रासायनिक समन्वय तथा एकीकरण
रासायनिक समन्वय तथा एकीकरण
- तंत्रिका तंत्र विभिन्न अंगों के बीच एक बिंदु दर बिंदु द्रुत समन्वय का कार्य करता है। तंत्रिकीय समन्वय काफी तेज लेकिन अल्प अवधि का होता है।
- तंत्रिका तंतुओं द्वारा शरीर की सभी कोशिकाओं का तंत्रिकायन नहीं होने के करण कोशिकीय क्रियाओं के लिए तथा निरंतर नियमन के लिए एक विशेष प्रकार के समन्वय की आवश्यकता होती है। यह कार्य हार्मोन द्वारा संपादित होता है।
- तंत्रिका तंत्र और अंत: स्रावी तंत्र मिलकर शरीर की शरीर क्रियात्मक कार्यों का समन्वय और नियंत्रण करते हैं।
अंतःस्त्रावी ग्रंथियां और हार्मोन
अंत:स्त्रावी ग्रंथियों में नलिकाएं नहीं होती हैं अतः वे नलिकाविहीन ग्रंथियां कहलाती हैं। इनके स्राव हार्मोन कहलाते हैं।
हार्मोन की चिरसम्मत परिभाषा के अनुसार
'हार्मोन अंतःस्रावी ग्रंथियों द्वारा स्त्रवित रक्त में मुक्त किए जाने वाले रसायन हैं, जो दूरस्थ लक्ष्य अंग तक पहुँचाए जाते हैं।'
परंतु इस परिभाषा को अब रूपांतरित किया गया है जिसके अनुसार
'हार्मोन सूक्ष्म मात्रा में उत्पन्न होने वाले अपोषक रसायन हैं जो अंतरकोशिकीय संदेशवाहक के रूप में कार्य करते हैं'
- इस नई परिभाषा के अंतर्गत सुनियोजित अंतःस्रावी ग्रंथियों से स्रावित हार्मोन के अतिरिक्त कई नये अणु भी सम्मिलित हो जाते हैं। अकशेरुकियों में कम हार्मोन के साथ एक सरल अंतःस्रावी तंत्र होता है जबकि कशेरूकियों में कई रसायन हार्मोन की तरह कार्य कर उनमें समन्वय स्थापित करते हैं।
मानव अंतःस्त्रावी तंत्र
- अंत:स्त्रावी ग्रंथियां और शरीर के विभिन्न भागों में स्थित हार्मोन स्त्रवित करने वाले ऊतक/कोशिकाएं मिलकर अंतःस्रावी तंत्र का निर्माण करते हैं।
- पीयूष ग्रंथि, पिनियल ग्रंथि, थाइरॉयड, एड्रीनल, अग्नाशय, पैराथायरॉइड, थाइमस और जनन ग्रंथियां (नर में वृषण और मादा में अंडाशय) हमारे शरीर के सुनियोजित अंत: स्रावी अंग हैं।
- इनके अतिरिक्त कुछ अन्य अंग जैसे कि जठर-आंत्रीय मार्ग, यकृत, वृक्क, हृदय आदि भी हार्मोन का उत्पादन करते हैं।
हाइपोथैलेमस
हाइपोथैलेमस, डाइनसिफेलॉन (अग्रमस्तिष्क पश्च) का आधार भाग है और यह शरीर के विविध प्रकार के कार्यों का नियंत्रण करता है। इसमें हार्मोन का उत्पादन करने वाली कई तंत्रिकास्त्रावी कोशिकाएं होती हैं जिन्हें न्यूक्ली कहते हैं। ये हार्मोन पीयूष ग्रंथि से स्रवित होने वाले हार्मोन के संश्लेषण और स्राव का नियंत्रण करते हैं।
हाइपोथैलेमस से स्स्रावित होने वाले हार्मोन दो प्रकार के होते हैं-
