प्रकाश अभिक्रिया क्या है? | इलेक्ट्रॉन परिवहन ज़ेड अभिक्रिया | Photo Reaction Details in Hindi

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प्रकाश अभिक्रिया क्या है? इलेक्ट्रॉन परिवहन ज़ेड अभिक्रिया 

Photo Reaction Details in Hindi



प्रकाश अभिक्रिया क्या है? 

प्रकाश अभिक्रिया अथवा 'प्रकाशरसायनचरण में प्रकाश अवशोषणजल विघटनऑक्सीजन निष्कर्षण तथा उच्च-ऊर्जा रसायन माध्यमिकोंजैसे एटीपी तथा एनएडीपीएच का निर्माण शामिल है। 

प्रकाश अभिक्रिया क्या है?


  • इस प्रक्रिया में अनेक प्रोटीन कॉम्पलेक्स सम्मिलित होते हैं। यहाँ वर्णक दो सुस्पष्ट प्रकाश रसायन लाइट हार्वेस्टिंग कॉम्पलेक्स (एलएचसी) जिन्हें फोटोसिस्टम 1 (पीएस 1) तथा फोटोसिस्टम II (पीएस कहते हैं - में गठित होता है। इन्हें खोज के क्रम में ये नाम दिए गए हैं न कि प्रकाश अभिक्रिया के दौरान उनके काम करने के अनुक्रम में। 
  • एलएचसी प्रोटीन से आबद्ध हजारों वर्णक अणुओं से बने होते हैं। प्रत्येक फोटोसिस्टम में सभी वर्णक होते हैं, (सिवाय क्लोरोफिल 'के एक अणु के ) तथा एलएचसी का निर्माण करते हैं जिन्हें ऐन्टेनी कहते हैं । ये वर्णक विभिन्न तरंगदैर्थ्यो के प्रकाश को अवशोषित कर प्रकाश-संश्लेषण को अधिक दक्ष बनाते हैं। 
  • क्लोरोफिल 'का एक अकेला अणु अभिक्रिया केंद्र बनाना है। दोनों फोटोसिस्टम में प्रतिक्रिया केंद्र पृथक् होते हैं। 
  • पीएस 1 में अभिक्रिया केंद्र क्लोरोफिल 'का अवशोषण शीर्ष 700 एनएम (nm) पर होता है अतः इसे पी 700 कहते हैं। पीएस II में अवशोषण शीर्ष 680 एनएम (nm) पर होता है अतः इसे पी 680 कहते हैं।

 

इलेक्ट्रॉन परिवहन ज़ेड अभिक्रिया  

  • फोटोसिस्टम II में अभिक्रिया केंद्र में मौजूद क्लोरोफिल '' 680 एनएम वाले लाल प्रकाश को अवशोषित करता हैजिससे इलेक्ट्रॉन उत्तेजित होकर परमाणु नाभिक से दूर चला जाता है। इसे इलेक्ट्रॉन को एक इलेक्ट्रॉन ग्राही ले लेता है और इन्हें इलेक्ट्रॉन्स ट्रांसपोर्ट सिस्टम जिसमें साइटोक्रोम होते हैंपहुँचा दिया जाता है । 
  • इलेक्ट्रॉन की यह गतिविधि अधोगामी है जो अपचयोपचय विभव मापन (रिडैक्स पोटेंशियल स्केल) के रूप में है। जब इलेक्ट्रॉन्स परिवहन श्रृंखला से इलेक्ट्रॉन्स गुजरते हैं तब उनका उपयोग नहीं होता बल्कि उन्हें फोटोसिस्टम पीएस 1 के वर्णकों को दे दिया जाता है। 
  • इसके साथ ही साथपीएस 1 का अभिक्रिया केंद्र के इलेक्ट्रॉन भी लाल प्रकाश की 700 एनएम तरंगदैर्ध्य को अवशोषित कर उत्तेजित होता है और यह अन्य ग्राही अणु में जिसका अपचयोपचय (रिडौक्स) विभव अधिक होस्थानांतरित होता है। ये इलेक्ट्रॉन्स पुनः अधोगामी गति करते हैंपरंतु इस बार वे ऊर्जा से प्रचुर एनएडीपी अणु की ओर जाते हैं। ये इलेक्ट्रॉन्स एनएडीपी को अपचयित कर एनएडीपीएच + H+ को बनाते हैं।
  • इलेक्ट्रॉन के स्थानांतरण की यह सारी योजना पीएस II से शुरू होकर शिखरोपरिग्राही की ओरइलेक्ट्रॉन परिवहन श्रृंखला से होते हुए पीएस तकइलेक्ट्रॉन की उत्तेजनाअन्य ग्राही में स्थानांतरण और अंतः में अधोगामी होकर एनएडीपीको अपचयित कर एनएडीपीएच + H+ के बनने तक होती हैं। यह सारी योजना 2 के आकार की होती हैइसलिए इसे 2 स्कीम कहते हैं । यह आकृति तब बनती है जब सभी वाहक क्रमानुसार एक अपचयोपचय विभव माप पर हों।
इलेक्ट्रॉन परिवहन ज़ेड अभिक्रिया


