पादप कार्यकीय (शरीर क्रियात्मकता)
पादप कार्यकीय (शरीर क्रियात्मकता)
- एक समय के पश्चात जैव संरचना का वर्णन एवं जीवित जैविकों की विभिन्नता (विवरण) का अंत दो अलग रूप में हुआ जो जीव विज्ञान में स्पष्ट रूप से परस्पर विरोधी परिप्रेक्ष्य के थे। यह दो परिप्रेक्ष्य शुरूआती दौर पर जीवन स्वरूप एवं प्रतिभास के संगठन के दो स्तरों पर आधारित था।
- इसमें एक को जैव स्वरूप संगठन के स्तर पर वर्णित किया गया जबकि दूसरे को संगठन के कोशिकीय एवं अणु स्तर में वर्णित किया गया। परिणामस्वरूप पहला परिस्थिति-विज्ञान तथा इससे संबंधित विज्ञान के अंतर्गत था .
- जबकि दूसरा शरीर विज्ञान एवं जैव-रसायन शास्त्र के रूप में स्थापित हुआ। पुष्पी पादपों में शरीर वैज्ञानिक प्रक्रमों का वर्णन एक उदाहरण के तौर पर है, जिसे इस खंड के अध्यायों में दिया गया है।
- पादपों में खनिज पोषण, प्रकाश-संश्लेषण, परिवहन, श्वसन तथा पादप वृद्वि एवं परिवर्धन को अंततः आण्विक भाषा में ही कोशिकीय कार्यविधि और यहाँ तक कि जैविक स्तर को संदर्भित किया गया है। जहाँ भी औचित्यपूर्ण पाया गया है, वहाँ पर पर्यावरण के संदर्भ में शरीर वैज्ञानिक प्रक्रम के संबंधों की भी चर्चा की गई है।
मेलविन कैलविन कौन था
- मेलविन कैलविन का जन्म अप्रैल 1911 में मिनसोटा (यू.एस.ए.) में हुआ था और आपने मिनसोटा विश्वविद्यालय से रसायन शास्त्र में पी.एच.डी. की उपाधि प्राप्त की। आपने बर्कले की केलीफोर्निया यूनीवर्सिटी के रसायन शास्त्र के प्रोफेसर के पद पर सेवाएं प्रदान की।
- द्वितीय विश्व युद्ध के ठीक बाद, जब पूरा विश्व हिरोशिमा-नागासाकी की विस्फोटक घटना से रेडियोधर्मिता के दुष्प्रभाव को देखकर दुःख से स्तब्ध था, तब मेलविन और उनके सहकर्मी ने रेडियोधर्मिता के लाभदायक उपयोगों को प्रकट किया। आपने जे.ए. बाशाम के साथ मिलकर C के साथ कार्बनडाइऑक्साइड के लेबलप्रविध द्वारा कच्ची सामग्री जैसे कार्बनडाइऑक्साइड जल एवं खनिजो जैसे तत्वों से तथा शर्करा रचना से ग्रीन प्लांट्स (हरित पादपों) में प्रतिक्रिया का अध्ययन किया था।
- मेलविन ने प्रस्तावित किया कि पौधे प्रकाश ऊर्जा को रासायनिक ऊर्जा में बदल देते हैं, जिसके लिए एक वर्णक अणुओं के संगठित ऐरे (समूह) तथा अन्य तत्वों में एक इलेक्ट्रॉन को स्थानांतरित करते हैं। प्रकाश-संश्लेषण में कार्बन के स्वांगीकरण के पाथवे के प्रतिचित्रण करने पर आपको 1961 में नोबल पुरस्कार प्राप्त हुआ।
- मेलविन के द्वारा स्थापित किए गए प्रकाश-संश्लेषण के सिद्धांत, आज भी, ऊर्जा एवं पदार्थों के लिए पुनः स्थापन योग्य संसाधनों के अध्ययन तथा सौर-ऊर्जा अनुसंधान में आधारभूत अध्ययनों के लिए भी उपयोग किया जाता हैं।
उच्च पादपों में प्रकाश-संश्लेषण
