गुणसूत्र की रासायनिक संरचना | Structure of Chromosome in Hindi

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 गुणसूत्र की रासायनिक संरचना  (Structure of Chromosome in Hindi)

गुणसूत्र की रासायनिक संरचना | Structure of Chromosome in Hindi



गुणसूत्र की रासायनिक संरचना (Chemical Structure of Chromosome) 

गुणसूत्र न्यूक्लिओप्रोटीन के बने होते हैं। गुणसूत्र का वह भाग जो निष्क्रिय होता है तथा गहरा रंग लेता है हेटेरोक्रोमेटिन कहलाता है। तथा वह भाग जो अभिरंजन से हल्का रँगता है तथा क्रियाशील होता है एवं विभाजन में भाग लेता हैयूक्रोमेटिन कहलाता है। गुणसूत्र में मिलने वाले प्रोटीन निम्नलिखित हैं-

 

(i) हिस्टोन प्रोटीन-लगभग 11% 

(ii) सरल प्रोटीन-लगभग 14% 

(iii) अम्लीय प्रोटीन-लगभग 65% 

(iv) न्यूक्लियक प्रोटीन-DNA 10% तथा RNA 2.3%

 

गुणसूत्र के कार्य (Functions of Chromosome) 

  • गुणसूत्र में उपस्थित जीन्स DNA के बने होते हैं। आनुवंशिक पदार्थ को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में पहुंचाने का प्रमुख कार्य डी.एन.ए का है। ये वंशागति का भौतिक आधार हैं।

 

रिबोन्यूक्लिक अम्ल (Ribonucleic Acid) 

  • आर. एन. ए. राइबोस शर्करानाइट्रोजन क्षारक तथा फॉस्फेट के अणुओं से बनी न्यूक्लिओटाइड की सरल श्रृंखला है। रिबोन्यूक्लिक अम्ल पॉलीन्यूक्लिओटाइड क्रम है। प्रत्येक राइबोस शर्करा एक पेन्टोस शर्करा है। इसमें चार प्रकार के नाइट्रोजनी क्षारकः यूरेसिल व साइटोसीन (पिरिमिडीन) तथा एडीनीन तथा ग्वानीन (प्यूरीन) मिलते हैं।


नाइट्रोजनी क्षारक + राइबोस शर्करा = न्यूक्लिओसाइड 

न्यूक्लिओसाइड + फॉस्फेट अणु = न्यूक्लिओटाइड

 

  • आर. एन. ए. अणु का निर्माण डी. एन. ए. अणु से अनुलेखन (transcription) द्वारा होता है। डी. एन. ए. में थायमीन पिरिमिडीन मिलता है परन्तु आर. एन. ए. में थायमीन की जगह पर यूरेसिल पाया जाता है। सामान्यतः यह आनुवंशिक नहीं होता है। परन्तु कुछ वाइरस में RNA आनुवंशिक होता हैजैसे TMV वाइरस में। आर. एन. ए. का मुख्य कार्य DNA पर उपस्थित संदेश का अनुवादन (translation) करना है। 

  • RNA तीन प्रकार के होते हैं- r-RNA, t-RNA तथा m. BU

 


1. राइबोसोमल आर. एन. ए. (r RNA) 

  • राइबोसोमल आर. एन. ए. राइबोसोम में पाये जाते हैं। इसकी खोज टीसियर्स तथा वाटसन ने 1958 ई. में की। इसमें क्षारक का अनुपात A : U तथा G: C होऐसा आवश्यक नहीं है। r-RNA केन्द्रीय संघटक में उपस्थित जीन के द्वारा निर्मित होकर केन्द्रिका में पूर्ण होता है। राइबोसोम के दोनों भाग में RNA अलग-अलग भार का होता है। उदाहरण 30भाग में 16S r-RNA (5,60,000 डाल्टन) तथा 50भाग में 23S r-RNA (1.1 × 106 डाल्टन) होता है। r-RNA का आकार हेयरपिन (चिमटी) के आकार का होता है . 

