ब्रायोफाइट को लिवरवर्ट तथा मॉस, टैरिडोफाइट
ब्रायोफाइट
- ब्रायोफाइट में मॉस तथा लिवरवर्ट आते हैं जो प्रायः पहाड़ियों में नम तथा छायादार क्षेत्रों में पाए जाते हैं ।
- ब्रायोफाइट को पादप जगत के जलस्थलचर भी कहते हैं; क्योंकि ये भूमि पर भी जीवित रह सकते हैं, किंतु लैंगिक जनन के लिए जल पर निर्भर करते हैं।
- ये प्रायः नम, सीलन (आर्द्र), तथा छायादार स्थानों पर पाए जाते हैं। ये अनुक्रमण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
- इनकी पादपकाय शैवाल की अपेक्षा अधिक विभेदित होती है। यह थैलस की तरह होता है और शयान अथवा सीधा होता है और एक कोशिक तथा बहुकोशिक मूलाभ द्वारा स्बस्ट्रेटम से जुड़ा रहता है। इनमें वास्तविक मूल, तना अथवा पत्तियाँ नहीं होती। इनमें मूलसम, पत्तीसम अथवा तनासम संरचना होती है।
- ब्रायोफाइट की मुख्यकाय अगुणित होती है। ये युग्मक उत्पन्न करते हैं, इसलिए इन्हें युग्मकोभिद् कहते हैं। ब्रायोफाइट में लैंगिक अंग बहुकोशिक होते हैं। नर लैंगिक अंग को पुंधानी कहते हैं। ये द्विकशाभिक पुमंग उत्पन्न करते हैं। मादा जनन अंग को स्त्रीधानी कहते हैं। यह फ्लास्क के आकार का होता है जिसमें एक अंड होता है। पुमंग को पानी में छोड़ दिया जाता है। ये स्त्रीधानी के संपर्क में आते हैं और अंडे से संगलित हो जाते हैं, जिसके कारण युग्मनज बनता है। युग्मनज में तुरंत न्यूनीकरण विभाजन नहीं होता और इससे एक बहुकोशिक बीजाणु-उद्भिद् (स्पोरोफाइट) बन जाता है।
- स्पोरोफाइट मुक्तजीवी नहीं है, बल्कि यह प्रकाश संश्लेषी युग्मकोद्भिद् से जुड़ा रहता है और इससे अपना पोषण प्राप्त करता रहता है। स्पोरोफाइट की कुछ कोशिकाओं में न्यूनीकरण विभाजन होता है, जिससे अंगुणित बीजाणु अंकुरित हो कर युग्मकोद्भिद् में विकसित हो जाते हैं।
ब्रायोफाइट का महत्त्व
- ब्रायोफाइट का बहुत कम आर्थिक महत्त्व है। लेकिन कुछ मॉस शाकाहारी स्तनधारियों, पक्षियों तथा अन्य प्राणियों को भोजन प्रदान करते हैं।
- स्फंगनम की कुछ स्पीशीज (जाति) पीट प्रदान करती हैं जिसका उपयोग ईंधन के रूप में करते हैं। इसका उपयोग पैकिंग में और सजीव पदार्थों को स्थानांतरित करने में भी करते हैं। इसका कारण यह है कि इनमें पानी को रोकने की क्षमता बहुत अधिक होती है।
- लाइकेन समेत मॉस सर्वप्रथम ऐसे सजीव हैं, जो चट्टानों पर उगते हैं। इनका परिस्थितिक दृष्टि से बहुत महत्व हैं। इन्होंने चट्टानों को अपघटित किया और अन्य उच्च कोटि के पौधों को उगने के अनुरूप बनाया। चूंकि मॉस मिट्टी पर एक सघन परत बना देते हैं, इसलिए वर्षा की बौछारें मृदा को अधिक हानि नहीं पहुँचा पाती और इस प्रकार ये मृदा अपक्षरण को रोकते हैं।
ब्रायोफाइट को लिवरवर्ट तथा मॉस में विभक्त कर सकते हैं :-