सभी प्राणी, यहाँ तक कि मानव भी आहार के लिए पौधों पर निर्भर हैं। क्या आपने कभी सोचा है कि पौधे अपना आहार कहाँ से प्राप्त करते हैं? वास्तव में, हरे पौधे अपना आहार संश्लेषित करते हैं तथा अन्य सभी जीव अपनी आवश्यकता के लिए उन पर निर्भर रहते हैं।
- हरे पौधे अपने लिए आवश्यक भोजन का निर्माण अथवा संश्लेषण 'प्रकाश-संश्लेषण' द्वारा करते हैं। अतः वे स्वपोषी कहलाते हैं। आप पहले ही पढ़ चुके हैं कि स्वपोषी संश्लेषण केवल पौधों में ही पाया जाता है तथा अन्य सभी जीव जो अपने भोजन के लिए पौधों पर निर्भर करते हैं, विषमपोषी कहलाते हैं। यह एक ऐसी भौतिक रासायनिक प्रक्रिया है, जसमें कार्बनिक यौगिकों को संश्लेषित करने के लिए प्रकाश-ऊर्जा का उपयोग करते हैं। अंतः कुल मिलाकर पृथ्वी पर रहने वाले सारे जीव ऊर्जा के लिए सूर्य के प्रकाश पर निर्भर करते हैं।
पौधों द्वारा प्रकाश संश्लेषण
में उपयोग की गई सूर्य-ऊर्जा पृथ्वी पर जीवन का आधार है। प्रकाश-संश्लेषण के
महत्वपूर्ण होने के दो कारण हैं:
- यह पृथ्वी पर समस्त खाद्य पदार्थों का प्राथमिक स्त्रोत है तथा यह वायुमंडल में ऑक्सीजन छोड़ता है। क्या आपने कभी सोचा है कि यदि साँस लेने के लिए ऑक्सीजन न हो, तो क्या होगा? इस अध्याय में प्रकाश-संश्लेषी (मशीनरी) तथा विभिन्न प्रतिक्रियाओं के विषय में बताया जाएगा जो प्रकाश-ऊर्जा को रासायनिक ऊर्जा में रूपांतरित करती है।
प्रकाश संश्लेषण के बारे में
- आइए, पहले यह पता करें कि हम प्रकाश संश्लेषण के विषय में क्या जानते हैं। पिछली कक्षाओं में आपने कुछ सरल प्रयोग किए होंगे। जिनसे पता लगा होगा कि क्लोरोफिल (पत्तियों का हरा वर्णक), प्रकाश तथा कार्बनडाइऑक्साइड (CO₂) प्रकाश संश्लेषण के लिए आवश्यक है।
- आपने शायद शबलित (वेरीगेट) पत्तियों अथवा उस पत्ती में जिसे आंशिक रूप से काले कागज से ढक दिया हो और प्रकाश में रखा हो, जिससे स्टार्च (मंड) बनाने का प्रयोग को किया होगा। स्टार्च के लिए इन पत्तियों के परीक्षण से यह बात प्रकट होती है कि प्रकाश-संश्लेषण क्रिया सूर्य के प्रकाश में पेड़ के केवल हरे भाग में संपन्न होती है।
- आपने एक अन्य
प्रयोग आधी पत्ती से किया होगा जिसमें एक पत्ती का आंशिक भाग परखनली के अंदर रखा
होगा और इसमें KOH से भीगी हुई रूई भी रखी होगी (KOH CO, को अवशोषित करता
है) जबकि शेष भाग को प्रकाश में रहने दिया होगा। इसके बाद इस उपकरण को कुछ समय के
लिए धूप में रखा जाता है। कुछ समय के बाद आप स्टार्च के लिए पत्ती का परीक्षण करते
हों। इस परीक्षण से आपको पता लगा कि पत्ती का जो भाग परखनली में था, उसने स्टार्च की
पुष्टि नहीं की और जो भाग प्रकाश में था, उसने स्टार्च की
पुष्टि की। इस प्रयोग से यह सिद्ध होता है कि प्रकाश-संश्लेषण के लिए
कार्बनडाइऑक्साइड (CO₂) आवश्यक है। क्या आप
इसका वर्णन कर सकते हो कि ऐसा निष्कर्ष किस प्रकार निकाला जा सकता
है?
