आवेग क्या होता है उदाहरण सहित
आवेग क्या होता है उदाहरण सहित
न्यूटन के दूसरे नियम से, बल = संवेग परिवर्तन की दर
(1) वस्तु पर एक बड़े परिमाण का बल, थोड़े समयान्तर के लिए लगाकर, तथा
2) एक छोटे परिमाण का बल, अधिक समयान्तर के लिए लगाकर।
जब किसी वस्तु पर अधिक परिमाण का नियत बल अल्प समयान्तर के लिए लगता है (उदाहरण के लिए, हथौड़े से कोल ठोंकना, बल्ले से गेंद मारना आदि), तो बल का नापना तो सम्भव नहीं होता है, लेकिन बल तथा समयान्तर का गुणनफल, वस्तु के अन्तिम संवेग व प्रारम्भिक संवेग में अन्तर लेकर ज्ञात किया जा सकता है। बल तथा समयान्तर के गुणनफल को बल का आवेग कहते हैं।
आवेग की परिभाषा-बल तथा समयान्तर के गुणनफल को बल का आवेग कहते हैं।
- आवेग एक सदिश राशि है। इसकी दिशा वही होती है जो बल की होती है।
- अन्तर्राष्ट्रीय मानक (S.I.) पद्धति में आवेग का मात्रक न्यूटन सेकण्ड (संकेत Ns) है। C.G.S. पद्धति में आवेग का मात्रक डायन सेकण्ड है।
- इस प्रकार, बल का आवेग, वस्तु के संवेग में परिवर्तन के बराबर होता है। इसीलिए S.I. पद्धति में आवेग का मात्रक किलोग्राम × मीटर/सेकण्ड तथा C.G.S. पद्धति में आवेग का मात्रक ग्राम सेमी/सेकण्ड भी लिखा जाता है।
उदाहरण-
- दैनिक जीवन में ऐसे अनेक उदाहरण हैं, जहाँ किसी वस्तु को आवेग देने के लिए एक बड़े परिमाण के बल को बहुत अल्प समयान्तर के लिए लगाया जाता है। उदाहरण के लिए, बल्ले द्वारा क्रिकेट की गेंद पर चोट मारकर गेंद को दूर भेजना, हथौड़े द्वारा कौल ठोंकना, छड़ी द्वारा पिंगपोंग की गेंद को पाले में भेजना, आदि।
इसके अतिरिक्त, कुछ ऐसे उदाहरण भी है जिनमें एक निश्चित संवेग परिवर्तन के लिए समयान्तर बढ़ाकर, बल के परिमाण को कम कर लिया जाता है।
उदाहरण के लिए,
(1) क्रिकेट के खेल में गेंद लपकते समय खिलाड़ी अपने हाथ पीछे खींच लेता है।
(2) रेत या कालोन पर काँच के बर्तन गिरने से वे नहीं टूटते हैं, जबकि पक्के फर्श पर गिरने से वे टूट जाते हैं।
(3) सर्कस के कलाकार जाली या मोटे गद्दे पर कूदते हैं।
(1) क्रिकेट के खेल में गेंद लपकते समय खिलाड़ी अपने हाथ पीछे खींच लेता है-
माना गेंद का द्रव्यमान m तथा उसका लपकने से पूर्व वेग u है।
अतः गेंद का प्रारम्भिक संवेग = mu
जब खिलाड़ी गेंद को रोक लेता है, तो गेंद का अन्तिम संवेग = शून्य
यदि खिलाड़ी गेंद को रोकने के लिए बल F, समय △t तक लगाता है, तो
बल का आवेग = संवेग में परिवर्तन
बल का आवेग = अन्तिम संवेग - प्रारम्भिक संवेग
- यदि खिलाड़ी हाथ पीछे खींच लेता है, तो गेंद अधिक देर में रुकेगी, अर्थात् समयान्तर △t अधिक होगा, अत बल F परिमाण कम होगा। यदि खिलाड़ी हाथ पीछे नहीं खींचता है, तो △t कम होगा जिससे बल F का परिमाण अधिक अधिक हो जाने से उसके हाथ में चोट लगने का भय रहेगा।
(2) काँच के बर्तन पक्के फर्श पर गिरने से टूट जाते हैं, परन्तु गलीचे पर गिरने से नहीं टूटते-
मान बर्तन का द्र्यवमान m है तथा फर्श पर टकराने से पूर्व इसका प्रारम्भिक वेग u है, तो फर्श पर टकराने से पहले बर्तन का प्रारम्भिक सवेग = mu तथा फर्श से टकराने पर बर्तन का अन्तिम संवेग = शून्य।
यदि टक्कर का समयान्तर △t सेकण्ड है तथा टक्कर में बर्तन पर लगा बल F है, तो
बल का आवेग = संवेग में परिवर्तन
बल का आवेग अन्तिम संवेग - प्रारम्भिक संवेग
- पक्के फर्श पर बर्तन के टकराते ही बर्तन का वेग शून्य हो जाता है, अत: समयान्तर / कम होता है तथा बल F अधिक होता है। यह बल बर्तन के केवल उस भाग पर लगता है जो फर्श को स्पर्श करता है जिससे बर्तन टूट जाता है। इसके विपरीत, गलीचे पर गिरने से बर्तन गलीचे में कुछ भैंस जाता है, अतः विरामावस्था में आने के लिए समयान्तर / अधिक हो जाता है, इसलिए बल F का परिमाण कम होता है तथा बर्तन के टूटने की सम्भावना कम रहती है।
(3) सर्कस के कलाकार जाली या मोटे गद्दे पर कूदते हैं-
- ऐसा करने से समयान्तर / बढ़ जाता है जिससे बल F कम हो जाता है तथा कलाकार को चोट नहीं लगती है।