सजीव जगत महत्वपूर्ण तथ्य | The Living World Important Fact in Hindi

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 सजीव जगत महत्वपूर्ण तथ्य (The Living World Important Fact in Hindi)

सजीव जगत महत्वपूर्ण तथ्य | The Living World Important Fact in Hindi



सजीव जगत महत्वपूर्ण तथ्य

  • जीवन केवल संघटित जीवधारियों के रूप में ही दृष्टिगोचर होता है जिनमें एक निश्चित रूप एवं आकार होता है तथा अवयवों  की एक अवकाशिक व्यवस्था होती है तथा उनमें वृद्धि, जनन जैसे जैविक गुणधर्म पाये जाते हैं। सजीवों में परमाणु स्तर से लेकर जैवमण्डल तक संगठनात्मक स्तर की निरन्तरता पायी जाती है। सजीव एवं निर्जीव के मध्य विभिन्नता आण्विक स्तर पर ही स्थापित हो जाती है। 
  • जीवन का आधार आण्विक रचना है तथा यह अणुओं के सम्बन्ध का परिणाम है। जल, सामान्य लवण तथा ग्लूकोज जीवन के लिए अत्यावश्यक होते हैं। 
  • जीवधारियों में 60-90% जल होता है। 
  • जैविक तन्त्रों में कोशिका के अन्दर ऊर्जा स्थानान्तरण एवं परिवर्तन लगातार होता रहता है। कोशिका में ऊर्जा ATP के रूप में संचित होती है। जैविक तन्त्र में एन्ट्रॉपी की प्रवृत्ति पायी जाती है जिसकी पूर्ति सूर्य अथवा भोजन से मुक्त ऊर्जा प्राप्त करके की जाती है। 
  • सजीव एक खुले तन्त्र के रूप में कार्य करते हैं, क्योंकि ये वातावरण के साथ पदार्थ एवं ऊर्जा का विनिमय कर सकते हैं। 
  • जैविक तन्त्रों में संघटन की स्थिरता बनाये रखने हेतु स्वनियमन प्रक्रिया कार्य करती है। इसे समस्थापन कहते हैं। 
  • सभी जीवधारी उपापचय, वृद्धि, प्रजनन, गति, उत्तेजनशीलता तथा अनुकूलन जैसे जैविक गुणधर्मों का पालन करते हैं।
  • सभी जीवधारियों की एक विशिष्ट जीवन अवधि होती है जिसके दौरान वे धीरे-धीरे जीर्ण होते जाते हैं। जीर्णता एक अपकर्षी प्रक्रिया है जो जीव को अनिवार्य रूप से मृत्यु की ओर ले जाती है। 
  • पृथ्वी के विभिन्न भागों में, किसी विशेष स्थान पर विभिन्न प्रकार की जातियों का पाया जाना जैव विविधता कहलाता है। 
  • वर्गीकरण जीवों के विभिन्न वर्गों की विकासीय प्रवृत्ति को समझने में सहायक होता है। जीवों के वैज्ञानिक नामकरण से सम्बन्धित नियम 'नामकरण की अन्तर्राष्ट्रीय संहिता' द्वारा निर्धारित किये जाते हैं। 
  • वर्गिकी के प्रमुख उपकरण- वनस्पतिशाला, वानस्पतिक उद्यान, संग्रहालय आदि है।  
  • चिकित्सीय मृत्यु (Clinical death) का अर्थ होता है हृदय गति तथा नाड़ी गति का रुक जाना एवं पुतलियों (Pupils) का स्थिर होकर फैल जाना। 
  • जैविक मृत्यु (Biological death) - चिकित्सीय मृत्यु के बाद भी कई घण्टे तक शरीर की कोशिकाएँ जीवित रहती हैं। अतः चिकित्सीय मृत्यु के तुरन्त पश्चात् अंग प्रतिरोपण किया जाना चाहिए। कोशिकाओं की मृत्यु हो जाने को जैविक मृत्यु कहते हैं। 