- मोचक हार्मोन (जो पीयूष ग्रंथि से हार्मोन से स्त्राव को प्रेरित करते हैं) और
- निरोधी हार्मोन (जो पीयूष ग्रंथि से हार्मोन को रोकते हैं)।
उदाहरणार्थ:
- हाइपोथैलेमस से निकलने वाला गोनेडोट्रोफिन मुक्तकारी हार्मोन के स्त्राव पीयूष ग्रंथि में गोनेडोट्रोफिन हार्मोन के संश्लेषण एवं स्राव को प्रेरित करता है।
- वहीं दूसरी ओर हाइपोथैलेमस से ही नवित सोमेटोस्टेटिन हार्मोन, पीयूष ग्रंथि से वृद्धि हार्मोन के स्राव का रोधक है। ये हार्मोन हाइपोथैलेमस की तंत्रिकोशिकाओं से प्रारंभ होकर, तंत्रिकाक्ष होते हुए तंत्रिका सिरों पर मुक्त कर दिए जाते हैं। ये हार्मोन निवाहिका परिवहन-तंत्र द्वारा पीयूष ग्रंथि तक पहुंचते हैं और अग्र पीयूष ग्रंथि के कार्यों का नियमन करते हैं। पश्च पीयूष ग्रंथि का तंत्रिकीय नियमन सीधे हाइपोथैलेमस के अधीन होता है.
पीयूष ग्रंथि
- पीयूष ग्रंथि एक सेला टर्सिका नामक अस्थिल गुहा में स्थित होती है और एक वृंत द्वारा हाइपोथैलेमस से जुड़ी होती है ।
- आंतरिकी के अनुसार पीयूष ग्रंथि एडिनोहाइपोफाइसिस और न्यूरोहाइपोफाइसिस नामक दो भागों में विभाजित होती है।
- एडिनोहाइपोफाईसिस दो भागों का बना होता है - पार्स डिस्टेलिस और पार्स इंटरमीडिया।
अग्र पीयूष ग्रंथि से निकालने वाले हार्मोन
- पार्स डिस्टेलिस को साधारणतया अग्र पीयूष ग्रंथि कहते हैं, जिससे वृद्धि हार्मोन या सोमेटोट्रोपिन (GH), प्रोलैक्टिन (PRL) या मेमोट्रोपिन, थाइरॉइड प्रेरक हार्मोन (TSH) एड्रिनो कार्टिकोट्रॉफिक हार्मोन (ACTH) या कॉर्टिकोट्रोफिन, ल्यूटीनाइजिंग हार्मोन (LH) और पुटिका प्रेरक हार्मोन का स्राव करता है।
पार्स इंटरमीडिया
- पार्स इंटरमीडिया एक मात्र हार्मोन लेनोसाइट प्रेरक हार्मोन (MSH) या मेलेनोट्रोफिन का स्राव करता है। यद्यपि मानव में पार्स इंटरमीडिया (मध्यपिंड) पार्स डिस्टेलिस (दूरस्थ पिंड) में लगभग जुड़ा होता है।
न्यूरोहाइपोफाइसिस (पार्स नर्वोसा) या पश्च पीयूष ग्रंथि
- न्यूरोहाइपोफाइसिस (पार्स नर्वोसा) या पश्च पीयूष ग्रंथि, यह हाइपोथैलेमस द्वारा उत्पादित किए जाने वाले हार्मोन ऑक्सीटॉसिन और वेसोप्रेसिन का संग्रह और स्राव करती है। ये हार्मोन वास्तव में हाइपोथैलेमस द्वारा संश्लेषित होते हैं और तंत्रिकाक्ष होते हुए पश्च पीयूष ग्रंथि में पहुँचा दिए जाते हैं।
- वृद्धिकारी हार्मोन (GH) के अति स्त्राव से शरीर की असामान्य वृद्धि होती है जिसे जाइगेंटिज्म (अतिकायकता) कहते हैं और इसके अल्प स्राव से वृद्धि अवरुद्ध हो जाती है जिसे पिट्यूटरी ड्वार्फिज्म (बौनापन या वामनता) कहते हैं।
