मेंढक में मादा व नर जनन तंत्र ,मेंढक में भिन्न प्रकार के संवेदी अंग
मेंढक संवेदी अंग
- मेंढक में भिन्न प्रकार के संवेदी अंग पाए जाते हैं। जैसे- स्पर्श अंग (संवेदी पिप्पल) स्वाद अंग (स्वाद कलिकाएं) गंध (नासिका उपकला) दृष्टि (नेत्र) व श्रवण (कर्ण पटह और आंतरिक कर्ण)।
- इन सब में आँखें और आंतरिक कर्ण सुव्यवस्थित होते हैं और बचे हुए दूसरे संवेदी अंग केवल तंत्रिका सिरों पर कोशिकाओं के गुच्छे होते हैं।
- मेंढक में एक जोड़ी गोलाकार नेत्र गड्ढों में स्थित होते हैं। ये साधारण नेत्र होते हैं।
- मेंढक में बाह्य कर्ण अनुपस्थित होता है केवल कर्णपट ही बाहर से दिखाई देता है। कर्ण एक ऐसा अंग है जो सुनने के साथ-साथ संतुलन का काम भी करता है।
मेंढक में मादा व नर जनन तंत्र
मेंढक में नर जनन
- मेंढक में मादा व नर जनन तंत्र अलग एवं पूर्ण सुव्यवस्थित होते हैं। नर जननांग एक जोड़ी पीले अंडाकार वृषण होते हैं जो, वृक्क के ऊपरी भाग से पेरिटोनियम के दोहरीवलय, मेजोर्कियम नामक झिल्ली द्वारा चिपके रहते हैं।
- शुक्र वाहिकाएं संख्या में 10-12 होती हैं जो वृषण से निकलने के बाद अपनी ओर के वृक्क में धंस जाती हैं। वृक्क में ये विडर नाल में खुलती हैं, जो अंत में मूत्रवाहिनी में खुलती है। अब मूत्रवाहिनी मूत्र-जनन वाहिनी कहलाती है, जो वृक्क से बाहर आकर अवस्कर में खुलती है। अवस्कर एक छोटा मध्यकक्ष होता है, जो कि उत्सर्जी पदार्थ, मूत्र तथा शुक्राणुओं को बाहर भेजने का कार्य करता है।
मेंढक में नर जनन
मादा में वृक्क के पास एक जोड़ी अंडाशय उपस्थित होते हैं . लेकिन इनका वृक्क से कोई क्रियात्मक संबंध नहीं होता है।
एक जोड़ी अंडवाहिनियाँ अवस्कर में अलग-अलग खुलती हैं।
एक परिपक्व मादा एक बार में 2,500 से 3,000 अंडे दे सकती है। इनमें बाह्य निषेचन पानी में होता है।
भ्रूण परिवर्धन लार्वा के माध्यम से होता है, लार्वा टैडपोल कहलाता है।
मेंढक मनुष्य के लिए लाभदायक
- मेंढक मनुष्य के लिए लाभदायक प्राणी है। यह कीटों को खाता है और इस तरह फसलों की रक्षा करता है।
- मेंढक वातावरण संतुलन बनाए रखते हैं; क्योंकि यह पारिस्थितिकी तंत्र की एक महत्वपूर्ण भोजन श्रृंखला की एक कड़ी है।
- कुछ देशों में मांसल पाद मनुष्यों द्वारा भोजन के रूप में इस्तेमाल किए जाते हैं।
Animal Morphology Fact in HIndi
- कोशिका ,ऊतक, अंग और अंग तंत्र कार्य को इस प्रकार विभक्त कर लेते हैं कि शरीर का बना रहना सुनिश्चित रहे और इस तरह वे श्रम विभाजन प्रदर्शित करते हैं।
- कोशिकाओं का ऐसा समूह जो अंतराकोशीय पदार्थों से बना होता है तथा एक या अधिक कार्य करता है, ऊतक कहलाता है।
- उपकला शरीर के चादर जैसे ऊतक होते हैं बाह्य सतह और गुहिकाओं, वाहिनियों और नलिकाओं का आस्तर है। उपकलाओं की एक मुक्त सतह होती है जिसके एक तरफ शरीर तरह तथा दूसरी तरफ बाह्य वातावरण होता है। इनकी कोशिकाएं संरचनात्मक एवं क्रियात्मक रूप से संधियों से जुड़ी रहती हैं।
- भारतीय बुलफ्राग, राना टिग्रीना भारत में पाया जाने वाला सामान्य मेंढक है। इसका शरीर त्वचा से ढका रहता है। त्वचा पर श्लेष्म ग्रंथियाँ पाई जाती है जो अत्यधिक संवहनी होती है तथा श्वसन (जल तथा थल) में सहायता करती है। शरीर, सिर और धड़ में विभक्त रहता है। एक पेशीय जिह्वा उपस्थित रहती है जो किनारे से कटी हुई ओर द्विपालित (वाईलोब्ड) होती है। यह शिकार को पकड़ने में मदद करती है।
- आहारनाल, ग्रसिका, आमाशय, आंत्र और मलाशय की बनी होती है, जो अवस्कर द्वारा बाहर की ओर खुलती है।
- मुख्य पाचन ग्रंथियाँ, यकृत और अग्नाशय हैं। यह पानी में त्वचा द्वारा तथा जमीन पर फेफड़ों द्वारा श्वसन करता है।
- रुधिर परिसंचरण तंत्र बंद और एकल प्रकार का होता है। लाल रुधिर कणिकाएं केंद्रक युक्त होती हैं तंत्रिका तंत्र, केंद्रीय, परिधीय और स्वायत्त प्रकार का होता है।
- जनन तंत्र के मूल अंग वृक्क एवं मूत्र जनन नलिकाएं हैं, जो अवस्कर में खुलती है। नर जननांग एक जोड़ी वृषण तथा मादा जननांग एक जोड़ी अंडाशय होते है।
- एक मादा एक बार में 2500 से 3000 अंडे देती है। निषेचन और परिवर्धन बाह्य होता है। अंडों से टेडपोल निकलता है, जो मेंढक में कायांतरित हो जाता है।