प्रारंभिक प्रयोग
- उन साधारण प्रयोगों के विषय में जानना काफी रुचिकर होगा जिनसे प्रकाशसंश्लेषण की प्रक्रिया क्रमिक विकसित हुई है। जोसेफ प्रीस्टले (1733-1804) ने 1770 में बहुत से प्रयोग किए जिनसे पता लगा कि हरे पौधों की वृद्धि में हवा की एक अनिवार्य भूमिका है। आप को याद होगा कि प्रीस्टले ने 1774 में ऑक्सीजन की खोज की थी। प्रीस्टले ने देखा कि एक बेलजार में जलने वाली मोमबत्ती जल्दी ही बुझ जाती है
- एक बंद स्थान-जैसे कि एक बेलजार में जलने वाली मोमबत्ती जल्दी ही बुझ जाती है (चित्र 11.1 अ,ब,स,द)। इसी प्रकार किसी चूहे का सीमित स्थान में जल्दी ही दम घुट जाएगा। इन अवलोकनों के आधार पर उन्होंने यह निष्कर्ष निकाला कि चाहे जलती मोमबत्ती हो अथवा कोई प्राणी जो वायु से साँस लेते हैं, वे हवा को क्षति पहुँचाते हैं। लेकिन जब उसने उसी बेल जार में एक पुदीने का पौधा रखा तो उसने पाया कि चूहा जीवित रहा और मोमबत्ती भी सतत जलती रही। इस आधार पर प्रीस्टले ने निम्न परिकल्पना कीः "पौधे उस वायु की क्षतिपूर्ति करते हैं, जिन्हें साँस लेने वाले प्राणी और जलती हुई मोमबत्ती कम कर देती है।"
क्या आप कल्पना
कर सकते हैं कि प्रीस्टले ने प्रयोग करने के लिए एक मोमबत्ती एवं पौधे का उपयोग
कैसे किया होगा ? याद रखें कि उसे मोमबत्ती को कुछ दिनों बाद
पुनः जलाने की आवश्यकता होगी ताकि यह पता कर सके कि कुछ दिनों बाद वह जलेगी अथवा
नहीं। सेटअप को बिना बाधित किए आप मोमबत्ती को जलाने के लिए कितनी विधियों के बारे
में सोच सकते हो?
- जॉन इंजेनहाउज (1730-1799) ने प्रीस्टले द्वारा निर्मित जैसे सेटअप का उपयोग किया जिसमें उसने उसे एक बार अंधेरे में और फिर एक बार सूर्य की रोशनी में रखा।
- इससे यह पता लगा कि पौधों की इस प्रक्रिया में सूर्य का प्रकाश अनिवार्य है। यह जलती हुई मोमबत्ती या सांस लेने वाले प्राणियों द्वारा खराब हुई वायु को शुद्ध बनाता है। इंजेनहाउज ने अपने एक परिष्कृत प्रयोग में एक जलीय पौधे के साथ यह दिखाया कि तेज धूप में पौधे के हरे भाग के आस-पास छोटे-छोटे बुलबुले बन गए थे, जबकि अंधेरे में रखे गए पौधे के आस-पास बुलबुले नहीं बने थे। बाद में उसने इन बुलबुलों की पहचान ऑक्सीजन के रूप में की थी। अतः उसने यह दिखा दिया कि पौधे का केवल हरा भाग ही ऑक्सीजन को छोड़ सकता है।
- 1854 से पहले तक इसकी जानकारी नहीं थी, किंतु जूलियस वोन सैचस् ने यह प्रमाण दिया कि जब पौधा वृद्धि करता है तब ग्लूकोज (शर्करा) बनती है। ग्लूकोज प्रायः स्टार्च के रूप में संचित होता है। उसके बाद के अध्ययनों से यह पता लगा कि पौधे का हरा पदार्थ जिसे क्लोरोफिल कहते हैं। पौधों की कोशिकाओं में स्थित विशिष्ट भाग (जिसे क्लोरोप्लास्क कहते हैं) में होता है। उसने बताया कि पौधों के हरे भाग में ग्लूकोज बनाता है और ग्लूकोज प्रायः स्टार्च के रूप में संचित होता है।
