संवहन ऊतक रुधिर रुधिराणु | Blood Vascular Tissue in Hindi

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 संवहन ऊतक रुधिर रुधिराणु 

संवहन ऊतक रुधिर रुधिराणु  | Blood Vascular Tissue in Hindi

संवहन ऊतक Vascular Tissue 

  • रुधिर तथा लसिका तरल ऊतक या संवहन ऊतक के अन्तर्गत आते हैं। जैव-विकास में जब शरीर के आकार एवं आयतन में वृद्धि हुई तो उनके रचनात्मक संगठन में जटिलता आती गई तथा इसके विभिन्न भागों के बीच पदार्थों का परिवहन आवश्यक हो गया। इसलिए स्पंजों, निडेरिया एवं एसीलोमेट एवं स्यूडोसीलोमेट के जन्तुओं को छोड़कर शेष सभी में एक संवहनीय तन्त्र का विकास हुआ। अधिकांश जन्तुओं में परिवहन का कार्य तरल ही करता है उच्च जन्तुओं में तरल रुधिर एवं लसिका का विकास हुआ। ये विशेष प्रकार के तरल संयोजी ऊतक हैं, जिनका कार्य सम्पूर्ण शरीर में परिसंचरण के द्वारा आवश्यक पदार्थों को अंगों तक पहुँचाना है।

 

रुधिर Blood Details in Hindi 

  • मनुष्य का रुधिर लाल, जल से 5 गुना भारी घनत्व (1.04-1.07) (चिपचिपा), अपारदर्शी, वाहक संयोजी ऊतक होता है, जिसकी श्यानता (viscosity) 4.7, स्वाद में नमकीन (pH 7.3-7.5) होता है। इसमें एक विशेष प्रकार की गन्ध भी होती है। यह रुधिर वाहिनियों एवं हृदय से होकर पूर्ण शरीर में निरन्तर परिक्रमा करता रहता है। सम्पूर्ण शरीर में इसके परिवहन हेतु मोटी तथा पतली रुधिर वाहिनियों का जाल फैला रहता है। 
  • मानव के शरीर में रुधिर की मात्रा शरीर के भार का लगभग 7-8% तक होती है। 70 kg के मनुष्य में औसतन 5.5-6.5 लीटर रुधिर होता है और शरीर का 1/13वाँ भाग बनाए रहता है।

 

रुधिर का संघटन Composition of Blood 

  • रुधिर तरल संयोजी ऊतक है। इसका अन्तराकोशिकी आधारद्रव्य पीले रंग के द्रव के रूप में होता है। यह प्लाज्मा कहलाता है तथा इसमें तैरने वाली विभिन्न कोशिकाएँ रुधिर कणिकाएँ अथवा रुधिराणु (blood corpuscles) कहलाती है।

 

रुधिर प्लाज्मा Blood Plasma 

  • प्लाज्मा पीले रंग का निर्जीव, चिपचिपा, क्षारीय द्रव होता है। यह रुधिर के सम्पूर्ण आयतन का लगभग 55-60% भाग होता है। शेष 45% में रुधिर कोशिकाएँ एवं प्लेटलेट्स पायी जाती हैं। प्लाज्मा में 90-92% जल, 1-2% अकार्बनिक लवण, 6-7% प्लाज्मा, प्रोटीन एवं 1-2% अन्य कार्बनिक यौगिक पाए जाते हैं।

 

इनकी निम्नलिखित विशेषताएँ हैं- 

(a) यह रुधिर का बाह्मकोशिकीय आधारभूत पदार्थ अर्थात् आधारद्रव्य होता है। 

(b) प्लाज्मा में कई प्रकार की कोशिकाएँ होती हैं, जिन्हें रुधिराणु कहते हैं। 

(c) प्लाज्मा में तन्तु बिल्कुल नहीं होते। 

(d) प्लाज्मा का स्रावण रुधिराणु नहीं करते।

 

प्लाज्मा के कार्बनिक पदार्थों के घटक निम्न है- 

(a) प्लाज्मा प्रोटीन्स (Plasma proteins)

ये प्लाज्मा का लगभग 7% भाग बनाते हैं। फाइब्रिनोजन (fibrinogen), एल्ब्यूमिन (albumin) तथा ग्लोब्यूलिन (globulin) रुधिर प्लाज्मा में पाए जाने वाली सामान्य प्रोटीन्स हैं। ये प्रोटीन रुधिर के परासरणीय दबाव को निर्धारित करती है।

 

(b) लवण (Salts) 

