कोशिका : जीवन की इकाई
कोशिका : जीवन की इकाई
- सभी जीवधारी कोशिकाओं से बने होते हैं। इनमें से कुछ जीव एक कोशिका से बने होते हैं जिन्हें एककोशिक जीव कहते हैं, जबकि दूसरे, हमारे जैसे अनेक कोशिकाओं से मिलकर बने होते हैं बहुकोशिक जीव कहते हैं।
कोशिका क्या है?
- कोशिकीय जीवधारी (1) स्वतंत्र अस्तित्व यापन व (2) जीवन के सभी आवश्यक कार्य करने में सक्षम होते हैं।
- कोशिका के बिना किसी का भी स्वतंत्र जीव अस्तित्व नहीं हो सकता। इस कारण जीव के लिए कोशिका ही मूलभूत से संरचनात्मक व क्रियात्मक इकाई होती है।
- एन्टोनवान ल्युवेनहाक ने पहली बार कोशिका को देखा व इसका वर्णन किया था। राबर्ट ब्राउन ने बाद में केंद्रक की खोज की। सूक्ष्मदर्शी की खोज व बाद में इनके सुधार के बाद फेजकन्ट्रास्ट व इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी द्वारा कोशिका की विस्तृत संरचना का अध्ययन संभव हो सका।
कोशिका सिद्धांत
- 1838 में जर्मनी के वनस्पति वैज्ञानिक मैथीयस स्लाइडेन ने बहुत सारे पौधों के अध्ययन के बाद पाया कि ये पौधे विभिन्न प्रकार की कोशिकाओं से मिलकर बने होते हैं, जो पौधों में ऊतकों का निर्माण करते हैं।
- लगभग इसी समय 1839 में एक ब्रिटिश प्राणि वैज्ञानिक थियोडोर श्वान ने विभिन्न जंतु कोशिकाओं के अध्ययन के बाद पाया कि कोशिकाओं के बाहर एक पतली पर्त मिलती है जिसे आजकल 'जीवद्रव्यझिल्ली' कहते हैं। इस वैज्ञानिक ने पादप ऊतकों के अध्ययन के बाद पाया कि पादप कोशिकाओं में कोशिका भित्ति मिलती है जो इसकी विशेषता है। उपरोक्त आधार पर श्वान ने अपनी परिकल्पना रखते हुए बताया कि प्राणियों और वनस्पतियों का शरीर कोशिकाओं और उनके उत्पाद से मिलकर बना है।
- स्लाइडेन व श्वान ने संयुक्त रूप से कोशिका सिद्धांत को प्रतिपादित किया। यद्यपि इनका सिद्धांत यह बताने में असफल रहा कि नई कोशिकाओं का निर्माण कैसे होता है।
नई कोशिका सिद्धांत
पहली बार रडोल्फ बिर्चा (1855) ने स्पष्ट किया कि कोशिका विभाजित होती है और नई कोशिकाओं का निर्माण पूर्व स्थित कोशिकाओं के विभाजन से होता है (ओमनिस सेलुल-इ सेलुला)। इन्होंने स्लाइडेन व श्वान की कल्पना को रूपांतरित कर नई कोशिका सिद्धांत को प्रतिपादित किया। वर्तमान समय के परिप्रेक्ष्य में कोशिका सिद्धांत निम्नवत है:
- सभी जीव कोशिका व कोशिका उत्पाद से बने होते हैं।
- सभी कोशिकाएं पूर्व स्थित कोशिकाओं से निर्मित होती हैं।
कोशिका का समग्र अवलोकन
- प्याज की कोशिका जो एक प्रारूपी पादप कोशिका है, जिसके बाहरी सतह पर एक स्पष्ट कोशिका भित्ति व इसके ठीक नीचे कोशिका झिल्ली होती है। मनुष्य की गाल की कोशिका के संगठन में बाहर की तरफ केवल एक झिल्ली संरचना निकलती दिखाई पड़ती है। प्रत्येक कोशिका के भीतर एक सघन झिल्लीयुक्त संरचना मिलती है, जिसे केंद्रक कहते हैं। इस केंद्रक में गुणसूत्र (क्रोमोसोम) होता है, जिसमें आनुवंशिक पदार्थ डीएनए होता है। जिस कोशिका में झिल्लीयुक्त केंद्रक होता है, उसे यूकैरियोट व जिसमें झिल्लीयुक्त केंद्रक नहीं मिलता उसे प्रोकैरियाट कहते हैं।
