एंजाइम क्रिया की प्रकृति एंजाइम क्रियाविधि को प्रभावित करने वाले कारक |Enzyme Nature NCERT 11TH

Admin
0

एंजाइम क्रिया की प्रकृति एंजाइम क्रियाविधि को प्रभावित करने वाले कारक |Enzyme Nature NCERT 11TH



एंजाइम 

  • लगभग सभी एंजाइम प्रोटीन होते हैं। कुछ न्यूक्लीक अम्ल एंजाइम की तरह व्यवहार करते हैंइन्हें राइबोजाइम्स कहते हैं। किसी भी एंजाइम को रेखीय चित्र द्वारा चित्रित कर सकते हैं। एक एंजाइम में भी प्रोटीन की तरह प्राथमिक संरचना मिलती है जो एमीनो अम्ल की श्रृंखला से बना होता है। प्रोटीन की तरह एंजाइम में भी द्वितीयक व तृतीयक संरचना मिलती है। जब आप तृतीयक संरचना  देखेंगे तो ध्यान देंगे कि प्रोटीन शृंखला का प्रमुख भाग अपने ऊपर स्वयं कुंडलित होता है और श्रृंखला स्वयं आड़ी-तिरछी स्थित होती है। इससे बहुत सी दरार या थैलियाँ बन जाती हैं। इस प्रकार की थैली को सक्रिय स्थल कहते हैं। 


  • एंजाइम का सक्रिय स्थल वे दरार या थैली हैंजिनमें क्रियाधार आकर व्यवस्थित होते हैं। इस प्रकार एंजाइम सक्रिय स्थल द्वारा अभिक्रियाओं को तेज गति से उत्प्रेरित करता है। एंजाइम उत्प्रेरक अकार्बनिक उत्प्रेरक से कई प्रकार से भिन्न होते हैंलेकिन इनमें एक बहुत बड़े अंतर को जानना आवश्यक है। अकार्बनिक उत्प्रेरक उच्च तापक्रम व दाब पर कुशलता से काम करते हैं। एंजाइम अणु उच्च तापक्रम (40° से. से ऊपर) पर क्षतिग्रस्त हो जाते हैं। साधारणतया अति उच्च तापक्रम (जैसे गर्म स्त्रोतों या गंधक के झरनों में) पाए जाने वाले जीवों से प्राप्त एंजाइम स्थाई होते हैं और उनकी उत्प्रेरक शक्ति उच्च तापक्रम (80° से 90° से. तक) पर भी बनी रहती है। उपरोक्त एंजाइम जो उष्मा स्नेही जीवों से पृथक् किए गए हैंउष्मास्थाई होते हैं। यह उनकी विशेषता है।

 

रासायनिक अभिक्रिया क्या होती है 

  • रासायनिक यौगिकों में दो तरह के परिर्वतन होते हैं। पहला भौतिक परिवर्तन जिसमें बिना बंध के टूटे हुए यौगिक के आकार में परिवर्तन होता है। अन्य भौतिक प्रक्रिया में द्रव्य की अवस्था में परिवर्तन होता हैजैसे बर्फ का पिघलकर पानी में परिवर्तित होना या पानी का वाष्प में बदलना। ये भौतिक प्रक्रियाएं हैं। 
  • रूपांतरण के समय बंधों का टूटना व नये बंधों का निर्माण होना ही रासायनिक अभिक्रिया होती है। उदाहरण - बेरियम हाइड्राक्साइड गंधक के अम्ल से क्रिया कर बेरियम सल्फेट व पानी बनाता है। 
  • यह एक अकाबर्निक रासायनिक अभिक्रिया है। ठीक इसी प्रकार (sटार्च का जल अपघटन द्वारा ग्लूकोज में बदलना एक कार्बनिक रसायनिक अभिक्रिया है। 
  • भौतिक या रासायनिक अभिक्रिया की दर का सीधा संबंध इकाई समय में बनने वाले उत्पाद से होता है।  
  • यदि दिशा निर्धारित हो तो इस दर को वेग भी कहते हैं। 
  • भौतिक व रासायनिक प्रक्रियाओं की दर अन्य कारकों के साथ-साथ तापक्रम द्वारा प्रभावित होती है। एक सर्वमान्य नियम के अनुसार प्रत्येक 10° सेंटिग्रेड तापक्रम के बढ़ने या घटने पर अभिक्रिया की दर क्रमशः द्विगुणित या आधी हो जाती है। उत्प्रेरित अभिक्रियाएंअनुत्प्रेरित अभिक्रियाओं की अपेक्षा उच्च दर से संपन्न होती हैं। जब किसी एंजाइम द्वारा उत्प्रेरित अभिक्रिया की दर बिना उत्प्रेरण के संपन्न होने वाली अभिक्रिया से बहुत अधिक होती है। 
एक सर्वमान्य नियम के अनुसार प्रत्येक 10° सेंटिग्रेड तापक्रम के बढ़ने या घटने पर अभिक्रिया की दर क्रमशः द्विगुणित या आधी हो जाती है।


