ऑक्सी श्वसन (साँस) साँस गुणांक ऐंफीबोलिक पथ | Krebs Cycles NCERT

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 ऑक्सी श्वसन (साँस) साँस गुणांक ऐंफीबोलिक पथ 

ऑक्सी श्वसन (साँस) साँस गुणांक ऐंफीबोलिक पथ | Krebs Cycles NCERT



ऑक्सी श्वसन (साँस) 

माइटोकोंड्रिया का अंतिम उत्पाद पायरुवेट कोशिका द्रव्य से माइटोकोंड्रिया में परिवहन किया जाता है। 

ऑक्सी श्वसन की मुख्य घटनाएं निम्नलिखित हैं- 

  • पायरुवेट का चरणबद्ध क्रम में पूर्ण ऑक्सीकरण के उपरांत सभी हाइड्रोजन परमाणु पृथक होते हैं जिससे 3 कार्बनडाइऑक्साइड के अणु भी मुक्त होते हैं। 
  • हाइड्रोजन परमाणुओं से पृथक् हुए इलेक्ट्रॉन ऑक्सीजन अणु की ओर जाते हैं। जिसके परिणामस्वरूप एटीपी का संश्लेषण होता है।

 

ऑक्सी श्वसन (साँस) कहाँ होते हैं :-

  • सबसे अधिक रोचक बात यह है कि इसकी पहली प्रक्रिया माइटोकोंड्रिया के आधात्री में संपन्न होती है जब कि द्वितीय प्रक्रिया माइटोकोंड्रिया की भीतरी झिल्ली पर संपन्न होती है। 
  • कोशिका द्रव्य में उपस्थित कार्बोहाइड्रेट के ग्लाइकोलिटिक अपचय द्वारा बनने वाले पायरुवेट माइटोकोंड्रिया की आधात्री में प्रवेश करता है जो ऑक्सीकृत कार्बोक्सिीलिकरण की कॉम्पलेक्स सामूहिक क्रिया द्वारा पायरुवेट डिहाइड्रोजिनेस एंजाइम द्वारा उत्प्रेरित होता है। पायरुविक डिहाइड्रोजिनेस अभिक्रियाओं में कई सह एंजाइम भाग लेते हैं। जैसे NAD+ तथा A सहएंजाइम ।

 

पायरुवेट माइटोकोंड्रिया की आधात्री में प्रवेश करता है जो ऑक्सीकृत कार्बोक्सिीलिकरण की कॉम्पलेक्स

  • इस प्रक्रिया के दौरान पायरुविक अम्ल के दो अणुओं के उपापचय से NADH के दो अणुओं का निर्माण होता है। (ग्लाकोलिसिस के दौरान ग्लूकोज के एक अणु से निर्मित होते हैं) 
  • ऐसीटाइल C०A चक्रीय पथ, ट्राइकार्बोक्सिलिक अम्ल चक्र में प्रवेश करता है। जिसे साधारणतया वैज्ञानिक हैन्स क्रेब की खोज के कारण क्रेब्स चक्र कहते हैं।

 

