रसायनिक समन्वय तथा एकीकरण प्रमुख तथ्य
हॉर्मोन्स (HORMONES) क्या होते हैं
- "हॉर्मोन्स अन्तःस्रावी ग्रन्थियों द्वारा स्त्रावित ऐसे कार्बनिक यौगिक हैं, जो रुधिर द्वारा शरीर के विभिन्न भागों में पहुँचकर विशिष्ट अंगों एवं ऊतकों के कार्यों का नियन्त्रण एवं समन्वय करते हैं। उन अंगों को जिन्हें ये प्रभावित या नियन्त्रित करते हैं, इनका लक्ष्य अंग (Target organs) कहते हैं।" इस प्रकार ये एक रासायनिक उत्प्रेरक हैं। हॉर्मोन ग्रीक शब्द हॉर्मोन (Hormaein = to excite) से बना है जिसका शाब्दिक अर्थ- "उत्तेजित करने वाला पदार्थ" है।
- इसकी उपस्थिति का ज्ञान सम्भवतः सर्वप्रथम जान्स मूलर (1833) को हुआ, लेकिन इसकी आधुनिक परिभाषा की नींव बेलिस एवं स्टार्लिंग (Bayliss and Starling 1902, 1905) की खोजों से पड़ी। हॉर्मोन शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम स्टार्लिंग (1905) ने 'उत्तेजक पदार्थ' के रूप में की।
हॉर्मोन्स के गुण (Properties of Hormones)
- रासायनिक दृष्टि से ये प्रोटीन, अमीनो अम्ल, पेप्टाइड्स या स्टीरॉयड्स (Steroids) होते हैं।
- ये बहुत कम मात्रा में अन्तःस्रावी ग्रन्थियों द्वारा स्रावित होते हैं और कम सान्द्रण में ही क्रियाशील होते हैं।
- ये जल और रुधिर में घुलनशील होते हैं।
- इनका अणुभार कम होता है जिसके कारण ये रुधिर केशिकाओं तथा प्लाज्मा झिल्ली से सरलतापूर्वक विसरित होते रहते हैं। ये प्लाज्मा झिल्ली की पारगम्यता को बढ़ा देते हैं।
- अपने कार्यों को करते समय ये विघटित हो जाते हैं। इसी कारण इनका स्त्राव हमेशा होता रहता है। ये शरीर में संचित नहीं किये जाते बल्कि कार्य के समाप्त होने पर विघटित हो जाने के कारण उत्सर्जन के द्वारा बाहर कर दिये जाते हैं।
- ये सीधे रासायनिक क्रियाओं को नियन्त्रित करने के स्थान पर अपने लक्ष्य अंगों को नियन्त्रित करते हैं।
- ये एक जीव या जाति के लिए विशिष्ट नहीं होते बल्कि एक ही हॉर्मोन विभिन्न जीवों में समान कार्यों को उत्तेजित करता है।
- सामान्यतः ये सीधे उपापचयी क्रियाओं में भाग नहीं लेते बल्कि ये पूरी क्रियाशीलता को प्रभावित करते हैं।
- इनका आनुवंशिकी से कोई सम्बन्ध नहीं होता।
- हॉर्मोन्स वास्तव में अन्तःस्रावी ग्रन्थियों में बनने के बाद विसरित होकर रुधिर केशिकाओं के जाल में आ जाते हैं तथा रुधिर के ही माध्यम से शरीर के विभिन्न भागों में पहुँचते हैं और लक्ष्य अंगों तक जाकर उनकी कोशिकाओं की उपापचयी क्रियाओं, वृद्धि, विकास, प्रजनन, रुधिर दाब तथा रुधिर में विभिन्न पदार्थों की मात्रा का सन्तुलन आदि क्रियाओं का नियन्त्रण तथा समन्वय करते हैं। यद्यपि सभी हॉर्मोन सभी कोशिकाओं तथा ऊतकों तक