  • यह अभिक्रिया बहुत मंद गति से होती है जिसमें एक घंटे में कार्बोनिक अम्ल के 200 अणुओं का निर्माण होता हैलेकिन उपरोक्त अभिक्रिया कोशिका द्रव्य में उपस्थित एंजाइम कार्बोनिक एनहाइड्रेज की उपस्थिति में तीव्रगति से संपन्न होती हैजिसके कार्बोनिक अम्ल के 600000 अणु प्रति सेकेंड बनते हैं। एंजाइम ने इस क्रिया की दर को 10 लाख गुना बढ़ा दिया। एंजाइम की यह शक्ति वास्तव में अविश्वसनीय लगती है। 

  • हजारों प्रकार के एंजाइम होते हैं जो विशेष प्रकार की रासायनिक व उपापचयी अभिक्रियाओं को उत्प्रेरित करते हैं। बहुचरणीय रासायनिक अभिक्रियाओं में जहाँ प्रत्येक चरण एक ही जटिल एंजाइम या विभिन्न प्रकार के एंजाइम से उत्प्रेरित होती हैतो इन्हें उपापचयी पथ कहते हैं।  
  • ग्लूकोज से पाइरूविक अम्ल का निर्माण एक रासायनिक पथ द्वारा होता हैजिसमें दस विभिन्न प्रकार के एंजाइम उपापचयी अभिक्रिया को उत्प्रेरित करते हैं।  इस अवस्था में आपको जान लेना चाहिए कि एक ही उपापचयी पथ एक या दो अतिरिक्त अभिक्रियाओं के द्वारा विभिन्न प्रकार के उपापचयी उत्पाद बनाते हैं। 
  • हमारी कंकाली पेशियों में अनॉक्सी स्थिति में लैक्टिक अम्ल का निर्माण होता है जबकि सामान्य ऑक्सी स्थिति में पाइरूविक अम्ल का निर्माण होता है। खमीर में किण्वन के दौरान उपरोक्त पथ द्वारा इथेनाल (एल्कोहल) का निर्माण होता है। विभिन्न दिशाओं में विभिन्न प्रकार के उत्पाद का निर्माण संभव है।

 

एंजाइम द्वारा उच्च दर से रासायनिक रूपांतरण कैसे होता है? 

