जैव अणु प्राथमिक व द्वितियक उपापचयज वृहत् जैव अणु |Biomolecules 11th Biology NCERT

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 जैव अणु प्राथमिक व द्वितियक उपापचयज वृहत् जैव अणु

जैव अणु प्राथमिक व द्वितियक उपापचयज वृहत् जैव अणु |Biomolecules 11th Biology NCERT


जैव अणु 

  • इस जीवमंडल में विविध प्रकार के जीव मिलते हैं। मस्तिष्क में यह प्रश्न उठता है कि क्या सभी जीव रासायनिक संघटन की दृष्टि से एक ही प्रकार के तत्वों एवं यौगिकों से मिलकर बने होते हैं
  • यदि पादप व प्राणी ऊतकों एवं सूक्ष्मजीवी लेई में तत्वों का परीक्षण करें तो हमें कार्बन, हाइड्रोजन, ऑक्सीजन व अन्य तत्वों की एक सूची प्राप्त होती है। जिनकी मात्रा जीव ऊतकों की प्रति इकाई मात्रा में भिन्न-भिन्न होती है। 
  • यदि उपरोक्त परीक्षण निर्जीव पदार्थ जैसे भू-पर्पटी के एक टुकड़े का करें, तब भी हमें तत्वों की उपरोक्त सूची प्राप्त होती है। 
  • सभी तत्व जो भू-पर्पटी के नमूने में मिलते हैं, वे सभी जीव ऊतकों के नमूने में भी मिलते हैं। फिर भी सूक्ष्म परीक्षण से पता चलता है कि कार्बन व हाइड्रोजन की मात्रा अन्य तत्वों की अपेक्षा किसी भी जीव में भू-पर्पटी से सामान्यतया ज्यादा होती है।


रासायनिक संघटन का विश्लेषण कैसे करें ?

  • इसी तरह से हम पूछ सकते हैं कि जीवों में कार्बनिक यौगिक किस रूप में मिलते हैं? उपरोक्त उत्तर पाने के लिए कोई व्यक्ति क्या करेगा? इसका उत्तर पाने के लिए हमें रासायनिक विश्लेषण करना होगा। 
  • हम किसी भी जीव ऊतक (जैसे-सब्जी या यकृत का टुकड़ा आदि) को लेकर खरल व मूसल की सहायता से ट्राइक्लोरोएसिटिक अम्ल के साथ पीसते हैं, जिसके बाद एक गाढ़ा कर्दम (slurry) प्राप्त होता है, पुनः इसे महीन कपड़े में रखकर कसकर निचोड़ने (छानने) के बाद हमें दो अंश प्राप्त होते हैं। एक अंश जो अम्ल में घुला होता है उसे निस्यंद कहते हैं व दूसरा अंश अम्ल में अविलेय है जिसे धारित कहते हैं। 
  • वैज्ञानिकों ने अम्ल घुलनशील भाग में हजारों कार्बनिक यौगिकों को प्राप्त किया।दूसरे शब्दों में एक वियुक्त एक शुद्ध यौगिक होता है। विश्लेषणात्मक तकनीक का प्रयोग कर किसी भी यौगिक के आण्विकसूत्र व संभावित संरचना के बारे में जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। जीव ऊतकों में मिलने वाले सभी कार्बनिक यौगिकों को 'जैव अणु' कहते हैं। लेकिन जीवों में भी अकार्बनिक तत्व व यौगिक मिलते हैं। हम यह कैसे जान पाते हैं? एक थोड़ा भिन्न किंतु भंजक प्रयोग करना पड़ेगा। जीव ऊतकों (पर्ण व यकृत) की थोड़ी मात्रा को तोलकर (यह नम भार कहलाता है) शुष्क कर लें, जिससे संपूर्ण जल वाष्पित हो जाता है। बचे हुए पदार्थ से शुष्क भार प्राप्त होता है। 
  • यदि ऊतकों को पूर्ण रूप से जलाया जाए तो सभी कार्बनिक यौगिक ऑक्सीकृत होकर गैसीय रूप (CO₂ व जल वाष्प) में अलग हो जाते हैं। बचे हुए पदार्थ को 'भस्म' कहते हैं। इस भस्म में अकार्बनिक तत्व (जैसे कैल्सियम, मैग्नीसियम आदि) मिलते हैं। 
  • अकार्बनिक यौगिक जैसे सल्फेट, फॉस्फेट आदि अम्ल घुलनशील अंश में मिलते हैं। इस कारण से तत्वीय विश्लेषण से किसी जीव ऊतक के तत्वीय संगठन की हाइड्रोजन, ऑक्सीजनक्लोरीन, कार्बन आदि के रूप में जानकारी मिलती है। 
  • यौगिकों के परीक्षण से जीव ऊतकों में उपस्थित कार्बनिक व अकार्बनिक यौगिकों के बारे में जानकारी मिलती है। रसायन विज्ञान के दृष्टिकोण से क्रियात्मक समूह जैसे ऐल्डीहाइड, कीटोन एरोमेटिक (Aromatic) यौगिकों आदि की पहचान की जा सकती है किंतु जीव विज्ञान की दृष्टि से इन्हें अमीनो अम्ल, न्यूक्लियोटाइड क्षार, वसा अम्ल इत्यादि में वर्गीकृत करते हैं।