 

जल का विघटन 

अब आप पूछेंगे कि पीएस II कैसे इलेक्ट्रॉन की आपूर्ति निरंतर करता है

  • वे इलेक्ट्रॉन जो फोटोसिस्टम II में निकलते हैंउनकी जगह निश्चित ही दूसरों को लेनी चाहिए। जल विघटन का संबंध पीएस II से है। जल H+  [O] तथा इलेक्ट्रॉन में विघटित होता है। इससे ऑक्सीजन उत्पन्न होती हैजो प्रकाश-संश्लेषण का एक शुद्ध उत्पाद है। फोटोसिस्टम 1 से निकलने वाले इलेक्ट्रॉनफोटोसिस्टम II से उपलब्ध कराए जाते हैं।

 

जल का विघटन

 

  • हमें यह अच्छी प्रकार जान लेना चाहिए कि जल विघटन पीएस II से संबंधित है जो थाइलेकोइड की झिल्ली की भीतरी ओर होता है। तब इस दौरान बनने वाले प्रोटोन्स एवं 02 कहां मुक्त होते हैं- अवकाशिका (ल्युमेन) में अथवा झिल्लिका के बाहर की ओर?

 

चक्रीय एवं अचक्रीय फोटो-फोस्फोरीलेशन 

  • जीवों में ऑक्सीकरणीय पदार्थों से ऊर्जा निकालने तथा उसे बंध -ऊर्जा के रूप में संचय करने की क्षमता होती है। विशेष पदार्थ जैसे एटीपीइस ऊर्जा को अपने रासायनिक बंध में संजोये रखती हैं। कोशिकाओं द्वारा (माइटोकोंड्रिया तथा क्लोरोप्लास्ट में) एटीपी के संश्लेषण की प्रक्रिया को फोस्फोरीलेशन कहते हैं। 
  • फोटो-फोस्फोरीलेशन वह प्रक्रिया है जिसमें प्रकाश की उपस्थिति में एडीपी तथा अकार्बनिक फोस्फेट से एटीपी का संश्लेषण होता है। जब दो फोटोसिस्टम क्रमिक कार्य करते हैं जिसमें पीएस II पहले और पीएस दूसरे क्रम में कार्य करें तो इस प्रक्रिया को अचक्रीय फोटो-फॉस्फोरीलेशन कहते हैं। ये दोनों फोटोसिस्टम एक इलेक्ट्रॉन परिवहन श्रृंखला से जुड़े होते हैं जैसे कि पहले स्कीम में देख चुके हैं। एटीपी तथा एनएडीपीएच + H+ दोनों ही इस प्रकार के इलेक्ट्रॉन प्रवाह द्वारा संश्लेषित होते हैं । 