पहुँचते हैं, किन्तु ये केवल अपनी-अपनी लक्ष्य कोशिकाओं को ही उत्तेजित या प्रभावित करते हैं। वैसे तो हॉर्मोन बहुत कम मात्रा में बनते हैं, लेकिन यदि किन्हीं कारणों से कम या अधिक बनने लगें तो दोनों ही स्थितियाँ शरीर के लिए नुकसानदेह होती हैं और ये जीवों में अनेक प्रकार की विकृतियाँ या बीमारियाँ पैदा करती हैं। हॉर्मोन की गड़बड़ी से पैदा होने वाले रोगों को कार्यात्मक रोग (Functional diseases) कहते हैं।
- समन्वय दो तंत्रों द्वारा किया जाता है- हमारे शरीर के विविध कार्यों का नियन्त्रण (i) तन्त्रिका तन्त्र तथा (ii) अन्त: स्रावी तन्त्र ।
- तन्त्रिका तन्त्र की शाखाएँ पूरे शरीर में फैली होती हैं जिनके माध्यम से मस्तिष्क शरीर की क्रियाओं का नियन्त्रण करता है। अन्तःस्वावी तन्त्र कई अन्तःस्रावी ग्रन्थियों का बना होता है जो एक विशिष्ट रसायन का स्राव करती हैं जिसे हॉर्मोन कहते हैं। यह हॉर्मोन रुधिर प्रवाह द्वारा शरीर के विविध भागों में पहुंचकर नियन्त्रण एवं समन्वय का कार्य करता है।
- हॉर्मोन कोशिकीय कला या जीन स्तर पर कार्य करता है।
- हॉर्मोन्स के कम अथवा अधिक लावण से शरीर में कई प्रकार की विकृतियाँ उत्पन्न होती हैं।
- हॉर्मोन्स सूचनाओं को भेजने वाले अणु होते हैं जो अन्त: स्रावी ग्रन्थियों में बनते हैं तथा सिरीय रुधिर (Venous Blood) में साबित किये जाते हैं।
- यदि मेढक के शिशु टेडपोल (Tadpole) में थायरोक्सिन की सूई लगाई जाती है, तो वह समय से पूर्व छोटे मेढक में परिवर्तित हो जाता है। दूसरी ओर यदि उसमें एण्टीथायरॉयड पदार्थ जैसे-थायोयूरिया दिया जाता है वो उसमें कायान्तरण देर से होता है।
- मेक्सिकन एक्सोलोटल (Axolotl) एम्बिस्टोमा टिग्रीनम (Ambystoma tigrinum) का लार्वा होता है। थायरॉइड हॉर्मोन की कमों के कारण यह एक्सोलोटल लार्वा के रूप में ही बना रहता है तथा इसी अवस्था में प्रजनन कार्य करता है। जब इसमें थायरोक्सिन की सूई लगाई जाती है तो यह परिपक्व एम्बिस्टोमा टिग्रीनम में कायान्तरित हो जाता है।
- मासिक स्राव के दौरान महिलाओं में एस्ट्रोजन (Estrogen) का स्राव दो गुना हो जाता है। गर्भवती महिलाओं के मूत्र में अत्यधिक मात्रा में एस्ट्रोजन हॉर्मोन पाया जाता है। इस हॉमॉन का उत्पादन प्लेसेन्टा द्वारा होता है।
- मेड्यूलरी हॉर्मोन्स जीवन के लिए आवश्यक नहीं होते।
- ग्लूकोकॉर्टिकॉयड्स (Glucocorticoids) रक्त में परिसंचरित होने वाले लिम्फोसाइट्स तथा इस्नोफिल्स की संख्या को कम करता है। इस प्रकार यह एण्टीइन्फ्लामेटरी तथा एण्टीएलर्जिक पदार्थ की तरह कार्य करता है। इस हॉर्मोन का उपयोग रुमेटॉयड अर्थराइटिस (Rheumatoid arthritis) के उपचार में भी किया जाता है।
