सार्थक अंक क्या होते हैं ?
सार्थक अंक (Significant Digits)
- प्रत्येक राशि की माप में अन्तिम अंक संदिग्ध होता है क्योंकि मापक यन्त्र की यथार्थता की सीमा होती है। किसी राशि की माप में शुद्ध रूप से ज्ञात अंकों को सार्थक अंक (significant digits) कहते हैं।
- उदाहरण के लिए, साधारण पैमाने से नापी गयी लम्बाई 1.7 सेमी में सार्थक अंक दो हैं। वर्नियर कैलीपर्स से नापी गयी लम्बाई 1.70 सेमी में सार्थक अंक तीन हैं। यदि वर्नियर कैलीपर्स से किसी छड़ की मोटाई 2.46 सेमी प्राप्त होती है, तो राशि 2.46 सेमी में सार्थक अंक तीन हैं। अब यदि यही मोटाई स्क्रूगेज से नापी जाये, जिसकी अल्पतमांक 0.001 सेमी है और मोटाई 2.462 सेमी प्राप्त हो, तो राशि 2.462 सेमी में सार्थक अंक चार हैं।
माप में सार्थक अंकों की गिनती करना (To count the number of significant digits in a measurement)
किसी राशि में सार्थक अंकों की गिनती करते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखते हैं :
(1) राशि के सार्थक अंकों की संख्या पर दशमलव की स्थिति का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। उदाहरण के लिए, 2.46, 24.6 तथा 246 तीनों ही राशियों में सार्थक अंक तीन हैं। (2) मात्रक बदलने से राशि के सार्थक अंकों की संख्या पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। उदाहरण के लिए, 1.7 सेमी को 17 मिमी या 0.017 मीटर भी लिखा जा सकता है, परन्तु प्रत्येक में सार्थक अंक केवल दो हैं।
(3) दो अशून्य संख्याओं (जैसे 1, 2, 3,..., 9) के बीच के समस्त शून्य, सार्थक अंक होते हैं। उदाहरण के लिए, 300-02 में सार्थक अंक पाँच हैं।
(4) यदि दशमलव के पूर्व कोई अशून्य संख्या होती है, तो दशमलव के के सभी शून्य, सार्थक अंक होते हैं, जैसे 2.0042 में सार्थक अंक पाँच हैं।
(5) अन्तिम अशून्य संख्या के दायीं ओर के सभी शून्य, सार्थक अंक होते हैं, जैसे 2500 में सार्थक अंक चार हैं।
6)
प्रथम अशून्य संख्या के बायीं ओर के सभी शून्य, सार्थक अंक नहीं होते हैं
(इन्हें सार्थक अंकों की संख्या गिनने में छोड़ दिया जाता है), जैसे 0.002500 में सार्थक अंक केवल चार हैं।
दशमलव के पहले तथा बाद में आने वाले शून्यों की सार्थकता के भ्रम को दूर करने के लिए माप को सर्वप्रथम संख्या के बायीं ओर से एक अंक के बाद दशमलव लगाकर, 10 की घातों में व्यक्त करते हैं तथा फिर, 10 की घातों के पहले लिखी गयी राशि के सार्थक अंकों की संख्या गिन लेते हैं।
किसी दी गयी राशि को निश्चित सार्थक अंकों में व्यक्त करना
किसी दी गयी राशि को निश्चित सार्थक अंकों वाली राशि में व्यक्त करने के लिए निम्नलिखित दो बातें ध्यान में रखते हैं :
(1) यदि निश्चित सार्थक अंकों के बाद छोड़ी जाने वाली संख्या 5 से कम होती है तो उसके पूर्व की संख्या को अपरिवर्तित रहने देते हैं और यदि संख्या 5 से अधिक होती है, तो उसके पूर्व की संख्या को एक से बढ़ा देते हैं।
(2) यदि छोड़े जाने वाली संख्या 5 है, तो इसके पूर्व विषम संख्या आने पर उसे एक से बढ़ा देते हैं, किन्तु इसके पूर्व सम संख्या आने पर उसे अपरिवर्तित रखते हैं।
उदाहरण : राशि 367.704 में छः सार्थक अंक हैं। इसे चार सार्थक अंकों की राशि में 367.7 व्यक्त किया जायेगा। इसी प्रकार, 52.53 को दो सार्थक अंकों की राशि में 52 (या 5-2 × 10¹) व्यक्त किया जायेगा।
गणना में सार्थक अंक (Significant Digits in Calculations)
जब हम विभिन्न यन्त्रों के द्वारा मापित राशियों से किसी अन्य राशि की गणना करते हैं, तब हमें गणना द्वारा प्राप्त फलों को व्यक्त करने में सार्थक अंकों का ध्यान रखना चाहिए। इससे हम एक तो अनावश्यक गणनाएँ करने से बच जाते हैं तथा दूसरा लाभ यह होता है कि फल की शुद्धता के सम्बन्ध में भी भ्रम नहीं होता है। वास्तव में, किसी गणना द्वारा प्राप्त किसी फल की शुद्धता, मूल मापों की शुद्धता से अधिक नहीं हो सकती है। अतः फल को केवल उचित सार्थक अंकों तक ही व्यक्त करना चाहिए।
(1) जोड़ना तथा घटाना दी गयी राशियों को जोड़ने अथवा घटाने में निम्नलिखित दो बातों का ध्यान रखना चाहिए:
(i) सभी राशियाँ एक ही मात्रक में हों, तथा
(ii) यदि राशियाँ दस की घातों में व्यक्त की गयी हैं, तो वे सभी राशियाँ दस की समान घातों में होनी चाहिए।
तब राशियों को जोड़ने अथवा घटाने पर प्राप्त फल में दशमलव के बाद कुल उतने ही सार्थक अंक होने चाहिए जितने कि जोड़ने अथवा घटाने वाली किसी राशि में दशमलव के बाद कम-से-कम सार्थक अंक होते हैं।