  • जब केवल पीएस 1 क्रियाशील होता हैतब इलेक्ट्रॉन फोटोसिस्टम में ही घूमता रहता है और फोस्फोरीलेशन इलेक्ट्रॉन चक्रीय प्रवाह के कारण होता है . यह प्रवाह संभवतः स्ट्रोमा लैमिली में होती है। ग्राना की झिल्ली अथवा लैमिला में पीएस 1 एवं पीएस II, दोनों ही होते हैंजबकि स्ट्रोमा लैमिली झिल्लियों में पीएस II एवं एनएडीपी रिडक्टेस एंजाइम नहीं होते हैं। उत्तेजित इलेक्ट्रॉन एनएडीपी + में पारित नहीं होताबल्कि वापस पीएस 1 कॉम्पलेक्स में इलेक्ट्रॉन प्रवाह शृंखला द्वारा चक्रित होता रहता है अतः चक्रीय प्रवाह में केवल एटीपी का संश्लेषण होता है न कि एनएडीपीएच + एचका । चक्रीय फोटो-फॉस्फोरीलेशन तभी होता है जब उत्तेजना के लिए प्रकाश का तरंगदैर्ध्य 680nm से अधिक हो।

 

रसोपरासरणी परिकल्पना (केमिओस्मोटिक हाइपोथेसिस) 

आइएअब हम यह समझने का प्रयत्न करें कि क्लोरोप्लास्ट में एटीपी कैसे संश्लेषित होता हैइस प्रक्रम का वर्णन रसोपरासरणी परिकल्पना द्वारा कर सकते हैं। 

  • श्वसन की भाँति ही प्रकाश-संश्लेषण में भीएटीपी का संश्लेषण एक झिल्लिका के आर-पार प्रोटोन प्रवणता के कारण होता है। यहाँ पर ये झिल्लिकाएं थाइलेकोइड की होती हैं। यहाँ पर एक अंतर यह है कि प्रोटोन झिल्लिका के अंदर की ओर अर्थात् अवकोशिका (ल्यूमेन) में संचित होता है। श्वसन में प्रोटोन माइटोकांड्रिया की अंतरा झिल्ली अवकोशिका में संचित होती हैजब इलेक्ट्रॉन इटीएस  से गुजरते हैं।

 

  • आइएयह समझें कि किन कारणों से प्रोटोन प्रवणता झिल्लिका के आर-पार होती हैहमें पुनः उन प्रक्रियाओं पर ध्यान देना होगा जो इलेक्ट्रॉन के सक्रियता और उनके परिवहन के समय संपन्न होता हैताकि उन चरणों को सुनिश्चित किया जा सके जिनके कारण प्रोटोन प्रवणता का विकास होता  है।
इए, यह समझें कि किन कारणों से प्रोटोन प्रवणता झिल्लिका के आर-पार होती है? हमें पुनः उन प्रक्रियाओं पर ध्यान देना होगा जो इलेक्ट्रॉन के सक्रियता और उनके परिवहन के समय संपन्न होता है, ताकि उन चरणों को सुनिश्चित किया जा सके जिनके कारण प्रोटोन प्रवणता का विकास होता  है।


 

  • (अ) चूँकि जल के अणु का विघटन झिल्लिका के अंदर की तरफ होता है अतः जल के विघटन से उत्पन्न हाइड्रोजन आयन अथवा प्रोटोन थाइलाकोइड अवकाशिका (ल्यूमेन) में संचित होते हैं।

 

  • (ब) जैसे ही इलेक्ट्रॉन्स फोटोसिस्टम के माध्यम से गति करते हैंप्रोटोन झिल्लिका के पार चला जाता है। ऐसा इसलिए होता हैक्योंकि इलेक्ट्रॉन का प्राथमिक ग्राहीजो कि झिल्लिका के बाहर की ओर स्थित होता हैयह अपने इलेक्ट्रॉन को एक इलेक्ट्रॉन वाहक को स्थानांतरित नहीं करताबल्कि एक हाइड्रोजन वाहक को करता है। अतः इलेक्ट्रॉन प्रवाह के समय यह अणु स्ट्रोमा से एक प्रोटोन को ले लेता हैजब यह अणु अपने इलेक्ट्रॉन को झिल्ली के भीतरी ओर स्थित इलेक्ट्रॉन वाहक को देता हैतब प्रोटोन के अंदर ओर अथवा झिल्ली की अवकाशिका की ओर मुक्त होता है। 

