न्यूटन का गति का
प्रथम नियम (Newton's
First Law of Motion)
- हम जानते हैं किसी वस्तु में गति उत्पन्न करने के लिए हमें उस पर बल लगाना पड़ता है। साइकिल सवार को साइकिल चलाने के लिए इसके पैडल पर बल लगाना पड़ता है। मोटर कार में पेट्रोल का इंजन, कार को चलाने के लिए आवश्यक बल प्रदान करता है। बैलगाड़ी में बैल अपनी माँसपेशियों पर खिचाव उत्पन्न करके बल लगाते हैं। नाव पर जल को पीछे धकेलकर बल लगाया जाता है। गैलीलियो से पूर्व वैज्ञानिकों का विचार था कि गति उत्पन्न करने के लिए वस्तु पर लगाया गया बाह्य प्रभाव जब तक उपस्थित रहता है, वस्तु में गति बनी रहती है, अर्थात् वस्तु को गतिमान बनाए रखने के लिए भी बल की आवश्यकता होती है। जब तक साइकिल के पैडल पर बल लगाते हैं, साइकिल चलती रहती है। यदि हम पैडल चलाना बन्द कर दें, तो साइकिल रुक जाती है। इसी प्रकार, कार का इंजन बन्द होने पर कार रुक जाती है, बैलों के रुक जाने पर बैलगाड़ी रुक जाती है और पतवार चलाना बन्द कर देने पर नाव भी रुक जाती है।
- गैलीलियो ने उपर्युक्त विचार को सही नहीं माना। हम अपने दैनिक जीवन के अनुभव से यह जानते हैं कि साइकिल के पैडल को यदि घुमाना बन्द कर दें, तो साइकिल कुछ दूर तक चलकर रुकती है, न कि पैडल घुमाना रोकते ही। यदि साइकिल के पुर्जी में अच्छी तरह ग्रीज अथवा तेल डालकर घर्षण कम कर दें तथा इसे एक चिकनी समतल सड़क पर चलाकर पैडल चलाना बन्द करें, तो साइकिल बहुत दूर तक चलती रहती है और उसके बाद रुकती है। चूंकि हम घर्षण को पूर्णतः समाप्त नहीं कर पाते हैं, अन्यचा पैडल चलाना बन्द कर देने के बाद भी इसे चलते रहना चाहिए था। इस प्रकार, यह निष्कर्ष निकलता है कि यदि घर्षण बिल्कुल न हो, तो एक बार गति में आने के बाद वस्तु की गति को बनाए रखने के लिए किसी बल को आवश्यकता नहीं होती है।
इस आधार पर न्यूटन ने निम्नलिखित नियम प्रतिपादित किया :
यदि कोई वस्तु स्थिर अवस्था में है, तो वह स्थिर ही रहेगी और यदि वह गति अवस्था में है, तो वह उसी वेग से उसी दिशा में गतिमान रहेगी, जब तक कि उस पर कोई बाहरी बल नहीं लगाया जाता है। इसे न्यूटन का गति विषयक प्रथम नियम कहते हैं।
इस नियम को हम अग्रलिखित दो भागों में बाँट सकते हैं:
नियम का पहला भाग जड़त्व की परिभाषा बताता है :
(1) नियम का पहला भाग जड़त्व की परिभाषा बताता है जिसके अनुसार
कोई भी वस्तु अपनी वर्तमान अवस्था को स्वयं नहीं बदल सकती है। वस्तु यदि विरामावस्था में है, तो वह रुकी ही रहेगी और यदि किसी दिशा में चल रही है, तो वह उसी दिशा में उसी वेग से चलती ही रहेगी।
- उदाहरण के लिए, मेज पर रखी पुस्तक अपने स्थान पर ही रखी रहेगी जब तक कि उसे हटाया न जाए। इसी प्रकार, क्षैतिज तल पर लुढ़कती हुई गेंद लुढ़कती ही रहेगी जब तक कि तल का घर्षण बल उसे रोक नहीं देता है।
वस्तु के इस गुण को जिससे कि वह अपनी वर्तमान अवस्था को न तो बदलती है और न बदलना चाहती है, जड़त्व (inertia) कहा जाता है। यह प्रत्येक वस्तु का अन्तर्निहित गुण होता है। वस्तु का द्रव्यमान, उसके जड़त्त्व की माप होता है। वस्तु का द्रव्यमान जितना अधिक होता है, उसका जड़त्व भी उतना ही अधिक होता है।
(2) नियम का दूसरा भाग बल की परिभाषा बताता है जिसके अनुसार
बल यह बाह्य कारक है, जो वस्तु की विराम अवस्था अथवा गति अवस्था को बदलने की चेष्टा करता है।
- यह आवश्यक नहीं है कि बल का प्रभाव सदैव प्रदर्शित ही हो, जैसे कि यदि हम दीवार पर धक्का लगाएँ तो बल तो अवश्य लग रहा है, परन्तु हम दीवार में गति उत्पन्न नहीं कर पाते हैं। यदि वस्तु गति करने के लिए स्वतन्त्र नहीं है तो वस्तु पर बल लगाने से उसके आकार अथवा आकृति में परिवर्तन हो जाता है।
