पेशीय एवं कंकाल तन्त्र के विकार | Muscular and Skeletal System Disorders

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 पेशीय एवं कंकाल तन्त्र के  विकार 

पेशीय एवं कंकाल तन्त्र के  विकार | Muscular and Skeletal System Disorders


पेशीय विकार (Muscular Disorders) 

(1) मायस्थेनिया ग्रेविस (Myasthenia Gravis) 

  • मायस्थेनिया ग्रेविस एक स्वप्रतिरक्षी रोग (Autoimmune disease) है जिसके कारण तन्त्रिका-पेशी सन्धि स्थल (Neuro- muscular junction) की चिरकालिकक्रमिक क्षति होती है। शरीर का प्रतिरक्षा तन्त्र असंगत ढंग से प्रतिरक्षी उत्पन्न करता है जो कुछ ACh ग्राहियों के साथ बन्धित होकर उन्हें अवरुद्ध कर देते हैं जिसके कारण कंकालीय पेशियों के चालक छोर प्लेटों (Motor end plates) पर क्रियाशील ACh ग्राहियों की संख्या कम हो जाती है। जैसे-जैसे रोग आगे बढ़ता हैअधिक से अधिक ACh ग्राही समाप्त होते जाते हैं अतः पेशियाँ उत्तरोत्तर कमजोर होती जाती हैंआसानी से थकने लगती हैं और अन्ततः कार्य करना बन्द कर देती हैं। चूँकि मायस्थेनिया ग्रेविस के 75 प्रतिशत रोगियों में थायमस की अतिवृद्धि (Hyperplasia) या अर्बुद (Tumor) पाया जाता है। अतः माना जाता है कि यह व्यतिक्रम थायमस असामान्यता के कारण होता है। मायस्थेनिया ग्रेविस 10,000 लोगों में से एक को होता है .

 

  • यह महिलाओं में अधिक सामान्य रूप से पाया जाता है तथा इसकी शुरुआत महिलाओं में 20 से 40 वर्ष के बीच तथा पुरुषों में 50 से 60 वर्ष के बीच होती है। इस रोग में अधिकतर चेहरे एवं गर्दन की पेशियाँ प्रभावित होती हैं। प्रारम्भ में नेत्र पेशियाँ कमजोर हो जाती हैं जिससे दोहरी दृष्टि (Double vision) उत्पन्न होती है तथा गले की पेशियों के कमजोर पड़ जाने के कारण निगलने में परेशानी होने लगती है तथा धीरे-धीरे रोगी को चबाने तथा बोलने में तकलीफ होने लगती है। धीरे-धीरे अंगों (Limbs) की पेशियाँ भी प्रभावित होने लगती हैं। श्वसनी पेशियों के प्रभावित होने पर रोगी की मृत्यु हो जाती है।

 

(2) अपतानिका (Tetany) 

  • सीरम कैल्शियम या आयनित कैल्शियम के कम हो जाने के फलस्वरूप परिधीय तन्त्रिकाओं की उत्तेजनशीलता में वृद्धि हो जाती है। इससे उत्पन्न विकार को टिटैनी (Tetany) कहते हैं। इसके अतिरिक्त मैग्नीशियम क्षीणता (Magnesium depletion) से भी यह रोग उत्पन्न होता है विशेष रूप से कुअवशोषण (Malabsorption) की दशा में। बच्चों में इस रोग के कारण हाथ-पैरों में ऐंठन (Carpopedal spasm), खर्गर (Stridor) तथा मरोड़ (Convulsions) जैसे लक्षण उत्पन्न होते हैं। हाथ की ऐंठन (Carpal spasm) के कारण हाथ विशिष्ट स्थिति में आ जाते हैं तथा अँगूठा विपरीत स्थिति में (छोटी अँगुली के आधारी भाग पर) आ जाता है। ग्लॉटिस की ऐंठन के कारण खर्गर होने लगती है। वयस्कों में इस रोग के कारण हाथ-पैरों तथा मुख के चारों ओर झुनझुनी ( Tingling) होने लगती है। कभी-कभी हाथ-पैरों में कष्टकारी ऐंठन भी होती है। अव्यक्त टिटैनी (Latent tetany) में रोगी में प्रत्यक्ष टिटैनी (Overt tetany) के लक्षण प्रकट नहीं होते। ऐसी दशा में इस रोग की पहचान ट्राउसियू के लक्षण (Trousseau's sign) से की जाती है। इसके लिए स्फिग्मोमैनोमीटर (Sphygmomanometer) की कफ (Cuff) को रोगी की भुजा में बाँधकर सिस्टोलिक रक्त दाब (Systolic blood pressure) से अधिक स्फीति (Inflation) देते हैं जिसके कारण तीन मिनट के अन्दर हाथ में ऐंठन (Carpal spasm) होने लगती है। कैल्शियम ग्लूकोनेट का इन्जेक्शन देने से रोगी को आराम मिल जाता है।