- दोनों यूकैरियाटिक व प्रोकैरियोटिक कोशिकाओं में इसके आयतन को घेरे हुए एक अर्द्धतरल आव्यूह मिलता है जिसे कोशिकाद्रव्य कहते हैं। दोनों पादप व जंतु कोशिकाओं में कोशिकीय क्रियाओं हेतु कोशिकाद्रव्य एक प्रमुख स्थल होता है। कोशिका की 'जीव अवस्था' संबंधी विभिन्न रासायनिक अभिक्रियाएं यहीं संपन्न होती हैं।
यूकैरियोटिक कोशिका प्रोकैरियोटिक कोशिका
- यूकैरियोटिक कोशिका में केंद्रक के अतिरिक्त अन्य झिल्लीयुक्त विभिन्न संरचनाएं मिलती हैं, जो कोशिकांग कहलाती हैं जैसे- अंतप्रद्रव्यी जालिका (ऐन्डोप्लाजमिक रेटीकुलम) सूत्र कणिकाएं (माइटोकॉन्ड्रिया) सूक्ष्मकाय (माइक्रोबॉडी), गाल्जीसामिश्र, लयनकाय (लायसोसोम) व रसधानी
- प्रोकैरियोटिक कोशिका में झिल्लीयुक्त कोशिकाओं का अभाव होता है।
- यूकैरियोटिक व प्रोकैरियोटिक दोनों कोशिकाओं में झिल्ली रहित अंगक राइबोसोम मिलते हैं। कोशिका के भीतर राइबोसोम केवल कोशिका द्रव्य में ही नहीं; बल्कि दो अंगकों- हरित लवक (पौधों में) व सूत्र कणिका में व खुरदरी अंतर्द्रव्यी जालिका में भी मिलते हैं।
- जंतु कोशिकाओं में झिल्ली रहित तारककाय केंद्रक जैसे अन्य अंगक मिलते हैं, जो कोशिका विभाजन में सहायता करते हैं।
- कोशिकाएं माप, आकार व कार्य की दृष्टि से काफी भिन्न होती हैं । उदाहरणार्थ- सबसे छोटी कोशिका माइकोप्लाज्मा 0.3 µm (माइक्रोमीटर) लंबाई की, जबकि जीवाणु (बैक्टीरिया) में 3 से 5 µm (माइक्रोमीटर) की होती हैं। पृथक की गई सबसे बड़ी कोशिका शुतरमुर्ग के अंडे के समान है।
- बहुकोशिकीय जीवधारियों में मनुष्य की लाल रक्त कोशिका का व्यास लगभग 7.0 µm (माइक्रोमीटर) होता है।
- तंत्रिका कोशिकाएं सबसे लंबी कोशिकाओं में होती हैं।
- ये बिंबाकार बहुभुजी, स्तंभी, घनाभ, धागे की तरह या असमाकृति प्रकार की हो सकती हैं। कोशिकाओं का रूप उनके कार्य के अनुसार भिन्न हो सकता है।
प्रोकैरियोटिक कोशिकाएं
- प्रोकैरियोटिक कोशिकाएं, जीवाणु, नीलहरित शैवाल, माइकोप्लाज्मा और प्ल्यूरो निमोनिया सम जीव (PPLO) मिलते हैं। सामान्यतया ये यूकैरियोटिक कोशिकाओं से बहुत छोटी होती हैं और काफी तेजी से विभाजित होती हैं ।
- माप का आकार काफी भिन्न होती हैं।
- जीवाणु के चार मूल आकार होते हैं- दंडाकार (बेसिलस), गोलाकार (कोकस), कोशाकार (विब्रो) व सर्पिल (स्पाइलर)।
- प्रोकैरियोटिक कोशिका का मूलभूत संगठन आकार व कार्य में विभिन्नता के बावजूद एक सा होता है।
- सभी प्रोकैरियोटिक में कोशिका भित्ति होती हैं जो कोशिका झिल्ली से घिरी होती है केवल माइकोप्लाज्मा को छोड़कर। कोशिका में साइटोप्लाज्म एक तरल मैट्रिक्स के रूप में भरा रहता है। इसमें कोई स्पष्ट विभेदित केंद्रक नहीं पाया जाता है। आनुवंशिक पदार्थ मुख्य रूप से नग्न व केंद्रक झिल्ली द्वारा परिबद्ध नहीं होता है।
- जिनोमिक डीएनए के अतिरिक्त (एकल गुणसूत्र / गोलाकार डीएनए) जीवाणु में सूक्ष्म डीएनए वृत्त जिनोमिक डीएनए के बाहर पाए जाते हैं। इन डीएनए वृत्तों को प्लाज्मिड कहते हैं। ये प्लाज्मिड डीएनए जीवाणुओं में विशिष्ट समलक्षणों को बताते हैं। उनमें से एक प्रतिजीवी के प्रतिरोधी होते हैं।
- प्लाज्मिड डीएनए वृत्त जीवाणु का बाहरी डीएनए के साथ रूपांतरण के प्रवोधन हेतु उपयोगी है।
- केंद्रक झिल्ली यूकैरियोटिकों में पाई जाती है। राइबोसोम के अलावा प्रोकैरियोटिको में यूकैरियोटिकों अंगक नहीं पाए जाते हैं।