- उदाहरण के लिए, एक तार को बल लगाकर खींचने से उसकी लम्बाई बढ़ जाती है। हथौड़े से लोहे को पीटने पर वह चपटा हो जाता है। रबर की एक छोटी गेंद को हथेलियों के बीच रखकर दबाने पर वह पिचक जाती है।
इस प्रकार,
बल वह बाह्य कारक है, जो वस्तु की विराम अवस्था में अथवा गति अवस्था में अथवा उसके आकार व आकृति में परिवर्तन करता है या परिवर्तन करने की चेष्टा करता है।
- बल एक भौतिक राशि है जिसे नापा जा सकता है। इसका S.1. मात्रक न्यूटन (N) है तथा विमीय सूत्र [MLT-2] है। बल एक सदिश राशि है।
संवेग (Momentum)
- यह हमारा दैनिक जीवन का अनुभव है कि विराम अवस्था से एक अधिक द्रव्यमान के पिण्ड को किसी समयान्तर में कोई वेग प्रदान करने के लिए अधिक बल लगाना पड़ता है, जबकि एक कम द्रव्यमान के पिण्ड को उसी समयान्तर में वही वेग प्रदान करने के लिए कम बल लगाना पड़ता है।
- उदाहरण के लिए, यदि हम बोझ रखी साइकिल को चलाना चाहें तो अधिक बल लगाना पड़ेगा, जबकि खाली साइकिल को चलाने के लिए कम बल लगाना पड़ेगा।
- अब यदि समान वेग से गतिमान एक अधिक तथा एक कम द्रव्यमान की वस्तुओं को समान समय में विराम में लाना चाहें तो हमें अधिक द्रव्यमान की वस्तु पर अधिक बल लगाना पड़ेगा, जबकि कम द्रव्यमान की वस्तु पर कम बल लगाना पड़ेगा।
- इसी प्रकार, यदि एक भारी व एक हल्की वस्तु पर समान बल समान समय तक लगाया जाए, तो हल्की वस्तु अधिक वेग से तथा भारी वस्तु कम वेग से चलने लगती है। उदाहरण के लिए, रबर की एक गेंद तथा लोहे की एक गेंद दोनों प्रारम्भ में विराम अवस्था में हैं, तो दोनों गेंदों के लिए उनके द्रव्यमान तथा वेग का गुणनफल शून्य होगा। अब यदि दोनों गेंदों पर समान बल, समान समय के लिए लगा दिया जाए, तो हम देखते हैं कि रबर की गेंद का वेग, लोहे की गेंद के वेग की अपेक्षा अधिक होता है, लेकिन दोनों गेंदों के लिए उनके द्रव्यमान तथा वेग का गुणनफल समान रहता है।
उपर्युक्त उदाहरणों से यह निष्कर्ष निकलता है कि...
- विरामावस्था में रखी किसी वस्तु को गति प्रदान करने के लिए अथवा किसी गतिमान वस्तु को रोकने के लिए आवश्यक बल का परिमाण, वस्तु के द्रव्यमान तथा उसके वेग दोनों पर निर्भर करता है। इस प्रकार, गति के लिए वस्तु के द्रव्यमान तथा उसके वेग का गुणनफल mv एक बिल्कुल भिन्न माप है। इस राशि को वस्तु का संवेग कहते हैं।
संवेग की परिभाषा-
किसी वस्तु के द्रव्यमान और उसके वेग के गुणनफल को उस वस्तु का संवेग कहते हैं। संवेग एक सदिश राशि है।
- संवेग का S.I. मात्रक किलोग्राम मीटर प्रति सेकण्ड होता है। इसे न्यूटन सेकण्ड भी लिख सकते हैं। संवेग का C.G.S. मात्रक ग्राम सेमी/सेकण्ड है। इसका विमीय सूत्र (MLT-1] है।
संवेग के दैनिक जीवन के उदाहरण (Some examples of momentum in daily life)
(1) यदि दो वस्तुएँ समान वेग से गतिमान हैं, तो भारी वस्तु का संवेग, हल्की वस्तु के संवेग से अधिक होता है। अर्थात् भारी वस्तु का संवेग अधिक तथा हल्की वस्तु का संवेग कम होगा। उदाहरण के लिए, समान वेग से गतिमान कार का संवेग, टेनिस की गेंद के संवेग से अधिक होगा।
(2) यदि दो वस्तुओं के संवेग समान हैं, तो हल्की वस्तु का वेग, भारी वस्तु के वेग की अपेक्षा अधिक होगा। अर्थात् हल्की वस्तु का वेग, भारी वस्तु के वेग को अपेक्षा अधिक होगा। उदाहरण के लिए, बन्दूक से जब गोली बाहर निकलती है, तो बन्दूक व गोली दोनों के संवेगों के परिमाण बराबर होते हैं, अतः गोली (हल्की वस्तु) का वेग, बन्दूक (भारी वस्तु) के प्रतिक्षिप्त वेग की अपेक्षा बहुत अधिक होता है।