- वयस्कों में विशेष रूप से मध्य आयुवर्ग के लोगों में वृद्धिकारी हार्मोन के अतिस्राव से अत्यधिक विकृति (विशेषतः चेहरे की) हो जाती है जिसे अतिकायता (एक्रोगिगेली) कहते हैं। इससे गंभीर जटिलताएँ उत्पन्न हो सकती हैं, तथा यदि नियंत्रित न किया गया तो समय से पूर्व मृत्यु भी हो सकती है। जीवन के प्रारंभिक काल में रोग की पहचान बहुत कठिन है तथा अधिकतर मामलों में अनेक वर्षों तक रोग का पता ही नहीं चलता है, जब तक कि बाह्य अभिलक्षण दिखाई नहीं देने लगते हैं।
- प्रोलैक्टिन हार्मोन स्तन ग्रंथियों की वृद्धि और उनमें दुग्ध निर्माण का नियंत्रण करता है।
- थाइरॉइड प्रेरक हार्मोन थाइरॉइड ग्रंथियों पर कार्य कर उनसे थाइरॉइड हार्मोन के संश्लेषण और स्राव को प्रेरित करता है।
- एड्रिनोकार्टिकोट्रॉफिक हार्मोन (ACTH) एड्रीनल वल्कुट पर कार्य करता है और इसे ग्लूकोकॉर्टिकॉइड्स नामक, स्टीरॉइड हार्मोन के संश्लेषण और स्रवण के लिए प्रेरित करता है।
- ल्यूटिनाइजिंग और पुटिका प्रेरक हार्मोन जननांगों की क्रिया को प्रेरित करते हैं और लिंगी हार्मोन का उत्पादन करते हैं अतः गोनेडोट्रोपिन कहलाते हैं।
- नरों में ल्यूटिनाइजिंग हार्मोन, एंड्रोजेन नामक हार्मोन के संश्लेषण और स्राव के लिए प्रेरित करता है। इसी तरह नरों में पुटिका प्रेरक हार्मोन और एंड्रोजेन शुक्रजनन को नियंत्रित करता है।
- मादाओं में ल्यूटिनाइजिंग हार्मोन पूर्ण विकसित पुटिकाओं (ग्राफियन पुटिका) से अंडोत्सर्ग को प्रेरित करता है और ग्राफियन पुटिका के बचे भाग से कॉपर्स ल्यूटियम बनाता है।
- पुटिका प्रेरक हार्मोन, मादाओं में अंडाशयी पुटिकाओं की वृद्धि और परिवर्धन को प्रेरित करता है।
- मेलानोसाइट प्रेरक हार्मोन, मेलानोसाइट्स (मेलानीन युक्त कोशिकाओं) पर क्रियाशील होता है तथा त्वचा की वर्णकता का नियमन करता है।
- ऑक्सीटॉसिन हमारे शरीर की चिकनी पेशियों पर कार्य करता है और उनके संकुचन को प्रेरित करता है। मादाओं में यह प्रसव के समय गर्भाशयी पेशियों के संकुचन और दुग्ध ग्रंथियों से दूध के स्त्राव को प्रेरित करता है।
- वेसोप्रेसिन मुख्यतः वृक्क की दूरस्थ संवलित नलिका से जल एवं आयनों के पुनरावशोषण को प्रेरित करता है, जिससे मूत्र के साथ जल का हास (डाइयूरेसिस) कम हो। अतः इसे प्रतिमूत्रल हार्मोन या एंटी-डाइयूरेटिक हार्मोन (ADH) भी कहते हैं।
- ए.डी.एच. के संश्लेषण अथवा स्रावण को प्रभावित करने वाली विकृति के परिणामस्वरूप वृक्क की जल संरक्षण की क्षमता में ह्रास होता है। फलतः जल का हास एवं निर्जलीकरण हो जाता है। इस अवस्थिति को उदकमेह (डायबिटीज इन्सीपिडस) कहते हैं।