1 लिवरवर्ट
- लिवरवर्ट प्रायः नमी छायादार स्थानों जैसे नदियों के किनारे, दल-दले स्थानों, गीली मिट्टी, पेड़ों की छालों आदि पर उगते हैं।
- लिवरवर्ट की पादपकाय थैलासाभ (मारकेंशिया) होती हैं। थैलस पृष्ठाधर होते हैं तथा अधः स्तर बिल्कुल चिपके रहते हैं।
- इसके पत्तीदार सदस्यों में पत्तियों की तरह की छोटी-छोटी संरचनाएँ होती हैं जो तने की तरह की रचना पर दो कतारों में होती हैं।
लिवरवर्ट में अलैंगिक जनन
- लिवरवर्ट में अलैंगिक जनन थैलस के विखंडन अथवा विशिष्ट संरचना जेमा द्वारा होता है। जेमा हरी बहुकोशिक अलैंगिक कलियाँ हैं। ये छोटे-छोटे पात्रों, जिन्हें जेमा कप कहते हैं, में स्थित होती हैं। ये अपने पैतृक पादप से अलग हो जाती हैं और इससे एक नया पादप उग आता है। लैंगिक जनन के दौरान नर तथा मादा लैंगिक अंग या तो उसी थैलस पर अथवा दूसरे थैलस पर बनते हैं। स्पोरोफाइट में एक पाद, सीटा तथा कैप्स्यूल (मारकेंशिया) होता है। मिऑसिस के बाद कैप्सूल में स्पोर बनते हैं। स्पोर से अंकुरण होने के कारण मुक्तजीवी युग्मकोद्भिद् बनते हैं।
2 मॉस
- जीवन चक्र की प्रभावी अवस्था युग्मकोद्भिद् होती है, जिसकी दो अवस्थाएँ होती हैं। पहली अवस्था प्रथम तंतु है जो स्पोर से बनता है। यह विसर्पी, हरा, शाखित तथा प्रायः तंतुमयी होता है। इसकी दूसरी अवस्था पत्ती की तरह की होती है जो प्रथम तंतु से पार्श्वीय कली के रूप में उत्पन्न होती है।
- इसमें एक सीधा, पतला तना सा होता है। जिस पर सर्पिल रूप में पत्तियां लगी रहती हैं। ये बहुकोशिक तथा शाखित मूलाभ द्वारा मिट्टी से जुड़ी रहती हैं। इस अवस्था में लैंगिक अंग विकसित होते हैं।
- मॉस में कायिक जनन द्वितीयक प्रथम तंतु के विखंडन तथा मुकुलन द्वारा होता है। लैंगिक जनन में लैंगिक अंग पुंधानी तथा स्त्रीधानी पत्तीदार प्ररोह की चोटी पर स्थित होते हैं।
- निषेचन के बाद, युग्मनज से स्पोरोफाइट विकसित होता है जो पाद, सीटा तथा कैप्स्यूल में विभेदित रहता है।
- मॉस में स्पोरोफाइट लिवरवर्ट की अपेक्षा अधिक विकसित होता है। कैप्स्यूल में स्पोर होते हैं। मिऑसिस के बाद स्पोर बनते हैं।
- मॉस में स्पोर विकिरण की बहुत विस्तृत प्रणाली होती हैं। इसके सामान्य सदस्य फ्यूनेरिया, पोलिट्राइकम तथा स्फंगनम होते हैं।
टैरिडोफाइट
- टैरिडोफाइट का सजावट में बहुत अधिक आर्थिक महत्व है। फूल वाले अधिकांश फर्न का उपयोग सजाने में करते हैं और सजावटी पौधे के रूप में उगाते हैं।
- विकास की दृष्टि से ये स्थल पर उगने वाले सर्वप्रथम पौधे हैं, जिनमें संवहन ऊतक जाइलम तथा फ्लोएम होते हैं।
- जीवाश्मी रिकार्ड के अनुसार टैरिडोफाइट 350 मिलियन वर्ष पूर्व प्रभावी वनस्पति थे और वे तने रूपी थे।
