पादप जगत (प्लांटी किंगडम) जंतु जगत (एनिमेलिया किंगडम) एक परिचय | Plant and Animal Kingdom

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पादप जगत (प्लांटी किंगडम) जंतु जगत (एनिमेलिया किंगडम) एक परिचय

पादप जगत (प्लांटी किंगडम) जंतु जगत (एनिमेलिया किंगडम) एक परिचय | Plant and Animal Kingdom

पादप जगत (प्लांटी किंगडम) 

  • पादप जगत में वे सभी जीव आते हैं जो यूकैरिऑटिक हैं और जिनमें क्लोरोफिल होते हैं। ऐसे जीवों को पादप कहते हैं। इनमें से कुछ पादप जैसे कीटभक्षी पौधे तथा परजीवी आंशिक रूप से विषमपोषी होते हैं। 
  • ब्लेडरवर्ट तथा वीनस फ्लाईट्रेप कीटभक्षी पौधों के और अमरबेल (क्सकूटा) परजीवी का उदाहरण हैं। 
  • पादप कोशिका में कोशिका भित्ति होती है जो सेल्यूलोज की बनी होती है । 
  • प्लांटी जगत में शैवालब्रायोफाइटटैरिडोफाइटजिम्नोस्पर्म तथा एंजियोस्पर्म आते हैं। 

  • पादप के जीवन चक्र में दो सुस्पष्ट अवस्थाएँ द्विगुणित बीजाणु-उद्भिद् तथा अगुणित युग्मकोद्भिद् होती हैं। इन दोनों में पीढ़ी एकांतरण होता है। विभिन्न प्रकार के पादप वर्गों में अगुणित तथा द्विगुणित प्रवस्थाओं की लंबाई, और ये प्रवस्थाएँ मुक्तजीवी हैं अथवा दूसरों पर निर्भर करती हैं) के अनुसार विभिन्न होती हैं। युग्मनज (2n) में मिऑसिस विभाजन के द्वारा अगुणित (n) बीजाणु बनते हैं। ये बीजाणु अंकुरित होकर युग्मकोद्भिद् बनाते हैं। युग्मक (नर तथा मादा) युग्मकोद्भिद् पर बनते हैं जो संलयन होकर पुनः द्विगुणित युग्मनज बनाते हैं। युग्मनज से बीजाणु-उद्भिद् विकसित होता है। इस प्रक्रम को संतति एकांतरण कहते हैं। 

 

2.5 जंतु जगत (एनिमेलिया किंगडम) 

  • इस जगत के जीव विषमपोषी यूकैरिऑटिक हैं जो बहुकोशिक हैं और उनकी कोशिका में कोशिका भित्ति नहीं होती। 
  • ये भोजन के लिए परोक्ष तथा अपरोक्ष रूप से पौधों पर निर्भर रहते हैं। ये अपने भोजन को एक आंतरिक गुहिका में पचाते हैं और भोजन को ग्लाइकोजन अथवा वसा के रूप में संग्रहण करते हैं। इनमें प्राणि समपोषणअर्थात् भोजनका अंतर्ग्रहण करना होता हैं। उनमें वृद्धि का एक निर्दिष्ट पैटर्न होता है और वे एक पूर्ण वयस्क जीव बन जाते हैंजिसकी सुस्पष्ट आकृति तथा माप होती है। उच्चकोटि के जीवों में विस्तृत संवेदी तथा तंत्रिका प्रेरक क्रियाविधि विकसित होती है। इनमें से अधिकांश चलन करने में सक्षम होते हैं।
  •  लैंगिक जनन नर तथा मादा के संगम से होता है और बाद में उसमें भ्रूण का विकास होता है। 

 

