शारीरिक द्रव एवं परिसंचरण महत्वपूर्ण तथ्य | BODY FLUIDS AND CIRCULATION FACT

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 शारीरिक द्रव एवं परिसंचरण महत्वपूर्ण तथ्य 

शारीरिक द्रव एवं परिसंचरण महत्वपूर्ण तथ्य | BODY FLUIDS AND CIRCULATION FACT

 

शारीरिक द्रव एवं परिसंचरण महत्वपूर्ण तथ्य 

  • शरीर के अन्दर विभिन्न पदार्थों का संवहन या परिवहन परिसंचरण कहलाता है। परिसंचरण में भाग लेने वाले शरीर के सभी अंग मिलकर एक तंत्र का निर्माण करते हैं, जिसे परिसंचरण तंत्र कहते हैं। 
  • परिसंचरण तंत्र दो प्रकार का होता है- (1) खुला परिसंचरण तंत्र एवं (ii) बन्द परिसंचरण तंत्र। 
  • खुला परिसंचरण तंत्र, वह परिसंचरण तंत्र है, जिसमें रुधिर देहगुहा में स्वतंत्र रूप से बहता है। उदाहरण- तिलचट्टा । 
  • बन्द परिसंचरण तंत्र, वह परिसंचरण तंत्र है, जिसमें रुधिर हमेशा बन्द वाहिनियों में ही बहता है। 
  • एककोशिकीय जन्तुओं के समान जीवों में परिसंचरण जीवद्रव्य प्रवाही गति के कारण होता है। 
  • स्पंजों में परिसंचरण जल धारा के नलिका तंत्र में प्रवाह के कारण होता है। 
  • सीलेण्ट्रेटा में परिसंचरण शरीर भित्ति के संकुचन तथा शिथिलन से उत्पन्न जल धारा द्वारा होता है। 
  • ऐनीलिडा जन्तुओं से रुधिर परिसंचरण का प्रारम्भ होता है। 
  • ऑर्थोपोडा जन्तुओं में खुला तथा कशेरुकियों में बन्द परिसंचरण पाया जाता है। 
  • रुधिर परिसंचरण तंत्र की खोज विलियम हार्वे ने की थी। 
  • स्तनधारियों एवं मनुष्य में हृदय चार कोष्ठों में विभाजित होता है, जिसमें दो आलिन्द एवं दो निलय होते हैं। 
  • S.A. Node (साइनो ऑरिकुलर नोड) को गति नियन्त्रक (Pace maker) कहते हैं। 
  • जब देहगुहा में रुधिर पाया जाता है, तब इसे हीमोसीन कहते हैं।  
  • स्वायत्त तंत्रिका तंत्र एवं वेगस तंत्रिकाओं द्वारा हृदय स्पन्दन दर का नियन्त्रण होता है।
  • बन्द रुधिर परिवहन में रुधिर बन्द नलियों में प्रवाहित होता है, जबकि खुला परिवहन तंत्र में रुधिर नलियों में प्रवाहित नहीं होता है। 
  • निलय एक बार में जितना रुधिर फेंकता है उसे हृदय की क्षमता कहते हैं। 
  • लसीका स्वच्छ तरल द्रव है, जो लसीका वाहिनियों में प्रवाहित होता है। 
  • स्वस्थ व्यक्ति में सामान्य हृदय स्पन्दन दर 72 बार प्रति मिनट होती है। 
  • स्तनधारियों में R.B.Cs. केन्द्रकविहीन होती है, परन्तु अन्य कशेरुकियों में R.B.Cs. केन्द्रकयुक्त होती है। 
  • एरिथ्रोसाइट की संख्या हीमोग्लोबिन के कम होने के कारण कम होती है, इस रोग को ऐनीमिया कहते हैं। यह Fe तत्व की कमी के कारण होती है। 
  • जब चोटग्रस्त भाग पर रुधिर का थक्का नहीं जमता है इस रोग को हीमोफिलिया कहते हैं। 