अमीनो अम्ल 

  • अमीनो अम्ल कार्बनिक यौगिक होते हैं जिनमें इसके एक ही कार्बन (a-कार्बन) पर एक अमीनो समूह व एक अम्लीय समूह प्रतिस्थापित होते हैं। इस कारण इन्हें (α) एल्फा अमीनो अम्ल कहते हैं। ये प्रतिस्थापित मेथेन हैं। चार प्रतिस्थाई समूह चार संयोजकता स्थल से जुड़े रहते हैं। ये समूह हाइड्रोजन, कार्बोक्सिल समूह, अमीनो समूह तथा भिन्न परिवर्तनशील समूह जिसे R समूह, से व्यक्त करते हैं, पाए जाते हैं।
  • R समूह की प्रकृति के आधार पर अमीनो अम्ल अनेक प्रकार के होते हैं फिर भी प्रोटीन में उपलब्धता के आधार पर ये 21 प्रकार के होते हैं। प्रोटीन के अमीनो अम्लों में R समूह, हाइड्रोजन (अमीनो अम्ल-ग्लाइसीन), मेथिल समूह (ऐलेनीन), हाइड्रोक्सीमेथिल (सीरिन) आदि हो सकते हैं। 21 में से 3 को चित्र  में दर्शाया गया है।

 

  • अमीनो अम्लों के भौतिक व रासायनिक गुण मुख्यतया अमीनो, कार्बोक्सिल व R क्रियात्मक समूह पर निर्भर है। अमीनो व कार्बोक्सिल समूहों की संख्या के आधार पर अम्लीय (उदाहरण ग्लुटामिक अम्ल), क्षारीय (उदाहरण लाइसिन) और उदासीन (उदाहरण वेलीन) अमीनो अम्ल होते हैं। इसी तरह से एरोमेटिक अमीनो अम्ल (टायरोसीन, फेनिलऐलेनीन, ट्रिप्टोफान) होते हैं। अमीनो अम्लों का एक विशेष गुण यह है कि अमीनो (-NH₂) व कार्बोक्सिल (-COOH) समूह आयनिकरण प्रकृति के होते हैं, अतः विभिन्न pH वाले विलयनों में अमीनो अम्लों की संरचना परिवर्तित होती रहती है।
आयनिकरण प्रकृति के होते हैं, अतः विभिन्न pH वाले विलयनों में अमीनो अम्लों की संरचना परिवर्तित होती रहती है।आयनिकरण प्रकृति के होते हैं, अतः विभिन्न pH वाले विलयनों में अमीनो अम्लों की संरचना परिवर्तित होती रहती है।