- कई प्रकार के रसायन जैसे- थायोयूरेसिल, थायोयूरिया, पैराअमीनोबेन्जोइक एसिड, रेडियोसक्रिय आयोडीन, कार्बोमेजोल, मेधिमेजोल आदि थायरॉक्सिन हॉर्मोन के उत्पादन को कम करते हैं। अतः इनका उपयोग थायरोक्सिन के अतिस्त्रावण को कम करने में किया जाता है।
- पार्स ट्यूबरेलिस (Pars tuberalis) पीयूष ग्रन्थि के एडिनोहाइपोफाइसिस का एक भाग होता है, जो मनुष्य में शायद ही दिखायी देता है।
- एड्रीनोजेनाइटल सिन्ड्रोम (Adrenogenital Syndrome) को इन्फैन्ट हरक्यूलस (Infant Hercules) कहा जाता है। यह एन्ड्रोजेनिक हॉर्मोन के अत्यधिक स्रावण के कारण होता है। इसके फलस्वरूप कम ही आयु में लैंगिक परिपक्वता आ जाती है। यह केवल लड़कियों में होता है।
- रात में निकलने वाले मूत्र में निष्क्रिय ADH की मात्रा ज्यादा होती है।
- ऐल्कोहॉल ADH के स्रावण को कम करता है।
- वयस्कों में वृद्धि हॉर्मोन (GH) के अतिस्रावण के कारण अस्थियों का अनावश्यक अतिविकास होता है। इस असामान्यता को एक्रोमिगेली (Acromegaly) कहते हैं।
- वृद्धि हॉमॉन के अल्प सावण से वयस्कों में केचेक्सिया (Cachexia) अथवा सायमन्ड्स सिन्ड्रोम (Simmonds Syndrome) नामक रोग होता है।
- पीयूष ग्रन्यि को मास्टर ग्रन्यि कहा जाता है क्योंकि यह अन्य ग्रन्थियों से हॉर्मोन्स के सावण को भी नियंत्रित करता है।
- फेरोमोन्स (Pheromones) अथवा एक्टोहॉर्मोन्स (Ectohormones) बहि: ग्रन्थियों में उत्पन्न होते हैं, जिसके अनु जन्तुओं द्वारा बातावरण में छोड़ दिये जाते हैं। ये अपनी जाति के सदस्यों के बीच संचार के माध्यम के रूप में कार्य करते हैं। ये विपरीत लिंग के बीच लैंगिक आकर्षण सामाजिक समूह आदि में सहायक होते हैं।
- थॉमस एडीसन (Thomas Addison) को एण्ड्रोक्राइनोलॉजी (Androcrinology) का पिता कहा जाता है। * थायरॉयड ग्रन्यि से हॉर्मोन्स का अल्पसावण क्रेटिनिज्म (Cretinism), मिक्डोडोमा (Myxodema), गमिटर (Goitre), आदि रोग उत्पन्न करता है।
- एड्रीनल कॉर्टेक्स का अल्पस्रावण कॉन्स रोग (Conn's disease), हाइपोग्लाइसीमिया (Hypoglycemia), एडीसन्स रोग आदि उत्पन्न करता है।
- पेंक्रियाज अथवा अग्नाशय एवं मिश्रित ग्रंथि है।
- गर्भनिरोधक गोलियों में एस्ट्रोजेन तथा प्रोजेस्टीरॉन हॉर्मोन होते हैं।
- 14 नवम्बर - विश्व मधुमेह दिवस।
- थॉमस एडीशन को अन्तःस्रावी विज्ञान का जनक माना जाता है।
- 21 अक्टूबर - आयोडीन डेफिशिएन्सी डिसऑर्डर दिवस।
- फेरोमोन्स (Pheromones)- नर एवं मादा के मध्य संचार का कार्य करने वाला हॉमॉन।
सेलये (Selye, 1938) के अनुसार हॉर्मोन
सेलये (Selye, 1938) के अनुसार हॉर्मोन जटिल कार्बनिक यौगिक होते हैं। - सैरर एवं सैरर (Scharrer and Scharrer, 1963) के अनुसार हॉर्मोन निम्न क्रियाओं का नियन्त्रण करने वाले पदार्थ हैं-