  • ये सोडियम (Na), पोटैशियम (K), कैल्शियम (Ca), मैग्नीशियम (Mg) व आयरन (Fe) के क्लोराइड्स (CI), बाइकार्बनिट्स (HCO), सल्फेट्स (SO) तथा फॉस्फेट्स (PO;) हैं। ये कुल 0.9% होते हैं। इन्हीं लवणों के कारण रुधिर हल्का क्षारीय होता है (pH 7.3-7.5)। प्लाज्मा तन्त्रिकाओं, पेशियों व ऊतकों की कार्यिकी के लिए आयनों की उचित मात्रा बनाए रखता है।

 

(c) पोषक पदार्थ (Digestive nutrients) 

  • ग्लूकोस, वसीय अम्ल, विटामिन्स तथा ग्लिसरॉल, आदि भी प्लाज्मा में घुले रहते हैं।

 

(d) हॉर्मोन्स (Hormones) 

  • अन्तःस्रावी प्रन्थियों द्वारा स्रावित विभिन्न हॉर्मोन्स भी रुधिर में ही पहुँचते हैं। 

(e) एन्जाइम्स (Enzymes) 

  • लाइपेज (lipase), डायस्टेज (diastase), ग्लूकोलेज (glucolase), प्रोटीएज (protease), एस्टरेज (esterase), न्यूक्लिएसेज (nucleases), ऑक्सीडेसेज (oxidases), आदि एन्जाइम प्लाज्मा में पाए जाते हैं। 

(f) गैसें (Gases) 

  • ऑक्सीजन तथा कार्बन डाइऑक्साइड भी रुधिर के प्लाज्मा में घुलित अवस्था में मिलती हैं।

 

(g) प्रतिरक्षी एवं प्रतिजन (Antibodies and antigens) 

  • रुधिर में पहुँचने वाले जीवाणु तथा अन्य बाह्य प्रोटीन्स प्रतिजन कहलाते हैं। इनके प्रभाव को नष्ट करने के लिए रुधिर के प्लाज्मा में विशेष प्रकार के प्रोटीन्स बनते हैं। ये प्रोटीन्स प्रतिरक्षी या इम्यूनोग्लोब्यूलिन्स कहलाते हैं। 
  • ये पदार्थ प्रतिजन को नष्ट करते हैं इसके अतिरिक्त कुछ अन्य पदार्थ; जैसे-लाइसोजाइम (एक पॉलीसैकेराइड), प्रोपरडिन (properdin), प्रोटीन, आदि उन जीवाणुओं, विषाणुओं तथा हानिकारक पदार्थों को नष्ट करते हैं जो किसी प्रकार शरीर के अन्तः वातावरण में पहुँच जाते है। 

(h) प्रतिजामन (Anticoagulant) 

  • संयोजी ऊतकों की मास्ट कोशिकाएँ रुधिर के प्लाज्मा में निरन्तर हिपेरिन (heparin) नामक संयुक्त पॉलीसैकेराइड मुक्त करती रहती हैं। हिपेरिन रुधिर-वाहिनियों में बहते हुए रुधिर को जमने से रोकता है।

 

रुधिराणु Blood Corpuscles 

रुधिर में लगभग 46% भाग रुधिराणु का होता है। इसे हीमैटोक्रिट मूल्य (hematocrit value) कहते हैं। इसकी गणना विनट्रोब नलिका विधि (Wintrobe tube method) द्वारा की जाती है। रुधिराणु की चार श्रेणियाँ होती हैं- 

(a) लाल रुधिराणु या एरिथ्रोसाइट्स 

(b) श्वेत रुधिराणु या ल्यूकोसाइट्स 

(c) रुधिर प्लेटलेट्स 

(d) स्पिण्डल कोशिकाएँ

 

लाल रुधिराणु या एरिथ्रोसाइट्स 

Red Blood Corpuscles or Erythrocytes or RBCs 

  • ये केवल कशेरुकियों के रुधिर में होते हैं और रुधिर का लगभग 40% भाग बनाते हैं। अतः हीमैटोक्रिट को रुधिर में प्रायः इन्हीं की प्रतिशत मात्रा से व्यक्त कर दिया जाता है। ये रुधिर में ही नहीं, वरन् पूरे शरीर में सबसे अधिक पायी जाने वाली कोशिकाएँ होती हैं। इनकी संख्या औसतन 54 लाख प्रति घन मिमी (mm) रुधिर, स्त्रियों में कुछ कम, 48 लाख, नवजात शिशु में लगभग तीन महीने की आयु तक कुछ अधिक होती है। इस प्रकार, हमारे रुधिर की एक बूँद में लगभग 26 करोड़ और पूरे रुधिर में लगभग 2.5 × 1018 लाल रुधिराणु होते हैं। ये सभी रुधिर में निश्चल तैरते (float) रहते हैं।