लिपिड

  • साधारणतया लिपिड पानी में अघुलनशील होते हैं। ये साधारण वसा अम्ल हो सकते हैं। वसा अम्ल में एक कार्बोक्सिल समूह होता है, जो एक R समूह से जुड़ा होता है। R समूह मेथिल (-CH₂), अथवा ऐथिल-CH5या उच्च संख्या वाले -CH2 समूह (1 कार्बन से 19 कार्बन)। 
  • उदाहणार्थ पाल्मिटिक अम्ल में कार्बोक्सिल कार्बन के सहित 16 कार्बन मिलते हैं। ऐरेकिडोनिक अम्ल में कार्बोक्सिल कार्बन सहित 20 कार्बन परमाणु होते हैं। 
  • वसा अम्ल संतृप्त (बिना द्विक आबंध) या असंतृप्त (एक या एक से अधिक c=c द्विआबंध) प्रकार के हो सकते हैं। 
  • दूसरा साधारण लिपिड ग्लिसरॉल है जो ट्राइहाइड्रिक्ससी प्रोपेन होता है। 
  • बहुत सारे लिपिड्स में ग्लिसरॉल व वसा अम्ल दोनों मिलते हैं। 
  • यहाँ पर वसा अम्ल ग्लिसरॉल से एस्टरीकृत होता है तब वे मोनोग्लिसरॉइड, डाइग्लिसरॉइड तथा ट्राई ग्लिसरॉइड हो सकते हैं। 
  • गलन बिंदु के आधार पर वसा या तेल (oils) कहलाते हैं। तेलों का गलनांक अपेक्षाकृत कम होता है (जैसे जिंजेली तेल)। अतः सर्दियों में तेल के रूप में होते हैं। 
  • कुछ लिपिड्स में फॉस्फोरस व एक फॉस्फोरिलीकृत कार्बनिक यौगिक मिलते हैं। ये फॉस्फोलिपिड्स हैं, जो कोशिका झिल्ली में मिलते हैं जैसे लेसिथिन। कुछ ऊतक विशेष तौर तंत्रिका ऊतक में अधिक जटिल संरचना के लिपिड पाए जाते हैं।

कार्बनिक यौगिक विषमचक्रीय वलय युक्त 

  • जीवों में बहुत सारे कार्बनिक यौगिक विषमचक्रीय वलय युक्त भी होते हैं। इनमें से कुछ नाइट्रोजन क्षार-ऐडेनीन, ग्वानीन, साइटोसीन, यूरेसिल व थायमीन हैं। ये शर्करा से जुड़कर न्यूक्लिोसाइड बनाते हैं। यदि इनसे फॉस्फेट समूह भी शर्करा से इस्टरीकृत रूप में हो तो इन्हें न्यूक्लियोटाइड कहते हैं। 
  • ऐडेनोसिन, ग्वानोसिन, थायमिडिन, यूरिडिन व साइटिडिन न्यूक्लियोसाइड हैं। ऐडेनिलिक अम्ल, थायमेडिलिक अम्ल, ग्वानिलिक अम्ल, यूरिडिलिक अम्ल व सिटिडिलिक अम्ल न्यूक्लियोटाइड्स हैं। न्यूक्लीक अम्ल जैसे डीएनए (DNA) व आरएनए आनुवंशिक पदार्थ के रूप में कार्य करते हैं।

 

प्राथमिक व द्वितियक उपापचयज 

  • रसायन विज्ञान की एक महत्वपूर्ण शाखा में जीवों के हजारों बड़े-छोटे यौगिकों का विलगन (पृथक्करण) किया जाता है। उनकी संरचना निर्धारित की जाती है और संभव हो तो उन्हें संश्लेषित किया जाता है। यदि कोई जैव अणुओं की एक तालिका बनाए तो उनमें हजारों कार्बनिक यौगिक जैसे अमीनो अम्ल, शर्करा इत्यादि पाए जाएंगे।  कुछ कारणों से जिन्हें खंड 9.10 में दिया गया है, को हम उपापचयज कहते हैं। उपरोक्त सभी श्रेणी के इन यौगिकों की उपस्थिति को जिन्हें (चित्र 9.1) में दर्शाया गया है। कोई व्यक्ति प्राणि ऊतकों में ज्ञात कर सकता है। इन्हें प्राथमिक उपापचयज कहते हैं। 
जैव अणु प्राथमिक व द्वितियक उपापचयज