(ⅰ) जनन सम्बन्धी क्रियाएँ।
(ii) वृद्धि, परिपक्वन एवं पुनरुद्भवन ।
(iii) उपापचयी एवं
समस्थापनी क्रियाएँ
कोचर (1883) नामक स्विस सर्जन -थायरॉइड ग्रन्थि
- कोचर (1883) नामक स्विस सर्जन ने अपने 16 मरीजों के शरीर से थायरॉइड ग्रन्थि के महत्त्व को जाने बिना अलग कर दिया तो कुछ ही समय बाद सारे रोगियों में क्रीटीनिज्म के लक्षण पैदा हो गये । मूरे (1891) ने यह पाया कि यदि क्रीटीनिज्म से पीड़ित रोगियों को थायरॉइड का सत्व या दूसरे जन्तुओं के थायरॉइड को खाने के लिए दिया जाये तो वे ठीक होने लगते हैं।
एड्रीनेलीन के कार्य
1. हृदय स्पंदन दर, श्वसन दर तथा रुधिर में पोषक पदार्थों की मात्रा को बढ़ाता है।
2. रुधिर में थक्काकरण के समय को कम करता है।
3. रुधिर बाहिनियों के प्रसार को प्रेरित करता है।
4. अनुकम्पी तन्त्र से संचालित क्रियाओं का नियन्त्रण करता है।
5. यह पुतलियों को फैलाने में सहायक होता है।
6. संकटकाल में रोंगटे खड़ा करके यह लड़ने की क्षमता देता है।
नॉर-एड्रीनेलीन के कार्य
1. यह कार्बोहाइड्रेट उपापचय को प्रेरित करता है।
2. यह परिसंचरण की क्रिया का नियन्त्रण करता है।
3. यह हृदय स्पंदन का नियन्त्रण करता है।
4. यह वसीय अम्लों
को एडीपोज ऊतकों से पृथक् होने की क्रियाओं को प्रेरित करता है।
पीयूष ग्रन्थि के हॉर्मोन
(A) अग्रपालि-
1. सोमैटोट्रॉफिक हॉर्मोन (S.T.H.)
2. गोनैडोटॉफिक हॉर्मोन (GT.H.)
3. एड्रीनोकॉर्टिकोट्रॉफिक हॉर्मोन (A.C.T.H.)
4. थायरोट्रॉफिक हॉर्मोन (T.S.H.)
5. लैक्टोजीनिक हॉर्मोन
6. डायबेटोजीनिक हॉर्मोन
7. मिलैनोसाइट प्रेरक हॉर्मोन (M.S.H.)
(C) पश्चपालि-
1. वैसोप्रेसिन (A.D.H.)
2. ऑक्सीटोसिन ।
मिलैटोनिन के कार्य
1. यह पीयूष ग्रन्थि के M.S.H. के विपरीत कार्य करता है। इसके कारण त्वचा का रंग हल्का होता है।
2. यह जनन अंगों की वृद्धि को प्रेरित करता है।
3. यह लैंगिक परिपक्वता लाता है।
4. यह लिम्फोसाइट तथा प्रतिरक्षी कोशिकाओं का निर्माण करता है
इन्सुलिन तथ्य
- इन्सुलिन की उपस्थिति का सबसे पहले पता कुत्तों में लगाया गया। वैज्ञानिकों ने देखा कि कुत्तों के शरीर से अग्नाशय निकाल देने के बाद उनके मूत्र से शर्करा जैसा पदार्थ निकलने लगा। इस आधार पर यह निष्कर्ष निकाला गया कि अग्नाशय का कोई पदार्थ शर्करा उपापचय का नियन्त्रण करता है।
- कनाडावासी बैंटिंग एवं बेस्ट (1922) ने जन्तुओं के अग्नाशय से इन्सुलिन प्राप्त किया। 1926 में एबल (Able) ने इसके रवे तैयार किये। सैंगर (1953) ने गाय के इन्सुलिन की संरचना का पता लगाया। सन् (1965) में सान (Tsan) ने मानव इन्सुलिन का संश्लेषण किया।