 

2. ट्रान्सफर आर. एन. ए. (t-RNA) 

  • यह कोशिकाद्रव्य में पाये जाते हैं। इनकी संरचना क्लोवर की पत्ती (clover leaf) के समान होती है। इसके दो छोरतीन लूप तथा एक लम्प होता है। इसकी एक भुजा (C3') को ग्राही भुजा कहते हैं। इसका अन्त C-C-A क्रम में होता है। इससे अमीनो अम्ल जुड़ता है। तीन लूप TYC लूपएन्टीकोडोन लूप तथा DHU लूप होते हैं। TYC लूप तथा एन्टीकोडोन लूप के मध्य एक लम्प मिलता है। 1-RNA की त्रिविम रचना 'L' आकार की है। इसमें A, U, C, G के अतिरिक्त इनोसीनस्यूडोयूरीडीन आदि क्षारक भी मिलते हैं। इसका मुख्य कार्य m-RNA के कूट को पहचानकर उसके अनुरूप अमीनो अम्ल को राइबोसोम पर लाकर छोड़ना है। 1-RNA अमीनो अम्ल विशिष्ट होते हैं। t-RNA 70-75 न्यूक्लिओटाइड की श्रृंखला है जिसका भार 25,000 डाल्टन के बराबर (लगभग) होता है। 

 

3. संदेशवाहक या मैसेन्जर आर. एन. ए. (m-RNA) 

  • संदेशवाहक RNA (m-RNA) का संश्लेषण DNA के ऊपर होता है । इसका अणुभार तथा लंबाई संदेश पर आधारित होती है । यह अल्पायु तथा एकरज्जुकी होता है ।  
  • इसमें A, U, G, C क्षारक मिलते हैं। सर्वप्रथम m-RNA के विषय में ब्रेनर ने बताया। नीरेनबर्ग व मथाई के अनुसार इसका अणुभार 50,000 - 2,00,000 डाल्टन तक हो सकता है। यह एक रज्जुकी है। प्रोकेरियोटिक m-RNA पॉलीसिस्ट्रोनिक (दो से अधिकजीन क्षारक क्रम) तथा यूकेरियोटिक m-RNA मोनोसिस्ट्रोनिक (एक जीन क्षारक क्रम) होता है।

 

डी. एन. ए. (डी-ऑक्सीराइबोन्यूक्लिक अम्ल) (DNA = Deoxyribonucleic Acid) 

गुणसूत्र की रासायनिक संरचना | Structure of Chromosome in Hindi


संरचना (Structure) 

  • डी. एन. ए. दो पॉली न्यूक्लिओटाइड श्रृंखला के antiparallel क्रम में जुड़कर एक कुण्डलित (helix) रचना से बनता है। उक्त पॉलीन्यूक्लिओटाइड श्रृंखला कई न्यूक्लिओटाइड के जुड़ने से बनती है।  
  • प्रत्येक न्यूक्लिओटाइड एक विशिष्ट जटिल संरचना है जो पेन्टोज शर्कराफॉस्फेटमूलक तथा नाइट्रोजनी क्षारक के मिलने से बनती है। क्षारक प्यूरीन (एडीनीनग्वानीन) तथा पिरिमिडीन (थायमीनसाइटोसीन) आदि हैं।

 

शर्करा 

  • पेन्टोस शर्करा डी-ऑक्सीराइबोस शर्करा है। इसमें C2स्थान पर एक ऑक्सीजन अणु कम होता है। 

फॉस्फेट मूलक 

  • यह फॉस्फेट अणु दो न्यूक्लिओटाइड को आपस में जोड़ता है। जिसके फलस्वरूप फॉस्फोडाइएस्टर बन्ध का निर्माण होता है। 

क्षारक 

ये दो प्रकार के प्यूरीन तथा पिरिमिडीन होते हैं। 

प्यूरीन 

  • प्यूरीन (purine) में एक षट्भुजी वलय तथा एक पंचभुजी इमिडाजोल वलय होती है। DNA में एडीनीन (Adenine = A) तथा ग्वानीन (Guanine = G) पाया जाता हैं।

 