  • सबसे अन्त में मरने वाली कोशिकाएँ मस्तिष्क कोशिकाएँ होती हैं। 
  • कोलैजन (Collagen) प्रोटीन शरीर में पायी जाने वाली कुल प्रोटीन का सर्वाधिक 40% भाग बनाती है। ये अपूर्य (Non-renewable) होती है तथा कालप्रभावन के साथ कठोर होती जाती है, परिणामस्वरूप जीर्णता के साथ त्वचा पर झुर्रियाँ (Wrinkles) पड़ जाती हैं। 
  • जेरॉन्टोलॉजी (Gerontology)-कालप्रभावन (Ageing) के अध्ययन को जेरॉन्टोलॉजी कहते हैं।  
  • हिप्पोक्रेट्स एवं अरस्तु ने सर्वप्रथम जीवों को विधिवत रूप से वर्गीकृत किया था। 
  • थियोफ्रॉस्टस को "वनस्पति विज्ञान के जनक" के रूप में जाना जाता है। 
  • सिस्टेमैटिक्स (Systematics) शब्द का उपयोग सर्वप्रथम जुलियन हक्सले (1940) ने किया था। 
  • प्रजाति (Species) वर्गीकरण की आधारभूत या सबसे छोटी इकाई है। 
  • बायोलॉजी (Biology) शब्द का उपयोग सर्वप्रथम लैमार्क एवं ट्रैविरेनस ने किया था 
  • वर्गिकी, जीव विज्ञान की वह शाखा है जिसके अन्तर्गत जीवधारियों की पहचान, नामकरण एवं वर्गीकरण किया जाता है। 
  • कैरोलस लीनियस को 'वर्गिकी का जनक' कहा जाता है। 
  • जॉन रे प्राकृतिक वर्गीकरण प्रस्तुत करने वाले पहले व्यक्ति थे। 
  •  मॉयर (1942) ने सर्वप्रथम जाति की अवधारणा प्रस्तुत की थी। 
  • किसी जाति के जातिवृत्तीय इतिहास को उसकी जातिवृत्ति कहते हैं। 
  • द्विनाम नामकरण पद्धति को कैरोलस लीनियस ने प्रस्तावित किया था। इस पद्धति के अनुसार प्रत्येक जीव के दो नाम होते हैं। प्रथम नाम वंश नाम तथा द्वितीय नाम जाति नाम होता है। 
  • यूग्लीना, एक ऐसा जीव है जिसमें पौधों एवं जन्तुओं दोनों के लक्षण पाये जाते हैं। इसी कारण इसे पौधे एवं जन्तुओं की संयोजक कड़ी माना गया है। 
  • पोषण की वह विधि जिसमें जीव ठोस भोजन ग्रहण करता है उसे प्राणी समभोजी पोषण (Holozoic nutrition) कहते हैं। 
  • परस्पर अन्त: प्रजनन करने वाले जीवों का ऐसा समूह, जिनमें एक समान जीन-पूल पाया जाता है उसे जाति कहते हैं। 
  • मोनेरा जगत के अन्तर्गत प्रोकैरियोटिक कोशिका संरचना वाले जीवधारियों को सम्मिलित किया गया है। 
  • मोनोटाइपिक जीनस (Monotypic genus)- ऐसा वंश जिसमें केवल एक ही प्रजाति होती है। उदाहरण - होमो । 
  • पॉलीटाइपिक जीनस (Polytypic genus)- ऐसा वंश, जिसमें कई प्रजातियाँ होती हैं। उदाहरण- पेन्थरा। 
  • फाइलोजेनी (Phylogeny)- जीवधारियों का विकासात्मक इतिहास । 
  • टैक्सॉन या वर्गक (Taxon)- समान जीवों का समूह। 
  • हिनी (Hiny) नर घोड़े एवं मादा गधे की सन्तति । 
  • मुल (Mul)- नर गधे एवं घोड़ी की सन्तति। 
  • टिग्लायन (Tiglion) मादा सिंह एवं नर बाघ की सन्तति। 
  • जेब्रायड (Zebroid)- गधे एवं जेब्रा की सन्तति। 

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