  • रासायनिक या उपापचयी रूपांतरण एक अभिक्रिया होती है। जो रसायन (Chemical) उत्पाद में रूपांतरित होता हैउसे क्रियाधार (Substrate) कहते हैं। एंजाइम जो एक सक्रिय स्थल सहित एक त्रिविम संरचना की प्रोटीन हैजो एक क्रियाधार को उत्पाद में बदलता है।  
  • क्रियाधार (S) एंजाइम के सक्रिय स्थल जो दरार या पुटिका के रूप में होता हैसे जुड़ जाता है। क्रियाधार सक्रिय स्थल की ओर जाते हैं। इस प्रकार आवश्यक एंजाइम-क्रियाधार सम्मिश्र (ES) का अविकल्पीय निर्माण होता है। ई (E) एंजाइम को प्रदर्शित करता है। इस समूह का निर्माण एक अल्पकालिक घटना है। 
  • क्रियाधार एंजाइम के सक्रिय स्थल से जुड़ने की अवस्था में क्रियाधार की नई संरचना का निर्माण होता है जिसे संक्रमण अवस्था-संरचना कहते हैं। इसके बाद शीघ्र ही प्रत्याशित बंध के टूटने या बनने के उपरांत सक्रिय स्थल से उत्पाद अवमुक्त होता है। दूसरे शब्दों में क्रियाधार की संरचना उत्पाद की संरचना में रूपांतरित हो जाती है। 
  • रूपांतरण का यह पथ तथा कथित संक्रमण अवस्था के द्वारा होता है। स्थाई क्रियाधार व उत्पाद के बीच में बहुत सारी 'रूपांतरित संरचनात्मक अवस्थाहो सकती है। इस कथन का आशय है कि बनने वाली सभी मध्यवर्ती संरचनात्मक अवस्था अस्थाई होती है। स्थाइत्व का संबंध अणु की ऊर्जा अवस्था या संरचना से जुड़ा होता है। यदि इसे चित्रात्मक लेखाचित्र के रूप में प्रदर्शित किया जाए तो यह चित्र 9.4 के अनुरूप होगा। 
रूपांतरण का यह पथ तथा कथित संक्रमण अवस्था के द्वारा होता है। स्थाई क्रियाधार व उत्पाद के बीच में बहुत सारी 'रूपांतरित संरचनात्मक अवस्था' हो सकती है। इस कथन का


  • y- अक्ष अंतर्निहित ऊर्जा अंश को व्यक्त करता है। x- अक्ष संरचनात्मक रूपांतरण की या वह अवस्था जिसका निर्माण मध्यवर्ती संरचना द्वारा होता हैकी प्रगति को व्यक्त करता है। दो चीजें ध्यान देने योग्य है। क्रियाधार (S) व उत्पाद (p) के बीच ऊर्जा स्तर में अंतर। यदि उत्पाद क्रियाधार से नीचे स्तर का है तो अभिक्रिया बाह्य उष्मीय होती है। इस अवस्था में उत्पाद निर्माण हेतु ऊर्जा आपूर्ति (गर्म करने से) की आवश्यकता नहीं होती है। फिर भी चाहे यह बाह्यउष्मीय या स्वतः प्रवर्तित अभिक्रिया या अंतः उष्मीय या ऊर्जा आवश्यक अभिक्रिया हो क्रियाधार को उच्च ऊर्जा अवस्था या संक्रमण अवस्था से गुजरना होता है। क्रियाधार व संक्रमण अवस्था के बीच औसत ऊर्जा के अंतर को 'सक्रियण ऊर्जा' (Activation energy) कहते हैं। 
  • एंजाइम ऊर्जा अवरोध को घटाकर क्रियाधार से उत्पाद के आसान रूपांतरण में सहयोग करता है।

 

एंजाइम क्रिया की प्रकृति 

  • प्रत्येक एंजाइम (E) के अणु में क्रियाधार-बंधन-स्थल (Substrate binding site) मिलता है जो क्रियाधार (s) से बंध कर सक्रिय एंजाइम-क्रियाधार सम्मिश्र (ES) का निर्माण करता है। यह सम्मिश्र अल्पावधि का होता हैजो उत्पाद (P) एंव अपरिवर्तित एंजाइम में विघटित हो जाता है इसके पूर्व मध्यावस्था के रूप में एंजाइम उत्पाद (EP) जटिल का निर्माण होता है। 
  • एंजाइम-क्रियाधार जटिल (ES) का निर्माण उत्प्रेरण के लिए आवश्यक होता है।

 

एंजाइम-क्रियाधार जटिल (ES) का निर्माण उत्प्रेरण के लिए आवश्यक होता है।

 

एंजाइम क्रिया के उत्प्रेरक चक्र को निम्न चरणों में व्यक्त किया जा सकता है- 

1. सर्वप्रथम क्रियाधार सक्रिय स्थल में व्यवस्थित होकर एंजाइम के सक्रिय स्थल से बंध जाता है। 

2. बँधने वाला क्रियाधार एंजाइम के आकार में इस प्रकार से बदलाव लाता है कि क्रियाधार एंजाइम से मजबूती से बँध जाता है। 

3. एंजाइम का सक्रिय स्थल अब क्रियाधार के काफी समीप होता है जिसके परिणामस्वरूप क्रियाधार के रासायनिक बंध टूट जाते हैं और नए एंजाइम उत्पाद जटिल का निर्माण होता है। 

