मात्रक पद्धतियाँ |Systems of Units in Hindi

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मात्रक पद्धतियाँ (Systems of Units in Hindi)

मात्रक पद्धतियाँ |Systems of Units in Hindi


मात्रक पद्धतियाँ (Systems of Units) 

मात्रकों की निम्न चार पद्धतियाँ प्रचलित हैं : 

(1) मीटर-किलोग्राम-सेकण्ड (म. क. स.) पद्धति (M. K. S. system)-

  •  इस पद्धति में लम्बाई का मात्रक 'मीटर', द्रव्यमान का मात्रक 'किलोग्रामतथा समय का मात्रक 'सेकण्डहै। व्यवहार में इसी पद्धति का उपयोग किया जाता है।

 

(2) सेण्टीमीटर-ग्राम-सेकण्ड (स. ग. स.) पद्धति (C. G. S. system) 

  • इस पद्धति में लम्बाई का मात्रक 'सेण्टीमीटर', द्रव्यमान का मात्रक 'ग्रामतथा समय का मात्रक 'सेकण्डहै। इस पद्धति को मीट्रिक पद्धति भी कहते हैं। 

(3) फुट-पाउण्ड-सेकण्ड (फ. प. स.) पद्धति (F. P. S. system)- 

  • इस पद्धति में लम्बाई का मात्रक 'फुट', द्रव्यमान का मात्रक 'पाउण्डतथा समय का मात्रक 'सेकण्डहै।

 

(4) अन्तर्राष्ट्रीय मानक पद्धति (S. I. system)-

  • यह M. K. S. पद्धति का परिवर्द्धित रूप है। इस पद्धति में यान्त्रिकी के अतिरिक्त ऊष्माप्रकाशचुम्बकत्व व विद्युत् सम्बन्धी सभी भौतिक राशियों को व्यक्त करने के लिए लम्बाईद्रव्यमान व समय के अतिरिक्त (i) चार अन्य मूल राशियाँ तापज्योति-तीव्रताधारा व पदार्थ की मात्रा एवं (ii) दो पूरक मूल राशियाँ कोण व घन कोणऔर मानी जाती हैं। इस प्रकारअन्तर्राष्ट्रीय मानक पद्धति में कुल सात मूल राशियाँ तथा दो पूरक मूल राशियाँ मानी जाती हैं। इनके मात्रक व संकेत निम्न सारणी में प्रदर्शित हैं।

 

अन्तर्राष्ट्रीय मानक पद्धति की विशेषताएँ (Merits of S. I. system) 

मात्रकों की अन्य पद्धतियों की तुलना में S. 1. पद्धति की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं : 

(1) इस पद्धति में एक भौतिक राशि का केवल एक ही मात्रक होता है। उदाहरण के लिएऊर्जा का मात्रक जूल है चाहे ऊर्जा का कोई भी रूप हो (जैसेयान्त्रिकऊष्मीयविद्युत् आदि) जबकि M.K.S. पद्धति में यान्त्रिक ऊर्जा का मात्रक जूलविद्युत् ऊर्जा का व्यावहारिक मात्रक किलोवाट-घण्टाऊष्मीय ऊर्जा का व्यावहारिक मात्रक कैलोरी होता है। इसी प्रकार S. I. पद्धति में बल का मात्रक न्यूटन हैजबकि M.K.S. पद्धति में बल का गुरुत्वीय मात्रक किग्रा भार तथा निरपेक्ष मात्रक न्यूटन है।

 

(2) यह पद्धति C.G.S. तथा M.K.S. पद्धति की भाँति सुविधाजनक तथा गणना में आसान हैक्योंकि इस पद्धति में भी बड़ी-से-बड़ी तथा छोटी-से-छोटी राशि को दस की घातों के रूप में आसानी से व्यक्त किया जा सकता है। आगे सारणी में दस की घातों के लिए उनके पूर्वलग्नपरिमाण तथा संकेत प्रदर्शित हैं। 

(3) यह पद्धति सम्बद्ध (coherent) है। इस पद्धति में सभी व्युत्पन्न राशियों के मात्रकों को सात मूल मात्रकों तथा दो पूरक मूल मात्रकों के पदों में बिना किसी संख्यात्मक गुणक या स्वेच्छ नियतांक लगाये व्यक्त किया जा सकता है। 

(4) इस पद्धति में लगभग सभी व्युत्पन्न राशियों के मात्रक अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर सर्वमान्य हैं।

 