पिरिमिडीन 

  • पिरिमिडीन (pyrimidine) में एक हेटेरोसाइक्लिक षट्भुजी वलय मिलती है। इसमें 4तथा 2होते हैं। थायमीन (Thymine = T) तथा साइटोसीन (Cytosine = C) क्षारक DNA में मिलते हैं। 
  • क्षारक तथा शर्करा मिलकर न्यूक्लिओ साइड (nucleoside) बनाते हैं। जैसे-डी-ऑक्सीथायमिडीनडी-ऑक्सीसाइटीडीनडी-ऑक्सीएडीनोसीन तथा डी-ऑक्सीगुआनोसीन है।

 

न्यूक्लिओसाइड तथा फॉस्फेट मूलक मिलकर न्यूक्लिओटाइड बनाते हैंजैसे- 

  • डी-ऑक्सीराइबोथाइमिडाइलिक अम्ल
  • डी-ऑक्सीराइबोसाइटीडाइलिक अम्ल, 
  • डी-ऑक्सीराइबोएडिनाइलिक अम्ल, 
  • डी-ऑक्सीराइबोग्वानाइलिक अम्ल आदि ।

 

  • डी. एन. ए. की संरचना वाटसन तथा क्रिक ने 1953 ई. में दिया। इनके अनुसार यह एक द्विक कुण्डलीय संरचना है। सामान्यतः मिलने वाला डी. एन. ए. B-DNA है जो कि दक्षिणावर्त होता है। इसमें तथा की मात्रा व तथा की मात्रा समान होती है। के अणु से जुड़ते हैं। के अणु से जुड़ते हैं अर्थात् A = T, C = G आदि । यह जरूरी नहीं है कि की संख्या के बराबर हो अथवा की मात्रा के बराबर । कुण्डली का व्यास 20Å तथा पिच 34Å है। प्रति समानान्तर (antiparallel) शृंखला में क्षारक क्रम सम्पूरक होते हैं।

 

  • दो निकटस्थ क्षारक जोड़ों के मध्य दूरी 3.4Å तथा एक पिच (pitch) में क्षारक जोड़ों की संख्या 10 होती है। क्षारक का निश्चित क्रम डी. एन. ए. की रासायनिक शब्दावली बनाता है जिससे आनुवंशिक लक्षणों की स्थापना होती है।

 

डी. एन. ए. के कार्य (Functions of DNA) 

  • यह आनुवंशिक सूचनाओं को पहली पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में पहुँचाता है। इसका स्वरूप स्थायी होने के कारण दूसरी पीढ़ी में लक्षण नहीं बदलते हैं। केवल उत्परिवर्तन की दशा में ही डी.एन.ए. में परिवर्तन आता है जिसके फलस्वरूप लक्षण बदल जाते हैं। डी. एन. ए. में प्रतिकृति (replication) के कारण पुत्री कोशिकाओं में DNA की संरचना समान होती है।

 

डी. एन. ए. (DNA) तथा आर. एन. ए. (RNA) में अंतर 

डी. एन. ए. (DNA) 

  • पॉलीन्यूक्लिओटाइड की दो श्रृंखलाओं से बनता है जो प्रति समानान्तर होती है। 
  • पिरिमिडीन क्षारक थाइमीन (T) मिलता है। 
  • डी-ऑक्सीराइबोस शर्करा मिलती है। 
  • केन्द्रक में गुणसूत्रों पर मिलता है। 
  • स्वंय प्रतिकृत (replicate) होता है। 
  • कोशिका की क्रियाओं पर नियन्त्रण करता है। 
  • सदैव आनुवंशिक होता है।

 

आर. एन. ए. (RNA) 

  • पॉलीन्यूक्लिओटाइड की एक श्रृंखला है। 
  • पिरिमिडीन क्षारक यूरेसिल (U) मिलता है। 
  • राइबोस शर्करा मिलती है। 
  • कोशिकाद्रव्य में तथा केन्द्रिका में मिलता है। 
  • अनुलेखन (transcription) से बनता है। 
  • प्रोटीन संश्लेषण में सहायता करता है। 
  • केवल कुछ विषाणुओं में आनुवंशिक होता है।

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