 

स्तनधारियों के लाल रुधिराणु RBCs of Mammals 

  • स्तनधारियों के रुधिर में एरिथ्रोसाइट्स की संख्या बहुत अधिक होती है। 
  • नर में ये लगभग 5500000 प्रति घन मिमी तथा मादा में 5000000 प्रति घन मिमी होते हैं। 
  • मनुष्य में इनका व्यास लगभग 7.5µ तथा मोटाई 1-2µ होता है। 
  • परिपक्व अवस्था में इनमें केन्द्रक, गॉल्जी काय, माइटोकॉण्ड्रिया तथा सेन्ट्रियोल नहीं होते। अतः स्तनधारियों के एरिथ्रोसाइट्स अकेन्द्रकीय (anucleated) तथा दोनों ओर से पिचके हुए, उभयावतल (biconcave) होते हैं।  
  • इनमें पिचकने की अपार क्षमता होती हैं। अतः ये अधिकतर लम्बे, मुड़े हुए तथा शाखान्वित स्तम्भों में विन्यासित रहते हैं। ये स्तम्भ राउलेक्स (rouleaux) कहलाते हैं। ऊँट तथा लमास में RBC अण्डाकार एवं केन्द्रकयुक्त होते हैं

 

लाल रुधिराणुओं के कार्य Functions of RBCs 

  • लाल रुधिराणुओं के कोशिकाद्रव्य में लाल रंग का हीमोग्लोबिन नामक आयरन यौगिक होता है। हीमोग्लोबिन में लौहयुक्त प्रोटीन ग्लोबिन तथा आयरन यौगिक हीमैटिन पाया जाता है। इनका एक अणु हाइड्रोजन के एक अणु से 68000 गुना भारी होता है। इसका सूत्र C2032 H4816 O872 N780 S8 Fe4 द्वारा प्रदर्शित किया जाता है। हीमोग्लोबिन में आयरन फैरस अवस्था में होता है। इसमें ऑक्सीजन से संयोग करने की अपूर्व क्षमता होती है, किन्तु यह संयोग अस्थायी होता है। इस प्रकार बना यौगिक ऑक्सीहीमोग्लोबिन (oxyhaemoglobin) कहलाता है। यह कम ऑक्सीजन वाले भागों में पहुँचने पर विघटित होकर ऑक्सीजन को स्वतन्त्र कर देता है। 

  • हीमोग्लोबिन + ऑक्सीजन ऑक्सीहीमोग्लोबिन 
  • ऑक्सीहीमोग्लोबिन हीमोग्लोबिन ऑक्सीजन 

अतः हीमोग्लोबिन ऑक्सीजन-वाहक (oxygen-carrier) का कार्य करता है तथा श्वसन क्रिया में महत्त्वपूर्ण योगदान करता है। इसी कारण इसको श्वसन रंजक (respiratory pigment) भी कहते हैं। हीमोग्लोबिन की सहायता से लाल रुधिराणु ऑक्सीजन को शरीर की विभिन्न कोशिकाओं तक पहुँचाने का कार्य करते हैं।

 

रुधिर अपघटन Heamolysis 

  • लाल रुधिराणुओं की कला अर्द्धपारगम्य होती है। जब रुधिर की बूँद को अल्पवलीय (hypotonic) विलयन में मिलाया जाए तो लाल रुधिराणु जल सोखकर फट जाते हैं और हीमोग्लोबिन बाहर निकल जाता है। इसे रुधिर अपघटन कहते हैं। 

  • कभी-कभी अपघटन में लाल रुधिराणओं का पदार्थ विसरण द्वारा बाहर निकल जाता है और रुधिराणुओं की आकृति जैसी थी वैसी ही बनी रहती है। ऐसे रुधिराणु को इनकी 'मरीचिका' (shadow or ghost) कहते हैं।

 

रुधिरक्षीणता या रक्ताल्पता Anaemia 

  • यह एक ऐसा रोग होता है जिसमें कि शरीर में, हीमोग्लोबिन की मात्रा कम हो जाने के कारण, O₂ वहन की दर घट जाती है। लाल रुधिराणुओं में व्यापक विनाश या धीमे निर्माण के कारण इनकी संख्या अत्यधिक कम हो जाने से यह रोग होता है। विटामिन-B₁₂ एवं फोलिक अम्ल की कमी से भी लाल रुधिराणुओं की निर्माण दर घट जाती है और रुधिरक्षीणता हो जाती है। अधिक रुधिरस्राव (bleeding) से भी यह रोग हो जाता है।

