प्राणि जगत
अब तक लगभग दस लाख से अधिक प्राणियों का वर्णन किया जा चुका है, अतः वर्गीकरण का महत्व अधिक हो जाता है।
प्राणि जगत वर्गीकरण का आधार
वर्गीकरण का आधार
- प्राणियों की संरचना एवं आकार में भिन्नता होते हुए भी उनकी कोशिका व्यवस्था, शारीरिक सममिति, प्रगुहा की प्रकृति, पाचन तंत्र, परिसंचरण-तंत्र व जनन तंत्र की रचना में कुछ आधारभूत समानताएं पाई जाती हैं। इन विशेषताओं को वर्गीकरण के आधार के रूप में प्रयुक्त किया गया है। इनमें से कुछ का वर्णन यहाँ किया गया है।
1 संगठन के स्तर
- यद्यपि प्राणि जगत के सभी सदस्य बहुकोशिक हैं, लेकिन सभी एक ही प्रकार की कोशिका के संगठन को प्रदर्शित नहीं करते हैं। उदाहरण के लिए, स्पंज में कोशिका बिखरे हुए समूहों में हैं। अर्थात् वे कोशिकीय स्तर का संगठन दर्शाती हैं। कोशिकाओं के बीच श्रम का कुछ विभाजन होता है।
- सिलेंटरेट कोशिकाओं की व्यवस्था अधिक होती हैं। उसमें कोशिकाएं अपना कार्य संगठित होकर ऊतक के रूप में करती हैं। इसलिए इसे ऊतक स्तर का संगठन कहा जाता है।
- इससे उच्च स्तर का संगठन जो प्लेटीहेल्मिंथीज के सदस्य तथा अन्य उच्च संघों में पाया जाता है जिसमें ऊतक संगठित होकर अंग का निर्माण करता है और प्रत्येक अंग एक विशेष कार्य करता है। प्राणी में जैसे, ऐनेलिड, आर्थोपोड, मोलस्क, एकाइनोडर्म तथा रज्जुकी के अंग मिलकर तंत्र के रूप में शारीरिक कार्य करते हैं। प्रत्येक तंत्र एक विशिष्ट कार्य करता है। इस तरह की संरचना अंगतंत्र के स्तर का संगठन कहा जाता है।
- विभिन्न प्राणि समूहों में अंगतंत्र विभिन्न प्रकार की जटिलताएं प्रदर्शित करते हैं। उदाहरण के लिए पाचन भी अपूर्ण व पूर्ण होता है। अपूर्ण पाचन तंत्र में एक ही बाह्य द्वार होता है, जो मुख तथा गुदा दोनों का कार्य करता है, जैसे प्लेटीहेल्मिंथीज। पूर्ण पाचन तंत्र में दो बाह्य द्वार होते हैं मुख तथा गुदा।
- (i) खुले परिसंचरण-तंत्र में रक्त का बहाव हृदय से सीधे बाहर भेजा जाता है तथा कोशिका एवं ऊतक इसमें डूबे रहते हैं।
- (ii) बंद परिसंचरण-तंत्र- रक्त का संचार हृदय से भिन्न-भिन्न व्यास की वाहिकाओं के द्वारा होता है। (उदाहरण - धमनी, शिरा तथा कोशिकाएं)
2 सममिति
- प्राणी को सममिति के आधार पर भी श्रेणीबद्ध किया जा सकता है। स्पंज मुख्यतः असममिति होते हैं; अर्थात् किसी भी केंद्रीय अक्ष से गुजरने वाली रेखा इन्हें दो बराबर भागों विभाजित नहीं करती।
- जब किसी भी केंद्रीय अक्ष से गुजरने वाली रेखा प्राणि के शरीर को दो समरूप भागों में विभाजित करती है तो इसे अरीय सममिति कहते हैं। सीलेंटरेट, टीनोफोर, तथा एकाइनोडर्म में इसी प्रकार की सममिति होती है.
- किंतु ऐनेलिड, आर्थोपोड, आदि में एक ही अक्ष से गुजरने वाली रेखा द्वारा शरीर दो समरूप दाएं व बाएं भाग में बाँटा जा सकता है। इसे द्विपार्श्व सममिति कहते हैं।
3 द्विकोरिक तथा त्रिकोरकी संगठन
- जिन प्राणियों में कोशिकाएं दो भ्रूणीय स्तरों में व्यवस्थित होती हैं यथा बाह्य एक्टोडर्म (बाह्य त्वचा) तथा आंतरिक एंडोडर्म (अंतः त्वचा) वे द्विकोरिक कहलाते हैं। जैसे सिलेन्टरेट
- वे प्राणी जिनके विकसित भ्रूण में तृतीय भ्रूणीय स्तर मीजोडर्म होता है, त्रिकोरकी कहलाते हैं (जैसे प्लेटीहेल्मिंथीज से रज्जुकी तक .
4 प्रगुहा (सीलोम )
- शरीर भित्ति तथा आहार नाल के बीच में गुहा की उपस्थिति अथवा अनुपस्थिति वर्गीकरण का महत्वपूर्ण आधार है। मीजोडर्म (मध्य त्वचा) से आच्छादित शरीर गुहा को देहगुहा (प्रगुहा) कहते हैं। तथा इससे युक्त प्राणी को प्रगुही प्राणी कहते हैं। उदाहरण- ऐनेलिड, मोलस्क, आर्थोपोड, एकाइनोडर्म, हेमीकॉर्डेट तथा कॉर्डेट।
- कुछ प्राणियों में यह गुहा मीसोडर्म से आच्छादित नहीं होती, बल्कि मध्य त्वचा (मीसोडर्म) बाह्य त्वचा एवं अंतः त्वचा के बीच बिखरी हुई थैली के रूप में पाई जाती है, उन्हें कूटगुहिक कहते हैं जैसे- ऐस्केल्मिंथीज।
- जिन प्राणियों में शरीर गुहा नहीं पाई जाती है उन्हें अगुहीय कहते हैं, जैसे- प्लेटीहेल्मिंथीज
5 खंडीभवन (सैगमेंटेशन)
- कुछ प्राणियों में शरीर बाह्य तथा आंतरिक दोनों ओर श्रेणीबद्ध खंडों में विभाजित रहता है, जिनमें कुछेक अंगों की क्रमिक पुनरावृति होती है। उस प्रक्रिया को खंडीभवन कहते हैं।
- उदाहरण के लिए के केंचुए में शरीर का विखंडी खंडीभवन होता है और यह विखंडावस्था कहलाती है।
6 पृष्ठरज्जु
- शलाका रूपी पृष्ठरज्जु (नोटोकोर्ड) मध्यत्वचा (मीसोडर्म) से उत्पन्न होती है जो भ्रूणीय परिवर्धन विकास के समय पृष्ठ सतह में बनती होती है। पृष्ठरज्जु युक्त प्राणी को रज्जुकी (कॉर्डेट) कहते हैं तथा पृष्ठरज्जु रहित प्राणी को अरज्जुकी (नोनकॉर्डेट) कहते हैं।