 

(3) पेशीय दुष्पोषण (Muscular Dystrophy)

  • पेशीय दुष्पोषण आनुवंशिक पेशी-विनाशक रोगों के एक समूह को सन्दर्भित करता है जिनके कारण कंकालीय पेशी तन्तुओं का क्रमिक अपकर्षण (Progressive degeneration) होता है। इस रोग में तन्त्रिका तन्त्र का आवेष्टन (Involvement) नहीं होता। क्षीणता (Wasting) एवं कमजोरी (Weakness) सममितीय होती हैपूलिकीयता (Fasciculation) नहीं होती तथा कंडरा अभिव्यक्ति (Tendon reflexes) लम्बी अवधि तक बनी रहती है। दूशान पेशीय दुष्पोषण (Duchenne muscular dystrophy, DMD) पेशीय दुष्पोषण का सर्वाधिक सामान्य रूप है। यह रोग केवल लड़कों में ही होता है क्योंकि इस रोग से सम्बन्धित उत्परिवर्ती जीन गुणसूत्र पर स्थित होती है तथा नर में केवल एक ही X-गुणसूत्र पाया जाता है। यह व्यतिक्रम 2 से 5 वर्ष की आयु में प्रकट हो जाता है तथा 12 वर्ष की आयु होते-होते रोगी चलने में असमर्थ हो जाता है। 20 वर्ष की आयु तक श्वसनीय अथवा हृदयी असफलता के कारण रोगी की मृत्यु हो जाती है।

 
कंकाल तन्त्र के विकार (Disorders of Skeletal System)

सन्धिशोथ (Arthritis) 

  • यह सन्धियों के शोथ से होने वाला रोग (Inflammatory joint disease) है। सन्धिशोथ अनेक प्रकार का होता हैजैसे- रुमेटी सन्धिशोथ (Rheumatoid arthritis), अस्थि सन्धिशोथ (Osteoarthritis), गाउटी सन्धिशोथ (Gouty arthritis), यक्ष्मज सन्धिशोथ (Tuberculous arthritis), एन्काइलोजिंग स्पॉन्डिलाइटिस (Ankylosing spondylitis) आदि ।

 

i) रुमेटी सन्धिशोथ (Rheumatoid arthritis) - 

  • यह सन्धियों के शोथ से होने वाला सबसे सामान्य रोग है जिसमें छोटे-बड़े ( परिधीय सन्धियों (Peripheral joints) के प्रभावित होने के साथ-साथ दैहिक असामान्यता उत्पन्न होती है। इस विकार से ग्रस्त रोगी के रक्त में एन्टीग्लोब्यूलिन प्रतिरक्षी या रुमेटी कारक (Antiglobulin anti- bodies or Rheumatoid factors) पाये जाते हैं। इस रोग में साइनोवियल झिल्ली तथा उससे सम्बद्ध संयोजी ऊतक में सूजन एवं संकुलता (Swelling and congestion) आ जाती है तथा उसमें लिम्फोसाइट विशेषकर CD4कोशिकाओंप्लाज्मा कोशिकाओं तथा वृहत भक्षकाणुओं (Macrophages) का अन्तःसरण (Infiltration) हो जाता है। साइनोवियल तरल के स्यन्दन (Effusion) के कारण दबाव बढ़ जाने से पीड़ा होती है। साइनोवियल झिल्ली की अतिवृद्धि (Hypertrophy) के कारण कणिकायन ऊतक (Granulation tissue) विकसित होता है जिसे पैनस (Pannus) कहते हैं। यह सन्धायी उपास्थि (Articular cartilage) के ऊपर-नीचे फैलने लगता है जिससे उपास्थि का अपरदन (Erosion) तथा विघटन (Destruction) होने लगता है। धीरे-धीरे अस्थियों से सम्बन्धित तन्तुमय ऊतक अस्थिकृत हो जाता है तथा सन्धियाँ अचल हो जाती हैं।

 

(ii) अस्थि सन्धिशोथ (Osteoarthritis)- 

  • यह एक हासी (Degenerative) रोग है जिसमें सन्धायी उपास्थि के ह्रास के साथ-साथ नयी अस्थियोंउपास्थियों तथा संयोजी ऊतक का प्रचुरोद्भवन (Proliferation) होता है। इन परिवर्तनों के कारण सन्धि की रूपरेखा (Joint contour) का पुनर्प्रतिरूपण (Remodelling) हो जाता है। इस विकार में मुख्यतया मेरुदण्डकूल्हे एवं घुटने प्रभावित होते हैं। 