  • जब कोई पादप, कवक व सूक्ष्म जीवी कोशिकाओं का विश्लेषण करें तो उसे इन प्राथमिक उपापचयजों के अतिरिक्त हजारों यौगिक जैसे- एल्केलायड्, फ्लेवेनोयड्स, रबर, वाष्पशील तेल, प्रतिजैविक, रंगीन वर्णक, इत्र, गोंद, मसाले मिलते हैं। इन्हें द्वितीयक उपापचयज कहते हैं.
जैव अणु प्राथमिक व द्वितियक उपापचयज


  • प्राथमिक उपापचयज ज्ञात कार्य करते हैं व सामान्य कार्यिकी प्रक्रिया में इनकी भूमिका भी ज्ञात है, किंतु हम इस समय सभी द्वितीयक उपापचयजों की (जिन प्राणियों में ये पाए जाते हैं, में उनकी) भूमिका या कार्य नहीं जानते। जबकि इनमें से बहुत (जैसे- रबर, औषधि, मसाले, इत्र व वर्णक) मनुष्य के कल्याण में उपयोगी हैं। कुछ द्वितीयक उपापचयजों का पारिस्थितिक महत्व है। 

वृहत् जैव अणु 

अम्ल घुलनशील भाग में पाए जाने वाले सभी यौगिकों की एक सामान्य विशेषता है कि इनका अणुभार 18 से लगभग 800 डाल्टॉन के आस-पास होता है। 

अम्ल अविलेय अंश में केवल चार प्रकार के कार्बनिक यौगिक जैसे प्रोटीन, न्यूक्लीक अम्ल, पॉलीसैकेराइड्स व लिपिड्स मिलते हैं। लिपिड्स के अतिरिक्त इस श्रेणी के यौगिकों का अणु भार दस हजार डाल्टॉन या इसके ऊपर होता है। 

इस कारण से जैव अणु अर्थात् जीवों में मिलने वाले रासायनिक यौगिक दो प्रकार के होते हैं। एक वे हैं जिनका अणुभार एक हजार डाल्टॉन से कम होता है; उन्हें सामान्यतया सूक्ष्मअणु या जैव अणु कहते हैं; जबकि जो अम्ल अविलेय अंश में पाए जाते हैं; उन्हें वृहत् अणु या वृहत् जैव अणु कहते हैं। 

  • लिपिड्स के अतिरिक्त अविलेय अंशों में पाए जाने वाले अणु बहुलक पदार्थ होते हैं। लिपिड्स जिनके अणुभार 800 से अधिक नहीं होते, वे अम्ल अविलेय अंश या वृहत् आण्विक अंश की श्रेणी में क्यों आते हैं? वास्तव में लिपिड्स कम अणुभार के यौगिक होते हैं, वे ऐसे ही नहीं मिलते, बल्कि कोशिका झिल्ली और दूसरी झिल्लियों में पाए जाते हैं। जब हम ऊतकों को पीसते हैं तब कोशकीय संरचना विघटित हो जाती है। कोशिकाझिल्ली व अन्य दूसरी झिल्लियाँ टुकड़ों में विखंडित हो जाती हैं, तथा पुटिका बनाती हैं जो जल में घुलनशील नहीं हैं। इस कारण से इन झिल्लियों के पुटिका के रूप में टुकड़े अम्ल अविलेय भाग के साथ पृथक् हो जाते हैं, जो वृहत् आण्विक अंश का भाग होते हैं। 
  • सही अर्थ में लिपिड्स वृहत् अणु नहीं है। अम्ल विलेय अंश वास्तव में कोशिका द्रव्य संगठन का भाग है। कोशिका द्रव्य व अंगकों के वृहत् अणु अम्ल अविलेय अंश होते हैं। ये दोनों आपस में मिलकर जीव ऊतकों या जीवों का संगठन बनाते हैं। 
  • संक्षेप में, यदि जीव ऊतकों में पाए जाने वाले रासायनिक संगठन को बाहुल्यता की दृष्टि से श्रेणीबद्ध किया जाए तो हम पाते हैं कि जीवों में पानी सबसे सर्वाधिक बाहुल्यता से मिलने वाला रसायन है। .

 

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