ट्राइकार्बोक्सिलिक अम्ल चक्र (टीसीए) क्रेब्स चक्र 

  • TCA चक्र का प्रारंभ एसीटाइल समूह के ओक्सेलो ऐसिटिक अम्ल (OAA) तथा जल के साथ संघनन से होता है और सिट्रिक अम्ल का निर्माण होता है, यह अभिक्रिया सिट्रेट सिंथेटेज एंजाइम द्वारा होती है तथा CoA का एक अणु मुक्त होता है। 
  • तब सिट्रेट, आइसोसिट्रेट में समायवित हो जाता है। यह डिकार्बोक्सिीलिकरण के दो लगातार चरणों के रूप में होता है। इसके उपरांत एल्फाकीटो ग्लूटेरिक अम्ल, तत्पश्चात् सक्सीनाइल CoA का निर्माण होता है। 
  • सिट्रिक अम्ल के बचे हुए चरणों में सक्सीनाइल COA, OAA (ओक्सेलोऐसीटिक अम्ल ) में ऑक्सीकृत होकर चक्र को आगे बढ़ाने में सहायक होता है। 
  • सक्सीनाइल (CoA) से सक्सीनिक अम्ल के रूपांतरण के दौरान जीटीपी के एक अणु का निर्माण होता है। इसे क्रियाधार स्तरीय फॉस्फोरिलिकरण कहते हैं। इन युग्मित अभिक्रियाओं में जीडीपी  में जीटीपी, रूपांतरित हो जाता है तथा एडीपी से एटीपी का निर्माण होता है। 
  • चक्र में तीन स्थान ऐसे होते हैं जिसमें NAD+का NADH + H+ में अपचयन होता है और एक स्थान पर FAD+ का FADH₂ में अपयचन होता है। 
  • टीसीए चक्र द्वारा एसिटिल CoA को एंजाइमस अम्ल ऑक्सेलोऐसीटेट अम्ल के पुनर्निमाण की आवश्यकता होती है, 
  • टीसीए चक्र द्वारा एसिटिल CoA को एंजाइमस अम्ल के निरंतर ऑक्सीकरण हेतु ऑक्सेलोऐसीटेट अम्ल के पुनर्निमाण की आवश्यकता होती है, जो चक्र का प्रथम सदस्य है। 
  • साथ-साथ NAD+ तथा FAD+ का NADH FADH₂ से क्रमशः पुन:उत्पादन होता है।

 

ट्राइकार्बोक्सिलिक अम्ल चक्र (टीसीए) क्रेब्स चक्र


अतः साँस की इस अवस्था के समीकरण को संक्षेप में निम्नवत लिखा जा सकता है:

 

अतः साँस की इस अवस्था के समीकरण को संक्षेप में निम्नवत लिखा जा सकता है:

  • अब तक हम देख चुके हैं कि TCA चक्र में ग्लूकोज के विखंडन से कार्बनडाइऑक्साइड (CO₂) निकलती है, NADH + H+ के आठ अणु, FADH के दो अणु तथा दो एटीपी अणुओं का निर्माण होता है। 
  • आपको आश्चर्य हो रहा होगा कि अभी तक साँस की चर्चा के दौरान न ही कहीं पर ऑक्सीजन का तथा न ही कहीं पर एटीपी के बहुत सारे अणुओं के निर्माण की चर्चा हुई है। 
  • अब संश्लेषित NADH + H+ तथा FADH, की क्या भूमिका होगी। हमें अब समझना होगा कि साँस में ऑक्सीजन की भूमिका तथा एटीपी का निर्माण कैसे होता है?

 