 

लाल रुधिराणु अवसादन दर Erythrocyte Sedimentation Rate or ESR 

  • अगर रुधिर का जमना रुक जाए तो RBC डूब जाते हैं, यदि रुधिर में प्रतिज्ञामन पदार्थ (ऑक्सिलेट) मिलाया जाए तथा उद्धर्व नली में कुछ समय रखा जाए तो तली में रुधिराणु बैठ जाते हैं जिस दर पर यह क्रिया होती है उसे लाल रुधिराणु अवसादन दर कहते हैं। प्लाज्मा की अपेक्षा रुधिराणुओं का घनत्व अधिक होता है इसलिए ऐसा होता है। ESR का उपयोग TB (tuberculosis) जैसी विभिन्न बीमारियों का पता लगाने में होता है। संक्रमण, रुधिर अल्पता, गर्भावस्था एवं मासिक चक्र के समय इसका मान अधिक हो जाता है इसे दो विधियों से मापा जाता है।

 

(a) वेस्ट्रनग्रेन प्रक्रिया (Westerngren method) 

(b) विनट्रोबस प्रक्रिया (Wintrobes method)

 

श्वेत रुधिराणु या ल्यूकोसाइट्स White Blood Corpuscles or Leucocytes or WBCS 

ल्यूकोसाइट्स की कोशिकाएँ गोल या अमीबाकार केन्द्रकयुक्त एवं वर्णकविहीन होती हैं। ये आकार में लाल रुधिर कणिकाओं से बड़ी होती हैं एवं और संख्या में RBCs से कम होती है। यह अनुपात लगभग (1 : 600) होता है। मनुष्य में इनकी संख्या 5000-9000 प्रति घन मिमी होती है किन्तु रोगजनक अवस्था में इनकी संख्या बढ़ जाती है; जैसे- ल्यूकीमिया (रुधिर कैंसर) में WBC बढ़ जाती है। WBCs की कोशिकाओं में हीमोग्लोबिन नहीं पाया जाता है। जीवद्रव्य में पायी जाने वाली कणिकाओं की उपस्थिति या अनुपस्थिति के आधार पर दो वर्गों में बाँटा जा सकता है। 

 

a) कणिकामय श्वेत रुधिराणु (Granulocytes) 

  • ये कोशिकाएँ लाल अस्थि मज्जा (Red bone marrow) में बनती हैं। ये कुल ल्यूकोसाइट्स की लगभग 65% होती हैं। ये केन्द्रक के आकार एवं उनके कणों (granules) की अभिरंजक क्रियाओं (staining reactions) के आधार पर पुनः निम्न प्रकार विभाजित की जा सकती हैं 


पॉलीसाइथीमिया (polycythemia) में RBC की संख्या बढ़ जाती है। 

• WBC कम होने की स्थिति ल्यूकोपीनिया कहलाती है, जबकि अधिक होने को ल्यूकोसाइटोसिस कहते हैं। 


न्यूट्रोफिल्स (Neutrophils) 

  • ये WBCs की कुल संख्या का लगभग 62% होती है। इनके कोशिकाद्रव्य में महीन कण (fine granules) पाए जाते हैं, जो अम्लीय एवं क्षारीय अभिरंजकों द्वारा अभिरंजित होते हैं तथा बैंगनी रंग के दिखाई देते हैं। केन्द्रक 3 से 5 पालीयुक्त (lobed) होता है। इनका जीवनकाल रुधिर में 10-12 घण्टे तथा ऊतक में 4-5 दिन होता है। ये शरीर के रक्षक की भाँति कार्य करती हैं। 

बेसोफिल्स (Basophils)

  • ये सायनोफिल्स (cyanophils) भी कहलाती हैं। कोशिकाद्रव्यी कण बड़े होते हैं, जो नीले रंग के दिखाई पड़ते हैं। केन्द्रक दो अथवा तीन पालीयुक्त अथवा S के आकार का होता है। इनका जीवन काल 12-15 दिन होता है। ये हिपेरिन एवं हिस्टामिन को स्रावित कर कोशिकाओं में रुधिर का थक्का जमने से रोकती हैं।

एसिडोफिल्स (Acidophils) ये इयोसिनोफिल्स (eosinophils) भी कहलाती हैं। इनका केन्द्रक द्विपालीयुक्त होता है। इनका जीवनकाल 14 घण्टे होता है। एलर्जी में इनकी संख्या बढ़ जाती है। ये घावों को भरने में सहायक होती हैं।

 

(b) कणिकारहित श्वेत रुधिराणु (Agranulocytes) 