- टैरिडोफाइट के अंर्तगत हॉर्सटेल तथा फर्न आते हैं।
- टैरिडोफाइट ठंडे, गीले, छायादार स्थानों पर पाए जाते हैं। यद्यपि कुछ रेतीली मिट्टी में भी अच्छी तरह उगते हैं।
- ब्रायोफाइट के जीवन में युग्मकोद्भिद् प्रभावी अवस्था होती है । लेकिन टेरिडोफाइट में मुख्य पादपकाय स्पोरोफाइट है, जिसमें वास्तविक मूल, तना तथा पत्तियाँ होती हैं। इन अंगों में सुस्पष्ट संवहन ऊतक होते हैं।
- टैरिडोफाइट में पत्तियाँ छोटी, लघुपर्ण उदाहरणतः सिलैजिनैला अथवा बड़ी, बृहत्पर्ण हो सकती है; जैसे फर्न।
- स्पोरोफाइट में बीजाणुधानी होती हैं; जो पत्ती की तरह के बीजाणुपर्ण पर लगी रहती हैं। कुछ टैरिडोफाइट में बीजाणुपर्ण सघन होकर एक सुस्पष्ट रचना बनाते हैं जिन्हें शंकु कहते हैं। उदाहरणतः सिलैजिनेला, इक्वीसीटम ।
- बीजाणुधानी के स्थित बीजाणुमातृ कोशिका में मिऑसिस के कारण बीजाणु बनते हैं।
- बीजाणु अंकुरित होने पर एक अस्पष्ट, छोटा बहुकोशिक, मुक्तजीवी, अधिकांशतः प्रकाशसंश्लेषी थैलाभ युग्मकोद्भिद् बनाते हैं; जिसे प्रोथैलस कहते हैं।
- इन युग्मकोद्भिदों को उगने के लिए ठंडा, गीला, छायादार स्थान चाहिए। इसकी विशिष्ट, सीमित आवश्यकताएँ और निषेचन के लिए पानी की आवश्यकता कम होने के कारण जीवित टैरिडोफाइट का फैलाव भी सीमित है और कम भौगोलिक क्षेत्रों तक सीमित हैं। युग्मकोद्भिद् के नर तथा मादा अंग होते हैं; जिन्हें क्रमशः पुंधानी तथा स्त्रीधानी कहते हैं।
- पुंधानी से पुमणु के निकलने के बाद उसे स्त्रीधानी के मुँह तक पहुँचने के लिए पानी की आवश्यकता होती हैं। स्त्रीधानी में स्थित अंडे से नर युग्मक संगलन हो जाता है और युग्मनज बनता है। उसके बाद युग्मनज से बहुकोशिक, सुस्पष्ट स्पोरोफाइट बन जाता है जो टैरिडोफाइट की प्रभावी अवस्था है।
- यद्यपि अधिकांश टैरिडोफाइट में, जहाँ स्पोर एक ही प्रकार के होते हैं, उन पौधों को समबीजाणुक कहते हैं। सिलैजिनेला, साल्वीनिया में दो प्रकार के बृहद् (बड़े) तथा लघु (छोटे) स्पोर बनते हैं; जिन्हें विषमबीजाणु कहते हैं। बड़े बृहद् बीजाणु (मादा) तथा छोटे लघु बीजाणु (नर) से क्रमशः मादा तथा नर युग्मकोद्भिद् बन जाते हैं.
- ऐसे पौधों में मादा युग्मकोद्भिद् अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए पैतृक स्पोरोफाइट से जुड़ा रहता है। मादा युग्मकोद्भिद् में युग्मनज का विकास होता है; जिससे एक नया शैशव भ्रूण बनता है। यह घटना बहुत महत्त्वपूर्ण समझी जाती है जो बीजी प्रकृति की ओर ले जाती है।
टैरिडोफाइट के चार वर्ग (क्लास) होते हैं:
- साइलोपसीडा (साइलोटम),
- लाइकोपसीडा (सिलैजिनेला तथा लाइकोपोडियम),
- स्फीनोपसीडा (इक्वीसीटम) तथा
- टीरोपसीडा (ड्रायोप्टेरीस, टैरिस तथा एडिएंटम)।