इलेक्ट्रॉन परिवहन तंत्र अथवा ऑक्सीकरणी फॉस्फोरिलिकरण 

इलेक्ट्रॉन परिवहन तंत्र अथवा ऑक्सीकरणी फॉस्फोरिलिकरण


  • साँस प्रक्रिया के अगले चरण में NADH + H+ तथा FADH₂ में संचित ऊर्जा मुक्त व उपयोग में लाना है। यह तब संपादित होता है। जब उनका ऑक्सीकरण इलेक्ट्रॉन परिवहन तंत्र द्वारा होता है तथा इलेक्ट्रॉन ऑक्सीजन पर चला जाता है तथा पानी का निर्माण होता है। उपापचयी पथ जिसके द्वारा इलेक्ट्रॉन एक वाहक से अन्य वाहक की ओर गुजरता है इसे इलेक्ट्रॉन परिवहन तंत्र (ETS) कहते हैं,  जो माइटोकोंड्रिया के भितरी झिल्ली पर संपन्न होता है।
  • माइटोकोंड्रिया के आधात्री में टीसीए चक्र के दौरान NADH से बनने वाले इलेक्ट्रॉन, एंजाइम NADH डिहाइड्रोजिनेज द्वारा ऑक्सीकृत होता है (कॉम्पलेक्स-1), तत्पश्चात् इलेक्ट्रॉन भीतरी झिल्ली में उपस्थित यूबीक्विीनोन की ओर स्थानांतरित होता है।
  • यूबीक्विनोन अपचयी समतुल्य FADH, द्वारा प्राप्त करता है (कॉम्पलेक्स-II) जो सिट्रिक अम्ल चक्र में सक्सीन के ऑक्सीकरण के दौरान उत्पन्न होते हैं। अपचयित यूबिक्विनोन (यूबिक्विनोल) इलेक्ट्रॉन को साइटोक्रोम bc, साइटोक्रोम C की ओर स्थानांतरित कर ऑक्सीकृत हो जाता है (कॉम्पलेक्स - III)। 
  • साइटोक्रोम C एक छोटा प्रोटीन है जो, भीतरी : झिल्ली की बाह्य सतह पर चिपका होता है जो इलेक्ट्रॉन को कॉम्पलेक्स-III तथा कॉम्पलेक्स-IV के बीच स्थानांतरण का कार्य गतिशील वाहक के रूप में करता है। 
  • कॉम्पलेक्स-IV साइटोक्रोम C ऑक्सीडेज कॉम्पलेक्स है, जिसमें साइटोक्रोम a, a3 तथा दो तांबा केंद्र मिलते हैं। 
  • जब इलेक्ट्रॉन, इलेक्ट्रॉन परिवहन श्रृंखला में एक वाहक से दूसरे वाहक तक कॉम्पलेक्स-1 से कॉम्पलेक्स-IV द्वारा गुजरते हैं, तब वे एटीपी सिंथेज (कॉम्पलेक्स-V) से युग्मित होकर एडीपी व अकार्बनिक फॉस्फेट से एटीपी का निर्माण करते हैं। इस दौरान संश्लेषित होने वाली एटीपी अणुओं की संख्या इलेक्ट्रॉन दाता पर निर्भर है।
  • NADH के एक अणु के ऑक्सीकरण से एटीपी के तीन अणुओं का निर्माण होता है जबकि FADH, का एक अणु से एटीपी का दो अणु बनता है जबकि साँस की ऑक्सी प्रक्रिया ऑक्सीजन की उपस्थिति में ही संपन्न होती है। प्रक्रिया के अंतिम चरण में ऑक्सीजन की भूमिका सीमित होती है। यद्यपि ऑक्सीजन की उपस्थिति अत्यावश्यक है; क्योंकि यह पूरे तंत्र से H₂ (हाइड्रोजन) को मुक्त कर पूरी प्रक्रिया को संचालित करती है। ऑक्सीजन अंतिम इलेक्ट्रॉन ग्राही के रूप में कार्य करता है। 
  • प्रकाश फॉस्फोरिलिकरण के विपरीत, जहाँ प्रोटीन प्रवणता के निर्माण में प्रकाश ऊर्जा का उपयोग फॉस्फोरिलिकरण के लिए होता है, साँस में इसी प्रकार की प्रक्रिया में ऑक्सीकरण अपचयन द्वारा ऊर्जा की पूर्ति होती है। फलस्वरूप इस कारण से हुई क्रियाविधि को ऑक्सीकारी-फॉस्फोरिलिकरण कहते हैं।

 

  • जैसा कि पहले वर्णित है कि इलेक्ट्रॉन परिवहन तंत्र के दौरान मुक्त ऊर्जा का उपयोग एटीपी सिंथेज (कॉम्पलेक्स-V) की सहायता से एटीपी के संश्लेषण में होता है। यह कॉम्पलेक्स, दो प्रमुख घटकों F0F1 से बनते हैं  F, शीर्ष परिधीय झिल्ली प्रोटीन कॉम्पलेक्स है, जहाँ पर अकार्बनिक फास्फेट तथा एडीपी से एटीपी का संश्लेषण होता है।
  • वैद्युत रसायन प्रोटोन प्रवणता के फलस्वरूप 2H+ आयन अंतर झिल्ली अवकाश से F में होकर आधात्री की ओर गति करता है जिससे एक एटीपी का संश्लेषण होता है।

 