मात्रकों के प्रतीकों के सम्बन्ध में सावधानियाँ 

S.I. मात्रकों के प्रतीकों को लिखते समय निम्न सावधानियाँ रखनी चाहिए :  

(1) प्रतीकों के बाद कोई विराम बिन्दु नहीं लगाया जाता है। 

(2) वैज्ञानिकों के नाम से सम्बन्धित मात्रकों की spelling छोटे वर्णों से लिखी जाती हैजैसे धारा का मात्रक ऐम्पियर (ampere) बल का मात्रक न्यूटन (newton) हैताप का मात्रक केल्विन (kelvin) हैऊर्जा का मात्रक जूल (joule) हैआदि। इनके संकेत अंग्रेजी के बड़े वर्ण द्वारा लिखे जाते हैंजैसे ऐम्पियर का संकेत A, न्यूटन का संकेत N, केल्विन का संकेत तथा जूल का संकेत है। 

(3) मीटरकिलोग्रामसेकण्डकैण्डेला तथा मोल के संकेत को अंग्रेजी के छोटे वर्णों में लिखा जाता हैजैसे m, kg, s, cd तथा mol । केवल ऐम्पियर तथा केल्विन के संकेत को बड़े वर्गों जैसे तथा द्वारा व्यक्त करते हैं। ध्यान रहे कि कैण्डेला के संकेत में दोनों वर्ण तथा छोटे हैंअन्यथा Cd लिखने से यह कैडमियम का रासायनिक प्रतीक बन जायेगा। 

(4) प्रतीकों के बहुवचन (plural) नहीं लिखे जाते हैंजैसे10 मीटर को 10लिखा जायेगान कि 10 ms, क्योंकि 10 ms का अर्थ होगा : 10 मिलीसेकण्ड । 

(5) पूर्वलग्न के प्रतीक को मात्रक के प्रतीक के साथ मिलाकर लिखा जाता है। इनके बीच न तो कोई स्थान छोड़ा जाता है और न ही कोई अन्य चिह्न (जैसे डॉटक्रॉसहाइफन आदि) लगाया जाता है। जैसे नैनोमीटर के लिए nm, मेगा जूल के लिए MJ, माइक्रोसेकण्ड के लिए µs लिखा जायेगा। 

(6) दो या दो से अधिक मात्रकों के गुणा या भाग से प्राप्त मात्रक का प्रतीकउन मात्रकों के प्रतीकों पर घात लगाकर व्यक्त मीटर करते हैं तथा प्रत्येक मात्रक के प्रतीक के बीच कुछ स्थान छोड़कर उसे लिखते हैं।  

 

मूल तथा व्युत्पन्न मात्रक (Fundamental and Derived Units) 

मूल राशियों के मात्रकों को मूल मात्रक कहते हैं तथा व्युत्पन्न राशियों के मात्रकों को व्युत्पन्न मात्रक कहते हैं। 

इस प्रकारमात्रक दो प्रकार के होते हैं: (1) मूल मात्रकतथा (2) व्युत्पन्न मात्रक।

 

(1) मूल मात्रक (Fundamental units) -

  • वे मात्रक जो एक-दूसरे से स्वतन्त्र होते हैंअर्थात् एक-दूसरे में नहीं बदले जा सकते हैं तथा जिनका एक-दूसरे से कोई सम्बन्ध नहीं होता हैमूल मात्रक कहलाते हैं। यान्त्रिकी में लम्बाईद्रव्यमान तथा समय के मात्रक मूल मात्रक कहलाते हैं। 
  • वास्तव मेंअन्तर्राष्ट्रीय मानक पद्धति में सात मूल मात्रक हैं। लम्बाईद्रव्यमानसमयतापज्योति-तीव्रताधारा तथा पदार्थ की मात्रा के मात्रकमूल मात्रक माने जाते हैं। इसके अतिरिक्तकोण व घन कोण के मात्रकपूरक मूल मात्रक माने जाते हैं।

 

(2) व्युत्पन्न मात्रक (Derived units) - 

  • वे मात्रक जो एक-दूसरे से स्वतन्त्र नहीं होते हैं तथा मूल मात्रकों से ही प्राप्त किये जाते हैंव्युत्पन्न मात्रक कहलाते हैं। उदाहरण के लिएक्षेत्रफलआयतनघनत्वचालत्वरणबलकार्य इत्यादि के मात्रकमूल मात्रकों पर उपयुक्त घातें लगाकर व्यक्त किये जाते हैं। अत: इन राशियों के मात्रकव्युत्पन्न मात्रक कहलाते हैं।

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