- अब आप टी.डब्ल्यू एंजिलमैन (1843-1909) द्वारा किए गए रोचक प्रयोग पर ध्यान दें। उसने प्रिज्म की सहायता से प्रकाश को स्पेक्ट्रमी घटकों में अलग किया और और फिर एक हरे शैवाल क्लैडोफोरा को जिसे ऑक्सी बैक्टीरिया के निलंबन में रखा गया था, को प्रदीप्त किया गया। बैक्टीरिया का उपयोग ऑक्सीजन निकलने का केंद्र पता लगाने के लिए था। उसने पाया कि बैक्टीरिया प्रमुखतः लाल एवं नीले प्रकाश क्षेत्रों में एकत्र हो गए थे। इस तरह से प्रकाश संश्लेषण का पहला सक्रिय स्पेक्ट्रम (एक्शन स्पेक्ट्रम) वर्णित किया गया। यह मोटे तौर पर क्लोरोफिल 'a' एवं 'b' के अवशोषण स्पेक्ट्रा से मेल खाता है (11.4 खंड में इसका वर्णन किया गया है)।
- उन्नीसवीं सदी के मध्य तक पादप प्रकाश संश्लेषण की सभी मुख्य विशिष्टताओं के बारे में पता चल चुका था। जैसे कि, पौधे CO₂ तथा पानी से प्रकाश ऊर्जा का उपयोग कर कार्बोहाइड्रेट्स बनाते हैं। ऑक्सीजन उत्पन्न करने वाले जीवों में प्रकाश-संश्लेषण की कुल प्रतिक्रिया को आनुभविक समीकरण द्वारा प्रस्तुत किया गया।
6CO₂ + 6H₂O → C6H1₂O6 + 6O2
- जहाँ पर (C6H1₂O6) एक कार्बोहाइड्रेट (जैसे ग्लूकोज एक छह (6) कार्बन शुगर) का प्रतिनिधित्व करता है।
- एक सूक्ष्मजीव विज्ञानी कोर्नेलियस वैन नील (1897-1985) के प्रयोग ने प्रकाश-संश्लेषण को समझने में मील के पत्थर का काम किया। उसका अध्ययन बैंगनी (पर्पल) एवं हरे बैक्टीरिया पर आधारित था। उन्होंने बताया कि प्रकाश संश्लेषण एक प्रकाश आधारित प्रतिक्रिया है जिसमें ऑक्सीकरणीय यौगिक से प्राप्त हाइड्रोजन कार्बनडाइऑक्साइड को अपचयित करके कार्बोहाइड्रेट बनाते हैं।
- हरे पौधों में H₂O हाइड्रोजन दाता है और ऑक्सीकृत होकर देता है। कुछ जीव प्रकाश-संश्लेषण के दौरान O₂ मुक्त नहीं करते हैं जब H₂S बैंगनी एवं हरे बैक्टीरिया के लिए हाइड्रोजन दाता होता है तो 'ऑक्सीकरण' उत्पाद जीवों के अनुसार सल्फर अथवा सल्फेट होता है न कि ऑक्सीजन । इससे उन्होंने निष्कर्ष निकाला कि हरे पौधों द्वारा निकाली गई ऑक्सीजन H₂O से आती है, न कि कार्बनडाइऑक्साइड से। बाद में यह बात रेडियो आइसोटोपिक तकनीक के उपयोग से सही प्रमाणित हुई। इसलिए कुल प्रकाश-संश्लेषण को प्रस्तुत करने वाला सही समीकरण निम्न है:
6 CO₂ + 12 H₂O → C6H12O6 + 6H2O + 602
- यहाँ पर CHO ग्लूकोज का प्रतिनिधित्व करता है। जल से निकलने वाली o2 को रेडियो आइसोटोपिक तकनीक से सिद्ध किया जा चुका है। यह एक एकल क्रिया नहीं है, बल्कि बहुचरणी प्रक्रम का वर्णन है जिसे प्रकाश-संश्लेषण कहते हैं।