ये कुल WBCs की लगभग 35% अंश होती हैं।  एप्रन्यूलोसाइट्स को मोनोसाइट्स व लिम्फोसाइट्स में विभाजित किया जा सकता है 

मोनोसाइट्स (Monocytes) 

  • ये सबसे बड़ी ल्यूकोसाइट्स (WBCs) है। 
  • ये कुल ल्यूकोसाइट्स का लगभग 5.3% अंश बनाती हैं। इनका केन्द्रक अण्डाकार, वृक्क अथवा घोड़े की नाल के आकार का और बाह्य केन्द्रीय (excentric) होता है। इनका निर्माण लसिका गाँठ एवं प्लीहा में होता है। ये अत्यधिक चल होती हैं तथा जीवाणु एवं अन्य रोगकारक जीवों का भक्षण करने का कार्य करती हैं। इनका जीवनकाल कुछ घण्टों से लेकर कई दिनों तक हो सकता है।

 

लिम्फोसाइट्स (Lymphocytes)

  • ये ल्यूकोसाइट्स का लगभग 30% भाग बनाती हैं। इनका केन्द्रक बड़ा और गोल होता है तथा कोशिकाद्रव्य पतली परिधीय परत (peripheral layer) बनाता है। इनका निर्माण थाइमस, लिम्फ नोड, प्लीहा तथा टॉन्सिल्स में होता है। इनका जीवनकाल 3-4 दिन होता है। ये प्रतिरक्षियों का निर्माण कर शरीर के प्रतिरक्षा तन्त्र में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करती हैं।

 

श्वेत रुधिराणुओं के कार्य Functions of WBCS 

  • श्वेत रुधिराणु अपमार्जक (scavangers) तथा प्रहरी या सैनिक के समान कार्य करते हैं क्योंकि कई प्रकार के श्वेत रुधिराणुओं में (विशेषकर न्यूट्रोफिल्स, मोनोसाइट्स तथा एसिडोफिल्स में) अमीबा के समान पादाभ बनाकर जीवाणु तथा अन्य हानिकारक पदार्थों का भक्षण करने की क्षमता पायी जाती है। ये कोशिकाएँ भक्षाणु (phagocytes) कहलाती हैं तथा इनकी इस क्रिया को कोशिका भक्षण या भक्षकाणु क्रिया कहते हैं। जैसे ही शरीर के किसी भाग पर चोट लग जाने या घाव बन जाने पर जीवाणु शरीर में प्रवेश करते हैं, श्वेत रुधिराणु शीघ्रता से उस स्थान पर पहुँच जाते हैं और जीवाणु को नष्ट करने के लिए या तो उनका भक्षण प्रारम्भ कर देते हैं अथवा ऐसे विषैले पदार्थ उत्पन्न करते हैं, जो शत्रु के लिए, विष के समान कार्य करते हैं। चोट वाले स्थानों पर अधिक रुधिर व अधिक रुधिराणु लाने के लिए रुधिर वाहिनियाँ भी फूल जाती हैं।

 

इन चोट वाले स्थानों पर श्वेत रुधिराणु निम्नलिखित कार्य करते हैं

 

(a) जीवाणु का भक्षण करते हैं। 

(b) जीवाणु द्वारा उत्पन्न विषैले पदार्थों को नष्ट करने के लिए प्रतिविष बनाते हैं। 

(c) टूटी-फूटी या अशक्त कोशिकाओं का भी भक्षण करके उनको वहाँ से हटा देते हैं अथवा मवाद (pus) के रूप में शरीर से बाहर निकालते हैं। 

(d) लिम्फोसाइट्स घायल स्थान की कोशिकाओं को तेजी से विभाजित होकर वृद्धि करने के लिए उत्तेजित करते हैं और इस प्रकार घाव भरने में ये कोशिकाएँ सहायता करती हैं। चोट वाले स्थानों पर जीवाणु तथा श्वेत रुधिराणुओं के बीच हुए मल्लयुद्ध एवं रासायनिक प्रतिक्रिया के फलस्वरूप अनेक मरे हए रुधिराणु तथा जीवाणु व टूटी-फूटी सामान्य कोशिकाएँ मिलकर हल्के पीले-से रंग का गाढ़ा द्रव बना लेते हैं जो मवाद के रूप में घायल भाग से शरीर के बाहर निकाल दिया जाता है और बाद में खुरंड के रूप में सूखकर हट जाता है। इतने कड़े प्रतिरोध के पश्चात् भी अगर जीवाणु रुधिर परिसंचरण में पहुँच जाए तब ही रोग फैलने की सम्भावना होती है.

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