  • प्रतिजामन (Anti-coagulents)-ऐसे पदार्थ जो रुधिर का स्कन्दन नहीं होने देते हैं, हीपेरिन एवं जॉक की मुख ग्रन्थियों द्वारा स्रावित हिरुडीन नामक रासायनिक पदार्थ रुधिर का स्कन्दन नहीं होने देते। 
  • इलेक्ट्रोकार्डियोग्राम (ECG)- इस मंत्र द्वारा हृदय स्पन्दन दर का पता लगाया जाता है। 
  • सभी ऑथ्रोपोड्स में खुला परिसंचरण तंत्र पाया जाता है जबकि सभी कशेरुकियों और कुछ अकशेरुकियों जैसे-केंचुआ में बन्द परिसंचरण तंत्र पाया जाता है। 
  • हृदय की दीवार बाहर से अन्दर की ओर एपिकार्डियम तथा इण्डोकार्डियम की बनी होती है। 
  • एपिकार्डियम उपकला ऊतकों, मायोकार्डियम हृदय पेशियों एवं कोलेजन तन्तुओं और एण्डोकार्डियम एण्डोचीलियम कोशिकाओं, संयोजी ऊतकों व इलास्टिन तन्तुओं की बनी होती है।
  • बड़े जन्तुओं की प्रति मिनट हृदय गति कम तथा छोटे जन्तुओं की अधिक होती है। हाथी का हृदय एक मिनट में केवल 25 बार धड़कता है। 
  • नाड़ी मापन का यन्त्र स्फिग्मोमीटर (Sphygmometer) कहलाता है, जबकि नाड़ी के ग्राफ के रूप में अंकित करने वाले उपकरण को स्फिग्मोग्राम कहते हैं। 
  • आलिन्द हृदय का वह कोष्ठ है, जिसमें रुधिर आता है। 
  • आलिन्द के दो कोष्ठ होते हैं। दायें भाग में ऑक्सीजनविहीन रुधिर शरीर के विविध भागों से आता है, जबकि बायें भाग में फेफड़ों से ऑक्सीजनयुक्त रुधिर आता है। 
  • S.A.N. (साइनो ऑरिकुलर नोड) - दाहिने आलिन्द की दीवार में स्थित तन्त्रिका कोशिकाओं का समूह है। जिससे हृदय धड़कन की तरंग प्रारम्भ होती है। 
  • A.V. N. (ऑरिकुलो वेण्टिकुलर नोड) - विशिष्ट कोशिकाओं का समूह जो आन्तरआलिन्द पट पर स्थित होता है और S.A.N. की तरंगों की उद्दीपन को ग्रहण करता है 
  • हृदय के संकुचन से धमनियों की दीवारों पर पड़ने वाला दाब रुधिर दाब कहलाता है। द्विवलन कपाट (Bicuspid valve)-बायें आलिन्द-निलय छिद्र का कपाट। 
  • त्रिवलन कपाट (Tricuspid valve)- दायें आलिन्द निलय छिद्र पर पाया जाने वाला कपाट। 
  • ई.सी.जी. (इलेक्ट्रोकार्डियोग्राम) - हृदय की विद्युत् तरंगों को ग्राफ के रूप में प्रदर्शित करने वाला उपकरण। 
  • हीमोसायटोमीटर (Hemocytometer)- इस यंत्र की सहायता से R.B.Cs. की संख्या ज्ञात की जाती है। 
  • ल्यूकेमिया-इस रोग में W.B.Cs. की संख्या में वृद्धि होती है, इसे रुधिर कैन्सर (Blood cancer) के नाम से जाना जाता है। 
  • स्टेथोस्कोप (Stethoscope)- इसका उपयोग हृदय ध्वनि के सुनने में किया जाता है। 
  • स्फिग्नोमीटर (Sphygnometer)- इस यंत्र की सहायता से हृदय का रुधिर दाब मापा जाता है। 
  • मनुष्य का सामान्य प्रकुंचन तथा शिथिलन दाय 120/80 mm Hg होता है। 