यह कॉम्पलेक्स, दो प्रमुख घटकों F0व F1 से बनते हैं  F, शीर्ष परिधीय झिल्ली प्रोटीन कॉम्पलेक्स है, जहाँ पर अकार्बनिक फास्फेट तथा एडीपी से एटीपी का संश्लेषण होता है।


श्वसनीय संतुलन चार्ट 

  • प्रत्येक ऑक्सीकृत ग्लूकोज अणु से बनने वाले प्राप्त शुद्ध एटीपी की गणना करना अब संभव है, किंतु वास्तविकता में यह एक सैद्धांतिक अभ्यास ही रह गया है। यह गणना कुछ निश्चित कल्पनाओं के आधार पर ही की जा सकती हैं। 

  • यह एक क्रमिक, सुव्यवस्थित, क्रियात्मक पाथ है जिसमें एक क्रियाधार से दूसरे क्रियाधार का निर्माण होता है जिसमें ग्लाइकोलिसिस से शुरू होकर टीसीए चक्र तथा पथ (ETS) एक के बाद एक आती है। 
  • ग्लाइकोलिसिस में संश्लेषित NADH माइटोकोंड्रिया में आता है, जहाँ उसका फॉस्फोरिलीकरण होता है। 
  • पथ का कोई भी मध्यवर्ती दूसरे यौगिक के निर्माण के उपयोग में नहीं आते हैं। 
  • श्वसन में केवल ग्लूकोज का ही उपयोग होता है- कोई दूसरा वैकल्पिक क्रियाधार पथ के किसी भी मध्यवर्ती चरण में प्रवेश नहीं करता है। 
  • हालांकि इस प्रकार की कल्पना सजीव तंत्र में वास्तव में तर्कसंगत नहीं होती है; सभी पथ एक के बाद एक नहीं, बल्कि एक साथ कार्य करते हैं। पथ में क्रियाधार आवश्यकता अनुसार बाहर तथा अंदर आ जा सकते हैं; आवश्यकतानुसार एटीपी का उपयोग हो सकता है; एंजाइम की क्रिया की दर को अनेकों विधियों द्वारा नियंत्रित किया जाता है। फिर भी यह क्रिया करना उपयोगी है; क्योंकि सजीव तंत्र में ऊर्जा का निष्कर्षण एवं संग्रहण हेतु इसकी दक्षता सराहनीय है। अतः ऑक्सी श्वसन के दौरान ग्लूकोज के एक अणु से एटीपी के 36 अणुओं की शुद्ध प्राप्ति होती है।

 

अब हम किण्वन तथा ऑक्सी श्वसन की तुलना करें- 

  • किण्वन में ग्लूकोज का आंशिक विघटन होता है जबकि ऑक्सी श्वसन में पूर्ण विघटन होता है तथा कार्बनडाइऑक्साइड एवं जल बनते हैं। 
  • किण्वन में ग्लूकोज के एक अणु से पायरुविक अम्ल बनने के दौरान एटीपी के शुद्ध 2 अणुओं की प्राप्ति होती है, जबकि ऑक्सी श्वसन में बहुत अधिक एटीपी के अणु बनते हैं। 
  • किण्वन में NADH का NAD+ में ऑक्सीकरण मंद गति से होता है, जबकि ऑक्सी श्वसन में यह अभिक्रिया तीव्र गति से होती है।

 

