राइबोसोम व अंतर्विष्ट पिंड, कोशिका झिल्ली
राइबोसोम व अंतर्विष्ट पिंड
- प्रोकैरियोटिक में राइबोसोम कोशिका की जीवद्रव्यझिल्ली से जुड़े होते हैं। ये 15 से 20 नैनोमीटर आकार की होती हैं और दो उप इकाइयों में 50 व 30S की बनी होती हैं, जीवद्रव् जो आपस में मिलकर 70S प्रोकैरियोटिक राइबोसोम बनाते हैं।
- राइबोसोम के उपर प्रोटीन संश्लेषित होती है।
- बहुत से राइबोसोम एक संदेषवाहक आरएनए से संबद्ध होकर एक श्रृंखला बनाते हैं। जिसे बहुराइबोसोम अथवा बहुसूत्र कहते हैं। बहुसूत्र का राइबोसोम संदेशवाहक आरएनए से संबद्ध होकर प्रोटीन निर्माण में भाग लेता है।
अंतर्विष्ट पिंड :
- प्रोकैरियोटिक कोशिकाओं में बचे हुए पदार्थ कोशिकाद्रव्य में अंतर्विष्ट पिंड के रूप में संचित होते हैं। ये झिल्ली द्वारा घिरे नहीं होते एवं कोशिकाद्रव्य में स्वतंत्र रूप से पड़े रहते हैं, उदाहरणार्थ फॉस्फेट कणिकाएं, साइनोफाइसिन कणिकाएं और ग्लाइकोजन कणिकाएं। गैस रसधानी नील हरित, बैंगनी और हरी प्रकाश संश्लेषी जीवाणुओं में मिलती हैं।
यूकैरियोटिक कोशिकाएं (ससीमकेंद्रकी कोशिकाएं)
- सभी आद्यजीव, पादप, प्राणी व कवक में यूकैरियोटिक कोशिकाएं होती हैं।
- यूकैरियोटिक कोशिकाओं में झिल्लीदार अंगकों की उपस्थिति के कारण कोशिकाद्रव्य विस्तृत कक्षयुक्त प्रतीत होता है।
- यूकैरियोटिक कोशिकाओं में झिल्लीमय केंद्रक आवरण युक्त व्यवस्थित केंद्रक मिलता है।
- इसके अतिरिक्त यूकैरियोटिक कोशिकाओं में विभिन्न प्रकार के जटिल गतिकीय एवं कोशिकीय कंकाल जैसी संरचना मिलती है। इनमें आनुवंशिक पदार्थ गुणसूत्रों के रूप में व्यवस्थित रहते हैं।
- सभी यूकैरियोटिक कोशिकाएं एक जैसी नहीं होती हैं। पादप व जंतु कोशिकाएं भिन्न होती हैं।
- पादप कोशिकाओं में कोशिका भित्ति, लवक एवं एक बड़ी केंद्रीय रसधानी मिलती है, जबकि प्राणी कोशिकाओं में ये अनुपस्थित होती हैं .
- दूसरी तरफ प्राणी कोशिकाओं में तारकाय मिलता है जो लगभग सभी पादप कोशिकाओं में अनुपस्थित होता है
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1 कोशिका झिल्ली
- वर्ष 1950 के इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी की खोज के बाद कोशिका झिल्ली की विस्तृत संरचना का ज्ञान संभव हो सका है। इस बीच मनुष्य की लाल रक्तकणिकाओं की कोशिका झिल्ली के रासायनिक अध्ययन के बाद जीवद्रव्यझिल्ली की संभावित संरचना के बारे में जानकारी प्राप्त हो सकी।
- अध्ययनों के बाद इस बात की पुष्टि हुई की कोशिकाझिल्ली मुख्यतः लिपिड व प्रोटीन की बनी होती है। इसमें प्रमुख लिपिड, फास्फोलिपिड होते हैं, जो दो सतहों में व्यवस्थित होती है।
- लिपिड झिल्ली के अंदर व्यवस्थित होते हैं, जिनका ध्रुवीय सिरा बाहर की ओर व जल भीरू पुच्छ सिरा अंदर की ओर होता है। इससे सुनिश्चित होता है कि संतृप्त हाइड्रोकार्बन की बनी हुई अध्रुवीय पुच्छ जलीय वातावरण से सुरक्षित रहती हैं । इसके अतिरिक्त फास्फोलिपिड झिल्ली में कोलेस्टेराल भी होता है।
- बाद में, जैव रासायनिक अनुसंधानों से यह स्पष्ट हो गया है कि कोशिका झिल्ली में प्रोटीन व कार्बोहाइड्रेट पाया जाता है।
- विभिन्न कोशिकाओं में प्रोटीन व लिपिड का अनुपात भिन्न-भिन्न होता है। मनुष्य की रुधिराणु (इरीथ्रोसाइट) की झिल्ली में लगभग 52 प्रतिशत प्रोटीन व 40 प्रतिशत लिपिड मिलता है।