  • (स) एनएडीपी रिडक्टेस एंजाइम झिल्ली के स्ट्रोमा की ओर होता है। पीएस 1 के इलेक्ट्रॉन ग्राही से आने वाले इलेक्ट्रॉन्स के साथ-साथ प्रोटोन एनएडीपी को एनएडीपी एच + एच में अपचयित करने के लिए आवश्यक होता है। ये प्रोटोन स्ट्रोमा पीठिका से ही आते हैं।

 

 

  • अतः क्लोरोप्लास्ट में स्थित स्ट्रोमा में प्रोटोन की संख्या घटती हैजबकि ल्यूमेन (अवकाशिका) में प्रोटोन का संचयन होता है। इस प्रकार यह थाइलाकोइड झिल्ली के आर-पार एक प्रोटोन प्रवणता उत्पन्न होती है और साथ ही साथ ल्यूमेन में पी एच (pH) भी कम हो जाता है।

 

हमारे लिए प्रोटोन प्रवणता इतना महत्वपूर्ण क्यों है

  • प्रोटोन प्रवणता इसलिए महत्वपूर्ण हैचूँकि प्रवणता टूटने पर एटीपी का संश्लेषण होता है और ऊर्जा मुक्त होती है। यह प्रवणता इसलिए भंग होती हैक्योंकि प्रोटोन झिल्लिका में मौजूद एटीपी सिन्थेज के पारगमन वाहिका (CF) के माध्यम से स्ट्रोमा में गतिशील होता है। एटीपी तथा एटीपी सिन्थेज एंजाइम के बारे में पढ़ा है। आपको याद होगा कि एटीपी सिन्थेज एंजाइम में दो भाग होते हैं: इसमें एक एफ शून्य (F) कहलाता हैजो झिल्लिका में अतः स्थापित होता है तथा एक पारगमन झिल्लिका चैनल की रचना करता है जो कि झिल्लिका के आर-पार प्रोटोन के विसरण को आगे बढ़ाता है। इसका दूसरा भाग एफ वन (F) कहलाता है और थाइलेकोइड की बाहरी सतह जो स्ट्रोमा की ओर होती है पर उद्धर्व के रूप में होता है प्रवणता का भंजन पर्याप्त ऊर्जा प्रदान करता हैजिसके कारण एटीपी सिन्थेज के कण एफ वन (F₁) में संरूपण परिवर्तन आता है। जिससे कि एंजाइम ऊर्जा से प्रचूर एटीपी का संश्लेषण कर सकें।

 

  • रसोपरासरण (केमिओस्मोसिस) के लिए एक झिल्लिकाएक प्रोटोन पंपएक प्रोटोन प्रवणता तथा एटीपी सिन्थेज की आवश्यकता होती है। प्रोटोन को एक झिल्लिका के आर-पार पंप करने के लिए ऊर्जा का उपयोग होता हैताकि थाइलेकोइड ल्यूमेन में एक प्रवणता अथवा प्रोटोन की उच्च सांद्रता पैदा हो सके। एटीपी सिन्थेज के पास एक चैनल अथवा नलिका होता हैजो झिल्लिका के आर-पार प्रोटोन को विसरण का अवसर देता है। यह एटीपी सिन्थेज एंजाइम को सक्रिय करने के लिए पर्याप्त ऊर्जा छोड़ता है जो एटीपी संश्लेषण को उत्प्रेरित करता है।

 

  • इलेक्ट्रॉन की गतिशीलता से उत्पादित एनएडीपीएच के साथ एटीपी भी स्ट्रोमा (पीठिका) में संपन्न होने वाले जैव संश्लेषण में तुरंत उपयोग कर लिए जाएंगेजो CO₂ के स्थिरण एवं शर्करा के संश्लेषण के लिए आवश्यक है।

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