- प्रोकैरियोटिकों में कुछ विशेष प्रकार के अंतर्विष्ट मिलते हैं।
- प्रोकैरियोटिक की यह विशेषता कि उनमें कोशिका झिल्ली एक विशिष्ट विभेदित आकार में मिलती है जिसे मीसोसोम कहते हैं ये तत्व कोशिका झिल्ली अंतर्वलन होते हैं।
कोशिका आवरण और इसके रूपांतर
- अधिकांश प्रोकैरियोटिक कोशिकाओं, विशेषकर जीवाणु कोशिकाओं में एक जटिल रासायनिक कोशिका आवरण मिलता है। इनमें कोशिका आवरण दृढ़तापूर्वक बंधकर तीन स्तरीय संरचना बनाते हैं; जैसे बाह्य परत ग्लाइकोकेलिक्स, जिसके पश्चात् क्रमशः कोशिका भित्ति एवं जीवद्रव्य झिल्ली होती है।
- यद्यपि आवरण के प्रत्येक परत का कार्य भिन्न है, पर यह तीनों मिलकर एक सुरक्षा इकाई बनाते हैं।
- जीवाणुओं को उनकी कोशिका आवरण में विभिन्नता व ग्राम द्वारा विकसित अभिरंजनविधि के प्रति विभिन्न व्यवहार के कारण दो श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया है, जैसे- जो ग्राम अभिरंजित होते हैं, उसे ग्राम धनात्मक एवं अन्य जो अभिरंजित नहीं हो पाते, उन्हें ग्राम ऋणात्मक कहते हैं।
- ग्लाइकोकेलिक्स विभिन्न जीवाणुओं में रचना एवं मोटाई में भिन्न होती है। कुछ में यह ढीली आच्छद होती है जिसे अवपंक पर्त कहते हैं व दूसरों में यह मोटी व कठोर आवरण के रूप में हो सकती है जो संपुटिका (केपसूल) कहलाती है।
- कोशिकाभित्ति कोशिका के आकार को निर्धारित करती है। वह सशक्त संरचनात्मक भूमिका प्रदान करती है, जो जीवाणु को फटने तथा निपातित होने से बचाती है।
- जीवद्रव्यझिल्लिका प्रकृति में वर्णात्मक होती है और इसके द्वारा कोशिका बाह्य वातावरण से संपर्क बनाए रखने में सक्षम होती है। संरचना अनुसार यह झिल्ली यूकैरियोटिक झिल्ली जैसी होती है। एक विशेष झिल्लीमय संरचना, जो जीवद्रव्यझिल्ली के कोशिका में फैलाव से बनती है, को मीसोजोम कहते हैं। यह फैलाव पुटिका, नलिका एवं पटलिका के रूप में होता है। यह कोशिका भित्ति निर्माण, डीएनए प्रतिकृति व इसके संतति कोशिका में वितरण को सहायता देता है या श्वसन, स्रावी प्रक्रिया, जीवद्रव्यझिल्ली के पृष्ठ क्षेत्र, एंजाइम मात्रा को बढ़ाने में भी सहायता करता है।
- कुछ प्रोकैरियोटिक जैसे नीलहरित जीवाणु के कोशिका द्रव्य में झिल्लीमय विस्तार होता है जिसे वर्णकी लवक कहते हैं। इसमें वर्णक पाए जाते हैं।
- जीवाणु कोशिकाएं चलायमान अथवा अचलायमान होती हैं। यदि वह चलायमान हैं तो उनमें कोशिका भित्ति जैसी पतली संरचना मिलती हैं। जिसे कशाभिका कहते हैं जीवाणुओं में कशाभिका की संख्या व विन्यास का क्रम भिन्न होता है। जीवाणु कशाभिका (फ्लैजिलम) तीन भागों में बँटा होता है- तंतु, अंकुश व आधारीय शरीर। तंतु, कशाभिका का सबसे बड़ा भाग होता है और यह कोशिका सतह से बाहर की ओर फैला होता है।
- जीवाणुओं के सतह पर पाई जाने वाली संरचना रोम व झालर इनकी गति में सहायक नहीं होती है। रोम लंबी नलिकाकार संरचना होती है, जो विशेष प्रोटीन की बनी होती है। झालर लघुशूक जैसे तंतु है जो कोशिका के बाहर प्रवर्धित होते हैं। कुछ जीवाणुओं में, यह उनको पानी की धारा में पाई जाने वाली चट्टानों व पोषक ऊतकों से चिपकने में सहायता प्रदान करती हैं।