- झिल्ली में पाए जाने वाले प्रोटीन को अलग करने की सुविधा के आधार पर दो अंगभूत व परिधीय प्रोटीन भागों में विभक्त कर सकते हैं। परिधीय प्रोटीन झिल्ली की सतह पर होता है, जबकि अंगभूत प्रोटीन आंशिक या पूर्णरूप से झिल्ली में धंसे होते हैं।
सिंगर व निकोल्सन
- कोशिका झिल्ली का उन्नत नमूना 1972 में सिंगर व निकोल्सन द्वारा प्रतिपादित किया गया जिसे तरल किर्मीर नमूना के रूप में व्यापक रूप से स्वीकार कर किया गया । इसके अनुसार लिपिड के अर्धतरलीय प्रकृति के कारण फास्फोलिपिड द्विसतह के भीतर प्रोटीन पाश्विक गति करता है। झिल्ली के भीतर गति करने की क्षमता उसकी तरलता पर निर्भर करती है।
- झिल्ली की तरलीय प्रकृति इसके कार्य जैसे- कोशिकावृद्धि, अंतरकोशिकीय संयोजन का निर्माण, स्रवण, अंतकोशिक, कोशिका विभाजन इत्यादि की दृष्टि में महत्वपूर्ण है।
- जीवद्रव्यझिल्ली का सर्वाधिक महत्वपूर्ण कार्य यह है कि इससे अणुओं का परिवहन होता है। यह झिल्ली इसके दोनों तरफ मिलने वाले अणुओं के लिए चयनित पारगम्य है। कुछ अणु बिना ऊर्जा की आवश्यकता के इस झिल्ली से होकर आते हैं जिसे निष्क्रिय परिवहन कहते हैं। उदासीन विलेय सांद्रप्रवणता के अनुसार जैसे- उच्च सांद्रता से निम्न सांद्रता की ओर साधारण विसरण द्वारा इस झिल्ली से होकर जाते हैं। जल भी इस झिल्ली से उच्च सांद्रता से निम्न सांद्रता की ओर गति करता है। विसरण द्वारा जल के प्रवाह को परासरण कहते हैं। चूँकि ध्रुवीय अणु जो अध्रुवीय लिपिड द्विसतह से होकर नहीं जा सकते, उन्हें झिल्ली से होकर परिवहन के लिए झिल्ली की वाहक प्रोटीन की आवश्यकता होती है।
- कुछ आयन या अणुओं का झिल्ली से होकर परिवहन उनकी सांद्रता प्रवणता के विपरीत जैसे निम्न से उच्च सांद्रता की ओर होता है। इस प्रकार के परिवहन हेतु ऊर्जा आधारित प्रक्रिया होती है, जिसमें एटीपी का उपयोग होता है जिसे सक्रिय परिवहन कहते हैं। यह एक पंप के रूप में कार्य करता है जैसे- सोडियम आपन/पोटैसियम आपन पंप।
2 कोशिका भित्ति
- कवक व पौधों की जीवद्रव्यझिल्ली के बाहर पाए जाने वाली दृढ़ निर्जीव आवरण को कोशिका भित्ति कहते हैं। कोशिका भित्ति कोशिका को केवल यांत्रिक हानियों और संक्रमण से ही रक्षा नहीं करता है; बल्कि यह कोशिकाओं के बीच आपसी संपर्क बनाए रखने तथा अवांछनीय वृहद अणुओं के लिए अवरोध प्रदान करता है।
- शैवाल की कोशिका भित्ति सेलुलोज, गैलेक्टेन्स, मैनान्स व खनिज जैसे कैल्सियम कार्बोनेट की बनी होती है, जबकि दूसरे पौधों में यह सेलुलोज, हेमीसेलुलोज, पेक्टीन व प्रोटीन की बनी होती है। नव पादप कोशिका की कोशिका भित्ति में स्थित प्राथमिक भित्ति में वृद्धि की क्षमता होती है, जो कोशिका की परिपक्वता के साथ घटती जाती है व इसके साथ कोशिका के भीतर की तरफ द्वितीय भित्ति का निर्माण होने लगता है।
- मध्यपटलिका मुख्यतयः कैल्सियम पेक्टेट की बनी सतह होती है जो आस-पास की विभिन्न कोशिकाओं को आपस में चिपकाएं व पकड़े रहती है।
- कोशिका भित्ति एवं मध्य पटलिका में जीवद्रव्य तंतु (प्लाज्मोडैस्मेटा) आड़े-तिरछे रूप में स्थित रहते हैं। जो आस-पास की कोशिका द्रव्य को जोड़ते हैं।