 2 से 210 गुना ज्यादा बन्ध्यता रखती है और सान्द्रता अधिक होने पर मृत्यु तक सम्भव है।

 

लसिका Lymph 

  • लसिकारुधिर तथा ऊतक द्रव्य के बीच का पदार्थ हैजो ऊतकों में बाह्य कोशिकीय तरल (ECF) से रिसकर लसिका केशिकाओं में पहुँचता है। अतः रुधिरऊतक द्रव्य एवं लसिका में प्लाज्मा आधारभूत तरल होता है। लसिका में लाल रुधिर कणिकाएँ (RBCs) नहीं होती और रुधिर की अपेक्षा प्रोटीन भी काफी कम मात्रा में होती है। इसमें ग्लूकोसलवणअमीनो अम्लविटामिन्सयूरिया आदि उसी मात्रा में होते है जिस मात्रा में रुधिर में होते हैं। इसमें WBCs की संख्या रुधिर की अपेक्षा अधिक होती है। लिम्फोसाइट सबसे अधिक होते हैं।

 

लसिका के कार्य Functions of Lymph 

  • मूलरूप में लसिका तन्त्र का प्रमुख कार्य ऊतक द्रव्य से बड़ेकॉलाइडलीय कणोंटूटी-फूटी कोशिकाओं के कचरे तथा रुधिर के प्लाज्मा के उस अंश को रुधिर तन्त्र में लाना होता हैजो धमनी केशिकाओं (arterial capillaries) से निकलकर वापस इनके दूरस्थ भागों अर्थात् शिरा केशिकाओं (venous capillaries) में नहीं आ पाता। अतः यह तन्त्र परिसंचरण तन्त्र (circulatory system) का ही एक भाग होता है।

Post a Comment

0 Comments
Post a Comment (0)

#buttons=(Accept !) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Learn More
Accept !
To Top