विषाणु (वाइरस)वाइराइडप्रोसंक (प्रिओन) तथा लाइकेन 

  • विटेकर द्वारा सुझाए पाँच जगत वर्गीकरण में लाइकेन व अकोशिक जीवों जैसे वाइरसवाइराइडतथा प्रोसंक (प्रिओन) का उल्लेख नहीं किया गया है। 
  • वाइरस का नाम वर्गीकरण में नहीं हैक्योंकि ये वास्तविक 'जीवननहीं है- यदि हम यह मानते हैं कि सजीवों की कोशिका संरचना होती है। वाइरस अकोशिक जीव हैं जिनकी संरचना सजीव कोशिका के बाहर रवेदार होती है। एक बार जब ये कोशिका को संक्रमित कर देते हैंतब ये मेजबान कोशिका की मशीनरी का उपयोग अपनी प्रतिकृति बनाने में करते हैं और मेजबान को मार देते हैं।  
  • वाइरस का अर्थ है विष अथवा विषैला तरल। 
  • डिमित्री इबानोवस्की (1892) ने तंबाकू के मोजेक रोग के रोगाणुओं को पहचाना थाजिन्हें वाइरस नाम दिया गया। इनका बैक्टीरिया भी छोटा थाप्रूफ भी निकल गए 
  • एम. डब्ल्यु बेजेरिनेक (1898) ने पाया कि संक्रमित तंबाकू के पौधों का रस स्वस्थ तंबाकू के पौधे को भी संक्रमित करने में सक्षम है। उन्होंने इस रस (तरल) को 'कंटेजियम वाइनम फ्लुयइडम' (संक्रामक जीवित तरल) कहा। डब्ल्यु. एम. स्टानले (1935) ने बताया कि वाइरस को रवेदार बनाया जा सकता है और इस रवे में मुख्यतः प्रोटीन होता है। वे अपनी विशिष्ट मेजबान कोशिका के बाहर निष्क्रिय होते हैं। 
  • वाइरस अविकल्पी परजीवी हैं। 
  • वाइरस में प्रोटीन के अतिरिक्त आनुवंशिक पदार्थ भी होता हैजो आरएनए (RNA) अथवा डीएनए (DNA) हो सकता है। किसी भी वाइरस में आरएनए तथा डीएनए दोनों नहीं होते। 
  • वाइरस केंद्रक प्रोटीन (न्यूक्लियो प्रोटीन) और इसका आनुवंशिक पदार्थ संक्रामक होता है। प्रायः सभी पादप वाइरस में एक लड़ी वाला आरएनए होता हैऔर सभी जंतु वाइरस में एक अथवा दोहरी लड़ी वाला आरएनए अथवा डीएनए होता है। 
  • बैक्टीरियल वाइरस अथवा जीवाणुभोजी (बैक्टीरियोफेज-आवरण वाइरस जो बैक्टीरिया पर संक्रमण करता है) प्रायः दोहरी लड़ी वाले डीएनए वाइरस होते हैं। 
  • प्रोटीन के आवरण (अस्तर) को कैप्सिड कहते हैं और यह छोटी-छोटी उप-इकाइयों जिन्हें पेटिकोशक (कैप्सोमीयर) कहते हैंसे मिलकर बनता है। 
  • कैप्सिड न्यूक्लिक एसिड को संरक्षित करता है ये पेटिकांशक कुंडलिनी अथवा बहुफलक ज्यामिती रूप में लगे रहते हैं। 
  • वाइरस से मम्पसचेचकहर्पीज तथा इंफ्लूएंजा नामक रोग हो जाते हैं। मनुष्यों में एड्स (AIDS) भी वाइरस के कारण होता है। 
  • पौधों में मोजैक बननापत्तियों का मुड़ना तथा कुंचनपीला होना तथा शिरा स्पष्टताबौना तथा अवरुद्ध वृद्धि होना इसके लक्षण हैं।

 

वाइराइड 

  • सन 1971 में टी.ओ. डाइनर ने एक नया संक्रामक कारक खोजा जो वाइरस से भी छोटा तथा जिसके कारण 'पोटेटो स्पिंडल ट्यूबरनामक रोग होता था। 
  • वाइराइडों में आरएनए तथा प्रोटीन आवरण (अस्तर)जो वाइरस में पाए जाते हैं उनका अभाव होता है। इसलिए यह वाइराइड के नाम से जाने जाते हैं। 
  • वाइराइड के आरएनए का आण्विक भार कम था।

 

प्रोसंक (प्रिओन) 

  • आधुनिक चिकित्सा में कुछ संक्रामक न्यूरोलॉजिकल बीमारियाँ असामान्य रूप से फोल्ड प्रोटीन वाले कारकों द्वारा प्रेषित पाई गयीं। इन कारकों का आकार वाइरस के आकार के समान था। इन कारकों को प्रोसंग कहा गया। 
  • प्रोसंग द्वारा प्राणियों में होने वाली सबसे उल्लेखनीय बीमारियाँ बोवाइन स्पंजिफोर्म एन्सेफैलोपैथी हैजिन्हें आमतौर पर मवेशियों में मेडकाऊ रोग कहा जाता है और मनुष्यों में इसका समान प्रकार सी आर जैकब रोग (Creutzfeldt-Jakob Disease) होता है।

 

लाइकेन 

  • लाइकेन शैवाल तथा कवक के सहजीवी सहवास अर्थात् पारस्परिक उपयोगी सहवास हैं। शैवाल घटक को शैवालांश तथा कवक के घटक को माइकोवायंट (कवकांश) कहते हैंजो क्रमशः स्वपोषी तथा परपोषित होते हैं। 
  • शैवाल कवक (फंजाई) के लिए भोजन संश्लेषित करता है और कवक शैवाल के लिए आश्रय देता है तथा खनिज एवं जल का अवशोषण करता है। इनका सहवास इतना घनिष्ठ होता है कि यदि प्रकृति में लाइकेन को देख ले तो यह अनुमान लगाना असंभव है कि इसमें दो विभिन्न जीव हैं। लाइकेन प्रदूषण के बहुत अच्छे संकेतक हैं वे प्रदूषित क्षेत्रों में नहीं उगते। 

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