ऐंफीबोलिक पथ 

ऐंफीबोलिक पथ


  • साँस के लिए ग्लूकोज अनुकूल क्रियाधार है श्वसन में सभी कार्बोहाइड्रेट उपयोग में लाने से पहले ग्लूकोज में परिवर्तित होते हैं। जैसे कि पहले बताया जा चुका है कि दूसरे क्रियाधार भी साँस में प्रयोग किए जा सकते हैं। किंतु तब वे साँस के पहले चरण में उपयोग में नहीं आते हैं। 
  • वसा सबसे पहले ग्लिसरेल तथा वसीय अम्ल में विघटित होता है। 
  • यदि वसीय अम्ल साँस के उपयोग में आता है तो वह पहले एसीटाइल सह-एंजाइम बनकर पथ में प्रवेश करता है। 
  • ग्लिसरेल पहले पीजीएएल (PGAL) में परिवर्तित होकर श्वसन पथ में प्रवेश करता है।
  • प्रोटीन प्रोटिएज एंजाइम द्वारा विघटित होकर अमीनो अम्ल बनाता है। प्रत्येक अमीनो अम्ल (विऐमीनीकरण के बाद) अपनी संरचना के आधार पर क्रेब्स चक्र के अंदर विभिन्न चरणों में प्रवेश करता है। 
  • चूंकि साँस के दौरान क्रियाधारक टूटते हैं, अतः साँस प्रक्रिया परंपरागत अपचयी प्रक्रिया है और श्वसन पथ श्वसनीय अपचयी पथ है। किंतु आप क्या इसे ठीक समझते हैं? ऊपर वर्णित है कि विभिन्न क्रियाधार ऊर्जा हेतु श्वसन पथ में कहाँ प्रवेश करते हैं। 
  • यह जानना महत्वपूर्ण है कि ये यौगिक उपरोक्त क्रियाधार बनाने के लिए श्वसनीय पथ से अलग होंगे। अतः पथ में प्रवेश करने से पहले वसा अम्ल जब क्रियाधार के रूप में उपयोग में आते हैं तो श्वसनीय पथ में उपयोग में आने से पूर्व एसीटाइल CoA में विखंडित हो जाता है। जब जीवधारी को वसा अम्ल का संश्लेषण करना होता है तो श्वसनी पथ एसीटाइल CoA अलग हो जाता है। इसलिए वसा अम्ल के संश्लेषण तथा विखंडन के दौरान श्वसनीय पथ का उपयोग होता है। इसी प्रकार से प्रोटीन के संश्लेषण व विखंडन के दौरान भी होता है। इस प्रकार विघटन की प्रक्रिया कम करता है। सजीवों में अपचय कहलाती है तथा संश्लेषण उपचय कहलाती है; चूँकि श्वसनी पथ में अपचय तथा उपचय दोनों ही होते हैं। इसलिए श्वसनी पथ को ऐंफीबोलिक पथ कहना उचित होगा न कि उपचय पथ; क्योंकि यह अपचयी व उपचयी दोनों में भाग लेती है।

 

साँस गुणांक 

  • अब साँस के दूसरे पक्ष को देखते हैं। जैसा कि आप जानते हैं कि ऑक्सी श्वसन के दौरान ऑक्सीजन का उपयोग होता है और कार्बनडाइऑक्साइड निकलती है। साँस के दौरान मुक्त हुई कार्बनडाइऑक्साइड तथा उपयोग में लाई गई ऑक्सीजन का अनुपात को साँस गुणांक (R.Q.) या श्वसनीय अनुपात कहते हैं।

 

साँस गुणांक (R.Q.) या श्वसनीय अनुपात कहते हैं


  • साँस गुणांक, साँस के दौरान उपयोग में आने वाले श्वसनी क्रियाधार पर निर्भर करता है। जब कार्बोहाइड्रेड क्रियाधार के रूप में आकर पूर्ण ऑक्सीकृत हो जाते हैं तो साँस गुणांक 1 होगा; क्योंकि समान मात्रा में CO₂O, क्रमशः मुक्त होती हैं एवं उपयोग में लाई जाती हैं, जैसा कि समीकरण से स्पष्ट है:

 

कार्बोहाइड्रेड क्रियाधार के रूप में आकर पूर्ण ऑक्सीकृत हो जाते हैं तो साँस गुणांक 1 होगा;


जब वसा साँस में प्रयुक्त होती है तो साँस गुणांक 1.00 से कम होता है। वसा अम्ल ट्राइपामाटिन के रूप में उपयोग में आता है तब इसकी गणना निम्नवत होगी:

 