4. एंजाइम नवनिर्मित उत्पाद को अवमुक्त करता है व एंजाइम स्वतंत्र होकर क्रियाधार के दूसरे अणु से बँधने के लिए तैयार हो जाता है। इस प्रकार पुनः उत्प्रेरक चक्र प्रारंभ हो जाता है।

 

एंजाइम क्रियाविधि को प्रभावित करने वाले कारक 

जो कारक प्रोटीन की तृतीयक संरचना को परिवर्तित करते हैंवे एंजाइम की सक्रियता को भी प्रभावित करते हैंजैसे तापक्रमपी.एच. (pH)। क्रियाधार की सांद्रता में परिवर्तन या किसी विशिष्ट रसायन का एंजाइम से बंधनउसकी प्रक्रिया को नियंत्रित करते हैं।

 

तापक्रम व पी एच (pH) 

  • एंजाइम सामान्यतः तापक्रम व पी एच के लघु परिसर में कार्य करते हैं । प्रत्येक एंजाइम की अधिकतम क्रियाशीलता एक विशेष तापक्रम व पी एच पर ही होती हैजिसे क्रमशः ईष्टतम तापक्रम व पी एच कहते हैं। इस ईष्टतम मान के ऊपर या नीचे होने से क्रियाशीलता घट जाती है। निम्न तापक्रम एंजाइम को अस्थाई रूप से निष्क्रिय अवस्था में सुरक्षित रखता हैजबकि उच्च तापक्रम एंजाइम की क्रियाशीलता को समाप्त कर देता हैक्योंकि उच्च तापक्रम एंजाइम एंजाइम के के प्रोटीन को विकृत कर देता है।


क्रियाधार की सांद्रता 

  • क्रियाधार की सांद्रता (s) के बढ़ने के साथ-साथ पहले तो एंजाइम क्रिया की गति (v) बढ़ती है। अभिक्रिया अंततोगत्वा सर्वोच्च गति (Vmax) प्राप्त करने के बाद क्रियाधार की सांद्रता बढ़ने पर भी अग्रसर नहीं होती है। ऐसा इसलिए होता है कि एंजाइम के अणुओं की संख्या क्रियाधार के अणुओं से कहीं कम होती हैं और इन अणुओं से एंजाइम के संतृप्त होने के बाद एंजाइम का कोई भी अणु क्रियाधार के अतिरिक्त अणुओं से बंधन करने के लिए मुक्त नहीं बचता है 
  • किसी भी एंजाइम की क्रियाशीलता विशिष्ट रसायनों की उपस्थिति में संवेदनशील होती है जो एंजाइम से बँधते हैं। जब रसायन का एंजाइम से बँधने के उपरांत इसकी क्रियाशीलता बंद हो जाती है तो इस प्रक्रिया को संदमन (Inhibition) व उस रसायन को संदमक (Inhihitor) कहते हैं। 
  • जब संदमक अपनी आणुविक संरचना में क्रियाधार से काफी समानता रखता है और एंजाइम की क्रियाशीलता को संदमित करता हो तो इसे प्रतिस्पर्धात्मक संदमन (Competitive Inhibitor) कहते हैं। संदमक की क्रियाधार से निकटतम संरचनात्मक समानता के फलस्वरूप यह क्रियाधार से एंजाइम के क्रियाधार-बंधक स्थल से बंधते हुए प्रतिस्पर्धा करता है। परिणामस्वरूप क्रियाधारक्रियाधार बंधक स्थल से बंध नहीं पाताजिसके फलस्वरूप एंजाइम क्रिया मंद पड़ जाती है। उदाहरण के लिएसक्सीनिक डिहाइड्रोजिनेज का मेलोनेट द्वारा संदमन जो संरचना में क्रियाधार सक्सीनेट से निकट की समानता रखता है। ऐसे प्रतिस्पर्धी संदमकों का अक्सर उपयोग जीवाणु जन्म रोगजनकों (Bacterial Pathogens) के नियंत्रण हेतु किया जाता है।

Post a Comment

0 Comments
Post a Comment (0)

#buttons=(Accept !) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Learn More
Accept !
To Top