उत्तर-कशेरुकी के हृदयों में विकासीय परिवर्तन- 

(1) मछलियों का हृदय (Fish heart) - 

  • मछलियों का हृदय दो कोष्ठों, एक आलिन्द (Auricle) एवं  एक निलय (Ventricle) का बना होता है। इन दोनों कोष्ठों में ऑक्सीजनरहित रुधिर आता है तथा यहाँ से यह रुधिर ऑक्सीजनीकरण (Oxygenation) के लिये गलफड़ों (Gills) में पम्प किया जाता है। अतः मछलियों के हृदय को बैंकियल (Branchial) या वीनस हृदय (Venous heart) कहते हैं। गलफड़ों में रुधिर का ऑक्सीजनीकरण होने के पश्चात् पृष्ठ महाधमनी के द्वारा शरीर के विभिन्न भागों में भेजा जाता है।
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2) उभयचरों का हृदय (Amphibian heart) - 

  • उभयचरों का हृदय तीन कोष्ठों, दो आलिन्द तथा एक निलय का बना होता है। शरीर के विभिन्न भागों का रुधिर शिरापात्र में एकत्रित होकर दाहिने आलिन्द में जाता है। यहाँ से यह निलय से होते हुए फेफड़ों में ऑक्सीजन युक्त होने के लिए जाता है, वहाँ से यह लौटकर पुनः हृदय के बायें आलिन्द में होते हुए निलय में आता है। इस प्रकार निलय में ऑक्सीजन युक्त तथा ऑक्सीजन विहीन दोनों रुधिर एक साथ आते हैं। इस प्रकार मेढक के आलिन्द में तो ऑक्सीजन युक्त और ऑक्सीजन विहीन रुधिर अलग-अलग रहते हैं लेकिन निलय में मिश्रित हो जाते हैं। यह मिश्रित रुधिर ही कैरोटिड (Carotid) तथा सिस्टेमिक (Systemic) चापों द्वारा शरीर के विभिन्न भागों को वितरित कर दिया जाता है।
2) उभयचरों का हृदय (Amphibian heart) -


 

(3) सरीसृपों का हृदय (Reptilian heart) - 

  • कम विकसित सरीसृपों का हृदय तीन कोष्ठों लेकिन विकसित सरीसृपों का चार कोष्ठों, 2 आलिन्द तथा 2 निलय का बना होता है। सरीसृपों में शरीर के विविध भागों से एकत्रित ऑक्सीजन विहीन रुधिर दाहिने आलिन्द में तथा फेफड़ों से आया ऑक्सीजन युक्त रुधिर बायें आलिन्द में आता है। आलिन्दों के संकुचित होने पर आलिन्दों का रुधिर निलय में चला जाता है लेकिन निलय में दो कोष्ठ होने के कारण वहाँ पर भी यह नहीं मिलता है। निलय संकुचन के बाद दाहिने भाग का रुधिर फेफड़ों में ऑक्सीजन युक्त होने के लिए चला जाता है जबकि बायें निलय का ऑक्सीजन युक्त रुधिर धमनियों द्वारा शरीर के विविध भागों में वितरित हो जाता है।

 

(3) सरीसृपों का हृदय (Reptilian heart) -
Reptilian Heart

4 पक्षियों एवं स्तनियों का हृदय (Avian and mammalian heart)

  • पक्षियों का हृदय स्पष्ट रूप से चार कोष्ठों का बना होता है। शरीर के विभिन्न भागों से एकत्रित ऑक्सीजन विहीन रुधिर दाहिने आलिन्द से, दाहिने निलय, दाहिने निलय से पल्मोनरी महाधमनी (Pulmonary aorta) द्वारा ऑक्सीजन युक्त होने के लिए फेफड़ों में चला जाता है, जो लौटकर पुनः बायें आलिन्द में आता है और वहाँ से बायें निलय में होते हुए कैरोटिको सिस्टेमिक आर्च (Carotico systemic arch) द्वारा शरीर के विभिन्न भागों में चला जाता है। इस प्रकार पक्षियों के हृदय के दाहिने भाग में ऑक्सीजन विहीन तथा बायें भाग में ऑक्सीजन युक्त रुधिर रहता है।

4 पक्षियों एवं स्तनियों का हृदय (Avian and mammalian heart)


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