जब वसा साँस में प्रयुक्त होती है तो साँस गुणांक 1.00 से कम होता है। वसा अम्ल ट्राइपामाटिन के रूप में उपयोग में आता है तब इसकी गणना निम्नवत होगी:

  • जब प्रोटीन श्वसनी क्रियाधार के रूप में प्रयुक्त होता है तब अनुपात 0.9 के लगभग होते है। यहाँ, यह जानना अतिमहत्वपूर्ण है कि सजीवों में श्वसनीय क्रियाधार अक्सर एक से अधिक होते हैं; किंतु शुद्ध प्रोटीन व वसा श्वसनी क्रियाधारों के रूप होते हैं। में प्रयुक्त नहीं होते हैं। 

 

सारांश 

  • प्राणियों की तरह पादपों में श्वसन या गैसीय आदान प्रदान हेतु कोई विशिष्ट तंत्र नहीं होता है। रंध्र व वातरंध्र द्वारा विसरण से गैसों का आदान प्रदान होता है। पौधों में लगभग सभी सजीव कोशिकाएं वायु के संपर्क में होती हैं। 

  • जटिल कार्बनिक अणुओं के ऑक्सीकरण द्वारा C-C आवंधों के टूटने के उपरांत जब कोशिका से ऊर्जा की अत्यधिक मात्रा निकलती है तो उसे कोशिकीय साँस कहते हैं। साँस के लिए ग्लूकोज सर्वाधिक उपयोगी क्रियाधार है। वसा एवं प्रोटीन के टूटने के बाद भी ऊर्जा निकलती है। कोशिकीय साँस की प्रारंभिक प्रक्रिया कोशिका द्रव्य में संपन्न होती है। प्रत्येक ग्लूकोज का अणु एंजाइम उत्प्रेरित श्रृंखलाओं की अभिक्रियाओं द्वारा पायरुविक अम्ल के 2 अणुओं में टूट जाता है, इस प्रक्रिया को ग्लाइकोलिसिस कहते हैं। पायरुवेट का भविष्य O₂ की उपलब्धता तथा जीव पर निर्भर करता है। अनॉक्सी परिस्थितियों में किण्वन द्वारा लैक्टिक अम्ल या 2 एल्कोहल बनते हैं। किण्वन बहुत सारे प्रोकै रियोटिक, एक कोशिक यूकैरियोट व अंकुरित बीजों में अनॉक्सी परिस्थितियों में संपन्न होता है। यूकैरियोट जीवों में, की उपस्थिति में ऑक्सी साँस होता है। पायरुविक अम्ल 2 का माइटोकोंड्रिया में परिवहन के बाद एसीटाइल CoA में रूपांतरण होता है साथ ही CO₂ निकलती है। तत्पश्चात एसीटाइल CoA टीसीए पथ अथवा क्रेब्स चक्र में प्रवेश करता है जो माइटोकोंड्रिया के आधात्री में होता है। क्रेब्स चक्र में NADH + H+ तथा NADH बनते हैं। इन अणुओं व NADH + H+ जो ग्लाइकोलिसिस के दौरान बनता है। इनकी ऊर्जा का उपयोग एटीपी के संश्लेषण में होता है। यह सूक्ष्मकणिका के अंतः झिल्ली पर स्थित वाहकों के तंत्र, जिसे इलेक्ट्रॉन परिवहन तंत्र कहते हैं, के द्वारा संपन्न होती है जब इलेक्ट्रॉन इस तंत्र से होकर गति करता है, तो निकलने वाली पर्याप्त ऊर्जा एटीपी का संश्लेषण होता है, इसे ऑक्सीकारी फॉस्फोरिलीकरण कहते हैं, इस प्रक्रिया में अंततः अंतिम इलेक्ट्रॉन ग्राही होता है, जो पानी में अपचयित हो जाता है।

 

  • श्वसनी पथ में उपचयी अथवा अपचयी दोनों भाग लेते हैं, इसलिए इसे ऐंफीबेलिक पथ कहते हैं। साँस गुणांक साँस के दौरान में आने वाले श्वसनी क्रियाधार पर निर्भर करता है।

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