(iii) गाउटी सन्धिशोथ (Gouty arthritis)- 

  • यह यूरिक अम्ल के अत्यधिक उत्पादन एवं उसके उत्सर्जन की अक्षमता के कारण होता है। इसके परिणामस्वरूप मोनोसोडियम यूरेट मोनोहाइड्रेट रवों (Monosodium urate monohydrate crystals) के रूप में यूरिक अम्ल के सोडियम लवण सन्धियों में जमा हो जाते हैं।

 

(iv) यक्ष्मज सन्धिशोथ (Tuberculous arthritis) - 

  • यह रोग माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस (Mycobacterium tuberculosis) नामक जीवाणु के संक्रमण के कारण उत्पन्न विषाक्त संधिशोथ (Septic arthritis) है। यह भी एक हासी रोग है। इस व्याधि में भी पैनस (Pannus) विकसित होता है।

 

(2) अस्थिसुषिरता (Osteoporosis) 

इस रोग में शरीर में अस्थि की मात्रा में कमी हो जाती है जिसके फलस्वरूप हल्के से आघात से ही अस्थि भंग हो जाती है। यह एक सामान्य उपापचयी अस्थि रोग (Metabolic bone disease) है। अस्थिसुषिरता को दो प्रत्यावर्ती (Involutional) प्रकारों में विभेदित किया जा सकता है- प्रथम प्रकार (Type I) तथा द्वितीय प्रकार (Type II) 

प्रथम प्रकार की अस्थिसुषिरता रजोनिवृत्ति (Menopause) से सम्बन्धित होती है जिसमें रजोनिवृत्ति के पश्चात् रोगी की ह्यूमरसपसलियाँ एवं कूल्हे तथा कलाई की अस्थियाँ हल्के आचात (Minimal trauma) से ही भंग हो जाती हैं तथा कशेरुक दण्ड में तीव्र पीड़ा होती है। 

  • द्वितीय प्रकार की अस्थिसुषिरता (Type II Osteoporosis) उम्र आधारित (Age related) होती है जो 70 वर्ष या अधिक उम्र वाले व्यक्तियों में होती है। इसे जराजीर्ण अस्थिसुषिरता (Senile osteoporosis) कहते हैं। इसके प्रमुख लक्षण हैं- लम्बाई में उत्तरोत्तर कमीवक्षीय कूबड़ (Thoracic kyphosis), वेज भंग (Wedge fracture), कूल्हा भंग (Hip fracture) आदि। इस रोग के प्रमुख जोखिम कारक (Risk factors) हैं- अस्थि निर्माण में कमीकैल्शियम अपावशोषण (Calcium malabsorption), क्षीण विटामिन-उपापचयदीर्घकालिक कॉर्टिकोस्टीरॉएड उपचार (Corticosteroid therapy), गतिहीनता (Immobilisation), शारीरिक व्यायाम का अभाव तथा अत्यधिक धूम्रपान एवं मदिरापान आदि।

गाउट (Gout) 

  • यूरिक अम्ल एक अपशिष्ट उत्पाद है जिसका उत्पादन न्यूक्लिक अम्ल (DNA तथा RNA) उपइकाइयों के उपापचय के दौरान होता है। गाउट से ग्रसित व्यक्ति में या तो यूरिक अम्ल की अत्यधिक मात्रा उत्पादित होती है या फिर उसमें यूरिक अम्ल का उत्सर्जन उतना नहीं होता जितना सामान्यतः होना चाहिए। इसके परिणामस्वरूप रक्त में यूरिक अम्ल का वर्धन हो जाता है। यह अतिरिक्त यूरिक अम्ल सोडियम के साथ प्रतिक्रिया करके एक लवण बनाता है जिसे मोनोसोडियम यूरेट मोनोहाइड्रेट (Monosodium urate monohydrate) कहते हैं। इस लवण के रवे मुलायम ऊतकों जैसे वृक्कों तथा कानों एवं सन्धियों की उपास्थियों में एकत्रित हो जाते हैं। वास्तव में गाउट कोई एक रोग नहीं है अपितु इस शब्द का उपयोग अनेक व्यक्तिक्रमों के लिए किया जाता है जिनमें मोनोसोडियम यूरेट मोनोहाइट्रेट के शरीर के विभिन्न स्थानों पर एकत्रित होकर गाउटी सन्धिशोथ (Gouty arthritis), टीनोसाइनोवाइटिस (Tenosynovitis), श्लेषशोथ (Bursitis) या सेल्यूलाइटिस (Cellulitis), यूरोलिथियासिस (Urolithiasis) तथा वृक्क रोग (Renal disease) उत्पन्न होते हैं।

 

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